उत्तराखण्ड की अस्थायी राजधानी देहरादून कभी बासमती चावल, लीची फल के लिये देश में विख्यात थी। अब सिर्फ-व-सिर्फ बासमती की खुशबू ही बची है। बासमती का स्वाद चखना स्थानीय लोगों के लिये भी मुश्किल होने लगा है। कारण अधिकांश खेती में कंक्रीट के जंगल उग आये हैं तो बची-खुची जमीन सिंचाई के अभाव में असिंचित में बदल रही हैं।
यह भी तब जब देहरादून में भारी मात्रा में निर्माण कार्य चल रहा है। क्योंकि इस निर्माण कार्य ने सिंचाई के साधनों को भी बाधित किया है। जिसका जीता-जागता उदाहरण है देहरादून से मात्र 20 किमी के फासले पर बसे कारबारी गाँव, भुड्डी गाँव, नया गाँव पेलियो, झीवरहेड़ी, मल्हान ग्रांट व भूड़पुर गाँव की खेतीहर जमीन। जहाँ की सिंचाई और पेयजल की आपूर्ति कड़वापानी तालाब से होती थी।
हालांकि स्थानीय लोगों ने स्वस्फूर्त इस जमीन को फिर से सिंचित में बदल डाला। क्योंकि पिछले 17 वर्षों में यहाँ बसने की चाहत रखने वाले लोगों और बिल्डरों ने कड़वापानी तालाब को कूड़ेदान में बदल दिया था। स्थानीय लोगों की मेहनत रंग लाई और मौजूदा समय में कड़वापानी तालाब का पानी पुनर्जीवित हो उठा। जिससे लगभग 15 हजार की आबादी को पीने का पानी उपलब्ध हुआ तो वहीं लगभग 10 हजार हेक्टेयर की जमीन को सिंचाई लिये कड़वापानी तालाब से पानी मिलने लग गया है।
उल्लेखनीय हो कि (तत्काल उत्तर प्रदेश सरकार) जल संस्थान ने 35 साल पहले कड़वापानी तालाब से एक पेयजल योजना का निर्माण किया था। जो पेयजल लाइन तत्काल खेती के साथ- साथ जल संस्थान के ही द्वारा ग्रामसभा कारबारी, भुड्डी गाँव, नया गाँव पेलियो, झीवरहेड़ी, मल्हान ग्रांट व भूड़पुर के लिये छह लाख लीटर पानी की आपूर्ति करती थी। सो संस्थान के कायदों ने लोगों को संस्थान और सरकार पर निर्भर बना डाला। हुआ यूँ कि धीरे-धीरे यह पेयजल लाइन पेयजल के काम को कम करती रही।
क्योंकि इसमें गन्दा पानी आने लग गया था। इसी के साथ-साथ कड़वापानी का तालाब भी देखरेख के अभाव में तालाब के स्रोत में कीचड़ जमा होने लगा। यह हालात तब और बिगड़ गई जब उत्तर प्रदेश से पृथक उत्तराखण्ड राज्य हुआ। यानि यूँ कहे कि साल 2000 से इस क्षेत्र में पानी का संकट खड़ा हो गया। कभी-कभार जब इस पेयजल लाइन में पानी चलता भी था तो वह बहुत ही दूषित पानी होता था।
ग्रामीण इस आस में थे कि अब तो पृथक राज्य बन चुका है, सरकार पास में है, वह सब कुछ देख रही है वगैरह। 17 वर्षों की इन्तजार में आखिर लोगों की तन्द्रा टूटी और इक्कट्ठे हुए। बात आगे बढ़ी तो लोगों ने कड़वापानी के तालाब को पुनर्जीवित करने का निर्णय ले लिया।
अब ग्रामीण अधिकारियों, जन-प्रतिनिधियों से अजीज आ चुके हैं। हालात यूँ बनी हुई है कि उनकी पेयजल आपूर्ति भी ठप हो चुकी है, खेतों की सिंचाई बाधित हो चली है। यहाँ का पानी लगातार दूषित होता चला जा रहा है, अब स्थिति ये है कि स्रोत में कीचड़ व पत्ते जमा होने से पानी काफी घटता जा रहा है, सरकारी मुलाजिम तनख्वा लेने में चूकते नहीं हैं, पर इस जलस्रोत की सुध लेने वाला कोई नहीं। अब देर किस बात की सरकार ने समस्या पर ध्यान नहीं दिया तो कोई बात नहीं।
ग्रामीणों ने ग्रामसभा कारबारीग्रांट के ग्राम प्रधान दयानंद जोशी के नेतृत्व में उप प्रधान जयवती नंदन पुरोहित, सतेंद्र बुटोला, प्रद्युम्न बुटोला, नवीन व बुद्धिबल्लभ थपलियाल सहित खुद हाथों में फावड़े, कुदालें उठाए और निकल पड़े स्रोत की सफाई के लिये। तीन दिन तक ग्रामीणों ने रात-दिन एक कर स्रोत की सफाई कर डाली। नतीजा यह हुआ कि अब कड़वापानी तालाब के स्रोत से छह लाख लीटर साफ पानी प्रतिदिन ग्रामीणों को मिलने लगा है। साथ ही किसानों के सामने सिंचाई का संकट भी समाप्त हो गया है।
कारबारीग्रांट के ग्राम प्रधान दयानंद जोशी कहते हैं कि भविष्य में भी इस तरह के कार्यों के लिये कभी भी सरकारी अधिकारियों के रहमोकरम पर नहीं रहेंगे। उन्होंने बताया कि वे कई बार जल संस्थान के अधिकारियों से लेकर स्थानीय विधायक तक इस जलस्रोत की सफाई कराने के लिये पत्र दे चुके थे। लेकिन कोई सुनने को राजी नहीं था, उन्हें यानि कुछ ठेकेदार किस्म के जन-प्रतिनिधियों को तो उनके क्षेत्र की उपजाऊ जमीन को कृषि से बदलकर बसासत में तब्दील करनी थी। जिसे वे हरगिज नहीं होने देंगे। कहा कि ग्रामीणों ने यह करके दिखा दिया कि लोकशक्ति से ही सम्भव है कि कड़वापानी का प्राकृतिक जलस्रोत पुनर्जीवित हो गया है।
कारबारी ग्रांट के आस-पास के ग्रामीण इस काम के सम्पन्न होने से फूले नहीं समा पा रहे हैं। भला उनकी पेयजल और सिंचाई की समस्या का समाधान 35 बरस बाद जो हो गया। स्थानीय ग्रामीण बुद्धिबल्लभ थपलियाल का कहना है कि जलस्रोत साफ करने का उनका मकसद सभी लोगों को यह सन्देश देना था कि सिर्फ सरकार के भरोसे न बैठे रहें।
यदि अधिकारी काम नहीं करते तो लोगों को स्वयं अपने लिये खड़ा होना पड़ेगा। वहीं कारबारी ग्रांट के युवक मंगल दल के अध्यक्ष सतेंद्र बुटोला का कहना है कि पिछले कई सालों से वे लोग इस स्रोत की दुर्दशा के कारण बहुत परेशानी झेल रहे थे। लेकिन, अब साफ-सफाई होने के बाद लोगों को फिर से पर्याप्त पानी मिल रहा है। स्थानीय ग्रामीण प्रद्युम्न बुटोला का कहना है कि क्षेत्र में पानी का संकट गहराने पर भी जब अधिकारियों ने स्रोत की सुध नहीं ली तो उन्होंने मौजूदा सिस्टम को आईना दिखाने के लिये यह कदम उठाया। आज लोग राहत की साँस ले रहे हैं।
ताज्जुब हो कि जिस जमीन के कारण देहरादून की एक पहचान है, उसी जमीन को आसपास के निर्माण ने असिंचित में बदल डाला। हुआ यह कि इन गाँवों की जमीन जो कड़वापानी नामक तालाब से सिंचित होती थी, उस तालाब को चारों तरफ से कब्जाधारियों ने कब्जाने का पुरजोर प्रयास किया। ग्रामीणों ने सही समय पर निर्णय लिया तो सत्ता प्रतिष्ठानों से जुड़े कब्जाधारी एक-एक करके खिसते नजर ही नहीं आये बल्कि वे ही अब ग्रामीणों के साथ खुद को भी जोड़ने लग गए कि उन्होंने भी कड़वापानी के तालाब की सफाई में ग्रामीणों के साथ हाथ बँटाए।
बता दें कि दून के कड़वापानी तालाब का प्राकृतिक जलस्रोत, जिससे आसपास की लगभग सौ बीघा खेती की तो सिंचाई होती ही है, क्षेत्र के आधा दर्जन गाँवों की 15 हजार आबादी को भी पीने का पानी भी मिलता था। लेकिन, देखरेख के अभाव में और कब्जाधारियों के जमावाड़ा ने यह स्रोत नेपथ्य मे डाल दिया था। ऐसे में कारबारीग्रांट के ग्रामीणों ने खुद स्रोत को साफ करने की जिम्मेदारी ली और अब उससे छह लाख लीटर पानी रोज पीने को मिल रहा है तो 10 हजार हेक्टेयर की खेती सिंचित हो रही है।
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