घाटे का सौदा

कृषि
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का एक महत्त्वपूर्ण वादा है- 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करना। वित्तमंत्री अरुण जेटली ने 2018-19 के बजट में इसे शामिल किया। साथ ही एक अन्य घोषणा की कि खरीफ की फसलों के लिये उत्पादन लागत से 50 प्रतिशत अधिक न्यूनतम समर्थन मूल्य सुनिश्चित किया जाएगा। लेकिन क्या यह सम्भव है?

किसानों की आय दोगुनी करने के सम्बन्ध में केन्द्र सरकार द्वारा गठित दलवई समिति के अनुसार, किसानों की आमदनी नगण्य दर से बढ़ रही है। राष्ट्रीय स्तर पर 2002-12 के दशक में खेती से आमदनी औसतन 3.8 प्रतिशत बढ़ी। इस अवधि में कृषि क्षेत्र की समग्र वार्षिक विकास दर 3 प्रतिशत थी। हैरानी की बात यह है कि 2001 से 2011 के बीच देश में किसानों की संख्या 8.5 मिलियन कम हो गई है। वहीं, कृषि श्रमिकों की संख्या 37.5 मिलियन बढ़ी। इस अवधि में 16 राज्यों व केन्द्र शासित प्रदेशों के किसानों की आय में ऋणात्मक वृद्धि हुई।

2012-13 के दौरान दिल्ली में एक किसान ने 14,079 रुपए अर्जित किये। 2002-03 के मुकाबले यह आमदनी 12.6 प्रतिशत कम है। खेती से आमदनी में यह गिरावट 13 राज्यों के अतिरिक्त पश्चिम बंगााल (4.2 प्रतिशत), बिहार (1.4 प्रतिशत) और उत्तराखण्ड (3.4 प्रतिशत) में दर्ज की गई। इसका क्या मतलब निकाला जाए? अब नजर डालते हैं किसानों की आमदनी दोगुनी करने की लागत पर। कृषि एक निजी उद्यम है जिसे सरकारी नीतियों और कार्यक्रमों से मदद मिलती है।

समिति के अनुसार, 2015-16 की कृषि की विकास दर 2022 तक स्थिर रहेगी और किसानों की आमदनी में प्रतिवर्ष 9.23 प्रतिशत का इजाफा होगा। इसके लिये किसानों को 46,299 करोड़ रुपए (2005-06 के मूल्य पर) के निवेश की जरूरत है। 2015-16 में किसानों ने 29,559 करोड़ रुपए का निवेश किया था। सरकार को 1,02,269 करोड़ रुपए के निवेश की जरूरत है जो 2015-16 में 64,022 करोड़ रुपए था।

धनराशि में निवेश की यह जरूरत सवाल खड़े करती है कि क्या किसान इस स्थिति में हैं कि वे कृषि में बिना लाभ के इतना निवेश कर सकें? सार्वजनिक निवेश की बड़ी राशि सिंचाई परियोजनाओं पर व्यय होती है। ये परियोजनाएँ भी कारगर नहीं हैं। प्रस्तावित निवेश से किसानों के कर्ज में ही वृद्धि होगी। कायदे से किसानों की आमदनी दोगुनी करने की शुरुआत उन्हें कर्ज मुक्त करके होनी चाहिए। केन्द्र सरकार यह जिम्मेदारी राज्यों को सौंपकर पल्ला झाड़ना चाहती है।

किसानों की आमदनी

16 राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में 2002-03 और 2012-13 के बीच कृषि से आय कम हुई है। इस अवधि में कृषि क्षेत्र में 3 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि दर थी। ठीक इसी समय 10 राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में पशुधन से होने वाली आय में भी गिरावट दर्ज की गई। देश के आधे से अधिक किसान कर्जदार हैं। 2001-2011 के दौरान कृषि श्रमिकों में 37.5 मिलियन की बढ़ोत्तरी हुई जबकि 8.5 मिलियन किसान कम हो गए हैं।

खेती से विमुख

पिछले दशक में जहाँ खेती करने वाले किसानों की संख्या कम हुई है, वहीं कृषि श्रमिकों की तादाद बढ़ी है। इसका मतलब यह है कि खेती फायदे का सौदा नहीं रही।

पशुधन पर संकट

गोधन, भेड़ और बकरियों की संख्या कम हुई है। ये पशु किसानों की आमदनी का मुख्य स्रोत हैं। फसलों को नुकसान पहुँचने पर इनका इस्तेमाल किया जाता है।

आमदनी में गिरावट

वास्तविक आय मुद्रास्फीति और विक्रय शक्ति से प्रभावित होती है। 2002-03 से 2012-13 के दशक में एक भारतीय किसान ने कृषि से अपनी आय में औसतन 3.8 प्रतिशत का इजाफा किया।
 

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