ग्रामीण पत्रकारिता उद्यमिता संस्थान की अवधारणा पर चर्चा हेतु आमंत्रण


1 से 3 जुलाई 2016, नया रायपुर

प्रिय साथी,
.मित्र प्रदीप शर्मा बताते हैं कि ग्राम वह इकाई है जहाँ मानव श्रम और बुद्धि का व्यक्तिगत एवं सामूहिक समृद्धि के लिये प्रकृति के जल, थल और अग्नि में सफल सामूहिक नियोजन होता है। खेती में जल और थल का उपयोग होता है और कुटीर उद्योग में अग्नि का।

प्रकृति में जल, थल और अग्नि के अलावा वायु और आकाश भी समाहित है पर ग्राम के स्तर पर इनका अब तक अधिक उपयोग नहीं हुआ है। आपसी बातचीत के लिये वायु का उपयोग तो होता है पर इसे और बेहतर किया जा सकता है एक बेहतर समाज बनाने के लिये। सीजीनेट स्वर और बुल्टू रेडियो इसी दिशा के प्रयोग हैं जिससे संवाद की बेहतरी से जीवन के सभी अंगों में सुधार लाया जा सके।

संवाद के लिये प्राकृतिक माध्यम या मीडिया यानि हवा का प्रयोग मनुष्य शुरू से करता रहा है। इसमें धीरे-धीरे ढोल जैसे यंत्र जुड़े जो उसकी कार्यक्षमता को बढाने में उपयोग में लाए जाते रहे। पर ढोल का स्थान जब रेडियो के ट्रांसमीटर जैसे यंत्रों ने लिया तब उसकी मालकियत बहुत से कुछ लोगों तक सीमित हो गयी।

यह संवाद के राजतंत्रीकरण की प्रक्रिया थी। क्या मोबाइल फोन फिर से वही ताकत बहुत के हाथों में देता है? क्या राजनीति की तरह मीडिया का भी लोकतंत्रीकरण हो सकता है? क्या सैटेलाईट से आता इंटरनेट वह आकाश है?

आकाश की मदद से हवा के जैसे लोकतांत्रिक मीडिया का एक व्यापक लोकतांत्रिक और स्वनिर्भर मॉडल बनाने के लिये हम कुछ साथी एक विद्यालय शुरू करने की ज़रुरत पर सोच रहे हैं। क्या यह मीडिया ग्रामीण अर्थव्यवस्था और कम की बजाय बहुत के सहयोग पर आधारित हो सकता है?

इस पर चिंतन-मनन करने और आगामी योजना बनाने के लिये हम नया रायपुर के हमारे कार्यालय में 1 से 3 जुलाई (शुक्रवार से रविवार) आप को आमंत्रित करना चाहते हैं |

मोबाइल फोन को अगर हम इन्टरनेट से जोड़ दें तो एक गरीब का फेसबुक बनाया जा सकता है सीजीनेट स्वर उसका एक उदाहरण है। उस प्लेटफार्म को लोकतांत्रिक रूप से कैसे चलाया जाए इस पर सोचने की ज़रुरत है।

बुल्टू रेडियो इसी प्रयोग को आगे ले जाता है। क्या स्थानीय भाषा में, स्थानीय लोगों द्वारा स्थानीय मुद्दे से बना रेडियो गाँव की इकोनोमी से चल सकता है? कुछ साथी कहते हैं बिलकुल नहीं पर हम लोगों को लगता है कि एक मॉडल बनाया जा सकता है। हम इस विषय पर हमारे आधे अधूरे अनुभव आप से बांटना चाहेंगे जिसे हम इस स्कूल में आप सभी की मदद से पकाना चाहते हैं।

हम एक स्वनिर्भर स्कूल की अवधारणा पर भी सोच रहे हैं। क्या खेती इस स्कूल को स्वतंत्र रूप से चलाने का आधार हो सकता है? यदि हमारे पास कृषि योग्य भूमि हो तो क्या दिन में दो घंटे के श्रम से स्कूल के विद्यार्थी अपना भोजन खुद तैयार कर सकते हैं?

क्या वे अपने ट्रेनरों का वेतन और स्कूल का बाकी खर्च भी खेती से हुई अतिरिक्त फसल को बेचकर कमा सकते हैं? क्या हम अगले 10 सालों में इस स्कूल में इतने सामुदायिक मीडिया उद्यमी तैयार कर सकते हैं कि वे न सिर्फ अपने जिले, ब्लॉक या हाट स्तर के बुल्टू रेडियो को सफलता पूर्वक चलाएं बल्कि स्कूल भी उनकी ही आय से चले?

क्या ये सारे जिला, ब्लॉक या हाट स्तरीय बुल्टू रेडियो एक प्रोड्यूसर्स कम्पनी के हिस्से हो सकते हैं? क्या स्कूल इनके तकनीकी केन्द्र या धुरी की तरह काम कर सकता है? क्या हम स्थानीय भाषा में स्थानीय लोगों द्वारा स्थानीय मुद्दों पर बनाए कार्यक्रमों को लोगों को बेच पाएंगे? क्या इसके लिये विज्ञापन मिलेगा?

क्या यह प्लेटफार्म ग्रामीण माल का संग्रहण कर अमीर शहरी बाज़ार में बेच पाएगा? क्या इस स्कूल में तैयार हुए सामुदायिक मीडिया उद्यमी अपने समाज के लिये एक ऐसा न्यूज़ बुलेटिन तैयार कर पाएंगे जो उनके जीवन को प्रभावित करता है? उदाहरण के तौर पर आज सिर्फ 7% टेलीविजन घरों में लोग न्यूज़ देखते हैं बाकी 93% लोग इसका उपयोग सिर्फ मनोरंजन के लिये करते हैं |

राजतन्त्रिक तरीके से शहर में बना समाचार खासकर अधिकतर ग्रामीण के अधिक काम का नहीं होता, उससे उसके जीवन में कोई अधिक असर नहीं पड़ता। लोकतांत्रिक तरीके से बने समाचार में क्या ऐसा कुछ होगा कि लोग उसकी मांग करें? क्या स्थानीय मनोरंजन भी लोगों को आकृष्ट करेगा जिसके लिये वे पैसे देंगे?

क्या मीडिया का सारा तामझाम तीन महीने के एक रेसीडेंशियल कोर्स में सिखाया जा सकता है जिसके बाद लोग वापस जाकर अपने जिले और ब्लॉक में अपना बुल्टू रेडियो शुरू कर सकें?

ब्लॉक एक प्रशासनिक इकाई है और हो सकता है कई जगहों पर वह एक उपयुक्त इकाई न हो। कुछ साथियों ने जिले को एक इकाई के रूप में लेने का सुझाव दिया है। डा. डी के शर्मा से मैंने आदिवासी हाट के एक फंक्शनल कम्यूनिटी होने की बात सुनी है। क्या आदिवासी हाट इस रेडियो के आधार हो सकते हैं?

हम 10 सालों में देश के 100 सबसे गरीब जिलों में पहुँचना चाहते हैं। इसके लिये हमें प्रति तीन माह में 15 ब्लॉक से 30 विद्यार्थियों को शिक्षित करना होगा। क्या यह सही संख्या है? क्या सरकार का कौशल विकास विभाग इस काम में मदद कर सकता है? क्या सी एस आर से इस काम में मदद मिल सकती है?

हम अपना खर्च कम से कम रखना चाहते हैं जिससे संस्थान लम्बे समय तक चल सके। हमें दस एकड़ ज़मीन के साथ बिजली, पानी और इंटरनेट की व्यवस्था करनी होगी। हमें मिट्टी के घर भी बनवाने पड़ेंगे।

कुछ साथियों का कहना है कि कृषि एक पूर्णकालिक काम है अत: मीडिया का शिक्षण और कृषि दोनों साथ में संभव नहीं है वहीं कुछ साथियों का सुझाव है कि यदि सभी ट्रेनर और प्रशिक्षु दिन में दो घंटे का समय दें तो यह संभव है। कुछ के अनुसार एक एकड़ ज़मीन से 10 साथियों के साल भर का भोजन निकाला जा सकता है। बाकी की ज़मीन से क्या ट्रेनरों की सैलरी और स्कूल का अन्य खर्च निकाला जा सकता है?

हम इस बैठक में आने जाने के लिये आपका किराया नहीं वहन कर सकेंगे। हमारे कार्यालय में रहने की व्यवस्था अत्यंत सीमित है। हम आपको ज़मीन पर सोने के लिये गद्दे की व्यवस्था करेंगे आप कृपया अपना ओढने और बिछाने का चादर साथ लेते आएं। हम आप के सामान्य भोजन की व्यवस्था करेंगे।

अगर आप रेलवे से आ रहे हैं तो रायपुर रेलवे स्टेशन से आप को सेक्टर 27 नया रायपुर आने के लिये सिटी बस पकड़नी है। दिन के समय हर आधे घंटे में स्टेशन से सीधे सेक्टर 27 आने की सीधी बस मिलती है। इसमें एक घंटे का समय लगता है। हम रायपुर से 30 किलोमीटर की दूरी पर हैं।

रायपुर एयरपोर्ट से नया रायपुर अधिक दूर नहीं है हम आप के लिये वहाँ से वाहन की व्यवस्था कर सकते हैं। अगर आप बस से आ रहे हैं तो बस स्टैंड से आप को थोड़ी दूर मेडिकल कॉलेज अस्पताल रायपुर (मेकाहारा) के पास रोड पर आना होगा जहाँ से आपको सेक्टर 27 नया रायपुर जाने वाली वही सिटी बस पकड़नी होगी।

सेक्टर 27 आने के बाद आप कृपया मिनी मार्केट के बस स्टॉप पर उतरें। हमारे कार्यालय का पता पी 3 डी 140 है जो मिनी मार्केट की उल्टी ओर सड़क के किनारे है। हमारे ऑफिस का नंबर 0771-2971443 है। हम आप की राह देख रहे हैं...

अगर आपके आने की अग्रिम सूचना हमें दे सकेंगे तो हमें इंतज़ाम करने में सुविधा होगी। अगर आप आखिरी दिन भी तय कर के पहुँच जाते हैं तो ज़रूर आएं...

सादर
मोहन यादव, रचित शर्मा, शुभ्रांशु चौधरी, विपिन किरार, रमण सिंह, दिनेश वट्टी, रमेश कुंजाम, रमाशंकर प्रजापति, ममता रजवाड़े, रत्नेश मिश्र, भान साहू, एच डी गांधी, गुलज़ार मरकाम, शेर सिंह आचला, राजेन्द्र कोरेटी, जगदीश यादव, रबीशंकर प्रधान, दिलीप बेहरा, राजू राणा, गौकरण वर्मा...



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