जब हम कश्मीर घाटी में कृषि के बारे में बात करते हैं तब इसका मतलब श्रीनगर सहित अनन्तनाग, बारामूला, बडगाम, कुपवारा और पुलवामा जिलों में कृषि के क्षेत्र में हुई प्रगति और बढ़ती क्षमता से होता है। जैसा कि सर्वविदित है कि जम्मू-कश्मीर क्षेत्र तीन प्राकृतिक क्षेत्रों में विभाजित है — जम्मू, कश्मीर घाटी और कारगिल व लेह। इन तीनों क्षेत्रों की जलवायु क्रमशः ऊष्ण, शीतोष्ण और शीतप्रद है और इसी प्रकार इन तीनों क्षेत्रों में क्रमशः सालाना बरसात का औसत 1,115.9 मि.मी., 650.5 मि.मी. और 650.5 मि.मी. है। लद्दाख में आर्कटिक जैसी ठण्ड और लगभग 65 से.मी. वर्षा के कारण इसे शीत रेगिस्तान भी कहा जाता है।
जम्मू-कश्मीर की लगभग 80 प्रतिशत जनता पूर्णतः या अंशतः किसी न किसी रूप में कृषि पर निर्भर करती है। सन 1992 के रिकॉर्ड के मुताबिक इस पूरे राज्य में 24.15 लाख हेक्टेयर भूमि है। राष्ट्रीय स्तर पर क्षेत्रफल के आधार पर इस राज्य का छठा और जनसंख्या के आघार पर 17वां स्थान है। इस पूरे राज्य में 14 जिले, 59 तहसीलें, 119 विकास खण्ड, 03 म्युनिसिपेलिटी, 54 कस्बे-कमेटी, 6,477 आबादी वाले ग्राम और 281 गैरआबादी वाले ग्राम हैं। राज्य के कुल 24.15 लाख हेक्टेयर भूमि में से मात्र 8.26 लाख हेक्टेयर भूमि में ही कृषि की जाती है, शेष भूमि पर वन या पर्वत हैं। पूरे राज्य में खाद्यानों में धान, गेहूँ, मक्का, तम्बाकू, तिलहन, दालें और केसर पैदा होता है।जम्मू-कश्मीर की लगभग 80 प्रतिशत जनता पूर्णतः या अंशतः किसी न किसी रूप में कृषि पर निर्भर करती है। यहाँ तक कि राज्य का उद्योग भी कृषि के कच्चे माल पर निर्भर करता है। सन 1992 के रिकॉर्ड के मुताबिक इस पूरे राज्य में 24.15 लाख हेक्टेयर भूमि है। राष्ट्रीय स्तर पर क्षेत्रफल के आधार पर इस राज्य का छठा और जनसंख्या के आघार पर 17वां स्थान है। इस पूरे राज्य में 14 जिले, 59 तहसीलें, 119 विकास खण्ड, 03 म्युनिसिपेलिटी, 54 कस्बे-कमेटी, 6,477 आबादी वाले ग्राम और 281 गैरआबादी वाले ग्राम हैं। राज्य के कुल 24.15 लाख हेक्टेयर भूमि में से मात्र 8.26 लाख हेक्टेयर भूमि में ही कृषि की जाती है, शेष भूमि पर वन या पर्वत हैं। पूरे राज्य में खाद्यानों में धान, गेहूँ, मक्का, तम्बाकू, तिलहन, दालें और केसर पैदा होता है। सर्वविदित है कि खरीफ की फसल यानी धान के लिए नम और ऊष्ण जलवायु आवश्यक है। यहाँ कश्मीर घाटी में धान की बुआई मार्च-अप्रैल में की जाती है जिसे शरत ऋतु में काटा जाता है जबकि गंगा के मैदानी भागों में मई-जुलाई में बुआई करके अक्तूबर-नवम्बर में काटते हैं। कश्मीर घाटी में इस समय मैदानी भागों की तुलना में बारिश काफी कम होती है किन्तु इसकी आपूर्ति प्राकृतिक रूप से उपलब्ध जलस्रोतों से हो जाती है।
राज्य का अधिकांश धान कश्मीर घाटी में ही पैदा होता है जो समुद्र से 2,100 मीटर तक की ऊँचाई पर पैदा किया जाता है। कश्मीर घाटी में इसका क्षेत्रफल 3,74,000 एकड़ है जिसकी औसत पैदावार प्रति एकड़ 25.5 क्विण्टल है। गेहूँ रबी की फसल का खाद्यान्न है, जिसे नम और शीत जलवायु की आवश्यकता होती है। घाटी में यह अगस्त में बोया जाता है जिसे मार्च-अप्रैल में काटते हैं। कश्मीर घाटी में 78,000 एकड़ क्षेत्र में गेहूँ, 3,03,000 एकड़ क्षेत्र में मक्का और 6,700 एकड़ क्षेत्र में तिलहन बोया जाता है। घाटी की सबसे महत्वपूर्ण फसल केसर है जो लगभग (तीन हजार) 3,000 एकड़ क्षेत्र में पम्पोर में पैदा की जाती है। इसे जुलाई-अगस्त में बोया जाता है।
कृषि उद्योग में सिंचाई की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। चूँकि घाटी में वर्षा कम होती है, विशेषकर घाटी में मानसून शरद ऋतु में तब सक्रिय होता है जब पौधों की बढ़त सबसे कम होती है और गर्मियों यानी मई में जब घाटी का तापमान बढ़ना शुरू होता है तब बारिश कम होती है। केवल जुलाई-अगस्त में मानसून का थोड़ा प्रभाव रहता है लेकिन शेष सूखा ही रहता है, लिहाजा सदियों से घाटी के किसान अतिरिक्त जोखिम न उठाते हुए केवल एक ही फसल लेते आए हैं। चूँकि फसल के लिए पर्याप्त पानी की जरूरत पड़ती है इसलिए यहाँ के किसान अपनी फसलों के लिए नहर की सिंचाई व्यवस्था पर आश्रित रहते हैं। नहर सिंचाई व्यवस्था घाटी का प्राकृतिक उपहार है, क्योंकि ग्लेशियर से पिघलते बर्फ का पानी ऊपर से नीचे आता रहता है जिन्हें नहरों के आकार में ढालकर प्राकृतिक रूप से उपलब्ध जल को खेतों की सिंचाई के काम में लाते हैं। इस विधि से घाटी की 60 प्रतिशत कृषि भूमि की सिंचाई होती है। घाटी में कृषि पैदावार का विवरण तालिका-1 में दिया है।
जम्मू-कश्मीर का जब हम एक नजर में आकलन करते हैं तो पाते हैं कि सतहत्तर लाख अट्ठारह हजार सात सौ जनसंख्या वाले इस राज्य की जनसंख्या घनत्व 34 व्यक्ति प्रतिवर्ग कि.मी. है। वर्ष 1987-88 में राज्य की 13.9 प्रतिशत जनता गरीबी रेखा के नीचे थी और आज 49 प्रतिशत आबादी कृषि कार्य में लगी हुई है जिसकी राष्ट्रीय स्तर पर भागीदारी 24.94 प्रतिशत है। राज्य के कुल 24.94 लाख हेक्टेयर कृषि क्षेत्र में से 30 प्रतिशत क्षेत्र में कृषि की जाती है और प्रति व्यक्ति कृषि भूमि का औसत क्षेत्र 0.83 हेक्टेयर है। राज्य में सिंचित कृषि भूमि 42 प्रतिशत है जिसकी सिंचाई क्षमता 144 प्रतिशत है। इसमें 10.73 लाख हेक्टेयर कृषि क्षेत्र की सकल पैदावार क्षमता 146 प्रतिशत है जिसमें 9.19 लाख हेक्टेयर भूमि ऐसी उपजाऊ भूमि है जिसकी खाद्यान्न उत्पादकता क्षमता 14.55 मीट्रिक टन है।
जब हम घाटी की बात करते हैं तब हम पाते हैं कि घाटी में कुल 4.90 लाख हेक्टेयर कृषि वाले क्षेत्र में से विशुद्ध रूप से 3.50 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में खेती की जाती है। इसमें 2.11 लाख हेक्टेयर भूमि सिंचित और 1.39 लाख हेक्टेयर भूमि असिंचित है। इसमें से 7.47 लाख किसानों को मालिकाना हक़ हासिल है जिसमें प्रत्येक किसान को औसत 0.53 हेक्टेयर कृषि भूमि मिली है।
2007-08 की रिपोर्ट के मुताबिक जब हम कश्मीर घाटी की माँग और उत्पादन पर नजर डालते हैं तब पता चलता है कि यदि कुछ खाद्यान्नों में कमी है तो कुछ में सरप्लस भी होता है। जैसा कि तालिका-2 से स्पष्ट हो जाता है।
इतना ही नहीं, हम देखते हैं कि घाटी में सब्जियों का उत्पादन सदैव माँग से अधिक होता रहा है इसलिए इससे करोड़ों रुपयों की आय भी होती है (देखें तालिका-3)।
उत्तम फसल की पैदावार में अच्छे बीज की अहम भूमिका होती है। कुशल प्रशासन वह होता है जो किसानों को अच्छे बीज उपलब्ध कराकर असली फसल का नियामक होता है। घाटी के किसानों को प्रशासन ने जो सहयोग दिया, वह तालिका-4 से स्पष्ट हो जाता है।
इस तरह हम देखते हैं कि घाटी का कृषि क्षेत्र विषम परिस्थितियों में न सिर्फ आधुनिक तकनीक और विज्ञान पर निर्भरता की ओर बढ़ रहा है बल्कि अपनी घरेलू माँग और खपत से अधिक सब्जियों और फलों का उत्पादन करके विदेशी मुद्रा का अर्जन कर राष्ट्रीय कोष में अभिवृद्धि भी कर रहा है। यदि सच पूछा जाए तो अन्य राज्यों को भी कश्मीर की कृषि प्रविधि अपनाने से गुरेज नहीं करना चाहिए क्योंकि कश्मीरी किसान विपरीत परिस्थितियों में भी एक से अधिक फसल लेने का हुनर जानते हैं।
(लेखक पत्रकार हैं)
जम्मू-कश्मीर की लगभग 80 प्रतिशत जनता पूर्णतः या अंशतः किसी न किसी रूप में कृषि पर निर्भर करती है। सन 1992 के रिकॉर्ड के मुताबिक इस पूरे राज्य में 24.15 लाख हेक्टेयर भूमि है। राष्ट्रीय स्तर पर क्षेत्रफल के आधार पर इस राज्य का छठा और जनसंख्या के आघार पर 17वां स्थान है। इस पूरे राज्य में 14 जिले, 59 तहसीलें, 119 विकास खण्ड, 03 म्युनिसिपेलिटी, 54 कस्बे-कमेटी, 6,477 आबादी वाले ग्राम और 281 गैरआबादी वाले ग्राम हैं। राज्य के कुल 24.15 लाख हेक्टेयर भूमि में से मात्र 8.26 लाख हेक्टेयर भूमि में ही कृषि की जाती है, शेष भूमि पर वन या पर्वत हैं। पूरे राज्य में खाद्यानों में धान, गेहूँ, मक्का, तम्बाकू, तिलहन, दालें और केसर पैदा होता है।जम्मू-कश्मीर की लगभग 80 प्रतिशत जनता पूर्णतः या अंशतः किसी न किसी रूप में कृषि पर निर्भर करती है। यहाँ तक कि राज्य का उद्योग भी कृषि के कच्चे माल पर निर्भर करता है। सन 1992 के रिकॉर्ड के मुताबिक इस पूरे राज्य में 24.15 लाख हेक्टेयर भूमि है। राष्ट्रीय स्तर पर क्षेत्रफल के आधार पर इस राज्य का छठा और जनसंख्या के आघार पर 17वां स्थान है। इस पूरे राज्य में 14 जिले, 59 तहसीलें, 119 विकास खण्ड, 03 म्युनिसिपेलिटी, 54 कस्बे-कमेटी, 6,477 आबादी वाले ग्राम और 281 गैरआबादी वाले ग्राम हैं। राज्य के कुल 24.15 लाख हेक्टेयर भूमि में से मात्र 8.26 लाख हेक्टेयर भूमि में ही कृषि की जाती है, शेष भूमि पर वन या पर्वत हैं। पूरे राज्य में खाद्यानों में धान, गेहूँ, मक्का, तम्बाकू, तिलहन, दालें और केसर पैदा होता है। सर्वविदित है कि खरीफ की फसल यानी धान के लिए नम और ऊष्ण जलवायु आवश्यक है। यहाँ कश्मीर घाटी में धान की बुआई मार्च-अप्रैल में की जाती है जिसे शरत ऋतु में काटा जाता है जबकि गंगा के मैदानी भागों में मई-जुलाई में बुआई करके अक्तूबर-नवम्बर में काटते हैं। कश्मीर घाटी में इस समय मैदानी भागों की तुलना में बारिश काफी कम होती है किन्तु इसकी आपूर्ति प्राकृतिक रूप से उपलब्ध जलस्रोतों से हो जाती है।
राज्य का अधिकांश धान कश्मीर घाटी में ही पैदा होता है जो समुद्र से 2,100 मीटर तक की ऊँचाई पर पैदा किया जाता है। कश्मीर घाटी में इसका क्षेत्रफल 3,74,000 एकड़ है जिसकी औसत पैदावार प्रति एकड़ 25.5 क्विण्टल है। गेहूँ रबी की फसल का खाद्यान्न है, जिसे नम और शीत जलवायु की आवश्यकता होती है। घाटी में यह अगस्त में बोया जाता है जिसे मार्च-अप्रैल में काटते हैं। कश्मीर घाटी में 78,000 एकड़ क्षेत्र में गेहूँ, 3,03,000 एकड़ क्षेत्र में मक्का और 6,700 एकड़ क्षेत्र में तिलहन बोया जाता है। घाटी की सबसे महत्वपूर्ण फसल केसर है जो लगभग (तीन हजार) 3,000 एकड़ क्षेत्र में पम्पोर में पैदा की जाती है। इसे जुलाई-अगस्त में बोया जाता है।
कृषि उद्योग में सिंचाई की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। चूँकि घाटी में वर्षा कम होती है, विशेषकर घाटी में मानसून शरद ऋतु में तब सक्रिय होता है जब पौधों की बढ़त सबसे कम होती है और गर्मियों यानी मई में जब घाटी का तापमान बढ़ना शुरू होता है तब बारिश कम होती है। केवल जुलाई-अगस्त में मानसून का थोड़ा प्रभाव रहता है लेकिन शेष सूखा ही रहता है, लिहाजा सदियों से घाटी के किसान अतिरिक्त जोखिम न उठाते हुए केवल एक ही फसल लेते आए हैं। चूँकि फसल के लिए पर्याप्त पानी की जरूरत पड़ती है इसलिए यहाँ के किसान अपनी फसलों के लिए नहर की सिंचाई व्यवस्था पर आश्रित रहते हैं। नहर सिंचाई व्यवस्था घाटी का प्राकृतिक उपहार है, क्योंकि ग्लेशियर से पिघलते बर्फ का पानी ऊपर से नीचे आता रहता है जिन्हें नहरों के आकार में ढालकर प्राकृतिक रूप से उपलब्ध जल को खेतों की सिंचाई के काम में लाते हैं। इस विधि से घाटी की 60 प्रतिशत कृषि भूमि की सिंचाई होती है। घाटी में कृषि पैदावार का विवरण तालिका-1 में दिया है।
तालिका-1: वर्ष 2006-07 और 2007-08 में घाटी में कृषि फसलों का क्षेत्र, पैदावार और उत्पादन का विवरण * = हजार हेक्टेयर में; ** = हजार मीट्रिक टन में; *** = क्विण्टल/हेक्टेयर | ||||||||||
क्र. सं. | फसल | विवरण | जिलेवार क्षेत्र/उत्पादन | कुल | ||||||
अनन्तनाग | बारामूला | बडगाम | कुपवारा | पुलवामा | श्रीनगर | |||||
1 | धान | क्षेत्र* | 41.00 | 34.00 | 28.00 | 16.00 | 28.00 | 13.00 | 160.00 | |
उत्पादन** | 2006-07 | 120.00 | 90.00 | 75.00 | 35.00 | 80.00 | 35.00 | 435.00 | ||
2007-08 | 135.00 | 100.00 | 85.00 | 45.00 | 90.00 | 40.00 | 495.00 | |||
उत्पादकता*** | 2006-07 | 29.00 | 26.00 | 26.00 | 21.00 | 28.00 | 26.00 | 26.00 | ||
2007-08 | 32.00 | 29.00 | 30.00 | 28.00 | 32.00 | 30.00 | 30.17 | |||
2 | मक्का | क्षेत्र* | 25.00 | 23.00 | 15.00 | 20.00 | 11.00 | 6.00 | 100.00 | |
उत्पादन** | 2006-07 | 35.00 | 37.00 | 15.00 | 25.00 | 15.00 | 8.00 | 135.00 | ||
2007-08 | 38.00 | 40.00 | 18.00 | 20.00 | 16.00 | 8.00 | 140.00 | |||
उत्पादकता*** | 2006-07 | 14.00 | 16.00 | 10.00 | 12.00 | 13.00 | 13.00 | 13.00 | ||
2007-08 | | | | | | | | |||
3. | गेहूँ | क्षेत्र* | 0.10 | 1.50 | 0.40 | 0.30 | 0.40 | 0.03 | 7.64 | |
उत्पादन** | 2006-07 | 0.30 | 3.00 | 0.80 | 0.90 | 1.00 | 0.06 | 15.06 | ||
2007-08 | 0.35 | 3.50 | 1.00 | 1.00 | 1.00 | 0.08 | 16.43 | |||
उत्पादकता*** | 2006-07 | 30.00 | 20.00 | 20.00 | 30.00 | 25.00 | 20.00 | 22.50 | ||
2007-08 | 35.00 | 23.00 | 25.00 | 33.00 | 25.00 | 26.00 | 25.50 | |||
4. | दालें | क्षेत्र* | 4.00 | 5.00 | 3.00 | 7.00 | 2.50 | 1.70 | 24.00 | |
उत्पादन** | 2006-07 | 4.00 | 5.00 | 3.00 | 7.00 | 2.50 | 1.70 | 24.00 | ||
2007-08 | 4.00 | 5.00 | 3.00 | 7.00 | 2.50 | 1.70 | 24.00 | |||
उत्पादकता*** | 2006-07 | 10.00 | 10.00 | 10.00 | 10.00 | 10.00 | 10.00 | 10.00 | ||
2007-08 | 10.00 | 10.00 | 10.00 | 10.00 | 10.00 | 10.00 | 10.00 | |||
5. | साग-सब्जी | क्षेत्र* | 4.00 | 3.50 | 7.00 | 2.50 | 5.00 | 3.50 | 25.50 | |
उत्पादन** | 2006-07 | 80.00 | 75.00 | 170.00 | 42.00 | 100.00 | 80.00 | 547.00 | ||
2007-08 | 100.00 | 90.00 | 200.00 | 60.00 | 130.00 | 100.00 | 680.00 | |||
उत्पादकता*** | 2006-07 | 200.00 | 214.00 | 242.00 | 168.00 | 200.00 | 228.00 | 208.00 | ||
2007-08 | 250.00 | 257.00 | 285.00 | 240.00 | 260.00 | 285.00 | 265.33 | |||
6. | तिलहन | क्षेत्र* | 25.00 | 12.00 | 10.00 | 7.00 | 21.00 | 5.00 | 80.00 | |
उत्पादन** | 2006-07 | 25.00 | 12.00 | 10.00 | 7.00 | 21.00 | 5.00 | 80.00 | ||
2007-08 | 26.00 | 12.70 | 11.00 | 7.50 | 22.00 | 5.80 | 85.00 | |||
उत्पादकता*** | 2006-07 | 10.00 | 10.00 | 10.00 | 10.00 | 10.00 | 10.00 | 10.00 | ||
2007-08 | 10.40 | 10.58 | 11.00 | 10.71 | 10.47 | 11.60 | 10.79 | |||
7. | घास-पतवार (पशुचारा) | क्षेत्र* | 5.40 | 4.50 | 5.00 | 2.50 | 7.60 | 5.00 | 30.00 | |
उत्पादन** | 2006-07 | 125.00 | 127.00 | 167.00 | 80.00 | 390.00 | 185.00 | 1054.00 | ||
2007-08 | 130.00 | 150.00 | 170.00 | 95.00 | 400.00 | 165.00 | 1120.00 | |||
उत्पादकता*** | 2006-07 | 231.00 | 282.00 | 334.00 | 320.00 | 573.00 | 330.00 | 335.00 | ||
2007-08 | 240.00 | 333.00 | 340.00 | 380.00 | 526.00 | 330.00 | 358.16 |
जम्मू-कश्मीर का जब हम एक नजर में आकलन करते हैं तो पाते हैं कि सतहत्तर लाख अट्ठारह हजार सात सौ जनसंख्या वाले इस राज्य की जनसंख्या घनत्व 34 व्यक्ति प्रतिवर्ग कि.मी. है। वर्ष 1987-88 में राज्य की 13.9 प्रतिशत जनता गरीबी रेखा के नीचे थी और आज 49 प्रतिशत आबादी कृषि कार्य में लगी हुई है जिसकी राष्ट्रीय स्तर पर भागीदारी 24.94 प्रतिशत है। राज्य के कुल 24.94 लाख हेक्टेयर कृषि क्षेत्र में से 30 प्रतिशत क्षेत्र में कृषि की जाती है और प्रति व्यक्ति कृषि भूमि का औसत क्षेत्र 0.83 हेक्टेयर है। राज्य में सिंचित कृषि भूमि 42 प्रतिशत है जिसकी सिंचाई क्षमता 144 प्रतिशत है। इसमें 10.73 लाख हेक्टेयर कृषि क्षेत्र की सकल पैदावार क्षमता 146 प्रतिशत है जिसमें 9.19 लाख हेक्टेयर भूमि ऐसी उपजाऊ भूमि है जिसकी खाद्यान्न उत्पादकता क्षमता 14.55 मीट्रिक टन है।
जब हम घाटी की बात करते हैं तब हम पाते हैं कि घाटी में कुल 4.90 लाख हेक्टेयर कृषि वाले क्षेत्र में से विशुद्ध रूप से 3.50 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में खेती की जाती है। इसमें 2.11 लाख हेक्टेयर भूमि सिंचित और 1.39 लाख हेक्टेयर भूमि असिंचित है। इसमें से 7.47 लाख किसानों को मालिकाना हक़ हासिल है जिसमें प्रत्येक किसान को औसत 0.53 हेक्टेयर कृषि भूमि मिली है।
2007-08 की रिपोर्ट के मुताबिक जब हम कश्मीर घाटी की माँग और उत्पादन पर नजर डालते हैं तब पता चलता है कि यदि कुछ खाद्यान्नों में कमी है तो कुछ में सरप्लस भी होता है। जैसा कि तालिका-2 से स्पष्ट हो जाता है।
तालिका-2: कश्मीर घाटी का वर्ष 2007-08 में उत्पादन/माँग का विवरण लाख टनों में | |||||
जिंस | जनसंख्या (लाखों में) | वास्तविक माँग | वर्ष के लिए निर्धारित उत्पादन | वास्तविक उत्पादन खरीफ 2007 और रबी 2007-08 | प्रतिशत कमी (क) अत्यधिक (अ) |
खाद्यान्न | 60.00 | 10.40 | 6.68 | 6.90 | 34 (क) |
सब्जी | 6.25 | 6.60 | 7.00 | 12 (अ) | |
तिलहन | 2.55 | 0.85 | 0.80 | 68 (क) |
इतना ही नहीं, हम देखते हैं कि घाटी में सब्जियों का उत्पादन सदैव माँग से अधिक होता रहा है इसलिए इससे करोड़ों रुपयों की आय भी होती है (देखें तालिका-3)।
तालिका-3: गैरमौसमी सब्जियों का निर्यात | |||||
विवरण | 2004-05 | 2005-06 | 2006-07 | 2007-08 | लक्ष्य 2008-09 |
निर्यात (000 मी.टन) | 41.00 | 75.00 | 100.00 | 125.00 | 140.00 |
राजस्व की प्राप्ति (करोड़ रुपयों में) | 41.00 | 75.00 | 125.00 | 150.00 | 160.00 |
उत्तम फसल की पैदावार में अच्छे बीज की अहम भूमिका होती है। कुशल प्रशासन वह होता है जो किसानों को अच्छे बीज उपलब्ध कराकर असली फसल का नियामक होता है। घाटी के किसानों को प्रशासन ने जो सहयोग दिया, वह तालिका-4 से स्पष्ट हो जाता है।
तालिका-4: बीज वितरण (खरीफ 2008) | ||
क्र. सं. | फसल/बीज | वितरित मात्रा/आवण्टित (क्विण्टल) |
1. | धान | 5,000 क्विण्टल |
2. | मक्का | 711 क्विण्टल |
3. | टमाटर | 1,866 क्विण्टल |
4. | फली | 10.92 क्विण्टल |
5. | मूँग | 200 क्विण्टल |
6. | खरपतवार (पशु चारा) | 90 क्विण्टल |
इस तरह हम देखते हैं कि घाटी का कृषि क्षेत्र विषम परिस्थितियों में न सिर्फ आधुनिक तकनीक और विज्ञान पर निर्भरता की ओर बढ़ रहा है बल्कि अपनी घरेलू माँग और खपत से अधिक सब्जियों और फलों का उत्पादन करके विदेशी मुद्रा का अर्जन कर राष्ट्रीय कोष में अभिवृद्धि भी कर रहा है। यदि सच पूछा जाए तो अन्य राज्यों को भी कश्मीर की कृषि प्रविधि अपनाने से गुरेज नहीं करना चाहिए क्योंकि कश्मीरी किसान विपरीत परिस्थितियों में भी एक से अधिक फसल लेने का हुनर जानते हैं।
(लेखक पत्रकार हैं)
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