गुलाब जल के उत्पादन से खुली आर्थिक समृद्धि की राह

गुलाब का फूल
गुलाब का फूल


कांटो के बीच पल्लवित होने वाला गुलाब का फूल जीवन की जटिलताओं को दूर कर उमंग भी कर सकता है, बशर्ते गुलाब की खेती बड़े पैमाने पर की जाए। इन फूलों से बना गुलाब जल सुगंध, स्वाद और सेहत के साथ ही नियमित आय का जरिया भी है।

बीते चार वर्षों से गुलाब की खेती करने के बाद गुलाब जल का उत्पादन करने वाले लोहाघाट के सुंई गाँव के रविशंकर चौबे अब यह बात दमदार तरीके से कहते हैं। चौबे अब ‘उत्तराखंड रोज वाटर’ नाम से गुलाब जल का उत्पादन करते हैं। सगंध पादप केंद्र देहरादून के वैज्ञानिक राकेश यादव कहते हैं कि जैविक होने के चलते पहाड़ी आबोहवा का गुलाब जल न केवल बेहतर है, बल्कि इसमें किसी भी तरह की मिलावट भी नहीं है।

गुलाब जल का अच्छा-खासा कारोबार करने वाले चौबे ने 2013 में गुलाब की खेती शुरू की। इस खेती की ओर उनका रुझान औषधी एवं सगंध पादप बोर्ड देहरादून के एक कार्यक्रम में शिरकत करने के बाद हुआ। सुंई गाँव में करीब पाँच नाली जमीन (जमीन के क्षेत्रफल की स्थानीय इकाई) पर गुलाब की खेती शुरू की। सिंचाई के लिये पास स्थित लोहावती नदी से पानी लिफ्ट किया और तीन कुंतल से अधिक गुलाब के फूलों का उत्पादन किया। फूलों की बिक्री में होने वाली झंझट से बचने के लिये उन्हें एक नया विचार सूझा और यह था गुलाब जल बनाने का। नूरजहाँ और डेमस्क प्रजाति से बनने वाले गुलाब जल के लिये उन्होंने संयंत्र लगाया।

संयंत्र लगाने से पहले चौबे ने गुलाब जल बनाने का देहरादून से प्रशिक्षण हासिल किया और फिर उत्तराखंड रोज वाटर नाम से गुलाब जल बनाने लगे। औषधीय पादप व सगंध बोर्ड की प्रयोगशाला से गुणवत्ता के पैमाने पर यह खरा उतरा। चौबे बताते हैं कि गुलाब जल बनाने के लिये खिले हुए फूल की पंखुड़ियों को सूरज की शुरूआती किरणों के वक्त तोड़ा जाता है।

ऐसा करने से इससे बनने वाले गुलाब जल में प्राकृतिक सुगंध बनी रहती है। तीन कुंतल गुलाब से करीब 330 लीटर गुलाब जल बनता है। इस काम में पिता प्रयागदत्त चौबे और परिवार के अन्य सदस्य भी हाथ बंटाते हैं। रविशंकर का कहना है कि गुलाब जल का समूचा उत्पादन स्थानीय बाजार में ही खप जाता है।

 

क्लस्टर खेती अधिक लाभकारी


उद्यमी रविशंकर चौबे का कहना है कि छोटे पैमाने के बजाय बड़ी मात्रा में गुलाब की खेती अधिक लाभकारी है। मगर खर्चीला होने से यह काम व्यक्तिगत स्तर पर मुमकिन नहीं है। उनका कहना है कि इसके लिये क्लस्टर (सामूहिक) खेती जरूरी है और पहाड़ में ये आसानी से हो सकती है। साथ ही उद्यान, उद्योग विभाग, प्रशासन और बैंक का सहयोग भी जरूरी है।

 

 

 

सरकार से पुरस्कृत


गुलाब जल का निर्माण करने के रविशंकर चौबे के काम को राज्य सरकार ने भी मान्यता दी है। नवम्बर 2017 में देहरादून में प्रदेश सरकार की ओर से कृषि मंत्री सुबोध उनियाल उन्हें औषधीय वनस्पति मित्र पुरस्कार से सम्मानित कर चुके हैं।

 

 

 

गुलाब जल बहुउपयोगी


सुगंधित पादप केंद्र के वैज्ञानिक राकेश यादव बताते हैं कि गुलाब जल बहुउपयोगी है। खाने में खासकर खीर और शर्बतों में फ्लेवर देने, सौंदर्य प्रसाधन, दवाओं के निर्माण व धार्मिक कार्यों में इसका इस्तेमाल होता है।

 

 

 

 

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