ग्रेट प्लेंस (Great Plains)

उत्तरी अमेरिका में ग्रेट प्लेंस
उत्तरी अमेरिका में ग्रेट प्लेंस


चलो पश्चिम की ओर

तुमने पढ़ा है कि अमेरिका में बसने के लिये यूरोप से लगातार लोग आते गए। ये लोग अधिकतर छोटे किसान थे, जो जमीन के लालच में अमेरिका आए थे। ये लोग अमेरिका के आदिवासी इंडियनों को खदेड़कर उनकी जमीन पर खेती करने लगे।

यूरोप से आए लोग पहले अटलांटिक सागर के तटीय प्रदेश में बसे। फिर वे अपलेशियन पर्वत श्रेणी पार करके मिसिसिपी नदी के मैदान में बसने लगे। अपलेशियन पर्वत श्रेणी के पश्चिम में पड़ने वाले इस मैदान को मध्य का मैदान कहा जाता है।

मध्य मैदान के पूर्वी हिस्सों में काफी वर्षा होने के कारण घने जंगल पाए जाते हैं। लेकिन मिसिसिपी नदी तक आते-आते वर्षा कम हो जाती है। यहाँ पेड़ नहीं उगते हैं। मिसिसिपी नदी के आस-पास और उसके पश्चिम में घास का प्रदेश है। यहाँ ऊँची-ऊँची घास उगती है जिसे ‘प्रेरी घास’ कहते हैं।

मिसिसिपी नदी के मैदान के इस प्रदेश की मिट्टी बहुत उपजाऊ है। और वर्षा भी 50 से.मी. से ज्यादा होती है। बसने आए परिवार यहाँ जमीन तोड़कर खेती करने लगे और मुख्य रूप से मक्का उगाने लगे। धीरे-धीरे अमेरिका का अटलांटिक तटीय मैदान और मध्य का मैदान यूरोपीय लोगों की बसाहटों से भर गया। फिर भी यूरोप से आने वालों का सिलसिला जारी रहा तो लोग पश्चिम की ओर बढ़ने लगे। बढ़ते-बढ़ते वे ग्रेट प्लेंस तक पहुँच गए। मगर ग्रेट प्लेंस की जलवायु और वनस्पति ने उनके सामने कई कठिनाइयाँ खड़ी कर दीं।

पश्चिम की ओर जाने वालों की गाड़ियां और जानवर

ग्रेट प्लेंस और उसकी जलवायु


मिसिसिपी नदी तथा रॉकीज पर्वतों के बीच, उत्तर से दक्षिण तक फैला मैदान ग्रेट प्लेंस कहलाता है। उत्तर में यह मैदान कनाडा के बीच के हिस्सों तक फैला हुआ है। यह प्रदेश बिल्कुल सपाट या हल्का ऊँचा-नीचा है। सैकड़ों मील तक फैले इस प्रदेश में मिसिसिपी की कई सहायक नदियाँ बहती हैं।

ग्रेट प्लेंस मुख्यत: घास का प्रदेश है। शुरू में आए लोगों में से एक छोटी बच्ची ने लिखा है कि यह घास का प्रदेश इतना सपाट है जैसे समुद्र हो, और यहाँ पेड़ तक नहीं हैं जिनके पीछे छुपकर खेला जा सके।

अमेरिका के ग्रेट प्लेंस ठंडी जलवायु के घास का प्रदेश है।

तुमने अफ्रीका में सवाना नामक घास के प्रदेशों की बात पढ़ी थी। वे भूमध्यरेखा के निकट हैं, इसलिये गर्म प्रदेश हैं। उत्तरी अमेरिका के मानचित्र में देखो, ग्रेट प्लेंस भूमध्यरेखा से दूर है और बहुत उत्तर में फैला हुआ है, इसलिये यह ठंडा प्रदेश है। ग्रेट प्लेंस में वर्षा लगभग 25 से.मी. से 50 से.मी. तक होती है। तुम जानते हो कि इतनी कम वर्षा में घास ही उग पाती है। पेड़ केवल नदियों के किनारे उगते हैं। ग्रेट प्लेंस के सूखे हिस्सों में घास काफी छोटी रह जाती है। इसे ‘छोटी प्रेरी’ की घास कहते हैं।

उत्तरी अमेरिका में ग्रेट प्लेंस क्या तुम ग्रेट प्लेंस में इतनी कम वर्षा होने के कारण बता सकते हो? दरअसल, ग्रेट प्लेंस महासागरों - से दूर है और पर्वतों की आड़ में है, इसीलिये यहाँ इतनी कम वर्षा होती है।

सागरों से दूरी ग्रेट प्लेंस के तापमान पर भी असर डालती है। यहाँ ठंड के मौसम में तापमान बहुत गिर जाता है, यहाँ तक कि हिमांक (0 डिग्री से.) से भी कम हो जाता है। गर्मी के मौसम में तापमान बढ़ जाता हैयहाँ तक कि 40 डिग्री से. से ऊपर चला जाता है। जाड़े-गर्मी का यह अत्यधिक अंतर उन प्रदेशों में पाया जाता है जो सागर से बहुत दूर होते हैं। यह बात तुमने तापमान के पाठ में पढ़ी थी।

जब संयुक्त राज्य अमेरिका में लोग आकर बसे, तब ग्रेट प्लेंस उन्हें आकर्षक नहीं लगता था और खेती के लिये उपयुक्त भी नहीं लगता था। कई जगह पानी भी नहीं मिलता था, इसलिये लोग प्रेरीज़ प्रदेश को पार करके पश्चिम की ओर चले जाते थे।

 

 

काउबॉय का जमाना


कहा जाता है कि सन 1521 में यूरोप से छह गाय और एक बैल मेक्सिको लाए गए। ये उत्तरी अमेरिका में आए पहले गाय-बैल थे। उससे पहले वहाँ गायें बिल्कुल नहीं थी। केवल जंगली भैंसे थी, जो ग्रेट प्लेंस में चरती थीं। इन्हें बाइसन कहा जाता था। वहाँ के इंडियन लोग उनका शिकार करते थे।

तो ये जो छह गायें और एक बैल 1521 में आये, उनके वंशजों में से कुछ जंगल में भटक गए। वे जंगल व घास के मैदानों में पलते रहे और 1850 तक इनकी संख्या हज़ारों में हो गई। ये सभी गायें ग्रेट प्लेंस के घास के मैदानों में मज़े से चर रही थी। जो लोग उस इलाके में पहुँचे, वे गायों के इन झुंडों को देखकर आश्चर्यचकित हो गए। उनमें से कुछ लोगों को एक विचार सूझा, 'क्यों न हम इन गायों को पकड़कर उत्तर-पूर्व के शहरों में मांस के लिये बेचे? इसमें ज़्यादा लागत तो लगनी नहीं है। बस, दस-पंद्रह लोग और कुछ घोड़ों की ज़रूरत होगी जो इन गायों को घेर कर बड़े शहरों में ऊँचे दामों पर बेच आयेंगे।'

मगर एक समस्या थी। गायें थी ग्रेट प्लेंस के दक्षिणी भाग में और बड़े शहर थे अमेरिका के उत्तर पूर्व में। उन्हें शहरों तक पहुँचाने के लिये रेलगाड़ियों में ले जाना पड़ता था। मगर रेल लाइनें भी दूर उत्तर में थी। नतीजा यह था कि इन गायों को घेरकर सैकड़ों मील ले जाना पड़ता था ताकि उन्हें रेल डिब्बों में लादा जा सके। यह बहुत मुश्किल काम था। दिन-रात गायों पर निगरानी रखनी पड़ती थी। उन्हें भागने से, तितर-बितर होने से, चोर डाकुओं से बचाकर सैकड़ों मील चला कर ले जाना आसान काम नहीं था। जो लोग यह जोखिम भरा धंधा करते थे, उन्हें काऊबॉय कहा जाता था। अपने जीवन की इन कठिनाइयों व खतरों के कारण काऊबॉय अमेरिका में बहुत प्रसिद्ध हुए हैं।

 

 

 

 

रैंचों का बनना


इस दौरान ग्रेट प्लेंस से इंडियनों को खदेड़ दिया गया था और बाइसनों कोको मार दिया गया था। इस प्रकार ग्रेट प्लेंस में बाइसन और आदिवासी इंडियनों का युग खत्म हुआ। कुछ समय बाद काऊबॉयों का युग भी बीतन लगा। ग्रेट प्लेंस में रेल लाइनों का जाल बिछा। इस कारण सैकड़ों मील गायों को हांक कर ले जाने की ज़रूरत अब नहीं थी।

जो लोग जंगली गाय पकड़कर बेचने का धंधा करते थे, वे अब अपने धंधे को सुधारने की कोशिश करने लगे। वे खुद गाय पालने लगे। मगर कैसे? ये लोग जंगली गायों को पकड़ लाते और सब मालिक अपनी-अपनी गायों अपना चिन्ह दाग देते थे। फिर इन्हें ग्रेट प्लेंस के घास के खुले मैदानों में चरने के लिये छोड़ देते थे। साल के अंत में सभी मालिक मिलकर गायों को इकट्ठा करते थे और दाग के आधार पर अपनी-अपनी गायों को अलग करते थे। जिन गायों को बेचना था उन्हें रेल में चढ़ाकर शहर भेज देते थे।

मगर गायों को इस तरह खुले में चराना बहुत दिन तक नहीं चला। कुछ मालिक नई नस्ल की गाएँ नए तरीकों से पालना चाहते थे ताकि गायें अच्छी मोटी हो जाएँ और उनका अच्छा भाव मिले। वे नहीं चाहते थे कि उनकी गायें दूसरी जंगली गायों के साथ चरे। इसलिये वे अपने अलग फार्म बनाने लगे।

कई मालिकों ने सैकड़ों मील लंबी जमीन पर अपना-अपना हक जमाकर कंटीले तारों का बाड़ा बनाना शुरू किया। जानवर पालने के लिये बनी इन बड़ी-बड़ी जायदादों को रैंच कहा जाने लगा। इन रैंचों में मांस के लिये विशेष नस्ल की गायें पाली जाने लगी और इन गायों के लिये उत्तम चारा और अच्छी देख-रेख का प्रबंध किया जाने लगा। इस तरह अब अमेरिका के विशाल घास के मैदानों का उपयोग एक अलग ही ढंग से होने लगा।

 

 

 

 

एक आधुनिक रैंच


सैकड़ों मील लंबे-चौड़े रैंच के बीच में आजकल रैंच अपने परिवार के साथ रहते हैं। उनके आधुनिक और सुविधाजनक घरों के अलावा रैंच के नौकरों व कर्मचारियों के घर और जानवरों की देखभाल, इलाज आदि के लिये भी इमारतें होती हैं।

रैंच के जानवरों की देख-रेख के लिये रखे गए नौकरों को काऊबॉय ही कहा जाता है। पर अब काऊबॉयों का काम काफी बदल गया है। उनका काम है -रैंच के जानवरों की देखभाल। रैंच में चर रहे जानवरों पर निगरानी रखने के लिये रैंचों में अब सड़कें बनी हैं। काऊबॉयों घोड़ों के साथ-साथ अब जीपों और हेलीकाप्टरों का उपयोग भी करते हैं। रैंचों के बीच नलकूप बनाकर पवन चक्की लगाई जाती है जिससे हवा के चलने के साथ पानी खिंचता रहे। पानी टंकियों में भरता रहता है ताकि जानवर पी सकें। काऊबॉय निगरानी रखते हैं ताकि जानवरों को पानी मिलता रहे, एक नस्ल के पशु दूसरे से न मिल जाएँ, कंटीले तार कही टूट न जाए इत्यादि।

रैंच में इस बात पर बहुत ध्यान दिया जाता है कि जानवर मोटा हो और उस पर मांस चढ़े, क्योंकि अच्छे मोटे जानवर की अच्छी कीमत मिलती है। अमेरिका के लोगों के भोजन में मांस एक प्रमुख और ज़रूरी अंग है। इस कारण वहाँ मांस की खूब मांग रहती है। साल में दो बार रैंचो में जानवरों को इकट्ठा किया जाता है और बेचने लायक जानवरों को गाड़ियों में भर कर शहरों में भेजा जाता है।

अमेरिका के कुछ बड़े शहर मांस उद्योग के लिये प्रसिद्ध हैं - जैसे कन्सास, शिकागो, मिलवॉकी, इंडियानापोलिस। इन शहरों में जानवरों के मांस को ठंडा करके डिब्बों में पैक करके बेचने के लिये तैयार किया जाता है जिससे मांस सड़े नहीं।

 

 

 

 

ग्रेट प्लेंस में खेती की शुरुआत


जिस समय ग्रेट प्लेंस में रैंच बन रहे थे, लगभग उसी समय वहाँ बसकर खेती करने के लिये लोग आने लगे। संयुक्त राज्य अमेरिका की सरकार चाहती थी कि लोग ग्रेट प्लेंस के विशाल मैदान में बसकर खेती करें। खेती को बढ़ावा देने के लिये सरकार ने ऐलान किया था कि जो लोग वहाँ बसना चाहते हैं, उन्हें 160 एकड़ जमीन मुफ्त दी जाएगी। जमीन के लालच में लोग ग्रेट प्लेंस में आने लगे और खेती करने की कोशिश करने लगे। पर ग्रेट प्लेंस में पानी की कमी थी, बाड़े बनाने के लिये पेड़ तक नहीं थे और जोतने के लिये बहुत ज्यादा जमीन थी। जब इन समस्याओं का हल मिलने लगा तब लोग बड़ी संख्या में ग्रेट प्लेंस में खेती करने लगे।

1.पानी की कमी : ग्रेट प्लेंस में वर्षा कम होती है। कुछ साल ऐसे भी होते हैं जब वर्षा बिल्कुल नहीं होती है। ऐसे में पानी का प्रबंध करना जरूरी था। कुएँ खोदने पर पानी गहराई पर मिलता था उससे 160 एकड़ की सिंचाई कैसे करें? उन्हीं दिनों नलकूप और पवन चक्कियों का आविष्कार हुआ। किसानों ने नलकूप बनाए और उनसे पानी खींचने के लिये पवन चक्कियों का उपयोग किया।

ग्रेट प्लेंस में तेज हवाएँ चलती रहती हैं, सो वहाँ पवन चक्कियाँ बहुत उपयुक्त रहीं।

कंटीले तारों का बाड़ा2. जानवर : ग्रेट प्लेंस में चर रहे जानवर खेतों में घुसकर फसल बर्बाद कर देते थे। खेतों को बचाने के लिये बाड़ा बनाना जरूरी था। लेकिन बाड़ा किससे बनाएँ? वहाँ पेड़ तो थे नहीं, जिन्हें काटकर बाड़ा बनाया जाए। मिट्टी का बाड़ा बनाते तो जानवर उन्हें तोड़ डालते थे। ऐसे में कंटीले तारों का आविष्कार हुआ। कंटीले तारों से बाड़े बनने लगे और जानवरों का डर खत्म हुआ। पवन चक्की और कंटीले तारों के उपयोग से ग्रेट प्लेंस में खेती फैलाना संभव हुआ।

3.मशीनों की जरूरत : ग्रेट प्लेंस में बड़े-बड़े जोत वाले किसान बने। आजकल यहाँ किसानों के पास 500-600 एकड़ जमीन होना आम बात है।

इतने बड़े जोत को किसान कैसे संभालता? तुम सोचोगे कि वे जमीन बटाई पर दे सकते थे या मजदूर लगाकर काम करवा सकते थे। लेकिन जहाँ इतनी सारी खाली जमीन हो, वहाँ कौन दूसरों की जमीन बटाई पर लेगा? जो लोग मजदूरी करते थे, वो तो उद्योगों में काम करना पसंद करते थे। उद्योगों में मज़दूरी भी अधिक मिलती थी और फिर शहर में रहना सबको भाता था।

एक-एक परिवार सैकड़ों एकड़ की जमीन जोतना चाहता था। काम करने के लिये मज़दूर कम थे, सो अमेरिका में शुरू से ही मशीनों के उपयोग पर ज़ोर था। डीजल मोटर और बिजली की मशीनें बनने से पहले भी यहाँ बोनी, कटाई आदि के लिये मशीनें बनने लगी। इनमें चार या छह घोड़ों के जोड़े जुतते थे। इस तरह शुरू की मशीनें घोड़ों द्वारा खींची जाती थी।

अब ट्रैक्टर, थ्रेशर, हार्वेस्टर कंबाईन जैसी मशीनें खेती का सारा काम करती हैं। मगर साथ ही यहाँ के बहुत बड़े फार्मों में हवाई जहाजों का उपयोग भी किया जाता है। बीज छिड़कने, खाद-दवा डालने आदि के लिये हवाई जहाजों का उपयोग होता है। मशीनों के उपयोग के चलते यहाँ अब मजदूरों व अन्य काम करने वालों की ज्यादा जरूरत नहीं है।

सैकड़ों एकड़ लंबे-चौड़े फार्मों के मालिक आमतौर पर अपने विशाल फार्मों में ही घर बनाकर रहते हैं। एक फार्म से दूसरे फार्म के बीच तो कई मीलों की दूरी रहती है। इस कारण अमेरिका में, अपने यहाँ की तरह, थोड़ी-थोड़ी दूरी पर घने बसे हुए गाँव नहीं दिखते। ग्रेट प्लेंस में आबादी बहुत कम है।

 

 

 

 

मिट्टी का कटाव


यूरोपीय लोगों के बसने से पहले ग्रेट प्लेंस में खेती तो नहीं होती थी। वहाँ सैकड़ों मील तक घास ही घास होती थी। जब वहाँ खेती होने लगी तो घास उखाड़ी गई और मिट्टी को बिखेरा गया। फसल कटने के बाद, खाली खेतों में सूखी और भुरभुरी मिट्टी रह गई। यहाँ अक्सर तेज हवाएँ चलती थी। हवा के साथ उपजाऊ मिट्टी उड़ने लगी। इससे खेत बुरी तरह बर्बाद होने लगे। धीरे-धीरे मिट्टी के कटाव को रोकने के लिये भी तरीके ढूंढे गये।

खेतों के किनारे हवा को रोकने के लिये पेड़ों की कतारें लगाई गई। खेतों को ढाल के आड़े बनाया गया और खेती के किनारे पर मेड़े बनाई गई ताकि बरसात में मिट्टी न कटे। फसल पट्टियों में बोई जाने लगी। यह भी कोशिश की गई कि कुछ जगहों पर खेत न बनाए जाएँ। खासकर अधिक ढलवा जमीन पर प्राकृतिक घास को उगने दिया गया। इस तरह ग्रेट प्लेंस में मिट्टी के कटाव को रोकने का प्रयास किया गया।

 

 

 

 

फसलें


ग्रेट प्लेंस में विशेष रूप से गेहूँ उगाया जाता है। वहाँ मीलों तक गेहूँ के खेत देखे जा सकते हैं। ग्रेट प्लेंस में दो तरह के गेहूँ उगाए जाते हैं - शीत ऋतु का गेहूँ और बसंत ऋतु का गेहूँ।

ग्रेट प्लेंस के उत्तरी भागों में ठंड के महीनों में खूब ठंड पड़ती है, हिमपात होता है और जमीन हिम से ढकी रहती है। ऐसे में वहाँ खेती कैसे हो?

इसलिये ऐसे इलाकों में जब बसंत ऋतु में बर्फ पिघल जाती है तब गेहूँ बोया जाता है। यह गेहूँ गर्मी के महीनों में पकता है और उसके बाद काट लिया जाता है।

ग्रेट प्लेंस के दक्षिणी भागों में इतनी अधिक ठंड नहीं पड़ती है। वहाँ ठंड से पहले गेहूँ बोया जाता है। ठंड के बाद फसल पक कर तैयार हो जाती है। गर्मी आने पर कटाई होती है।

ग्रेट प्लेंस में इतना गेहूँ होता है कि अमेरिका के दूसरे इलाकों के लोग तो इसे खाते ही हैं, पर विश्वभर में भी यह गेहूँ बड़ी मात्रा में बेचा जाता है।

गेहूँ के अलावा ग्रेट प्लेंस में मक्का, सोयाबीन व कुछ कपास भी उगाया जाता है। मक्का उगाने का मुख्य क्षेत्र ग्रेट प्लेंस नहीं, बल्कि मध्य का मैदान है। गेहूँ और मक्का अमेरिका की बहुत महत्त्वपूर्ण फसलें हैं। परंतु इसकी विशेषता यह है कि यहाँ उगने वाला अधिकांश मक्का लोगों द्वारा नहीं खाया जाता। मक्के की उपज का तीन चौथाई हिस्सा गाय-बैल, सुअर, मुर्गे, भेड़ आदि जानवरों को खिलाने के काम आता है क्योंकि अमेरिका के लोगों के भोजन में मांस, दूध, मक्खन, पनीर, अंडे, मुर्गे बहुत महत्त्वपूर्ण हैं।

 

 

 

 

मीलों तक एक फसल


अमेरिका के खेतिहर इलाकों में जीवन अपने यहाँ के गाँवों के जीवन से सचमुच बहुत अलग है। अमेरिका में फार्म का मालिक अपने विशाल फार्म की सारी फसल बाजार में बेच देता है और अपने घर की ज़रूरतों की सारी चीजें - अनाज, दाल, सब्जी, तेल आदि - बाजार से खरीदता है। वह अपने सैकड़ों एकड़ वाले फार्म में सिर्फ एक या दो सबसे लाभदायक फसल उगाता है, जो उसके फार्म में अच्छी तरह उग सके। अमेरिका में कहीं मीलों तक सिर्फ गेहूँ उगा मिलेगा, कहीं मीलों तक सिर्फ मक्का, तो कही सिर्फ टमाटर और कहीं मीलों तक सोयाबीन।

वहाँ सब फार्म मालिक इस उद्देश्य से खेती करते हैं कि कम से कम लागत में, अपनी मशीनों आदि का पूरा-पूरा उपयोग करके, अधिक से अधिक मुनाफा कमाया जाए। इस उद्देश्य को पूरा करने के लिये ही वे एक सबसे उपयुक्त फसल चुन कर अपने फार्मों में उगाते हैं।

इस तरह एक ही फसल उगाने से कई फायदे और कई खतरे भी होते हैं। फायदा यह है कि फार्म की मिट्टी, पानी और जलवायु के अनुसार सबसे उपयुक्त फसल उगाने से पैदावार ज़्यादा होती है। फार्म के मालिक को एक ही तरह की मशीनें रखनी होती हैं और उन मशीनों का सैकड़ों एकड़ की जोत पर पूरा उपयोग हो जाता है। फार्म मालिक सारा ध्यान लगाकर एक फसल की पैदावार का सारा इंतज़ाम अच्छी तरह कर सकता है।

पर, एक ही फसल उगाने के खतरे भी हैं। अगर कीड़े लगने या बीमारी होने से वह फसल खराब हो जाए, तो फार्म मालिक पूरी तरह बर्बाद हो जाता है। अगर उस एक फसल का दाम गिर जाए तो भी उसका धंधा पूरी तरह घाटे में चला जाता है। उसके पास खाने के लिये घर की फसल का सहारा भी नहीं होता और न ही किसी दूसरी फसल को बेचकर आमदनी कमाने का रास्ता होता है।

मशीनों, गाड़ियों, हवाई जहाज़ों, दवाईयों आदि के लिये किसान बैंकों व कंपनियों से लोन लेते हैं। इसलिये घाटे के समय कर्जे का भार बहुत अधिक हो जाता है। बहुत बड़े फार्म मालिकों के पास तो पिछले मुनाफे और भारी भरकम बचत का सहारा होता है, पर छोटे फार्म मालिक बुरी तरह पिट जाते हैं। उन्हें अपनी जमीनें और मशीनें बेचनी भी पड़ जाती हैं।

 

 

 

 

खेतिहर और औद्योगिक इलाकों का रिश्ता


अमेरिका के विशाल खेतिहर मैदानों में खेती के अलावा अन्य उद्योग ज़्यादा नहीं पनपे हैं। अधिकांश बड़े उद्योग उत्तरी पूर्वी अमेरिका में लगे हुए हैं और वहीं का बना सामान सब दूर बिकता है। उत्तर पूर्व में बसे लोगों का भोजन बीच के मैदानों में उगाया जाता है और बीच के मैदान में रह रहे किसानों व पशु-पालकों की ज़रूरतों का सारा सामान उत्तर पूर्व के कारखानों में बन कर आता है। इन दोनों क्षेत्रों के बीच रेल, सड़कों व नहरों से यातायात और परिवहन की सुविधाएँ बहुत पहले विकसित की गई हैं क्योंकि यह दोनों ही क्षेत्रों के लिये ज़रूरी है।

 

 

 

 

अभ्यास के प्रश्न


1. खाली स्थान भरो :-

क) ग्रेट प्लेंस ..............पर्वत श्रेणी और .................नदी के बीच पड़ता है।
ख) ग्रेट प्लेंस की मुख्य प्राकृतिक वनस्पति .............. है।
ग) ग्रेट प्लेंस में बहुत ................गर्मी और बहुत ..............ठंड होती है। (कम/अधिक)
2. यूरोपियनों के आने से पहले ग्रेट प्लेंस में कौन रहते थे और वे किस जानवर का शिकार करते थे?
3. ग्रेट प्लेंस में खेती करने में क्या-क्या दिक्कतें हुई थी, समझाओ।
4. ग्रेट प्लेंस में पशु पालन की क्या सुविधाएँ हैं?
5. क) काउबॉयों का धंधा क्या था और उस धंधे के फायदे क्या थे?
ख) काउबॉयों के धंधे में खतरे और कठिनाइयाँ क्यों थी?
6 क) रैंच क्यों बनाई गई?
ख) रैंचों में जानवरों को पालने के लिये क्या-क्या इंतज़ाम होते हैं?
7. ग्रेट प्लेंस में खेती के फैलाव में किन-किन चीज़ों ने मदद की - वर्णन करो।
8. क) ग्रेट प्लेंस में बसने वाले किसान बहुत बड़े इलाके में खेती क्यों करना चाहते थे?
ख) उन्हें मज़दूरों की कमी क्यों हुई?
9. ग्रेट प्लेंस में अपने देश की तरह घने बसे हुए गाँव क्यो नहीं होते हैं?
10. ग्रेट प्लेंस में किन दो किस्मों के गेहूँ उगाए जाते हैं व क्यों?
11. अमेरिका में मक्का मुख्य रूप से किस काम आता है?
12. अमेरिका के फार्मों के मालिक सैकड़ों एकड़ में एक ही फसल बोना क्यों फायदेमंद समझते हैं? इससे उन्हें किस प्रकार के खतरों का सामना करना पड़ता है?
13. क) ग्रेट प्लेंस का अनाज कहाँ बिकता है?
ख) ग्रेट प्लेंस में रहने वाले लोगों को कारखाने में बना माल कहाँ से मिलता है?

 

 

 

 

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