ग्रीनपीस ने की “ग्रीन बजट” की मांग


पर्यावरण अनुकूल खेती और अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा देने लिए अधिक फंड आवंटन पर दिया जो़र
बजट पूर्व विमर्श के लिए वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी द्वारा बुलाई गयी बैठक में ग्रीनपीस ने आज कहा कि अब वक्त आ गया है कि सरकार मौजूदा केन्द्रीय बजट 2011-12 को पर्यावरण अनुकूल बनाये।

ग्रीनपीस ने अक्षय ऊर्जा जैसे साफ-सुथरे ऊर्जा मॉडल विकसित किये जाने और पर्यावरण अनुकूल खेती को बढ़ावा देने के लिए बजट में अधिक धनराशि आवंटित करने की जरूरत पर बल दिया।

ग्रीनपीस इंडिया के अधिशासी निदेशक समित आइच ने आज यहां कहा कि, “हालांकि हम वित्त मंत्रालय की सहभागी प्रक्रिया की प्रशंसा करते हैं लेकिन साथ में यह उम्मीद भी करते हैं कि केन्द्रीय बजट 2011-12 में वह ऐसे कदम उठायेगा जो वित्तीय नीतियों को पर्यावरण अनुकूल और सामाजिक रूप से न्यायसंगत टिकाऊ विकास आधारित बनायेगा।” हकीकत यह है कि केन्द्रीय बजट सरकार की उस सोच और उन नीतियों को प्रदर्शित करता है जो वह देश के विकास के लिए चाहती है। बेहतर और स्थायी विकास को सुनिश्चित करने के लिए देश को अपने वर्तमान ऊर्जा ढांचे पर पुनर्विचार करने की जरूरत है। भारत को विकास के लिए एक टिकाई ऊर्जा ढांचे की जरूरत है। कैसे लोगों को ऊर्जा सुरक्षा मुहैया कराई जाए, इस बारे में गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए। साथ ही इसकी लगातार उपलब्धता सुनिश्चित करने और ऐसे रणनीतिक नेतृत्व तैयार करने की जरूरत है जो टिकाऊ और साफ-सुथरे ऊर्जा समाधान मुहैया करा सके।

आइच ने आगे कहा, “यदि सरकार देश के लाखों लोगों को इस्‍तेमाल योग्य और भरोसेमंद ऊर्जा मुहैया कराने के लिए वचनवद्ध है और देश के आर्थिक विकास की जरूरतों को कायदे से पूरा करना चाहता है तो वित्त मंत्रालय को अभी से महत्वपूर्ण कदम उठाने होंगे। केन्द्रीय बजट 2011 में विकेन्द्रीकृत अक्षय ऊर्जा विकल्प को शामिल करते हुए इस क्षेत्र में पूंजी निवेश की गति बढ़ानी होगी।”

ग्रीनपीस ने पर्यावरण अनुकूल खेती को बढ़ावा देने पर भी जोर दिया। मृदा, जल व जैव विविधता जैसे अत्यंत महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधनों के लगातार हो रहे क्षरण से देश की कृषि व्यवस्था बुरी तरह प्रभावित हो रही है और भारत में खाद्य सुरक्षा और किसानों के जीवन यापन के लिए बहुत बड़ा खतरा है। इसके अलावा पिछली सभी केन्द्र सरकारों की रासायनिक खाद छूट नीति ने खेतों में रासायनिक खादों के अंधाधुंध प्रयोग को काफी बढावा दिया है जिसने मिट्टी की उर्वरता पर बुरा प्रभाव डाला है।केन्द्र सरकार ने अकेले वित्तीय वर्ष 2009-10 के दौरान रासायनिक खादों को बढ़ावा देने के लिए 49,980 करोड़ रूपये खर्च किये जबकि पर्यावरण के अनुकूल खादों को बढावा देने व ऐसी अन्य योजनाओं के लिए मात्र 5374.72 करोड़ रूपये दिये जो कि रासायनिक खादों पर होने वाले खर्च का केवल दस फीसदी है।

“जीवित माटी” अभियान के तहत ग्रीनपीस द्वारा जुलाई से नवंबर 2010 के मध्य पांच राज्यों के करीब एक हजार किसानों पर कराये गये एक सर्वेक्षण से पता चला कि केवल एक फीसदी लोगों को ही पर्यावरण अनुकूल मिट्टी की उर्वरता बढाने में किसी भी तरह का सरकारी सहयोग मिला। इस तथ्‍य को ध्‍यान में रखते हुए कि पर्यावरण अनुकूल उर्वरता के अनेक घटक हैं इन योजनाओं के तहत उस के लिए समर्थन नगण्य है।

ग्रीनपीस ने वित्त मंत्रालय को दिये अपने प्रतिवेदन में कहा, “सरकार को चाहिए कि वह ऐसा वैकल्पिक सहयोगी ढांचा विकसित करे जो पर्यावरण अनुकूल मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने वाले सभी अवयवों को प्रोत्साहित करे ताकि हमारी मिट्टी अपनी खोई हुई सेहत फिर से हासिल कर सके। रासायनिक उर्वरक की जगह पर्यावरण माफिक उर्वरक (इकोलाजिकल फर्टीलाइजर) में छूट मिलने पर जोर होना चाहिए। हमारा वित्त मंत्रालय को सुझाव है कि आने वाले बजट में वह इसके लिए पर्यावरणीय उर्वरता मिशन स्थापित करे।”
 

 

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