ग्रीनहाउस गैस में कमी की क्योटो प्रक्रिया

उत्सर्जन व्यापार पर्यावरण सुधार के लिए बाजार आधारित वह योजना है जो सम्बन्धित पक्षों को कतिपय प्रदूषकों के उत्सर्जन में कटौती हेतु ऋण अथवा उत्सर्जन के लिए क्रय-विक्रय की अनुमति प्रदान करता है। इस प्रकार की योजना में पर्यावरण नियामक पहले कुछ स्वीकार्य उत्सर्जन का निर्धारण करता है और तब इस योग को व्यापार योग्य इकाइयों में विभाजित करता है जिन्हें प्रायः ऋण अथवा अनुमति कहा जाता है। क्योटो समझौते ने ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी लाने के लिए तीन लचीली प्रक्रियाएँ निर्धारित की हैं। इस समझौते में यद्यपि विकसित देशों को ही विशिष्ट उत्सर्जन लक्ष्य की प्रतिबद्धता के बन्धन में बाँधकर उन पर उत्सर्जन में कमी करने की अधिकतम जिम्मेदारी डाली गई है, तथापि तीनों प्रक्रियाएँ इस सिद्धान्त पर आधारित हैं कि विश्व के किसी भी भाग में उत्सर्जन में कमी आने से उसके वातावरण पर वैसा ही इच्छित प्रभाव पड़ेगा।

इसके अलावा कुछ विकसित देशों को अपने यहाँ उत्सर्जन में कमी लाने की अपेक्षा अन्य विकसित अथवा विकासशील देशों में उत्सर्जन कटौती प्रयासों में मदद करना अधिक सरल और किफायती लग सकता है। येप्रक्रियाएँ संलग्नक-एक के देशों को उत्सर्जन कटौती दायित्व को निभाने में लचीलापन प्रदान करती हैं।

क्योटो समझौते में निर्धारित ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कटौती की तीन प्रक्रियाएँ कौन-सी हैं?

ये तीन प्रक्रियाएँ हैं- संयुक्त क्रियान्वयन, उत्सर्जन व्यापार और स्वच्छ विकास तन्त्र।

क्या है संयुक्त क्रियान्वयन?

संयुक्त क्रियान्वयन के जरिए कोई भी संलग्नक-एक देश घरेलू स्तर पर उत्सर्जन कटौती के विकल्प के रूप में अन्य किसी संलग्नक-एक देश में उत्सर्जन कटौती परियोजनाओं (संयुक्त क्रियान्वयन परियोजनाओं के नाम से पुकारी जाने वाली) में निवेश कर सकता है।

इसके दो शुरुआती उदाहरण सामने आए हैं। एक है यूकैन एक एक सीमेंट कारखाने में गीली प्रक्रिया को सूखी प्रक्रिया में बदलना जिसके अनुसार वर्ष 2008-2012 तक बिजली की खपत में 53 प्रतिशत की कमी आएगी। दूसरा उदाहरण बलगारिया की जलविद्युत परियोजना के पुनरुद्धार का है, जिससे वर्ष 2008-2012 के दौरान कार्बन डाइआॅक्साइड के उत्सर्जन में 2,67,000 टन की कमी आएगी।

स्वच्छ विकास तन्त्र किसे कहते हैं?
क्योटो समझौते के अन्तर्गत स्वच्छ विकास तन्त्र (सीडीएम) क्योटो समझौते के अन्तर्गत उत्सर्जन कटौती या उत्सर्जन नियन्त्रण के लिए प्रतिबद्ध किसी विकसित देश को विकासशील देशों में उत्सर्जन कटौती परियोजना पर अमल करने का विकल्प प्रदान करता है। कारण, अपने देश में उत्सर्जन कटौती प्रयासों की तुलना में यह अधिक किफायती हो सकता है। इस प्रकार उत्सर्जन में जो कटौती होती है, उसके बदले में निवेशक देश को कार्बन ऋण प्राप्त होते हैं जो क्योटो के लक्ष्यों की क्षतिपूर्ति करने में काम आते हैं। विकासशील देश सम्पोषणीयविकास की दिशा में एक कदम आगे बढ़ाता है।

सीडीएम परियोजना के पंजीकरण और क्रियान्वयन के लिए, सर्वप्रथम निवेशक देश को मेजबान देश की मनोनीत राष्ट्रीय सत्ता से मंजूरी लेनी होती है, अतिरिक्तता स्थापित करनी होती है, आधारभूत रेखाएँ निर्धारित करनी होती हैं और मनोनीत प्रचालन निकाय (डीओई) कही जाने वाली किसी तीसरे पक्ष की एजेंसी से परियोजना को विधिमान्य कराना होता है। सीडीएम का कार्यकारी निकाय परियोजना का पंजीकरण कर ऋण जारी करता है, जिसे प्रमाणित उत्सर्जन कटौतियाँ (सीईआर) अथवा कार्बन क्रेडिट कहा जाता है, जिसकी प्रत्येक इकाई एक मीट्रिक टन कार्बन डाइऑक्साइड की कटौती या उसके समकक्ष होती है। 14 मार्च, 2010 तक 4,200 से अधिक सीडीएम परियोजनाएँ निर्माणाधीन हैं। 2012 तक अपेक्षित सीईआर 2 अरब 90 करोड़ है।

सीडीएम परियोजना में अतिरिक्तता क्या होती है?

‘अतिरिक्तता’ सीडीएम परियोजना का एक महत्वपूर्ण तत्व होती है। इसका अर्थ है कि विकासशील देश में सीडीएम परियोजना स्थापित करने और उनसे कार्बन ऋण कमाने वाले औद्योगिक देश को यह सिद्ध करनाहोता है कि कार्बन उत्सर्जन में नियोजित कटौती सीडीएम परियोजना के बगैर सम्भव नहीं होती। उन्हें परियोजना की सीमा रेखा स्थापित करनी होती है। यह वह उत्सर्जन स्तर होता है जो परियोजना के न होने पर हो रहा होता है। इस आधारभूत स्तर और परियोजना के फलस्वरूप हासिल निम्न उत्सर्जन स्तर के बीच जो अन्तर होता है वही निवेशक देश को देय कार्बन ऋण होता है। यह अतिरिक्तता कई अर्थों में हो सकती है।

उदाहरणार्थ, उत्सर्जन अतिरिक्तता परियोजना से वास्तविक और स्पष्ट रूप से दीर्घकालीन ग्रीनहाउस गैसों का शमन होना चाहिए, वित्तीय अतिरिक्तता सीडीएम परियोजना में पूँजी निवेश से शासकीय विकास सहायता में विचलन नहीं आना चाहिए, प्रौद्योगिकीय अतिरिक्तता सीडीएम परियोजना की गतिविधियों से पर्यावरण की दृष्टि से सुरक्षित और ठोस प्रौद्योगिकियों और जानकारियों के हस्तान्तरण को बढ़ावा मिलना चाहिए।

सीडीएम से सम्बन्धित कुछ प्रमुख चिन्ताएँ कौन-सी हैं?

सीडीएम परियोजनाओं के मामलों में झूठे ऋण का जोखिम चिन्ता का एक बड़ा कारण है। यदि परियोजना में वास्तविक रूप से कोई अतिरिक्तता नहीं हासिल होती और उत्सर्जन में कटौती, बिना परियोजना के भी अपने आप ही हो जाती है तो परियोजना द्वारा प्रदर्शित सकारात्मक प्रभाव, वस्तुतः झूठा प्रभाव सिद्ध होता जिससेनिवेशक को बिना वजह और गलत ऋण मिल सकता था और जिससे उत्सर्जन में कमी आने के बजाय वृद्धि हो सकती है।

सीडीएम परियोजनाओं के बारे में भारत की क्या स्थिति है?

नवीकरणीय और गैर-नवीकरणीय ऊर्जा, विनिर्माण, रासायनिक उद्योग , परिवहन, कचरा प्रबन्धन, पर्यटन, कृषि, वनीकरण, निर्माण आदि जैसे क्षेत्रों में सीडीएम परियोजनाओं के लिए व्यापक सम्भावनाएँ हैं। जनवरी 2010 तक भारत की ओर से कुल 482 सीडीएम परियोजनाएं यूएनएफसीसी (जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र का अभिसमय) के पास पंजीकृत है। समूचे विश्व से प्राप्त कुल परियोजनाओं का यह 23.7 प्रतिशत है। सभी सीडीएम परियोजनाओं को जारी कुल सीईआर 37.38 करोड़ है जिसमें से 74.19 करोड़ सीईआर के साथ भारत का हिस्सा 19.92 प्रतिशत है।

उत्सर्जन व्यापार क्या होता है?

उत्सर्जन व्यापार पर्यावरण सुधार के लिए बाजार आधारित वह योजना है जो सम्बन्धित पक्षों को कतिपय प्रदूषकों के उत्सर्जन में कटौती हेतु ऋण अथवा उत्सर्जन के लिए क्रय-विक्रय की अनुमति प्रदान करता है। इस प्रकार की योजना में पर्यावरण नियामक पहले कुछ स्वीकार्य उत्सर्जन का निर्धारण करता है और तब इस योग को व्यापार योग्य इकाइयों में विभाजित करता है जिन्हें प्रायः ऋण अथवा अनुमति कहा जाता है।

बाद में ये इकाइयाँ योजना के भागीदारों को आवण्टित कर दी जाती हैं। वे भागीदार जो प्रदूषकों का उत्सर्जन करते हैं उन्हें अपने उत्सर्जन के मुआवजे के तौर पर पर्याप्त व्यापार योग्य इकाइयाँ हासिल करनी होंगी।

जो भागीदार उत्सर्जन में कटौती करेंगे उनको अतिरिक्त इकाइयाँ दी जाएँगी, जिन्हें वे उत्सर्जन कटौती में कठिनाई अनुभव करने वाले अन्य लोगों को बेच सकते हैं।उत्सर्जन व्यापार व्यवस्था क्योटो समझौते मेंशामिल पक्षों को अपनी घरेलू उत्सर्जन कटौती लक्ष्यों को पूरा करने के लिए अन्य देशों से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन की अनुमति क्रय करने की सुविधा प्रदान करता है।

क्योटो समझौते के अन्तर्गत वचनबद्ध पक्षों (संलग्नक-बी देश) ने उत्सर्जन को सीमित करने अथवा कटौती के लिए लक्ष्यों को स्वीकार कर लिया है। इन लक्ष्यों को वर्ष 2008-2012 की प्रतिबद्ध अवधि के लिए अनुमत उत्सर्जन अथवा निर्धारित राशि के स्तर के रूप में व्यक्त किया जाता है।

अनुमत उत्सर्जन को निर्धारित राशि इकाइयों (एएयू) में विभाजित किया जाता है। उत्सर्जन व्यापार अतिरिक्त उत्सर्जन इकाइयों वाले देशों को अपनी यह अतिरिक्त क्षमता उन देशों को बेचने की अनुमति देता है जो अपना लक्ष्य पूरा कर चुके हैं। अन्य किसी जिंस की तरह अब कार्बन बाजार भी लगने लगा है जिसमें कार्बन का सौदा होता है।

ऐसा व्यापार, संयुक्त क्रियान्वयन (जेआई) परियोजनाओं द्वारा सृजित उत्सर्जन कटौती इकाइयों (ईआरयू) सीडीएम परियोजना आदि द्वारा सृजित सीईआई में भी हो सकता है। ऋणों के सम्भावित क्रेता वे देश होते हैं जोअधिक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जित करते हैं और सम्भावित विक्रेता वे देश होंगे जिनमें कार्बन की मात्रा कम होती है। उत्सर्जन व्यापार कार्यक्रमों को जलवायु नीति के साधनों के रूप में राष्ट्रीय क्षेत्रीय स्तर पर जहाँ सरकारें भागीदार इकाइयों के प्राप्य उत्सर्जन का दायित्व तय करती हैं, स्थापित किया जा सकता है। यूरोपीय संघ उत्सर्जन व्यापार योजना इसका एक प्रमुख उदाहरण है।

विभिन्न पक्षों द्वारा आवश्यकता से अधिक इकाइयों की बिक्री को रोकने के लिए क्या किया जाता है?

विभिन्न पक्षों द्वारा आवश्यकता से अधिक इकाइयों की बिक्री को रोकने के लिए, प्रत्येक पक्ष को अपने राष्ट्रीय रजिस्ट्री पर ईआरयू, सीईआर, एएयू और आरएमयू का सुरक्षित भण्डार रखना होता है ताकि वे अपने स्वयं के उत्सर्जन लक्ष्यों को हासिल करने में पीछे न
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Post By: Shivendra
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