गुजरात में दूसरी हरित क्रांति

ड्रिंप एवं स्प्रिंक्लर सिंचाई तकनीक’ ने कच्छ जिले की सूरत बदल दी है। जो क्षेत्र कभी पूरी तरह बंजर भूमि के तौर पर जाना जाता था, आज वहां आंवला, खजूर, अंजीर, अनार, आम, अरबी आदि की खूब पैदावार होती है। अकेले कच्छ जिले से पश्चिम एशिया को 70,000 टन से ज्यादा केसर आम निर्यात किया जाता है। साल 2001 तक ड्रिप तकनीक सिर्फ 10,000 हेक्टेयर भूमि पर ही उपलब्ध थी, किंतु आज सात लाख हेक्टेयर भूमि इससे सिंचित हैं।

गुजरात की विकास गति और यहां की उभरती हुई अर्थव्यवस्था देश के दूसरे राज्यों के लिए मिसाल बन चुकी है। औद्योगिक और आधारभेत संरचना के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति के कारण राज्य को पूरी दुनिया में भारत का विकास इंजन भी कहा जाता है। लेकिन गुजरात कृषि व दुग्ध उत्पादन में भी अग्रणी है। आंकड़ों पर विश्वास करें तो भारत में ‘दूसरी हरित क्रांति’ का साक्षी गुजरात बना है। शेष भारत में जहां कृषि विकास दर 2.5 प्रतिशत हैं, वहीं गुजरात में यह दर तकरीबन 11 प्रतिशत है। यद्यपि यह उपलब्धि रातों-रात हासिल नहीं हुई हैं बल्कि योजनाओं के क्रियान्वयन, परिश्रम और उपलब्ध संसाधनों के कारगर आवंटन और किसानों की मेहनत से यह परिणाम मिला है। गुजरात ने जिस प्रकार कृषि क्षेत्र में अद्वितीय उपलब्धि हासिल की है उसने अनुसंधानकर्ताओं, अर्थशास्त्रियों और विभिन्न राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय संस्थानों का ध्यान आकृष्ट किया है। ‘वाशिंगटन इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट’ ने कृषि क्षेत्र में नई ऊंचाइयां छूने के लिए राज्य की सराहना की है। इसके अलावा हाल ही में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज ने स्वीकार किया है कि उनका राज्य कृषि क्षेत्र में गुजरात से बहुत पीछे है।

गुजरात में 9.8 मीलियन हेक्टेयर जमीन पर खेती होती है। राज्य की दो-तिहाई भूमि शुष्क व अर्ध-शुष्क उष्णकटिबंधीय क्षेत्र के तहत आती है। यानी यहां बेहद कम वर्षा होती है। जबकि सीमांत भूमि की मिट्टी में उपजाऊपन और आर्द्रता को थामे रखने की क्षमता भी कम है। बावजूद इसके वर्ष 2002-03 में जब राज्य में ‘कृषि क्रांति’ की नींव पड़ी तो गुजरात की नरेंद्र मोदी सरकार ने सबसे पहले खेतों व उद्योगों की बिजली आपूर्ति में सुधार का फैसला किया। खेतों को रात में कम से कम चार घंटे बिना अवरोध के उत्तम बिजली देने का निर्णय किया गया। रात में बिजली मिलने से किसानों ने ‘थ्री-फेज’ बिजली पर अपने पम्प चलाए। इससे किसानों को फायदा हुआ। मुख्यमंत्री मोदी का मानना है कि केवल ‘ड्रिप-सिंचाई’ का प्रयोग कर और हर बूंद पर अधिक उपज के दृष्टिकोण के साथ किसान समृद्ध हो सकते हैं। ‘ड्रिंप एवं स्प्रिंक्लर सिंचाई तकनीक’ ने कच्छ जिले की सूरत बदल दी है। जो क्षेत्र कभी पूरी तरह बंजर भूमि के तौर पर जाना जाता था, आज वहां आंवला, खजूर, अंजीर, अनार, आम, अरबी आदि की खूब पैदावार होती है। अकेले कच्छ जिले से पश्चिम एशिया को 70,000 टन से ज्यादा केसर आम निर्यात किया जाता है। साल 2001 तक ड्रिप तकनीक सिर्फ 10,000 हेक्टेयर भूमि पर ही उपलब्ध थी, किंतु आज सात लाख हेक्टेयर भूमि इससे सिंचित हैं। ये कृषि क्राति का ही नतीजा है कि भारतीय तिलहन व उपज निर्यात प्रोत्साहन परिषद के अनुमानों के अनुसार, इस साल गर्मियों में गुजरात का मूंगफली उत्पादन 4,59,000 टन रहेगा जो कि पिछले साल के 2,94,000 टन से 56 प्रतिशत अधिक है।

ड्रिप सिंचाई से बंजर भूमि पर आई हरियालीड्रिप सिंचाई से बंजर भूमि पर आई हरियालीगुजरात देश का पहला राज्य है जहां किसानों के लिए ‘मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना’ शुरू की गई है। इस योजना के तहत जो उत्पादक पहले एक या दो फसल उगाते थे, वे अब तीन से चार फसल उगा रहे हैं। किसानों को मुनाफा हो रहा है। इसके अतिरिक्त, कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग व माइक्रो इरिगेशन के नए कॉन्सेप्ट से किसानों की आमदनी दोगुनी से भी ज्यादा हो गई है। कृषि क्रांति की सफलता सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं है। पिछले सात वर्षों में राज्य की कृषि आय चार गुना से भी अधिक बढ़ी है। यह 14,000 करोड़ रुपए से बढ़कर 59,000 करोड़ रुपए हो चुकी है। ‘वाइब्रेंट गुजरात ग्लोबल सम्मिट 2011’ में कृषि आधारित परियोजनाओं के लिए 37,000 करोड़ रुपए का निवेश हुआ है। राज्य की निष्क्रिय पड़ी कृषि विस्तार प्रणाली में नए प्राण पूंकने के लिए गुजरात ने नई व अनूठी विधि अपनाई है। कृषि वैज्ञानिकों व सेवा प्रदाताओं को एक मंच पर लाकर उन्हें किसानों तक ले जाया गया है। किसानों को प्रेरित करने के लिए राज्य सरकार हर साल एक महीने के लिए कृषि महोत्सव का आयोजन करती है। इसके अंतर्गत कृषि विभाग के अधिकारियों की एक टीम कृषि वैज्ञानिकों के साथ मिलकर 18,000 गांवों का दौरा करती है और किसानों को नई उपलब्ध तकनीक, विपणन संपर्कों की रचना, लघु-सिंचाई, कीटनाशकों की जानकारी व मार्ग दर्शन देती है।

मुख्यमंत्री मोदी की मानें तो राष्ट्र का कृषि विकास मुख्यतः पानी की कमी से अवरुद्ध है। लेकिन गुजरात के जल संरक्षण कार्यक्रमों ने यहां भी देश को एक नई दिशा दिखाई है। राज्य में सरकारी और निजी सहभागिता मॉडल के तहत 6 लाख से ज्यादा चेक डैम, खेत, तलावड़ियां और बोरीबंधों का निर्माण किया गया है। नर्मदा नदी पर शुरू की गई ‘सरदार सरोवर परियोजना’ दुनिया का सबसे बड़ा सिंचाई नेटवर्क है। इस प्रयास का नतीजा यह रहा कि पिछले दशक के दौरान 10 लाख से ज्यादा कुएं व बोरवेल फिर से भरे जा सके हैं। यहां तक कि सिंचाई सुविधाओं की मदद से 33 लाख हेक्टेयर भूमि को सिंचित किया जा सका वहीं भूजल स्तर में भी तीन मीटर की बढ़ोतरी हुई है। अन्न उत्पादन के अलावा गुजरात फल व सब्जियों का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है। यहां के किसान 78 लाख टन फल और 73 लाख टन सब्जियां उगाते हैं।

गुजरात में दुग्ध उत्पादनगुजरात में दुग्ध उत्पादनकृषि के अलावा दुग्ध उत्पादन में एक मानदंड स्थापित करने के बाद गुजरात में ‘श्वेत क्रांति’ का असर भी दिखाई देता है। बीते 10 सालों में राज्य में दुग्ध उत्पादन 68 प्रतिशत बढ़ा है। यह इस बात से जाहिर है कि सहकारी डेयरियों का हिस्सा 46 लाख लीटर से बढ़कर 100 लाख लीटर प्रतिदिन हो गया है। गुजरात की डेयरियां दिल्ली के लिए 20 लाख लीटर, मुंबई के लिए 8 लाख लीटर और कोलकाता के लिए 5 लाख लीटर दूध रोजाना भेजती हैं। इसके अलावा देश की सेनाओं के लिए मिल्क पाउडर भी भेजा जाता है। इस तरह बीते दस सालों में इस उद्योग ने लंबी छलांग लगाते हुए 2,400 करोड़ रुपए के दुग्ध व्यापार को 12,250 करोड़ रुपए पर पहुंचा दिया है। गुजरात में प्राथमिक दुग्ध सहकारी समितियों की तादाद 10,000 से बढ़कर 16,000 हो गई है। वहीं, महिलाओं द्वारा गठित व संचालित दुग्ध समितियां 800 से 2,250 हो गई है। कह सकते हैं कि इस एक दशक में गुजरात के खेतों ने चमत्कार कर दिखाया है। इसमें राज्य सरकार की भूमिका निर्णायक रही है जिसने उन्हें उन्नत कृषि तकनीक अपनाने के लिए प्रेरित किया। किसानों को बुनियादी सुविधाएं, प्रचुर बिजली व जलापूर्ति की व्यवस्था की गई। नतीजा सबके सामने है।

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