ग्रामसभा सशक्तिकरण की राह पर

निसंदेह रूप से, विकास प्रक्रिया में ग्रामीणजनों की भागीदारी सुनिश्चित करने तथा सत्ता के विकेन्द्रीकरण के दृष्टिकोण से ग्रामसभा एक महत्वपूर्ण आयाम साबित हो रही है। ग्रामीण विकास को गति प्रदान करने में ग्रामसभा महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। ग्रामीणों को गांव से जोड़ने तथा गांवों के विकास के प्रति समर्पण भाव उत्पन्न करने के दृष्टिकोण से ग्रामसभा महत्वपूर्ण है तथा इसी आधार पर ग्रामसभा गांव को विकास की रोशनी से आलौकित कर रही है। ग्राम पंचायत की आत्मा तथा स्थानीय स्वशासन का सदन ग्रामसभा है। यही नहीं, ग्रामसभा लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण का प्रथम सोपान है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने देश के विकास में ग्रामीणजनों की सहभागिता की आवश्यकता को रेखांकित करते हुए सही ही कहा था, ”सच्ची लोकशाही केन्द्र में बैठे 20 आदमी नहींचला सकते। वो तो नीचे हर गांव के लोगों द्वारा चलाई जानी चाहिए ताकि सत्ता के केन्द्र बिन्दु, जो इस समयदिल्ली, कोलकाता या बंबई जैसे बड़े शहरों में हैं, मैं उसे भारत के 7 लाख गांवों में बांटना चाहूंगा।“

निसंदेह रूप से, ग्रामसभा ही वह सशक्त माध्यम है जिसके द्वारा ग्रामीणजनों की सक्रिय सहभागिता सुनिश्चित करके देश की वास्तविक तस्वीर बदली जानी संभव है। ऐसी परिकल्पना की गई कि ग्रामसभा के जरिए ग्राम स्वराज का स्वप्न साकार करके गांवों को विकास की दौड़ में समावेशित करना संभव है। ज्ञातव्य है कि2 अक्टूबर 1959 को पंडित जवाहरलाल नेहरू ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज के स्वप्न को मूर्त रूप प्रदान करने हेतु राजस्थान के नागौर जिले में पंचायती राज का श्रीगणेश करते हुए कहा था, ”हम अपने देश में लोकतंत्र की आधारशिला रख रहे हैं। यदि महात्मा गांधी आज जीवित होते तो बहुत प्रसन्न होते। राजस्थान देश का हृदय है, ऐतिहासिक रूप से भी और भौगोलिक ग्रामसभा सशक्तिकरण की राह पर डाॅ. अनीता मोदी रूप से भी।“ तत्पश्चात, देश में 73वें संविधान संशोधन अधिनियम 1992 के तहत ग्रामसभा को संवैधानिक मान्यता प्रदान करके ”गांव की प्रत्येक आवाज को सुना जाए“ ऐसी परिकल्पना को मूर्त रूप प्रदान करने की दिशा में ठोस पहल की गई। निश्चित रूप से संविधान संशोधन के माध्यम से ग्रामसभा को महत्वपूर्ण इकाई के रूप में गठित करके ग्रामीण विकास हेतु एक क्रांतिकारी कदम उठाया गया है। अनुच्छेद 243 (क) के तहत ग्रामसभा को शक्तियां एवं कृत्य प्रदान करने का कार्यभार राज्य सरकारों को सौंपा गया तथा संविधान की 11वीं सूची में निर्दिष्ट 29 विषयों के संबंध में योजना बनाने, क्रियान्वित करने तथा उनका मूल्यांकन करने की डोर ग्रामसभाओं के हाथ में आ गई है।

इस प्रकार से ग्रामसभा को ही ग्राम सरकार के रूप में प्रस्थापित किया गया है। ग्रामसभा में ग्रामीणों द्वारा लिए गए विभिन्न निर्णय ”ग्रामीण स्वशासन का प्रतिबिम्ब हैं“ इस तथ्य को स्वीकारा गया है। ग्रामसभा के सदस्य 18 वर्ष और इससे अधिक उम्र के सभी ग्रामीण लोग होते हैं। ग्रामसभा के जरिए महिलाओं, अनुसूचित जाति व जनजाति तथा पिछड़े वर्ग के लोगों को ग्रामीण विकास में सक्रिय भागीदारी का अवसर प्राप्त होता है।ग्रामसभा के माध्यम से ग्रामीण प्रशासन में प्रत्यक्ष भागीदारी मिलने से ग्रामीणजनों में आत्मविश्वास बढ़ता है, विकास के प्रति जवाबदेही सुनिश्चित होती है तथा सामूहिक उत्तरदायित्व की भावना सुदृढ़ होती है। यही नहीं, ग्रामसभा ग्रामीणजनों को रंग, धर्म, जाति, सम्प्रदाय आदि भेदभावों की लकीरों को समाप्त करके एक मंचप्रदान करती है जिसके माध्यम से ग्रामीणजन अपनी बात प्रस्तुत कर सकते हैं, अपनी आवश्यकताओं, समस्याओं व चिंताओं का निराकरण कर सकते हैं। निश्चित तौर पर, ग्रामसभा पंचायती राज व्यवस्था का अभिन्न अंग है तथा ग्रामसभा की सफलता व सक्रियता पर ही पंचायती राज की सफलता निर्भर है। ग्रामसभाओं के माध्यम से गांवों को विकास की राह पर अग्रसर किया जाना संभव है। ग्रामीणों को गांव से जोड़ने तथा गांवों के विकास के प्रति समर्पण भाव उत्पन्न करने के दृष्टिकोण से ग्रामसभा महत्वपूर्ण है तथा इसी आधार पर ग्रामसभा गांव को विकास की रोशनी से आलौकित कर रही है।

निसंदेह रूप से, विकास प्रक्रिया में ग्रामीणजनों की भागीदारी सुनिश्चित करने तथा सत्ता के विकेन्द्रीकरण के दृष्टिकोण से ग्रामसभा एक महत्वपूर्ण आयाम साबित हो रही है। ग्रामीण विकास का शुभारम्भ करने तथा ग्रामीण विकास को गति प्रदान करने में ग्रामसभा महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। ग्रामसभा स्थानीयआवश्यकताओं पर आधारित विकास योजनाओं को बनाने व उनको क्रियान्वित करने में सक्रिय भागीदारी निभायेगी, ऐसी अपेक्षा की गई है। इसके साथ ही, ग्राम पंचायतों के कार्यों में पारदर्शिता लाने तथा सामुदायिक भागीदारी के आधार पर निर्णय प्रक्रिया को बढ़ावा देने के लिए ग्रामसभा की व्यवस्था की गई है। यही नहीं, ग्रामसभा शाश्वत व सनातन है, यह कभी भंग नहीं होती है। ग्रामसभा के कंधों पर कई दायित्व सौंपे गए हैं, ग्रामसभा का प्रमुख कार्य ग्राम पंचायत के लिए आर्थिक विकास की योजना बनाना, वार्षिक बजट पर विचार-विमर्श करना, विभिन्न योजनाओं के लिए प्राप्त निधियों के उचित उपयोग हेतु चर्चा व निरीक्षण, गरीबी उन्मूलन व रोजगार सृजन हेतु संचालित अनेक योजनाओं हेतु लाभार्थियों का सही चयन सुनिश्चित करना व अनेक योजनाओं के सफल क्रियान्वयन में सक्रिय भागीदारी निभाना इत्यादि। इसके अतिरिक्त ग्रामसभा लोकतंत्र के प्रशिक्षण की प्राथमिक पाठशाला के रूप में कार्य करते हुए ग्रामीण नेतृत्व को सुदृढ़ करने की दिशा में मील का पत्थर है।

‘‘प्रजातांत्रिक व्यव्स्था का संचालन केन्द्र में बैठे 20 व्यक्तियों से नहीं वरन् प्रत्येक गांव में निवास कर रहे ग्रामीणजनों द्वारा होगा‘‘। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का यह कथन वर्तमान वैश्वीकरण के युग में गांव के तीव्र व बहुआयामी विकास के लिए ग्रामसभा के सशक्तिकरण की नितांत आवश्यकता को रेखांकित करता है। सरकार के द्वारा शिक्षा, रोजगार एवं आपदा प्रबंधन के लिए पारित विविध विधेयकों का क्रियान्वयन पारदर्शी व प्रभावी ढंग से करने का दायित्व ग्रामसभा को सौंपा गया है। इस संदर्भ में उल्लेख है कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम, 2005 को रोजगारोन्मुखी एवं फलदायी बनाने हेतु ग्रामसभा को ग्राम पंचायत के अन्तर्गत संपादित कार्यों व योजनाओं के क्रियान्वयन की निगरानी व नियमित सामाजिक अंकेक्षण की जिम्मेदारी सौंपी गई ताकि योजनाओं के क्रियान्वयन में पारदर्शिता एवं जवाबदेही सुनिश्चित करके अपेक्षित सफलता हासिल की जा सके। इसी भांति बच्चों के निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा अधिनियम, आपदा प्रबन्धन अधिनियम व खाद्य सुरक्षा विधेयक के क्रियान्वयन की निगरानी की डोर ‘ग्रामसभा‘ के हाथों में सुपुर्द करके न केवल ग्रामसभा को सशक्त बनाया गया है अपितु योजनाओं के प्रभावी क्रियान्यवन की व्यवस्था करके गांवों को विकास पथ पर अग्रसर करके गांवों की तस्वीर को ओर चमकाया जाना संभव है।

निसंदेह रूप से ग्रामसभा के सशक्त व अधिकार सम्पन्न होने पर विभिन्न सरकारी परियोजनाओं तथा कार्यक्रमों को सफल, पारदर्शी, विकासोन्मुखी एवं प्रभावी बनाया जाना संभव है, लेकिन हकीकत यह है कि ग्रामसभा सशक्त व अधिकारयुक्त तभी हो पाएगी जब ग्रामीण लोग शिक्षित, जागरूक व गांव के विकास के प्रति समर्पित हो। इसी भांति महिलाओं के विकास व रोजगार हेतु संचालित स्वसहायता समूह योजना को ग्रामसभा अधिक कारगर ढंग से क्रियान्वित करके ग्रामीण महिलाओं को सशक्त व सबल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। भारत निर्माण कार्यक्रम के तहत संचालित अनेक फ्लैगशिप योजनाओं, न्यू पेंशन योजना तथा असंगठित मजदूरों के लिए सरकारी अनुदान पर आधारित पेंशन योजना, कृषि विकास योजनाओं, राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्यमिशन आदि कार्यक्रमों को एकीकृत व प्रभावी रूप से क्रियान्वित करने में ‘‘ग्रामसभा‘‘ महत्वपूर्ण योगदान देते हुए आर्थिक विकास के इंजन के रूप में स्वयं को प्रस्थापित कर रही हैं।

गांवों में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी के कारण ही पूर्वोत्तर राज्यों व तमिलनाडु में सकारात्मक व आशाजनक परिवर्तन हुए हैं। यही नहीं, समाज में प्रचलित धार्मिक अंधविश्वास, रुढ़ियों, पर्दा प्रथा, दहेज प्रथा, बाल विवाह जैसी कुरीतियों के निवारण में भी निर्वाचित महिलाएं अहम् भूमिका निभा रही हैं। गौरतलब है कि तमिलनाडु के सेलम जिले में दहेजप्रथा, बाल विवाह व अपराधी गतिविधियों पर नियंत्रण महिला प्रतिनिधियों के सतत् व प्रभावी प्रयासों के कारण ही संभव हो पाया। इसी क्रम में, मध्य प्रदेश के सिहोट जिले की जमुना तलब ग्राम की सरपंच श्रीमती गीतादेवी के अथक व अनवरत प्रयासों के कारण ही यह गांव ’’नशामुक्त गांव’’ के रूप में प्रख्यात हो पाया है। ज्ञातव्य है कि आंध्र प्रदेश की ग्राम पंचायत कालवा की सरपंच फातिमा बी ने वर्ष 1996 में टैंक की सफाई, स्वयंसहायता समूहों के निर्माण को प्रोत्साहन, गांवों के विकास हेतु एक विकास संगठन आदि के माध्यम से गांव को आत्मनिर्भर व विकसित बनाया जिसकी बदौलत फातिमा बी को सर्वश्रेष्ठ सरपंच का संयुक्त राष्ट्र पुरस्कार भी प्राप्त हुआ।

गांवों में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी की वजह से व ‘ग्रामसभा‘ के सशक्त होने पर, निसंदेह रूप से आगामी दस वर्षों में देश के गांवों की तस्वीर में आमूलचूल परिवर्तन होंगे। ग्रामसभा के सशक्त होने पर ही विविध सरकारी योजनाओं का अपेक्षित लाभ ग्रामीण गरीब जनता को मिलेगा तथा अनुदान भी उपयुक्त ग्रामीणजनों को प्राप्त होगा। ऐसा देखा गया है कि सरकार के द्वारा संचालित कृषि विकास की योजनाओं का अपेक्षित लाभ सही समय पर व सही ढंग से नहीं मिल पा रहा है। व्यवस्था में व्याप्त विभिन्न खामियों के निराकरण में ग्रामसभा अहम भूमिका निभा सकती है तथा किसानों की आय में बढ़ोतरी कर सकती है। इसी प्रकार ई-चौपाल तथा समान सुविधा केन्द्रों आदि से किसानों को उन्नत बीज, तकनीक व सीधी खरीद को प्रोत्साहित करके ग्रामसभा किसानों के हितों को संरक्षित कर सकती हैं। गोदाम निर्माण व कोल्ड स्टोरेज के निर्माण की व्यवस्था में अहम् भूमिकानिभा कर ग्रामसभा फल-सब्जी के संरक्षण के माध्यम से किसानों को लाभ पहुंचा सकती है।

इसी प्रकार ग्रामसभा ग्राम न्यायालयों की सफलता को सुनिश्चित करने के दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। ग्रामसभा गांवों के विवाद आपसी समझौतों व बातचीत के जरिए सुलझाकर गांवों का वातावरण विकासपरक व सौहार्दपूर्ण बनाकर गांवों में विकास की रोशनी फैला सकती है। सार्वजनिक संपत्तियों की रक्षा का दायित्व ग्रामसभा सही ढंग से प्रतिपादित करके गांवों के विकास की राह आसान बना सकती हैं। विभिन्न शोधपरक अध्ययनों के आधार पर यह निष्कर्ष उभरकर समक्ष आया है कि ग्रामसभा के सशक्त होने पर वहां की ग्राम पंचायत भी मजबूत, सक्रिय एवं प्रभावी होती है तथा ग्रामसभा के निष्क्रिय व अनभिज्ञ होने पर ग्राम पंचायत अपनी मनमर्जी से निर्णय करती हैं, जिसका प्रतिकूल प्रभाव योजनाओं के क्रियान्वयन तथा गांव के विकास पर पड़ता है। यही नहीं, सरकार ने ग्रामसभा को देश की औद्योगिक व्यवस्था का अंग बनाते हुए यह प्रावधान रखा है कि किसी भी उद्योगपति को गांव में उद्योग लगाने से पूर्व ग्रामसभा का अनुमोदन लेना होगा। इन सब उपलब्ध्यिों के पश्चात् भी सच्चाई यह है कि ग्रामसभा के सशक्तिकरण के मार्ग में अनेक व्यवधान व बाधाएं हैं, सहभागी प्रशासन तंत्र का हिस्सा बनने में कई कठिनाईयां हैं।

‘‘भारत गांवों में ही बसता है।‘‘ राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के उक्त कथन को दृष्टिगत रखते हुए यह अवश्यंभावी है कि गांव की आत्मा ‘‘ग्रामसभाओं‘‘ को सशक्त एवं सुदृढ़ करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए जाएं ताकि ये आम जनता की जरूरतों, आवश्यकताओं एवं इच्छाओं को उजागर करने का स्वच्छ एवं पारदर्शी ‘‘आईना‘‘ बन सके। इसके अतिरिक्त, सशक्त ग्रामसभाएं आर्थिक व सामाजिक रूप से कमजोर व समाज के दलित व वंचित वर्गों को भी निर्णय प्रक्रिया में सहभागी बनाकर उनकी माली हालात में सुधार करने का माध्यम बन सकती हैं। पंचायती राज की जीवनरेखा ‘‘ग्रामसभा‘‘ में सम्पूर्ण ग्रामीण समुदाय की सक्रिय अनवरत सहभागिता एवं रुचि को जागृत करके ही ग्रामसभा की सार्थकता को सुनिश्चित किया जाना संभव है। विभिन्न शोधों एवं अध्ययनों के दौरान यह तथ्य उभरकर सामने आया है कि ग्रामसभा की नियमित बैठकें नहीं होती हैं। यदि बैठकें होती हैं तो उनमें ग्रामीणजनों की भागीदारी अल्प होती है, महिलाओं की उपस्थिति तो नाममात्र की होती है।

वर्ष 2000-01 में राजस्थान की एक ग्राम पंचायत का सर्वेक्षण करके यह निष्कर्ष समक्ष आया कि ग्रामसभा में 10 प्रतिशत सदस्यों की गणपूर्ति कई कारणों से कठिन बनी रहीं। चिंताजनक तथ्य है कि ग्रामीणजनों को बैठकों की सूचना समय पर उपलब्ध ही नहीं होती है, जिसकी वजह से भी ग्रामसभा ‘‘प्रतीकात्मक संस्था‘‘ मात्र बनकर रह गई है। ग्रामीण महिलाओं पर घर व खेतों के कार्यों का दोहरा उत्तरदायित्व, पुरुष वर्ग की खेत-खलिहानोंमें व्यस्तता अथवा मजदूरी के लिए गांवों से पलायन, ग्रामसभा के कार्यों एवं अधिकारों के प्रति अनभिज्ञता एवं ग्रामीण विकास के लिए जागरुकता व इच्छा शक्ति की कमी आदि कारणों की वजह से ‘‘ग्रामसभा‘‘ की बैठकों में उपस्थिति कम होने से इनकी सफलता संदिग्ध हो जाती है। वास्तविकता यह है कि ग्रामसभाकी बैठकों में ‘कोरम‘ तक पूरा नहीं होता है। कई ग्राम पंचायतों में अनेक छोटे-छोटे गांव व ढाणियों का समावेशन होने से ग्रामसभा का क्षेत्र बहुत विस्तृत हो जाता है। ऐसी स्थिति में 5-6 किलोमीटर की दूरी तय करके महिलाओं व दिहाड़ी मजदूरों के लिए ग्रामसभा में उपस्थिति दर्ज कराना संभव नहीं है तथा इस कारण से भी ग्रामसभा में ग्रामीणजनों की भागीदारी पर सवालिया निशान लग जाता है। इस समस्या के समाधान हेतु यह आवश्यक है कि एक तो गांवों को सड़क आदि आधारभूत संरचनाओं से लैस किया जाए तथा ‘‘दूरी‘‘ को दृष्टिगत रखते हुए पंचायतों का पुनः विभाजन किया जाए।

यही नहीं कुछ ग्रामसभा की बैठकें ‘‘रस्म-अदायगी‘‘ मात्र बन कर रह गई हैं। कागजी कार्यवाही पूर्ण करने हेतु घर-घर जाकर रजिस्टर में हस्ताक्षर करवा लिए जाते हैं, जिसके कारण ग्रामीण जनों का ग्रामसभा के प्रति मोह भंग हो गया है। इसके अतिरिक्त यह तथ्य भी समक्ष आया है कि ग्रामसभा पर भी स्थानीय राजनीति की छाया मंडराने लगी है जिससे कारण ग्रामसभा में उपस्थिति पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। यही नहीं, अनुसूचित जाति या जनजाति की महिला संरपंच होने पर उच्च जाति के लोग ग्रामसभा में उपस्थित होना अपनी प्रतिष्ठा के विरुद्ध समझते हैं। इस प्रकार से ग्रामसभा में विभिन्न वर्गों की सहभागिता न्यून हो जाती है। कुछ अध्ययनों के आधार पर यह निष्कर्ष सामने आया है कि ग्रामीण क्षेत्रों के प्रभुत्व जन व सत्तासीन लोग निहित स्वार्थों के कारण यह नहीं चाहते हैं कि वास्तविक रूप से ग्रामसभा को सशक्त किया जाए, एवं ग्रामीण लोग जागरूक, सक्रिय व ग्रामीण विकास के प्रति समपिर्त हो। ग्रामीणजनों की निष्क्रियता, अनभिज्ञता व जागरुकता की कमी के कारण सत्तासीन लोगों के लिए अपना महत्व व वर्चस्व बनाए रखने की राह आसान हो जाती है।

निश्चित तौर पर, ग्रामसभा को अधिकार, कार्य व भूमिका के आधार पर सशक्त बनाने का प्रयास किया गया है किंतु वास्तविक रूप में ग्रामसभा ग्रामीण व्यवस्था का अभिन्न अंग नहीं बन पाई है, जनशक्ति का प्रतीक नहीं हो पाई है तथा अपेक्षित सफलता हासिल नहीं कर पाई है। ‘‘पंचायती राज व्यवस्था‘‘ का आधार स्तम्भ होने के कारण ग्रामसभा को सशक्त, सक्रिय एवं सामूहिक उत्तरदायित्व की कारगर संस्था के रूप में तब्दील करना अत्यावश्यक है। ग्रामसभा के सशक्तिकरण हेतु प्रथम आवश्यकता यह है कि ग्रामसभा के कार्यों, अधिकारों व उत्तरदायित्वों की सम्पूर्ण व सटीक जानकारी ग्रामीणों को उपलब्ध होनी चाहिए।

इस संदर्भ में जनसभा, प्रदर्शनी, नुक्कड़ नाटक, दूरदर्शन कार्यक्रम, आकाशवाणी तथा संगोष्ठी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। इसी भांति ग्रामसभा की नियमित बैठकों की व्यवस्था हेतु कठोर प्रावधान किए जाने चाहिए। महिला व दलित वर्गों के लोगों की उपस्थिति भी बैठक में सुनिश्चित करने का प्रयास किया जाना चाहिए। इसी तरह महिला या दलित वर्ग के नेतृत्व को भी ग्रामीण समाज की स्वीकृति मिले तथा उनको उपेक्षित व नजरअंदाजकरने की प्रवृत्ति पर रोकथाम लगाने की दिशा में कानूनी कार्यवाही की जानी चाहिए।

ग्रामसभा को सलाहकारी संस्था से ऊपर उठकर यथार्थ तौर पर शक्तिशाली बनाने हेतु ‘‘कागजी कार्यवाही‘‘ की व्यवस्था पर रोक लगाकर कानून के जरिए ग्रामसभा को सशक्त व उपयोगी बनाना चाहिए। गांव से संबंधित विभिन्न विकास योजनाओं व आगामी वित्त वर्ष की बजट स्वीकृति का अधिकार वास्तविक रूप में ‘‘ग्रामसभा‘‘ के हाथों में होना चाहिए तथा ग्रामसभा के निर्णयों को मानने की बाध्यता का प्रावधान किया जाना चाहिए। ग्राम सचिव, पंचायत अधिकारी व नौकरशाही का योगदान भी ग्रामसभा के सशक्तिकरण में महत्वपूर्ण है। नौकरशाही व्यवस्था ग्रामीणजनों द्वारा लिए गए निर्णयों को अमलीजामा पहनाने में योगदान देकर ग्रामसभा का सम्मान कर सकती हैं। ग्राम पंचायतों का स्वरूप व क्षेत्र अधिक विस्तृत नहीं होकर ‘‘प्रत्येक गांव की ग्रामसभा‘‘ व्यवस्था का अनुकरण किया जाना चाहिए ताकि गांव का हर व्यस्क ग्रामसभा में उपस्थित होकर ग्रामसभा की सार्थकता को कायम रख सके। ग्रामीण अर्थव्यवस्था से सम्बन्धित विभिन्न समस्याओं यथा दहेज प्रथा, नशाखोरी, बाल विवाह, सफाई व स्वच्छता के अभाव आदि के समाधान में भी ग्रामसभा महत्वपूर्ण योगदान देकर गांवों की सूरत को बदल सकती हैं तथा ‘‘ग्राम स्वराज‘‘ के स्वप्न को साकार रूप प्रदान कर सकती है।

उपर्युक्त सम्पूर्ण विवेचन से स्पष्ट है कि यदि ग्रामसभा के सशक्तिकरण के माध्यम से गांव की विकास योजनाओं के निर्माण व क्रियान्वयन, गरीबी उन्मूलन व रोजगार सृजन कार्यक्रमों के सफल संचालन, हितग्राहियों के सही चयन, कृषि विकास योजनाओं की क्रियान्विति, आधारभूत संरचनाओं के विस्तार तथा दहेज,नशा, बाल विवाह व निरक्षरता आदि के समाधान आदि में ग्रामसभा की भूमिका व योगदान स्वतः प्रस्थापित हो जाए तो शीघ्र ही देश में ‘‘शाईनिंग इंडिया‘‘ की अवधारणा मूक्त हो जाएगी।

ग्रामीण विकास में ग्रामसभा की अहम व सशक्त भूमिका को रेखांकित करते हुए विनोबा भावे जी ने सटीक ही कहा था कि ‘‘गांव का सारा इंतजाम गांव को अपने हाथ में लेना होगा। अपना भला-बुरा दूसरा कोई नहीं कर सकता, हम खुद ही अपना उद्धार कर सकते हैं, ऐसा आत्मविश्वास गांव वालों में पैदा करना होगा। गांव का कारोबार संभालने के लिए ग्रामसभा मजबूत बनानी होगी।‘‘ ग्रामसभा को सशक्त, सक्रिय व जागरुक बनाकर ही आचार्य विनोबा भावे के स्वप्न को साकार रूप प्रदान करते हुए ‘‘इंडिया‘‘‘‘भारत‘‘ की लकीरों को समाप्त करके गांवों को विकास की मुख्यधारा में समावेशित करना संभव है। भारत की अर्थव्यवस्था ग्रामीण है क्योंकि देश की लगभग 70 प्रतिशत जनसंख्या गांवों में निवास करती है। अतः गांवों का विकास किए बिना देश का विकास संभव नहीं है विकास की कल्पना अधूरी है।

(लेखिका राजकीय (पी.जी.) काॅलेज खेतड़ी, राजस्थान के अर्थशास्त्र विभाग में प्रवक्ता हैं।)

ई-मेल:antia3mdi@gmail.com

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