दुनिया की सबसे स्वच्छ नदी में शुमार चंबल में पानी की लगातार हो रही कमी से घड़ियालों पर संकट मंडराने लगा है और उनकी संख्या भी कम होती जा रही है। चंबल सेंचुरी क्षेत्र के गांव लालपुरा के पास चंबल नदी में घड़ियालों की मौत के बाद वन्य जंतु विभाग के अधिकारियों ने उनका पोस्टमार्टम कराया। पशु चिकित्सकों ने घड़ियालों की मौत का कारण लिवर और फेफड़ों का डैमेंज होना बताया। इटावा। चंबल नदी में दुर्लभ प्रजाति दो घड़ियालों की मौत के बाद चंबल सेंचुरी के अफसरों में हड़कंप मचा हुआ है। घड़ियालों की मौत की यह घटना मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के जिला इटावा के चंबल नदी में हुई है। बताते चले कि साल 2007 के आखिर और 2008 के शुरूआती दिनों में चंबल में रहस्यमय बीमारी फैलने के कारण करीब 150 से अधिक घड़ियालों की मौत हो गई थी जिसका आज तक राज खुल नहीं सका है।
बिठौली इलाके के लालपुर गांव के पास चंबल नदी में मरे दो घड़ियालों के शवों को उठा कर पोस्टमार्टम कराया गया लेकिन प्रारंभिक तौर पर मौत के कारण साफ नहीं हो सका।
जहां पर पोस्टमार्टम के करने वाले डाक्टरों का कहना है कि घड़ियालों की मौत का कारण लिवर सिरोसिस माना जा रहा है लेकिन पर्यावरणीय विशेषज्ञ घड़ियालों की मौत को अवैध शिकार से जोड़ कर चल रहे है। संदेह की शंका पर दो डाक्टरों की टीम ने मरे हुए घड़ियालों के शवों का परीक्षण किया।
दुनिया की सबसे स्वच्छ नदी में शुमार चंबल में पानी की लगातार हो रही कमी से घड़ियालों पर संकट मंडराने लगा है और उनकी संख्या भी कम होती जा रही है। चंबल सेंचुरी क्षेत्र के गांव लालपुरा के पास चंबल नदी में घड़ियालों की मौत के बाद वन्य जंतु विभाग के अधिकारियों ने उनका पोस्टमार्टम कराया।
पशु चिकित्सकों ने घड़ियालों की मौत का कारण लिवर और फेफड़ों का डैमेंज होना बताया। इलाकाई लोगों का कहना है कि घड़ियालों की मौत अवैध शिकारियों के जाल में फंसने के कारण हुई है।
चंबल नदी में डॉलफिन, घड़ियाल, मगरमच्छ व कछुआ को संरक्षित किया जाता है। इन जलीय जीवों का मुख्य भोजन मछली होने से चंबल सेंचुरी क्षेत्र में मछली के शिकार पर पूर्ण प्रतिबंध है। इसके बाद भी चोरी-छिपे बड़े पैमाने पर मछली का शिकार होता है। इस कारण कभी-कभी शिकारियों के जाल में छोटे-बड़े घड़ियाल फंस जाते हैं और शिकारी अपना जाल बचाने के लिए उनकी हत्या कर नदी में फेंक देते हैं।
पोस्टमार्टम करने वाली टीम के सदस्य डा. अनुपम चौधरी व जावेद इकबाल का कहना है कि घड़ियालों के फेफड़ों में पानी मौजूद था। लिवर डैमेंज के कारण मौत हुई है। मृत घड़ियालों की उम्र चार व ढाई वर्ष के लगभग है। इनकी लंबाई 148 सेमी व 110 सेमी पाई गई है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार इनकी मौत चार दिन पहले हुई है।
इस संबंध में प्रभारी सेक्सन इंचार्ज ओमप्रकाश बघेल ने जानकारी देने से इनकार कर दिया। रेंज अधिकारी वन्य जीव जंतु सुरेश चंद्र राजपूत ने बताया कि घड़ियालों की मौत के कारणों की जांच करवाई जा रही है। डाक्टरों के अनुसार मौत लिवर डैमेज के कारण हुई है। शरीर पर कोई चोट का निशान नहीं था।
वर्ष 1989 में चम्बल सेंचुरी घोषित होने के बाद यहां पर्यटकों का आना शुरू हो गया था। घडियाल मगरमच्छ और डॉलफिन पर्यटकों के आकर्षण का मुख्य केन्द्र होते थे। वर्ष 2008 में किसी अज्ञात बीमारी से घड़ियालों की मौत का सिलसिला शुरू हो गया। उनकी लगातार हो रही मौत ने दुनिया भर के वन्य जीव प्रेमियों को हैरान कर दिया।
अमेरिका फ्रांस एवं दक्षिण अफ्रीका के वन्य जीव विशेषज्ञों ने यहां डेरा डाल दिया। जब तक वे मौत के रहस्य को जान पाते तब तक डेढ़ सौ से ज्यादा घडियाल, दो मगरमच्छ और एक डॉलफिन काल के गाल में समा चुके थे। रहस्यमयी बीमारी के बाद चंबल नदी में लगातार कम हो रहा पानी घड़ियालों के लिए नई मुसीबत बन कर आया है।
चंबल सेंचुरी के वार्डन गुरमीत सिंह बताते हैं कि घडियाल गहरे पानी में रहना और जाड़े में धूप सेंकना पसंद करते हैं। बरसात अच्छी होने पर अभी ज्यादा संकट दिखाई नहीं देता लेकिन गर्मियों में स्थिति भयावह हो सकती है और चंबल में घड़ियाल दिखाई देना बंद हो सकते हैं।
श्री सिंह ने कहा कि सिर्फ घड़ियाल ही नहीं चंबल में पानी के कम होने से मगरमच्छ और डॉलफिन पर भी संकट है। घड़ियाल और मगरमच्छ हमेशा से पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र रहे हैं। यदि इनकी संख्या कम हुई तो पर्यटकों का आना भी कम होगा जिससे विदेशी मुद्रा का भी नुकसान होगा।
चंबल नदी के साफ पानी को देखते हुए सरकार ने घड़ियाल संरक्षण योजना के तहत 1979 में एक हजार दो सौ घड़ियाल छोड़े थे। यह योजना यदि परवान चढ़ गई होती तो आज चंबल नदी में हजारों की संख्या में घड़ियाल होते लेकिन ऐसा नहीं हो सका। घड़ियालों की संख्या में लगातार कमी आती जा रही है।
मादा घड़ियाल और मादा कछुओं के लिए दिसम्बर का महीना अंडे देने का होता है। अंडों और पानी के बीच की दूरी से उनके बच्चों पर भी संकट पैदा हो जाएगा।
बिठौली इलाके के लालपुर गांव के पास चंबल नदी में मरे दो घड़ियालों के शवों को उठा कर पोस्टमार्टम कराया गया लेकिन प्रारंभिक तौर पर मौत के कारण साफ नहीं हो सका।
जहां पर पोस्टमार्टम के करने वाले डाक्टरों का कहना है कि घड़ियालों की मौत का कारण लिवर सिरोसिस माना जा रहा है लेकिन पर्यावरणीय विशेषज्ञ घड़ियालों की मौत को अवैध शिकार से जोड़ कर चल रहे है। संदेह की शंका पर दो डाक्टरों की टीम ने मरे हुए घड़ियालों के शवों का परीक्षण किया।
दुनिया की सबसे स्वच्छ नदी में शुमार चंबल में पानी की लगातार हो रही कमी से घड़ियालों पर संकट मंडराने लगा है और उनकी संख्या भी कम होती जा रही है। चंबल सेंचुरी क्षेत्र के गांव लालपुरा के पास चंबल नदी में घड़ियालों की मौत के बाद वन्य जंतु विभाग के अधिकारियों ने उनका पोस्टमार्टम कराया।
पशु चिकित्सकों ने घड़ियालों की मौत का कारण लिवर और फेफड़ों का डैमेंज होना बताया। इलाकाई लोगों का कहना है कि घड़ियालों की मौत अवैध शिकारियों के जाल में फंसने के कारण हुई है।
चंबल नदी में डॉलफिन, घड़ियाल, मगरमच्छ व कछुआ को संरक्षित किया जाता है। इन जलीय जीवों का मुख्य भोजन मछली होने से चंबल सेंचुरी क्षेत्र में मछली के शिकार पर पूर्ण प्रतिबंध है। इसके बाद भी चोरी-छिपे बड़े पैमाने पर मछली का शिकार होता है। इस कारण कभी-कभी शिकारियों के जाल में छोटे-बड़े घड़ियाल फंस जाते हैं और शिकारी अपना जाल बचाने के लिए उनकी हत्या कर नदी में फेंक देते हैं।
पोस्टमार्टम करने वाली टीम के सदस्य डा. अनुपम चौधरी व जावेद इकबाल का कहना है कि घड़ियालों के फेफड़ों में पानी मौजूद था। लिवर डैमेंज के कारण मौत हुई है। मृत घड़ियालों की उम्र चार व ढाई वर्ष के लगभग है। इनकी लंबाई 148 सेमी व 110 सेमी पाई गई है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार इनकी मौत चार दिन पहले हुई है।
इस संबंध में प्रभारी सेक्सन इंचार्ज ओमप्रकाश बघेल ने जानकारी देने से इनकार कर दिया। रेंज अधिकारी वन्य जीव जंतु सुरेश चंद्र राजपूत ने बताया कि घड़ियालों की मौत के कारणों की जांच करवाई जा रही है। डाक्टरों के अनुसार मौत लिवर डैमेज के कारण हुई है। शरीर पर कोई चोट का निशान नहीं था।
वर्ष 1989 में चम्बल सेंचुरी घोषित होने के बाद यहां पर्यटकों का आना शुरू हो गया था। घडियाल मगरमच्छ और डॉलफिन पर्यटकों के आकर्षण का मुख्य केन्द्र होते थे। वर्ष 2008 में किसी अज्ञात बीमारी से घड़ियालों की मौत का सिलसिला शुरू हो गया। उनकी लगातार हो रही मौत ने दुनिया भर के वन्य जीव प्रेमियों को हैरान कर दिया।
अमेरिका फ्रांस एवं दक्षिण अफ्रीका के वन्य जीव विशेषज्ञों ने यहां डेरा डाल दिया। जब तक वे मौत के रहस्य को जान पाते तब तक डेढ़ सौ से ज्यादा घडियाल, दो मगरमच्छ और एक डॉलफिन काल के गाल में समा चुके थे। रहस्यमयी बीमारी के बाद चंबल नदी में लगातार कम हो रहा पानी घड़ियालों के लिए नई मुसीबत बन कर आया है।
चंबल सेंचुरी के वार्डन गुरमीत सिंह बताते हैं कि घडियाल गहरे पानी में रहना और जाड़े में धूप सेंकना पसंद करते हैं। बरसात अच्छी होने पर अभी ज्यादा संकट दिखाई नहीं देता लेकिन गर्मियों में स्थिति भयावह हो सकती है और चंबल में घड़ियाल दिखाई देना बंद हो सकते हैं।
श्री सिंह ने कहा कि सिर्फ घड़ियाल ही नहीं चंबल में पानी के कम होने से मगरमच्छ और डॉलफिन पर भी संकट है। घड़ियाल और मगरमच्छ हमेशा से पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र रहे हैं। यदि इनकी संख्या कम हुई तो पर्यटकों का आना भी कम होगा जिससे विदेशी मुद्रा का भी नुकसान होगा।
चंबल नदी के साफ पानी को देखते हुए सरकार ने घड़ियाल संरक्षण योजना के तहत 1979 में एक हजार दो सौ घड़ियाल छोड़े थे। यह योजना यदि परवान चढ़ गई होती तो आज चंबल नदी में हजारों की संख्या में घड़ियाल होते लेकिन ऐसा नहीं हो सका। घड़ियालों की संख्या में लगातार कमी आती जा रही है।
मादा घड़ियाल और मादा कछुओं के लिए दिसम्बर का महीना अंडे देने का होता है। अंडों और पानी के बीच की दूरी से उनके बच्चों पर भी संकट पैदा हो जाएगा।
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