गर्माती धरती

गर्माती धरती
गर्माती धरती


बढ़ते प्रदूषण के कारण आज सबसे अधिक चिंता का विषय धरती के औसत तापमान का बढ़ना है। इस परिघटना को ग्लोबल वार्मिंग यानी वैश्विक तापन भी कहा जाता है । ग्लोबल वार्मिंग से आशय पृथ्वी की सतह के निकट वायुमंडल तथा क्षोभ मंडल में तापमान के बढ़ने से है जिससे वैश्विक जलवायु में बदलाव होता है। ग्लोबल वार्मिंग भावी खतरों का संकेत है। सबसे पहले सन् 1896 में प्रसिद्ध रसायनज्ञ सवान्ते आर्हेनियस ने धरती की जलवायु में परिवर्तन की संभावना का अनुमान लगाया था । उनकी भविष्यवाणी का आधार औद्योगिकीकरण में तेजी से होती वृद्धि के कारण वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड का अधिक मात्रा में जमा होना था। उन्होंने यह भी बताया था कि यदि वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा दो गुनी हो जाएगी तो पृथ्वी के तापमान में कई डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होगी । लेकिन उस समय उनकी बात पर ध्यान नहीं दिया गया। उस दौरान केवल विकास की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने पर ध्यान दिया जा रहा था।

ग्लोबल वार्मिंग प्राकृतिक एवं मानवजनित दोनों तरह के अनेक कारणों से हो सकती है। आमतौर पर 'ग्लोबल वार्मिंग' का मतलब उस गर्मी से होता है जो मानव गतिविधियों के कारण उत्सर्जित ग्रीनहाउस गैसों के कारण पैदा होती है। ग्रीन हाउस गैसों को उत्सर्जित करने वाली मानवीय गतिविधियों में औद्योगिकीकरण, परिवहन प्रणाली और खेती से संबंधित कार्य प्रमुख हैं। इस प्रकार कोयला, खनिज तेल, गैस आदि जीवाश्म ईंधनों की खपत बढ़ती गई और वनों को भी व्यापक स्तर पर काटा गया । औद्योगिक विकास के साथ-साथ विकास प्रक्रियाओं के खातिर कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रस ऑक्साइड, मीथेन और क्लोरोफ्लोरोकार्बन जैसे कारक धीरे-धीरे वायुमंडल में समाते रहे और इन सभी घटनाओं से पृथ्वी गर्म होने लगी । पृथ्वी के औसत तापमान में वृद्धि होने के परिणामस्वरूप समुद्रों का जलस्तर बढ़ रहा है जिसके कारण समुद्र के समीप स्थित द्वीपों के डूबने की आशंका जताई जा रही है। इसके अलावा पृथ्वी का धीरे-धीरे गर्म होना जलवायु में ऐसे अनेक अनगिनत बदलाव का कारण साबित हुआ है जिसके कारण यहां उपस्थित जीवन को विभिन्न चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।

Table -1
पृथ्वी की सतह के गर्माने के कारण वातावरण अधिक जलवाष्प खींचता है। ध्यान रहे कि जलवाष्प कार्बन मोनोऑक्साइड से अधिक प्रबल ग्रीनहाउस कारक है। इसके अलावा सतह के गरमाने से हिम की चादरों के पिघलने से सूर्य विकिरणों की अंतरिक्ष में परावर्तित होने वाली मात्रा में कमी आती है और अधिक बादल बनते हैं । ध्यान रहे कि बादल पृथ्वी की सतह की गर्मी के लिए तापरोधी सा व्यवहार करते हैं, जिससे वातावरण गर्म बना रहता है। 

अपनों से ही खतरा

हमारा पृथ्वी ग्रह खतरे में है। लेकिन यह विडंबना ही है कि पृथ्वी को खतरा किसी बाहरी ताकत से नहीं बल्कि धरती के सबसे बुद्धिमान जीव यानी मानव की करतूतों से है। यह भी अजीब बात है न कि खतरा और वह भी सबसे बुद्धिमान जीव से। लेकिन यह सच है अपने लालच की खातिर मानवीय गतिविधियों ने इस सुन्दर पृथ्वी ग्रह के सामने जलवायु परिवर्तन का संकट खड़ा किया है।

Table-2

मानव ने अपनी करतूतों के नकारात्मक परिणामों की परवाह किए बगैर पृथ्वी के वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य ग्रीन हाउस गैसों की इतनी मात्रा झोंक दी है कि पृथ्वी का औसत तापमान गड़बड़ा गया है। पृथ्वी ग्रह के औसत तापमान में लगातार वृद्धि जारी है। यदि यही हाल रहा तो इस शताब्दी के अंत तक धरती का औसत तापमान 1.4 डिग्री सेल्सियस से 5.8 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है। तापमान में होने वाली इस वृद्धि का प्रभाव पृथ्वी के पूरे वातावरण पर पड़ेगा और तब यहां जीवन को विभिन्न संकटों का सामना करना पड़ सकता है। लेकिन मानव अपने लोभ-लालच के कारण अपनी धरती के दर्द से बेखबर है । औद्योगिक युग के आरंभ से ही विकास की अंधाधुंध दौड़ में मानव ने धरती में से कार्बन (मुख्यतयाः कोयला और तेल) को बाहर निकालना शुरू किया और आज भी ऐसा ही कर रहा है। जीवाश्म ईंधनों के दहन से प्रत्येक 24 घंटों में पृथ्वी के वायुमंडल में 7 करोड़ टन कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा पहुंच रही है। बीसवीं सदी के दौरान पृथ्वी के औसत तापमान में 0.6 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है। तापमान में इस वृद्धि के लिए कार्बन डाइऑक्साइड विशेष रूप से जिम्मेदार है। वर्तमान में वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड का सांद्रण यानी जमाव लगभग 380 पीपीएम हो गया है। वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य ग्रीन हाउस गैसों की बढ़ती मात्रा के कारण पृथ्वी के औसत तापमान में वृद्धि हो रही है। 

Table -3
ग्रीन हाउस गैसें स्रोत 

यही हाल रहा तो आई.पी. सी. सी की रिपोर्ट के अनुसार सन् 2100 तक पृथ्वी के तापमान में 1.4 से 5.8 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हो सकती है जिसके कारण हमारे इस जीवनदायी ग्रह को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। पृथ्वी के धीरे-धीरे गर्माने के कारण आज मालदीव सहित अनेक द्वीपों का अस्तित्व खतरे में है। इस समय मालदीव की समुद्र तल से ऊंचाई महज 5 फीट रह गई है और यह आशंका जताई जा रही है कि साल 2020 तक यह पूरा इलाका डूब जाएगा। इसी तरह ग्लोबल वार्मिंग से उत्पन्न समस्याओं के अनगिनत उदाहरण है जो यह साबित करते हैं कि यह वैश्विक समुदाय के सम्मुख आज ग्लोबल वार्मिंग की समस्या उन प्रमुख समस्याओं में से एक है जिनको हल करने के लिए सामुहिक प्रयासों की आवश्यकता है।

table 4
ग्लोबल वार्मिंग में विभिन्न देशों का योगदान 


स्रोत:- प्रदूषण और बदलती आबोहवाः पृथ्वी पर मंडराता संकट, श्री जे.एस. कम्योत्रा, सदस्य सचिव, केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, दिल्ली द्वारा प्रकाशित मुद्रण पर्यवेक्षण और डिजाइन : श्रीमती अनामिका सागर एवं सतीश कुमार

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Post By: Shivendra
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