न्यूयॉर्क में आयोजित संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन के बीच इन दिनों पूरी दुनिया में जलवायु परिवर्तन पर काफी चिन्ता देखी जा रही है। देश में भी बढ़ते वायु प्रदूषण के संकट को देखते हुए इससे निपटने के लगातार प्रयास हो रहे हैं। मौसम में आने वाले इन बदलावों से निबटने के खतरे के बीच ग्रीन जॉब्स का एक बड़ा बाजार भी खड़ा हो रहा है, जहाँ सुरक्षित करियर के साथ-साथ सामाजिक कार्य का मौका भी है और अच्छा पे-पेकैज भी। जिन युवाओं की पर्यावरण में गहरी दिलचस्पी है, वे एनवायरमेंट साइंस में स्पेशलाइजेशन कर इस चैलेंजिंग सेक्टर का हिस्सा बन सकते हैं। ग्रीन जॉब मॉर्केट में उभरते करियर विकल्पों पर खास पेशकश।
हाल ही में बढ़ते मरुस्थलीयकरण को लेकर केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री ने यह एलान किया कि अगले दस सालों में पचास लाख हेक्टेयर बेकार या बंजर पड़ी भूमि को उपजाऊ बनाया जाएगा। माना जा रहा है कि भूमि के उपजाऊ बनने से देश में करीब 75 लाख नई नौकरियाँ पैदा होंगी। वैसे, पूरी दुनिया इन दिनों मरुस्थलीकरण की इस चुनौती से निपटने के लिए पूरी ताकत से जुटी है। क्योंकि भूमि के बंजर या बेकार होने के पीछे एक बड़ी वजह जलवायु परिवर्तन भी है। उधर, हम एक ऐसे दौर में जी रहे हैं जहाँ सांस लेने के लिए भी शुद्ध हवा नहीं मिल पा रही है। चारों तरफ सिर्फ धूल और धुँए का पहरा है, पानी में जाने कितनी तरह का जहर घुल चुका है। हमारे पेड़, नदियाँ, पहाड़, वन्यजीव सब बेजान होते जा रहे हैं और इसकी बड़ी वजह है बढ़ता प्रदूषण। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार, देश में इस समय 20 शहर सबसे अधिक प्रदूषित हैं। यही वजह है कि आज एनवायरनमेंटल एक्सपर्ट और साइंटिस्ट की जरूरत पहले से कहीं अधिक महसूस की जा रही है।
बढ़ती सम्भावनाएँ
विशेषज्ञों के अनुसार, भारत में जिस तेजी से शरहरीकरण हो रहा है और ऊर्जा की माँग बढ़ रही है पर्यावरण संरक्षण के लिए नीयम-कायदे और कड़े हो रहे हैं। उसे देखते हुए बढ़ती माँग को पूरा करने के लिए बड़ी संख्या में एनवायरमेंट साइंस और रिन्यूएबल एनर्जी में प्रशिक्षित लोगों की जरूरत होगी। आने वाले समय में पानी और कचरा प्रबन्धकों की जरूरत होगी और इस जरूरत को पूरा करने के लिए भी काफी लोगों की भी जरूरत होगी। इसका मतलब यही है कि इन क्षेत्रों में नौकरी की अपार सम्भावनाएं हैं। इस दिशा में केन्द्र सरकार द्वारा सौर और पवन ऊर्जा के अधिक-से-अधिक इस्तेमाल करने वाली बिल्डिंग के निर्माण पर जोर, वाटर रिसाइकिल, वेस्ट मैनेजमेंट, पर्यावरण संरक्षण से सम्बन्धित शोध कार्य, प्रदूषण की मात्रा और ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने की तकनीक आदि विकसित करने के लिए बड़ी संख्या में विशेषज्ञों की सेवाएँ भी ली जा रही हैं। इस दिशा में इलेक्ट्रिक वाहनों को भी बढ़ावा दिया जा रहा है। माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में इस फील्ड में और अधिक मौके पैदा होंगे।
जॉब्स के मौके
एनवायरनमेंट साइंस या मैनेजमेंट डिग्री धारकों के लिए सरकारी और निजी दोनों ही क्षेत्रों में कई तरह के जॉब ऑप्शन मौजूद हैं। पढ़ाई करने के बाद आप फॉरेस्ट एंड एनवायरनमेंट, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, अर्बन प्लानिंग, वाटर रिसोर्स तथा एग्रीकल्चर जैसे सरकारी विभागों में अच्छी पोजीशन पर जॉब पा सकते हैं। प्राइवेट फील्ड में भी एनवायरनमेंट प्रोफेशनल्स की अच्छी डिमांड है, जो आने वाले दिनों में और बढ़ेगी।
कृषि विशेषज्ञ के रूप में
केन्द्रीय सत्ता में आने के बाद से ही मोदी सरकार की किसानों की आय दोगुनी करने पर जोर है। इसके लिए मिट्टी की जाँच से लेकर नए खाद, बीज और खेती के अत्याधुनिक उपकरणों के इस्तेमाल को काफी बढ़ावा दिया जा रहा है। अनाज के उत्पादन में बढ़ोत्तरी के लिए तमाम उपाय अपनाए जा रहे हैं। इस क्षेत्र में कृषि में उत्पादन को बढ़ाने के लिए मौसम विज्ञान का भी काफी उपयोग किया जाता है। क्योंकि कृषि मौसम विज्ञानी मौसम और जलवायु परिवर्तन की जानकारी के अनुसार अनाज उगाने का सुझाव देता है जिससे कम लागत में ज्यादा उत्पादन किया जा सके और किसान को मौसम के दुष्प्रभाव भी न झेलने पड़ें। इसी तरह ऐसे विशेषज्ञों की जरूरत पड़ रही है, जो पशुपालन, सिंचाई प्रणाली, मृदा संरक्षण, मशीनों और बिजली का उपयोग, मिट्टी के अनुसार कीटनाशकों का प्रयोग, उत्पादन की मैपिंग, पानी का कुशल प्रयोग और बीजों एवं उर्वरकों की सही जानकारी दे सकें।
रिस्क मैनेजर के रूप में
बदलती जलवायु के अनुसार पूर्वानुमान लगाकर उस हिसाब से कार्य करने वाले प्रोफेशनल्स को क्लाइमेट रिस्क मैनेजर भी कहते हैं। इनका काम बाढ़, सूखा जैसी प्राकृतिक आपदाओं की स्थिति का आकलन कर उनके दुष्प्रभावों को कम करना और अच्छे मौसम के दौरान प्राकृतिक संसाधनों का बेहतरीन प्रबन्धन कर उसका उपयोग करना होता है।
पर्यावरण एक्सपर्ट के रूप में
पर्यावरणविदों का करियर इन दिनों काफी डिमांड में है। पेशा नया होने के साथ-साथ चुनौतियों भरा भी है, क्योंकि बेपटरी हुए इकोसिस्टम को पटरी पर लाने की जिम्मेदारी इन्ही पर है। साथ में सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट और पॉल्यूशन कंट्रोल के लिए नई इको फ्रेंडली तकनीक विकसित की जा रही है। यही वजह है कि एनवायरनमेंट स्पेशलिस्ट के लिए जॉब ऑपच्युर्निटी अचानक बढ़ गई है।
ऊर्जा के क्षेत्र में
कोयले के घटते भंडार और ताप ऊर्जा के दुष्प्रभाव को देखते अक्षय ऊर्जा बढ़ाने के लिए सरकार द्वारा इसे काफी बढ़ावा दिया जा रहा है। वैसे भी देखा जाए, तो सौर और पवन ऊर्जा के क्षेत्र में अब काफी काम हो रहा है। सरकार ने आने वाले वर्षों में अपने सौर ऊर्जा की क्षमता को 450 गीगावाट तक बढ़ाने का लक्ष्य रखा है। ऐसे में इस क्षेत्र में बड़ी संख्या में इंजीनियर, टेक्निशियन और प्रोडक्शन मैनेजरों के पद सृजित हो रहे हैं।
रीयल एस्टेट के क्षेत्र में
आजकल बन रहे नए कॉमर्शियल भवनों और रिहायशी इमारतों में एनर्जी एफिशिएंसी पर ध्यान दिया जाने लगा है। ऐसी इमारतों के निर्माण पर जोर है, जहाँ ज्यादा से ज्यादा नेचुरल ऊर्जा की व्यवस्था हो। इसके लिए बड़ी संख्या में ग्रीन इमारतें बनाई जा रही है। ऐसी ग्रीन इमारतों के निर्माण के लिए इस क्षेत्र में एनर्जी इंजीनियरों और ग्रीन आर्किटेक्ट की माँग बढ़ रही है।
उत्पादन के क्षेत्र में
बढ़ते प्रदूषण के स्तर को देखते हुए मैन्युफैक्चरिंग कम्पनियों में ग्रीन टेक्नोलॉजी की मदद से इको-फ्रेंडली उत्पादों का उत्पादन करना समय की माँग बन गई है। इस क्षेत्र में बदलाव के लिए ऐसे प्रोफेशनल्स की जरूरत बढ़ गई है, जो इको फ्रेडली उत्पाद बनाने में मदद कर सकते हैं।
कंजर्वेशनिस्ट के रूप में
आज कंजर्वेशनिस्ट की काफी माँग है। कारण यह है कि पर्यावरण को संरक्षित और सुरक्षित रखने के लिए ऐसे लोगों की जरूरत है, जो नदियों को साफ करने की परियोजनाओं और जल प्रदूषण के प्रति काम कर सकें।
/articles/garaina-saekatara-kalaina-karaiyara