ग्रामीण शहरी दूरियों को पाटता रुर्बन मिशन

रुर्बन मिशन
रुर्बन मिशन
रुर्बन मिशन शहर की सुविधा एवं गाँव की आत्मा के विचार पर आधारित है, अर्थात नगरों में जो आर्थिक, संरचनात्मक, तकनीकी सुविधाएँ हैं उनका लाभ लेते हुए गाँव में सामुदायिकता की भावना बनी रहे। इस मिशन के अन्तर्गत राज्यों में विकास की सम्भावनाओं वाले विभिन्न ग्रामीण क्षेत्रों में अगले पाँच वर्षों में तीन सौ ऐसे रुर्बन क्लस्टरों का विकास किया जाएगा। इस लेख में रुर्बन मिशन के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन करते हुए यह बताने का प्रयास किया गया है कि इस कार्यक्रम के जरिए कैसे ग्रामीण व नगरीय खाई को पाटते हुए ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक, औद्योगिक, संरचनात्मक एवं सामाजिक विकास किया जाएगा।

श्यामा प्रसाद मुखर्जी रुर्बन मिशन वर्तमान सरकार का एक महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम है, जिसका आगाज केन्द्रीय मंत्रिमण्डल द्वारा 16 सितम्बर, 2016 को अनुमोदित होकर प्रधानमंत्री द्वारा 21 फरवरी, 2016 को हुआ था। वास्तव में रुर्बन मिशन मॉडल गुजरात में ग्रामीण क्षेत्रों के शहरीकरण के रुर्बन विकास मॉडल पर आधारित है जहाँ पर ग्रामीण क्षेत्रों में रह रहे लोग संरचनात्मक सुविधाएँ और उससे जुड़ी सेवाएँ पा सकें। मिशन के अन्तर्गत ग्रामीण क्षेत्रों में समेकित परियोजना पर आधारित संरचनात्मक सुविधाएँ प्रदान करने के साथ-साथ आर्थिक क्रियाकलाप और कौशल विकास भी शामिल हैं। यह कार्यक्रम विभिन्न स्कीमों की निधियों का उपयोग करते हुए सार्वजनिक-निजी भागीदारी के माध्यम से लाभ प्रदान करने की वरीयता पर आधारित हैं, रुर्बन मिशन शहर की सुविधा एवं गाँव की आत्मा के विचार पर आधारित है, अर्थात नगरों में जो आर्थिक, संरचनात्मक, तकनीकी सुविधाएँ हैं उनका लाभ लेते हुए गाँव में सामुदायिकता की भावना बनी रहे। क्योंकि यदि सामुदायिक भावना का विकास के साथ ह्रास होता है तो वह विकास सतत या टिकाऊ नहीं होगा।

इस मिशन के अन्तर्गत राज्यों में विकास की सम्भावनाओं वाले विभिन्न ग्रामीण क्षेत्रों में अगले पाँच वर्षों में 300 ऐसे रुर्बन क्लस्टरों का विकास किया जाएगा। इस लेख में रुर्बन मिशन के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन करते हुए यह बताने का प्रयास किया गया है कि इस कार्यक्रम के जरिए कैसे ग्रामीण व नगरीय खाई को पाटते हुए ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक, औद्योगिक संरचनात्मक एवं सामाजिक विकास किया जाएगा। साथ में सतत विकास ध्येयों को प्राप्त करने में कितना और कैसे मददगार होगा?

क्लस्टर प्रोफाइल

क्लस्टर के वर्तमान प्रोफाइल का वर्णन सामान्य प्रोफाइल जिसमें जनसंख्या, सामाजिक, आर्थिक एवं प्रशासनिक प्रोफाइल शामिल हैं तथा घटकानुसार प्रोफाइल जोकि 14 घटकों के आधार पर प्रस्तावित है।

रुर्बन मिशन का उद्देश्य

मिशन का उद्देश्य 300 रुर्बन क्लस्टर के वे क्षेत्र हैं जहाँ पर विकास की काफी सम्भावनाएँ हैं। इन क्लस्टरों के अन्तर्गत आर्थिक कार्यकलापों के अवसर उपलब्ध कराके, कौशल प्रशिक्षण एवं स्थानीय उद्यमशीलता को विकसित करके तथा संरचना सम्बन्धी सुविधाएँ उपलब्ध कराकर इन क्लस्टरों को सम्पूर्ण रूप से विकसित करना है।

इन क्लस्टरों में जरूरी सुविधाएँ प्रदान करके एवं विभिन्न योजनाओं में तालमेल करके संसाधनों को उपलब्ध कराना है। इसके अतिरिक्त इन क्लस्टरों का सम्पूर्ण विकास करने के लिये मिशन के तहत आवश्यक पूरक वित्तपोषण का भी प्रावधान है। ये क्लस्टर राज्य, संघ राज्य क्षेत्रों द्वारा विधिवत अधिसूचित किये जाने वाले आयोजना मानदण्डों के आधार पर तैयार किये जा रहे हैं। इन योजनाओं को अन्ततः जिला मिशन, मास्टर प्लान के साथ जोड़ने का प्रावधान है। अर्थात रुर्बन मिशन का उद्देश्य स्थानीय आर्थिक विकास करना, आधारभूत सेवाओं को बढ़ाना और सुनियोजित रुर्बन क्लस्टरों का सृजन करना है।

विजन

अनिवार्य रूप से शहरी मानी जाने वाली सुविधाओं से समझौता किये बिना समता और समावेशन पर जोर देते हुए ग्रामीण जनजीवन के मूल स्वरूप को बनाए रखते हुए गाँवों के क्लस्टर को ‘रुर्बन गाँवों’ के रूप में विकसित करना है।

रुर्बन क्लस्टर का चयन

रुर्बन क्लस्टर मैदानी और तटीय क्षेत्रों में लगभग 25,000 से 50,000 आबादी वाले तथा मरुभूमि पर्वतीय या जनजातीय क्षेत्रों में 5,000 से 15,000 तक की आबादी वाले भौगोलिक रूप से एक-दूसरे के समीप गाँवों का एक क्लस्टर होगा। जहाँ तक सम्भव हो, गाँवों का क्लस्टर, ग्राम पंचायतों की प्रशासनिक सुविधा की दृष्टि से किसी एक ब्लॉक, तहसील के कार्यक्षेत्र में होंगे।

मिशन के घटक

रुर्बन मिशन के अन्तर्गत, राज्य सरकार मौजूदा केन्द्र प्रायोजित, केन्द्रीय क्षेत्र की या राज्य सरकार की योजनाओं का निर्धारण करते हुए उनके समेकित एवं समयबद्ध तरीके से कार्यान्वयन के लिये उनके बीच तालमेल बिठाएगी। रुर्बन क्लस्टरों के विकास के लिये 14 घटकों का सुझाव दिया गया है जो निम्नलिखित हैं-

1. आर्थिक कार्यकलापों से जुड़ा कौशल विकास प्रशिक्षण।
2. कृषि संसाधन, कृषि सेवाएँ, संग्रहण मालगोदाम।
3. स्वास्थ्य सम्बन्धी देखरेख सुविधाएँ।
4. स्कूली शिक्षा सुविधाओं का उन्नयन।
5. स्वच्छता।
6. पाइपों द्वारा जलापूर्ति।
7. ठोस एवं तरल अपशिष्ट प्रबन्धन।
8. गाँवों में गलियाँ एवं पक्की नालियाँ।
9. स्ट्रीट लाइट।
10. गाँवों के बीच सड़क सम्पर्क।
11. सार्वजनिक परिवहन।
12. एलपीजी गैस कनेक्शन।
13. पूर्ण डिजिटल साक्षरता।
14. नागरिक सेवा केन्द्र-जनकेन्द्रीत सेवाओं, ई-ग्राम कनेक्टिविटी की इलेक्ट्रॉनिक प्रदायगी।

इसके अतिरिक्त अगर राज्य सरकार चाहे तो किसी अन्य राज्य या केन्द्र सरकार की उन अन्य योजनाओं के साथ अतिरिक्त तालमेल की व्यवस्था कर सकती हैं, जो उपरोक्त घटकों में शामिल नहीं हैं। तालमेल सम्बन्धी इस व्यवस्था को ग्राम पंचायतों से विधिवत परामर्श के बाद निर्धारित किया जाता है।

समेकित क्लस्टर कार्ययोजना

समेकित क्लस्टर कार्ययोजना बेसलाइन अध्ययनों पर आधारित एक मुख्य दस्तावेज होगा जिसमें क्लस्टर की जरूरतों का ब्यौरा और इन जरूरतों को पूरा करने तथा इसकी सम्भावनाओं को बढ़ाने वाली मुख्य पहलुओं को दर्शाया जाता है।

राज्य सरकार जिला कलेक्टरों/जिला परिषदों और सम्बन्धित पंचायती राज संस्थाओं के साथ गहन परामर्श करके कार्ययोजना तैयार करती है और इसमें सभी सम्बन्धित ‘स्टेक होल्डरों’ की भागीदारी और उनका स्वामित्व सुनिश्चित करती है। क्लस्टर कार्ययोजना के तहत निम्न का उल्लेख होगा-

1. क्लस्टर में निर्धारित की गई प्रत्येक ग्रामसभा के लिये विजन को समाहित करते हुए क्लस्टर की कार्यनीति।
2. रुर्बन मिशन के तहत क्लस्टर के लिये वांछित घटक।
3. विभिन्न केन्द्रीय क्षेत्र, केन्द्रीय प्रायोजित और राज्य क्षेत्र की योजनाओं के तहत तालमेल किये जाने वाले संसाधन।
4. क्लस्टर के लिये अपेक्षित आवश्यक पूरक वित्तपोषण।
5. सम्पूर्ण क्लस्टर के लिये एक विस्तृत स्थानिक योजना।

रुर्बन क्लस्टर के विकास को सही दिशा देने के लिये समेकित क्लस्टर कार्ययोजना तैयार की जाएगी। इसके अन्तर्गत दो घटक होंगे- (i) सामाजिक-आर्थिक एवं संरचनात्मक घटक (ii) स्थानिक योजना घटक।

क्ल्स्टर के अन्तर्गत आवश्यकताओं का विश्लेषण निर्धारण में कमियों या जरूरतों को दर्शाता है। इसमें चार मुख्य बातों का समावेश है-

1. क्लस्टर में समग्र विकास के लिये 14 वांछनीय घटक।
2. उन घटकों से सम्बन्धित मौजूदा स्थिति।
3. वांछनीय स्तर अर्थात क्लस्टर में हस्तक्षेप के विकास का स्तर या उन वांछनीय घटक की परिवारों तक पहुँच।
4. कमियों/आवश्यकताओं का स्तर।

कमियों का स्तर ही क्लस्टर की कार्ययोजना को निर्धारित करेगा। विभिन्न स्कीमों का ‘कन्वर्जेंस’ तथा विभिन्न हितधारकों से सलाह-मशविरा करने के बाद ही आवश्यक पूरक वित्तपोषण (सी.जी.एफ) का निर्धारण किया जाएगा। जैसाकि पहले भी उल्लेख किया गया है कि कार्ययोजना में कुल परिव्यय का 70 प्रतिशत वर्तमान में लागू स्कीमों के ‘कन्वर्जेंस’ से उपलब्ध कराया जाएगा और बाकी 30 प्रतिशत अर्थात आवश्यक पूरक वित्तपोषण रुर्बन मिशन के द्वारा दिये जाने का प्रावधान है।

उदाहरणार्थ आर्थिक कार्यकलापों से सम्बन्धित कौशल विकास प्रशिक्षण के अन्तर्गत यह माना जाता है कि क्लस्टर के कुल परिवारों में से कम-से-कम 70 प्रतिशत परिवारों में प्रत्येक परिवार से एक लाभार्थी होगा। इसी प्रकार डिजिटल साक्षरता के अन्तर्गत प्रत्येक परिवार में कम-से-कम एक व्यक्ति ई-साक्षर होगा। पानी के लिये यह माना गया है कि वर्ष भर प्रत्येक परिवार को 70 लीटर प्रति व्यक्ति प्रतिदिन (एल.पी.सी.डी.) स्वच्छ पेयजल मिलेगा। स्वच्छता के अन्तर्गत शत-प्रतिशत परिवारों में पारिवारिक शौचालय होगा। ठोस एवं तरल अवशिष्ट प्रबन्धन के लिये परिवार एवं क्लस्टर-स्तर पर ट्रीटमेंट किया जाएगा। गाँव की सभी गलियों में नालियाँ बनाई जाएँगी। दो या तीन गाँवों पर नागरिक सेवा केन्द्र बनाया जाएगा तथा प्रति गाँव 1800 परिवारों पर एक एल.पी.जी. वितरण केन्द्र बनाया जाएगा।

परियोजना का वित्तपोषण

क्लस्टर के लिये राज्यों द्वारा तैयार की गई और अधिकार-प्राप्त समिति द्वारा अनुमोदित की गई समेकित क्लस्टर कार्ययोजना (आई.पी.ए.पी.) के माध्यम से निर्धारित की गई। आवश्यकताओं के आधार पर क्लस्टर कार्य करता है। विभिन्न केन्द्र-प्रायोजित योजनाओं, केन्द्रीय योजनाओं और राज्य योजनाओं से तालमेल के माध्यम से जुटाई गई निधियों को पूरा करने के लिये परियोजना लागत की अधिकतम 30 प्रतिशत राशि आवश्यक पूरक वित्तपोषण (सी.जी.एफ) के रूप में उपलब्ध कराई जाएगी। मैदानी क्षेत्रों के लिये परियोजना पूँजी व्यय का 30 प्रतिशत या 30 करोड़ रुपए, जो भी कम होगा, निर्धारित किया जाएगा। मरुभूमि, पहाड़ी और जनजातीय क्षेत्रों में परियोजना पूँजी व्यय का 30 प्रतिशत या 15 करोड़ रुपए, जो भी कम होगा, निर्धारित होगा।

विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार करना

विस्तृत परियोजना तैयार किये जाने और रुर्बन क्लस्टरों के लिये घटकों का निर्धारण कर लिये जाने के बाद रुर्बन मिशन के अन्तर्गत क्रियान्वयन के लिये निर्धारित परियोजना घटकों के लिये विस्तृत परियोजना रिपोर्टें तैयार की जाएँगी। ये विस्तृत परियोजना रिपोर्ट विभिन्न अधिकारित समितियों द्वारा अनुमोदित करने का प्रावधान रुर्बन मिशन के तहत है।

अब तक की प्रगति

ग्रामीण विकास मंत्रालय की 2017-18 वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार अब तक देश में लक्षित 300 क्लस्टरों में से 276 क्लस्टरों का निर्धारण एवं अनुमोदन किया जा चुका है। 151 समेकित क्लस्टर कार्ययोजनाओं के अन्तर्गत केन्द्र एवं राज्य अंश व सी.जी.एफ. के साथ-साथ तालमेल के माध्यम से 15,630 करोड़ रुपए के निवेश का अनुमान है। क्लस्टरों के उचित विकास के लिये प्रस्तावित कुल निवेश का लगभग 78 प्रतिशत आर्थिक एवं आधारभूत सुविधाओं के लिये लक्षित है। कृषि सेवाओं और प्रसंस्करण तथा लघु एवं मध्यम उद्यम और पर्यटन को बढ़ावा देने वाले क्षेत्रों का कौशल विकास करना है। जमीनी-स्तर पर 1,500 करोड़ रुपए का व्यय हो चुका है। इस विनियोग में छत्तीसगढ़ राज्य में केरल, तमिलनाडु और अान्ध्र प्रदेश के बाद जमीनी-स्तर पर सबसे अधिक व्यय किया गया है।

ग्रामीण एवं नगरीय क्षेत्रों के बीच सेतुकरण

रुर्बन मिशन के तहत जो 300 क्लस्टर्स विभिन्न राज्यों एवं केन्द्र शासित प्रदेशों में चिन्हित किये हैं, ये वे क्लस्टर्स हैं जो तुलनात्मक दृष्टि से अन्य क्षेत्रों से तो विकसित हैं, लेकिन पूर्णतया विकसित नहीं हैं। विकसित होने के बावजूद भी कुछ घटकों में कमियाँ रह गई हैं जो इन गाँवोें को शहर जैसा बनाने में बाधक हैं। उदाहरण के लिये नगरीय क्षेत्र से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर एक 10 ग्राम पंचायतों का क्लस्टर है जहाँ पर कृषि व्यवसाय की प्रबल सम्भावनाएँ हैं। चूँकि उन सम्भावनाओं को पोषित नहीं किया गया है तो वहाँ के अधिकतर लोगों को शहर में नौकरी करने आना पड़ता है। इस योजना के तहत उस क्लस्टर में इस तरह का विनियोग किया जा सकता है कि वहाँ से गेहूँ बाजार में न भेजकर उसे गाँव में ही ‘प्रोसेस’ करके आटा बनाकर व पैकिंग करके बाजार में भेजा जाये। इससे गेहूँ व आटा बनाने में जो रोजगार के अवसर पैदा होंगे, वे गाँव वालों को मिलेंगे।

इसी प्रकार दूध का उदाहरण दिया जा सकता है, गाँवों से बाजारों में दूध न भेजकर उससे बनी विभिन्न वस्तुएँ जैसे-पनीर, घी आदि बाजार में जाएँ।

अगर किसी कारणवश क्लस्टर्स के अन्तर्गत पर्यटन का स्कोप है तो वहाँ पर उसे विकसित कर रोजगार सृजन किये जा सकते हैं।

गाँवों में स्वच्छता हो, उसके लिये पशुओं के अपशिष्ट से कम्पोस्ट खाद तैयार की जा सकती है। गाँवों के अन्दर ‘ड्रेनेज’ का प्रावधान, ‘स्ट्रीट लाइट’ का प्रावधान किया जा सकता है। बिजली का उत्पादन ‘सौर ऊर्जा’ के द्वारा किया जा सकता है।

मान लीजिए एक क्लस्टर के अन्तर्गत सभी सुविधाएँ हैं, लेकिन ‘स्ट्रीट लाइट’ नहीं है तो गाँव का शिक्षित वर्ग वहाँ से पलायन करेगा। ऐसे ही अगर उचित शिक्षा नहीं है तो अपने बच्चों के विकास के लिये लोग शहर की ओर भागेंगे। इन सभी तरह की समस्याओं का समाधान रुर्बन मिशन करता है।

इस कार्यक्रम का अनूठा प्रावधान आवश्यक पूरक वित्तपोषण है। अगर किसी क्लस्टर का कुल विनियोग 100 करोड़ रुपए है तो उसमें 70 प्रतिशत योगदान विभिन्न योजनाओं के समायोजन से होगा एवं 30 प्रतिशत आवश्यक पूरक वित्तपोषण से होगा। यह 30 प्रतिशत किसी सीमाओं से नहीं जुड़ा और न प्रतिबन्धित है। क्लस्टर्स के अन्तर्गत किसी भी घटक में यदि वित्त की कमी है तो इसे पूरा किया जा सकता है। अर्थात जहाँ पर गैप है उसे इससे भरा जा सकता है और विभिन्न क्लस्टरों में भरा जा रहा है।

इसी प्रकार शिक्षा का विकास किया जा सकता है। उदाहरण के लिये क्लस्टर में एक ‘स्मार्ट-क्लास’ शुरू करनी है। इस कार्य के लिये अमुक बजट सरकार से स्कीम के तहत उपलब्ध है लेकिन क्लास को अधिक प्रभावी बनाने के लिये 50 लाख विनियोग की जरूरत है। वह 50 लाख आवश्यक पूरक वित्तपोषण से पूरा किया जा सकता है। इस तरह के उदाहरण विभिन्न कल्स्टरों के विभिन्न प्रकार के होंगे जिनको इस योजना के अन्तर्गत पूरा किया जा सकता है। लेखक का स्वयं का अनुभव है कि एक क्लस्टर में ग्रामीण प्राइमरी स्कूल में कमरे बनवाना चाह रहे थे ताकि बच्चों के लिये पर्याप्त कक्ष हों एवं अध्यापकों के लिये भी बैठने की उचित व्यवस्था हो। गाँव वालों ने यह लिखवा दिया था कि यदि 2 कमरे बनते हैं तो चारदीवारी के लिये वे एक लाख रुपए अपने पास से देंगे।

इस प्रकार इस स्कीम के माध्यम से लोगों की भागीदारी भी प्रमुख रूप से सुनिश्चित होती है। अतः गाँवों की अनेक कमियों का इलाज इस स्कीम के माध्यम से हो रहा है।

रुर्बन मिशन द्वारा सतत विकास ध्येयों को प्राप्त करने के प्रयास
सतत विकास ध्येयों को प्राप्त करने की ओर रुर्बन मिशन एक प्रभावी कार्यक्रम है। आइए अब बात करते हैं कि सतत विकास लक्ष्यों को रुर्बन मिशन किस प्रकार प्राप्त करने में सहायक है।

ध्येय एक एवं ध्येय दो के अनुसार गरीबी को 15 वर्षों में हटाना एवं भुखमरी व कुपोषण को दूर करना है। इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये रुर्बन मिशन के तहत आर्थिक कार्यकलापों से जुड़ा कौशल विकास प्रशिक्षण एवं कृषि संसाधन, कृषि सेवाएँ, संग्रहण आदि घटक हैं। इन घटकों के द्वारा ग्रामीण अर्थव्यवस्था में रोजगार के अवसरों का सृजन किया जा रहा है। कृषि की पैदावार बढ़ाने और बढ़ी पैदावार को सीधे बाजार में न भेजने की बजाय उसे ‘प्रोसेस’ करके मूल्य संवर्धन करना है, जिससे स्थानीय-स्तर पर रोजगार बढ़े, लोगों की आय बढ़े, ताकि वे गरीबी, भुखमरी एवं कुपोषण पर प्रहार कर सकें।

तीसरा सतत विकास का ध्येय है, स्वस्थ एवं कुशलता से रहना। यह तभी सम्भव है यदि स्वास्थ्य सेवाएँ उचित मात्रा में उपलब्ध हों। रुर्बन मिशन के तहत स्वास्थ्य देखरेख सुविधाएँ एक महत्त्वपूर्ण घटक है जो ग्रामीण समाज के स्वास्थ्य के मुद्दों को सम्बोधित करता है। रुर्बन मिशन के तहत प्रचलित ‘नोर्म’ के आधार पर देखा जाता है कि स्वास्थ्य सुविधाएँ जनसंख्या को मद्देनजर रखकर कितनी उपलब्ध हैं और कितनी होनी चाहिए। यदि इन दोनों में कुछ अन्तर है तो उसको इस कार्यक्रम के अन्तर्गत भरा जाता है। इस प्रकार यह कार्यक्रम चयनित क्लस्टर्स में उचित स्वास्थ्य सेवाएँ उपलब्ध कराता है।

चौथा ध्येय कौशल में विकास पर केन्द्रित करता है ताकि मानव संसाधनों का उचित विकास हो एवं वे अपनी कार्यकुशलता बढ़ाकर आगे बढ़ें। वास्तव में ‘रुर्बन मिशन’ इस ध्येय पर ‘फोकस’ करता है।

पाँचवां ध्येय महिला सशक्तिकरण पर फोकस करता है। रुर्बन मिशन के तहत पंचायतों की प्रभावी भागीदारी है। इन पंचायतों में एक तिहाई सदस्य एवं अध्यक्षों के पद महिलाओं के लिये आरक्षित हैं। इस प्रकार लगभग 10 लाख के करीब महिलाएँ पंचायतों के विभिन्न स्तरों पर कार्य कर रही हैं। अतः उनकी रुर्बन मिशन के अन्तर्गत भागीदारी है। इसके अतिरिक्त विभिन्न स्कीमों जैसे एन.आर.एल.एम. के तहत महिलाओं के स्वयं सहायता समूह बनाने का प्रावधान है। इन समूहों के माध्यम से महिलाएँ आमदनी बढ़ाने के लिये विभिन्न कार्य कर रही हैं, जिससे वे अपनी आर्थिक स्थिति मजबूत कर पंचायतों में प्रभावी भागीदार होकर उभर रही हैं।

छठा ध्येय स्वच्छता, जलापूर्ति एवं ठोस और तरल अपशिष्ट प्रबन्धन से सम्बन्धित है। यह भी रुर्बन मिशन के लिये घटक हैं तथा गाँव के विकास के लिये अति महत्त्वपू्र्ण है। इसी प्रकार सातवाँ ध्येय ऊर्जा के ऊपर है, रुर्बन मिशन के तहत ऊर्जा को सोलर ऊर्जा से प्राप्त करने का प्रयास है। इस तरह ध्येय आठ एवं नौ रोजगार के अवसरों का विकास एवं संरचनात्मक विकास करना है। ये दोनों भी रुर्बन मिशन के अन्तर्गत महत्त्वपूर्ण घटक हैं जैसे पहले भी यह उल्लेख किया गया है। रुर्बन मिशन के अन्तर्गत प्रस्तावित कुल विनियोग का लगभग 78 प्रतिशत आर्थिक एवं आधारभूत सुविधाओं की पूर्ति के लिये लक्षित है। इससे स्पष्ट हो जाता है कि सतत विकास ध्येयों को रुर्बन मिशन के तहत ‘फोकस’ किया जा रहा है।

इसी प्रकार अन्य ध्येयों को भी रुर्बन मिशन के तहत 14 घटक समाहित करते हैं और इन ध्येयों को पूरा करने का प्रयास करते हैं।

निष्कर्ष
उपरोक्त अध्ययन से स्पष्ट है कि रुर्बन मिशन ग्रामीण एवं नगरीय दूरी को पाटने का एक प्रभावी प्रयास है। यह एक ऐसा प्रयास है कि लोग अपनी जड़ों को खोए बिना अपना सतत विकास कर सकते हैं। यह प्रयास पलायन को भी रोकता है। वास्तव में अगर देखें तो नगरीय क्षेत्र का गरीब, ग्रामीण क्षेत्रों से पलायन करने वाला गरीब ही तो है। अगर गाँव में ही शहरी सुविधाएँ और रोजगार उपलब्ध हो जाएँ तो फिर गाँवों को छोड़ने की क्या जरूरत है।

हाँ, रुर्बन मिशन का क्रियान्वयन उचित प्रकार से हो इसके लिये क्लस्टरों का चयन उचित प्रकार से मापदण्डों के आधार पर हो एक उनके चयन पर राजनैतिक दबाव कतई नहीं होना चाहिए। दूसरे राज्य जिला एवं क्लस्टर-स्तर पर क्रियान्वयन के लिये सुझाया गया वांछनीय ढाँचा होना जरूरी है, अन्यथा यह स्कीम भी अन्य स्कीमों के जैसी बनकर रह जाएगी और इस प्रकार अपने उद्देश्यों को पूरा नहीं कर पाएगी। तीसरे, अधिकतर सरकार में स्कीमों के सम्बन्ध में अपनी-अपनी डफली और अपना-अपना राग वाली कहावत चरितार्थ है। मिशन का ‘कन्वर्जेंस’ मूलमंत्र है। इसके लिये नौकरशाही को अपनी रोजमर्रा की बातों से बाहर निकलकर ‘इन्नोवेटिव’ रूप से सोचने की जरूरत है। चौथे, रुर्बन मिशन को लागू करने में पंचायतों की अहम भूमिका है। अगर पंचायतों के पास वांछनीय संरचना जैसे कार्यालय भवन एवं कर्मी आदि नहीं हैं तो वे कैसे इस कार्यक्रम को प्रभावी रूप से लागू कर पाएगी। अतः इन संस्थाओं का ‘पूर्ति पक्ष’ मजबूत करने की जरूरत है।

अतः रुर्बन मिशन ग्रामीण क्षेत्रों में वांछनीय सुविधाएँ एवं संरचनात्मक विकास करके गाँवों को नगरीय स्तर पर लाने के साथ-साथ सतत विकास ध्येयों को पूरा करने के लिये एक प्रभावी प्रयास है। बस जरूरत है तो इस कार्यक्रम को प्रभावी रूप से लागू करने की है। उसके लिये उपरोक्त सुझावों को ध्यान में रखना बेहद जरूरी है।

(लेखक भारतीय आर्थिक सेवा के पूर्व अधिकारी हैं।)

ई-मेलः mpa11661@gmail.com


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