भारत आज एक ऐसे खास बिन्दु पर खड़ा है, जहाँ देश के 1.2 अरब नागरिकों की आकांक्षाएँ पूरी करने के लिये प्रौद्योगिकी का अधिक समग्र इस्तेमाल करने की आवश्यकता है। प्रत्येक नागरिक की दहलीज पर सरकारी सेवाओं की पहुँच सुनिश्चित करने और एक दीर्घावधि विकासात्मक प्रभाव पैदा करने के लिये यह जरूरी है कि डिजिटल समर्थ और डिजिटल असमर्थ के बीच अन्तराल (यानी डिजिटल अन्तराल) दूर किया जाए।
ई-गर्वनेंस क्या है और भारत में इसका क्या महत्त्व है?
भारत में करीब 6.5 लाख गाँव हैं, जो कुल आबादी के 72 प्रतिशत हिस्से का प्रतिनिधित्व करते हैं। देश में ग्रामीण जन समुदाय को भारतीय समाज का केन्द्र समझा जाता है और यह वास्तविक भारत का भी प्रतिनिधित्व करता है। एक समय था, जब लागत, असुविधा, बार-बार आने-जाने और हतोत्साह जैसी कठिनाइयों के कारण लोगों का शासन प्रणाली से विश्वास उठ गया था। ग्रामीण समुदाय के लिये ये कठिनाइयाँ अधिक प्रतिकूल थीं। ग्रामीण समुदायों के विकास के लिये भारत सरकार सही नीति निर्माण के जरिए विभिन्न आर्थिक और सामाजिक क्षेत्रों में विकास के प्रमुख लक्ष्य पहले ही तय कर चुकी है।
ग्रामीण विकास सम्बन्धी प्रमुख कार्यनीति में गरीबी उपशमन, आजीविका के बेहतर अवसरों, बुनियादी सुविधाओं के प्रावधान और दिहाड़ी एवं स्वरोजगार के नवीन कार्यक्रमों के जरिए ढाँचागत सुविधाएँ प्रदान करने आदि पर ध्यान केन्द्रित किया जाता है। ऐसे विकास कार्यों के लिये सरकार और नागरिकों के बीच समग्र भरोसेमन्द सम्बन्ध सुधारने की आवश्यकता महसूस की गई। यह महसूस किया गया कि खराब सार्वजनिक सेवाओं, बेरोजगारी, आवास, अपराध और हिंसा, स्वास्थ्य, सबके लिये शिक्षा आदि चुनौतियों का सामना आईसीटी एप्लीकेशंस के व्यापक इस्तेमाल के जरिए सफलतापूर्वक किया जा सकता है। इनके जरिए सरकारी कामकाज की प्रक्रियाओं में सुधार के लिये स्मार्ट (यानी सिम्पल, मोरल, अकाउंटेबल, रिस्पॉन्सिव और ट्रांसपेरेंट) की अवधारणा अपनाई जा सकती है, जिसका अर्थ है, शासन को सरल, नैतिक, जवाबदेह, जिम्मेदार और पारदर्शी बनाना। यह भी अनिवार्य समझा गया है कि सूचना के प्रवाह में कारगर सुधार और सरकार की नीति निर्माण प्रक्रिया में नागरिकों की सक्रिय भागीदारी को बढ़ावा देना भी अनिवार्य है, ताकि सरकार और नागरिकों के बीच एक विश्वास कायम किया जा सके। अतः सूचना और संचार प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करते हुए शासन की प्रक्रियाओं का पूर्ण रूपान्तरण ई-गवर्नेंस कहलाता है। इसका लक्ष्य सेवा वितरण को तीव्र और पारदर्शी बनाना, शासन में जवाबदेही सुनिश्चित करना, सूचना का आदान-प्रदान और सरकार की निर्णय प्रक्रिया में लोगों को भागीदार बनाना है।
भारत में ई-गवर्नेंस उपायों को 1990 के दशक के मध्य में व्यापक आयाम मिला, जब व्यापक क्षेत्रगत अनुप्रयोग शुरू किए गए और नागरिक-केन्द्रित सेवाओं के वितरण की दिशा में अधिकतम प्रयासों के जरिए ग्रामीण क्षेत्रों तक पहुँचने पर नीतिगत बल दिया गया। सरकार के प्रमुख आईसीटी (सूचना और संचार प्रौद्योगिकी) उपायों में अन्य बातों के अलावा कुछ प्रमुख परियोजनाएँ शामिल हैं, जैसे रेलवे कम्प्यूटरीकरण, भूमि रिकॉर्ड का कम्प्यूटरीकरण आदि। इनमें मुख्य रूप से सूचना प्रणालियों के विकास पर ध्यान केन्द्रित किया गया। बाद में कई राज्यों ने महत्वाकांक्षी ई-गर्वनेंस परियोजनाएँ प्रारम्भ कीं, जिनका उद्देश्य नागरिकों को इलेक्ट्रॉनिक सेवाएँ प्रदान करना था।
यद्यपि ये ई-गर्वनेंस परियोजनाएँ नागरिक केन्द्रित थीं, फिर भी वे वांछित प्रभाव पैदा नहीं कर पाईं, क्योंकि उनकी विशिष्टताएँ सीमित थीं। अलग-थलग और कमतर परस्पर संवादात्मक प्रणालियों से ऐसे बड़े अन्तरालों का पता चला, जो शासन के समूचे स्पेक्ट्रम में ई-गर्वनेंस के सफल अंगीकरण को विफल कर रहे थे। उनसे अधिक व्यापक आयोजना और कार्यान्वयन के लिये अपेक्षित ढाँचे की आवश्यकता उजागर हुई, ताकि अधिक जुड़ाव वाली शासन व्यवस्था कायम करने के लिये परस्पर-प्रचालन सम्बन्धी मुद्दों का समाधान किया जा सके। धीरे-धीरे ई-गवर्नेंस का इस्तेमाल सूक्ष्म-स्तर पर किया जाने लगा, जिसमें अलग-अलग विभागों में आईटी ऑटोमेशन, इलेक्ट्रॉनिक फाइल संचालन और पात्रताओं तक पहुँच, सार्वजनिक शिकायत निवारण प्रणालियाँ, रोजमर्रा के बड़े लेन-देन, जैसे बिलों और बकाया करों का भुगतान करने के लिये सर्विस डिलिवरी आदि कार्यों के लिये आईटी का उपयोग किया जाने लगा। इससे उद्यमशीलता मॉडलों के माध्यम से गरीबी उन्मूलन और बाजार सूचना प्रावधान की दिशा में उपाय किए गए। भारत में ई-गवर्नेंस का सतत विकास सरकारी विभागों के कम्प्यूटरीकरण से उन उपायों तक हुआ, जिनमें शासन के सूक्ष्म बिन्दु समाहित किए गए, जैसे नागरिक उन्मुखता, सेवा उन्मुखता और पारदर्शिता। ई-गर्वनेंस के पिछले अनुभवों से ली गई सीख ने देश की प्रगतिगामी ई-गर्वनेंस कार्यनीति को आकार प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस धारणा का विधिवत रूप से संज्ञान लिया गया कि ई-गवर्नेंस के कार्यान्वयन में तेजी लाते हुए राष्ट्रीय, राज्य और स्थानीय स्तरों पर सरकार के विभिन्न अंगों को इससे जोड़ा जाए। इसके लिये एक कार्यक्रम नीति अपनाने की आवश्यकता महसूस की गई, जो एक सामान्य लक्ष्य और कार्यनीति से निर्देशित हो। मूलभूत और बुनियादी ढाँचा साझा करने, मानकों के जरिए अंतर-प्रचालन क्षमता कायम करने और नागरिकों के प्रति सरकार का दृष्टिकोण अबाधित रूप से प्रकट करने जैसी विशेषताओं के जरिए इस नीति में लागत में बचत करने की व्यापक सम्भावना दिखाई दी।
सरकार ने बुनियादी शासन की गुणवत्ता में सुधार लाने को प्राथमिकता दी और इस सन्दर्भ में आम आदमी से सम्बन्धित विषयों को ई-गवर्नेंस में बड़े पैमाने पर बढ़ावा देने के उपाय किए। इसके लिये ई-गर्वनेंस की सहयोगात्मक कार्यनीति को प्राथमिकता दी गई और इसे ध्यान में रखकर तत्कालीन सूचना प्रौद्योगिकी विभाग और प्रशासनिक सुधार एवं जन-शिकायत विभाग द्वारा राष्ट्रीय ई-गर्वनेंस योजना तैयार की गई थी। इसके प्रमुख घटकों में समान मूलभूत और समर्थक ढाँचा तथा केन्द्रीय, राज्य और स्थानीय शासन के स्तर पर मिशन मोड परियोजनाएँ कार्यान्वित करना शामिल है।
राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस योजना
राष्ट्रीय ई-गर्वनेंस योजना 2006 में शुरू की गई थी। इसका लक्ष्य कॉमन सर्विस सेंटरों के जरिए आम नागरिकों को सभी सरकारी सेवाओं तक पहुँच उनकी बस्तियों में प्रदान करते हुए सक्षमता, पारदर्शिता और विश्वसनीयता सुनिश्चित करना था। सामान्य जन की बुनियादी जरूरतें पूरी करने में ऐसी सेवाओं को वहनीय लागत पर उपलब्ध कराना भी आवश्यक था।
शुरू में मिशन मोड के अन्तर्गत 31 सेवाएँ शामिल की गईं, जो कृषि, भूमि रिकॉर्ड, स्वास्थ्य, शिक्षा, पासपोर्ट, पुलिस, अदालतें, नगर-पालिकाएँ, वाणिज्यिक कर, ट्रेजरी सेवाएँ आदि से सम्बन्धित थीं। इनमें से अधिकतर परियोजनाएँ चालू की जा चुकी हैं और उनसे सेवाएँ मिलनी शुरू हो गई हैं। परन्तु, देशभर में अनेक ई-गवर्नेंस परियोजनाएँ सफलतापूर्वक लागू होने के बावजूद, समग्र रूप में ई-गवर्नेंस वांछित प्रभाव नहीं पैदा कर सका है और अपने सभी लक्ष्य हासिल नहीं कर पाया है। विशेष रूप से यह सुनिश्चित नहीं हो पाया है कि कोई सेवा, कहीं भी उपलब्ध हो और विभिन्न सेवाओं के बीच निबोध एकीकरण हो। भारत को दुनिया में सॉफ्टवेयर का पावर हाउस समझे जाने के बावजूद नागरिकों को इलेक्ट्रॉनिक सरकारी सेवाओं की उपलब्धता अभी भी तुलनात्मक रूप में कम है।
ऐसे समावेशी विकास पर अधिक बल देने की आवश्यकता है, जो इलेक्ट्रॉनिक सेवाओं, उत्पादों, उपकरणों और रोजगार के अवसरों को अपेक्षित बढ़ावा दे सकें। इसके अतिरिक्त देश में इलेक्ट्रॉनिक विनिर्माण को भी मजबूत बनाने की आवश्यकता है। भारत वर्तमान में 100 अरब अमेरिकी डॉलर मूल्य का इलेक्ट्रॉनिक आयात करता है, जो 2020 तक बढ़कर 400 अरब अमेरिकी डॉलर मूल्य पर पहुँच सकता है।
डिजिटल इंडिया
सूचना प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल के जरिए जन-सेवाओं की समूची प्रणाली का रूपान्तरण करने के लिये भारत सरकार ने 2015 में ‘डिजिटल इंडिया’ कार्यक्रम प्रारम्भ किया। इसका लक्ष्य भारत को डिजिटल रूप से सशक्त समाज और ज्ञानवान अर्थव्यवस्था बनाना है।
डिजिटल इंडिया के लक्षित क्षेत्र : डिजिटल इंडिया कार्यक्रम 3 प्रमुख लक्ष्य क्षेत्रों पर केन्द्रित है।
1. प्रत्येक नागरिक के लिये मूलभूत सेवा के रूप में डिजिटल ढाँचा।
2. माँग पर शासन और सेवाएँ।
3. नागरिकों का डिजिटल सशक्तीकरण
यह एक तथ्य है कि सरकार के प्रमुख कार्यक्रम डिजिटल इंडिया के अन्तर्गत दूर-दराज के क्षेत्रों सहित समूची ग्रामीण आबादी को डिजिटल रूप में सक्षम समाज में रूपान्तरित करना एक बड़ी चुनौती है। परन्तु, एक सार्थक और स्थानीय दृष्टि से प्रासंगिक ढंग से दूर-दराज के कोनों तक ई-गवर्नेंस सेवाओं के वितरण की परिणति एक ऐसे ग्रामीण भारत के सफल निर्माण के रूप में हो सकती है, जहाँ सर्वाधिक आधुनिक आईसीटी सुविधा कायम हो और विभिन्न वर्तमान ढाँचागत सुविधाओं का समन्वित उन्नयन हो। जैसा कि हम जानते हैं कि ई-गर्वनेंस का सम्बन्ध उन तौर-तरीकों के साथ है, जिनसे सामाजिक और राजनीतिक ताकतों को एकजुट किया जा सकता है और उनका इस्तेमाल किया जा सकता है। इसमें नागरिकों, व्यापारिक समुदाय और सरकार के अन्य अंगों के बीच सम्बन्धों का कायाकल्प करने की व्यापक क्षमता है।
डिजिटल इंडिया कार्यक्रम के अन्तर्गत ई-गर्वनेंस सेवा वितरण के सफल कार्यान्वयन के लिये निम्नांकित बुनियादी ढाँचागत अपेक्षाएँ हैं :-
वर्ष | ई-ट्रांजेक्शन गणना | वित्तीय वर्ष | ई-ट्रांजेक्शन गणना (रुपये में) |
2013 | 241.76 करोड़ | 2013-14 | 242.49 करोड़ |
2014 | 357.70 करोड़ | 2014-15 | 359.67 करोड़ |
2015 | 760.75 करोड़ | 2015-16 | 763.19 करोड़ |
2016 | 1089.81 करोड़ | 2016-17 | 1872.96 करोड़ |
2017 | 915.35 करोड़ (19 जुलाई, 2017 तक) |
1. सूचना और संचार प्रौद्योगिकी ढाँचा, जैसे ग्राम पंचायत-स्तर तक लोगों के लिये ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी (तार/रेडियो के जरिए), एक समेकित प्लेटफॉर्म के जरिए ग्राम पंचायत-स्तर पर नागरिकों को समेकित सेवा वितरण के लिये सामान्य सेवा केन्द्र (सीएससीज)।
2. पंचायतों के स्तर तक सरकारी कार्यालयों में इंटरनेट, वाई-फाई, मैसेजिंग, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग, स्किल-सेट्स जैसी सुविधाएँ होनी चाहिए।
3. अबाधित विद्युत आपूर्ति।
4. कम-से-कम जिला स्तर पर प्रशिक्षित कार्मिक संसाधन (बेहतर कार्यान्वयन और निगरानी के लिये ग्राम पंचायत-स्तर तक कुशल कार्मिकों को वरीयता)।
5. ग्राम पंचायत-स्तर तक माँग के अनुसार व्यवहार्य और सुरक्षित क्लाउड ढाँचा।
6. राष्ट्रीय आँकड़ा, केन्द्रों, स्टेट डाटा सेंटरों और अन्य डाटा सेंटरों का एकीकरण।
डिजिटल इंडिया की शुरुआत के बाद ई-सर्विसेज और ई-ट्रांजेक्शन में वृद्धि
डिजिटल इंडिया प्रारम्भ होने के बाद ई-सेवाओं की संख्या 2014 की 2221 से बढ़कर वर्तमान में 3433 पर पहुँच गई है। इससे पता चलता है कि प्रतिमाह औसत ट्रांजेक्शन की गणना जो 2014 में 29.80 करोड़ थी, वह वर्तमान में बढ़कर 90.82 करोड़ हो गई है। इसमें 205 प्रतिशत का इजाफा हुआ है।
डिजिटल इंडिया के अन्तर्गत यह व्यवस्था की गई थी कि इलेक्ट्रॉनिक सेवाओं/ई-जीओवी सेवाओं के समेकित वितरण के लिये साइलोज में कार्यरत सभी सेवा एप्लीकेशनों/प्लेटफार्मों को एक साझा राष्ट्रीय-स्तर के प्लेटफॉर्म से जोड़ा जाए, जिसे कॉमन सर्विस सेंटर (सीएससी) का नाम दिया गया, जो अब डिजिटल सेवा के रूप में जाना जाता है। सीएससी में स्थायी ग्रामीण उद्यमशीलता पैदा करने, शासन को पुनः परिभाषित करने और भारत को डिजिटल एवं सामाजिक दृष्टि से सशक्त समाज के रूप में रूपान्तरित करने की प्रमाणित क्षमता है। डिजिटल इंडिया आन्दोलन के अन्तर्गत सीएससीज अब ग्रामीण भारत में सामाजिक-आर्थिक परिवर्तनों के एजेंट बन गए हैं।
नागरिकों को विभिन्न डिजिटल सेवाएँ (ई-सर्विसेज) प्रदान करने में सामान्य सेवा केन्द्र इंटरनेट सक्षम पहुँच बिन्दु हैं। सीएससीज नागरिकों को सरकारी और अन्य सेवाएँ पारदर्शी एवं समयबद्ध ढंग से अपनी बस्ती में हासिल करने में सक्षम बनाते हैं। सीएससी नागरिकों को सरकारी कार्यालयों के सीधे सम्पर्क से बचाता है, जिससे सेवाओं के वितरण में पारदर्शिता, जवाबदेही और सक्षमता आती है तथा समय की भी बचत होती है।
“सीएससी का प्राथमिक लक्ष्य एक भौतिक सेवा वितरण आईसीटी ढाँचा कायम करते हुए नागरिकों की पहुँच के भीतर ई-गर्वनेंस सेवाएँ प्रदान करना है।” यह पारदर्शी सेवा वितरण व्यवस्था कायम करने और नागरिकों को विभिन्न सरकारी कार्यालयों के चक्कर लगाने से बचने में मदद करता है। सामान्य सेवा केन्द्रों का लक्ष्य ऐसे ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट तक व्यक्तिगत पहुँच प्रदान करना और नागरिकों को एक्सेस उपकरण प्रदान करना भी है, जहाँ आईसीटी सुविधाएँ कम होने के कारण डिजिटल अन्तराल है। आईसीटी सक्षम केन्द्र होने के नाते सीएससीज नागरिकों के लिये बहुत सारी सेवाओं तक सार्वभौम पहुँच कायम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और नागरिकों के डिजिटल सशक्तीकरण के लिये नींव के पत्थर के रूप में काम करते हैं। इस प्रकार वे एक पारदर्शी शासन प्रणाली का सृजन करते हैं। कुल मिलाकर ये सामान्य सेवा केन्द्र ग्रामीण नागरिकों के लिये एक साझा सूचना प्रौद्योगिकी प्लेटफॉर्म प्रदान करते हुए परिवर्तनकारी एजेंट बन गये हैं।
लक्ष्य और अभियान
सीएससी स्कीम प्रारम्भ में सितम्बर, 2006 में राष्ट्रीय-ई-गर्वनेंस योजना के अन्तर्गत शुरू की गई थी। इसका लक्ष्य 6 लाख जनगणना गाँवों को कवर करने का था। इसके अन्तर्गत समूचे ग्रामीण भारत में समान प्रसार के लिये 1:6 के अनुपात से एक लाख सीएससी स्थापित करने का लक्ष्य था।
पूर्ववर्ती सीएससी स्कीम के मूल्यांकन के आधार पर भारत सरकार ने अगस्त, 2015 में डिजिटल इंडिया कार्यक्रम के स्तम्भ-3 के अन्तर्गत सीएससी 2.0 परियोजना प्रारम्भ की, ताकि सामान्य सेवा केन्द्रों का प्रसार देशभर में सभी ग्राम पंचायतों में किया जा सके। इसमें यह लक्ष्य रखा गया कि देशभर में 4 वर्ष (अगस्त, 2019 तक) प्रत्येक ग्राम पंचायत में कम-से-कम एक सीएससी अवश्य स्थापित किया जाए। इस तरह 4 वर्ष की अवधि में देश की सभी ग्राम पंचायतों को कवर करने के लिये कम-से-कम 2.5 लाख सीएससी स्थापित करने की योजना बनाई गई। इसमें मौजूदा सीएससी कार्यक्रम के अन्तर्गत पहले से काम कर रहे एक लाख सामान्य सेवा केन्द्रों के सुदृढ़ीकरण और एकीकरण को भी शामिल किया गया। इसके अतिरिक्त ग्राम पंचायत-स्तर पर 1.5 लाख नए सामान्य सेवा केन्द्र प्रचालित करने (ग्राम पंचायत परिसर में वरीयता) का लक्ष्य रखा गया। यह परियोजना सीएससी ई-गर्वनेंस सर्विसेज इंडिया लिमिटेड (सीएससी-स्पेशल पर्पज व्हीकल, सीएससी-एसपीवी) द्वारा कार्यान्वित की जा रही है। ये विशेष संस्थाएँ सम्बद्ध राज्य सरकारों और संघशासित प्रदेशों के प्रशासनों के मार्गदर्शन में काम करती हैं। “सीएससी ई-गर्वनेंस सर्विसेज इंडिया लिमिटेड” की स्थापना 2009 में कम्पनी अधिनियम, 1956 के अन्तर्गत तत्कालीन इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी विभाग (वर्तमान में इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी मंत्रालय) के तहत एक साझा सेवा केन्द्र विशेष उद्देश्य संस्था के रूप में की गई थी। सीएससी-एसपीवी का प्रमुख लक्ष्य मंत्रालय को प्रोग्राम प्रबन्धन सहायता प्रदान करना और देशभर में सीएससी नेटवर्क की निरन्तरता सुनिश्चित करना था। इसके लिये अनेक नागरिक-केन्द्रित सेवाओं की समेकित डिलीवरी वहनीय लागत पर की गई।
वर्तमान सीएससी मॉडल को क्रियान्वित करने का सिद्धान्त
वर्तमान में सीएससी 2.0 मॉडल पूरी तरह सेवा वितरण/ट्रांजेक्शन-उन्मुखी आत्मनिर्भर उद्यमशीलता मॉडल पर आधारित है, जिसमें भारत सरकार से ग्राम-स्तरीय उद्यमियों तक हार्डवेयर और ढाँचागत वित्तपोषण सम्बन्धी कोई व्यवहार्यता अन्तराल नहीं है। यह व्यवस्था की गई कि सीएसटी उद्यमशीलता के लिये आवेदक को पर्याप्त रूप में उत्साहित किया जाए ताकि वह सामाजिक परिवर्तन का प्रमुख संचालक बने और अपने दायित्व का प्रतिबद्धता के साथ निर्वाह करे। उत्साहित ग्राम-स्तरीय उद्यमी इस उद्यमशीलता मॉडल को अपना रहे हैं, जिसमें ग्राम-स्तरीय उद्यमी को सामान्य सेवा केन्द्रों की स्थापना और प्रचालन के लिये कैपेक्स (कैपिटल एक्सपेंडिचर) और ओपेक्स (ऑपरेशनल एक्सपेंडिचर) का प्रबन्ध करना पड़ता है।
सीएससी 2.0 परियोजना के अन्तर्गत राज्य/संघशासित प्रदेश स्तर पर विभिन्न सेवा पोर्टलों को राष्ट्रीय-स्तर के ऑनलाइन सीएससी यूनिवर्सल पोर्टल- ‘डिजिटल सेवा पोर्टल’ के साथ एकीकृत किया जा रहा है ताकि सभी सामान्य सेवा केन्द्रों पर सेवाओं का समेकित वितरण किया जा सके। इस तरह ई-सर्विसेज, विशेषकर जी-2सी सेवाओं को देशभर में कहीं से भी एक्सेस किए जाने योग्य बनाया गया है। इससे सेवाओं के पोर्टफोलियो का विस्तार होगा ताकि उन्हें प्रत्येक सीएससी से समान रूप से एक्सेस किया जा सके। इस तरह ग्रामीण क्षेत्रों में सामान्य सेवा केन्द्रों के स्थायित्व में वृद्धि होगी।
सामान्य सेवा केन्द्रों के रोजमर्रा के प्रचालन और इन सेवाओं के बारे में जानकारी के उन्नयन के लिये, ग्राम-स्तरीय उद्यमियों को उद्यम विकास कार्यक्रम के बारे में प्रशिक्षण के जरिए मदद की जा रही है। ग्राम स्तरीय उद्यमियों की स्थिरता बढ़ाने के लिये, सीएससी 2.0 में अनुशंसा की गई है कि ग्राम स्तरीय उद्यमी और अन्य हितभागियों के बीच राजस्व की हिस्सेदारी 80:20 के अनुपात में हो।
सभी राज्यों/संघशासित पदेशों में मानकीकरण सुनिश्चित करने के लिये, “डिजिटल सेवा केन्द्रों” की राष्ट्रीय ब्रैंडिंग और राज्यों/संघशासित प्रदेशों की सह-ब्रैंडिंग शुरू की गई है। प्रत्येक सीएससी को एक विशिष्ट पहचान संख्या प्रदान की गई है और उसकी जीआईएस मैपिंग की गई है। इससे सामान्य सेवा केन्द्रों के जरिए वितरित की जा रही ई-सेवाओं के लिये एक पारदर्शी और जवाबदेह निगरानी फ्रेमवर्क का निर्माण हुआ है और सरकार को सभी राज्यों/संघशासित प्रदेशों में एक आत्मनिर्भर सीएसटी नेटवर्क की स्थापना में अन्तराल दूर करने में मदद मिली है।
सामान्य से केन्द्र की प्रणाली में महिलाओं की भागीदारी
सरकार सामान्य सेवा केन्द्रों की स्थापना में महिला उद्यमियों को प्रोत्साहित कर रही है। इससे अन्य महिलाओं को आगे आने और सामान्य सेवा केन्द्र स्थापित करने के लिये प्रेरित किया जाता है। इसके अतिरिक्त सरकार स्वयंसहायता समूहों की महिला सदस्यों को भी प्रोत्साहित कर रही है कि वे ग्राम-स्तरीय उद्यमी बनें। परिणामस्वरूप 32,361 महिला उद्यमियों ने सीएसटी स्थापित किए हैं और वे ग्रामीण क्षेत्रों में सेवाएँ वितरित कर रही हैं। सरकार महिलाओं और समाज के सीमान्त वर्गों को सीएससी आन्दोलन में शामिल करने के प्रति वचनबद्ध है। अभी तक इस दिशा में निम्नांकित कार्य किए गए हैं :-
1. सरकार ग्राम-स्तरीय उद्यमी के रूप में महिलाओं को वरीयता दिए जाने के बारे में दिशा-निर्देश पहले ही जारी कर चुकी है।
2. महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिये मासिक पत्रिका ‘तरंग’ और ‘न्यूजलेटर’ में महिलाओं की सफलता की कहानियाँ प्रकाशित की जा रही हैं।
3. भारत सरकार के डिजिटल इंडिया कार्यक्रम के अन्तर्गत सामान्य सेवा केन्द्र द्वारा प्रदान किए गए अवसर का लाभ उठाने में ग्राम-स्तरीय उद्यमियों में महिलाओं के योगदान को प्रोत्साहित करने और सम्मानित करने के लिये 20 फरवरी, 2016 को नई दिल्ली में राष्ट्रीय स्तर का एक सम्मेलन आयोजित किया गया।
4. ग्राम स्तरीय उद्यमियों में महिलाओं की हिस्सेदारी, जो मई 2014 तक 13,204 थी, वह जून, 2017 तक बढ़कर 32,361 हो गई।
5. ग्राम स्तरीय महिला उद्यमियों के लिये दिल्ली में एक राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन किया गया, जिसमें 2000 ग्राम-स्तरीय महिला उद्यमियों ने हिस्सा लिया।
6. प्रधानमंत्री ने 3 महिला ग्राम-स्तरीय उद्यमियों को पुरस्कार प्रदान किया।
7. मंत्री (ई एंड आईटी) ने 67 ग्राम-स्तरीय महिला उद्यमियों को पुरस्कृत किया।
8. ग्राम स्तरीय महिला उद्यमियों के लिये विशेष पुरस्कार घोषित किया गया।
सामान्य सेवा केन्द्र (सीएससीज) डिजिटल इंडिया कार्यक्रम के कार्यनीतिक आधार हैं। वे भारत के गाँवों में विभिन्न इलेक्ट्रॉनिक सेवाएँ प्रदान करने के लिये एक्सेस बिन्दु हैं, अतः डिजिटल और वित्तीय समावेशी समाज में उनका खास योगदान है।
वर्तमान में सीएससी निम्नांकित कार्य कर रहे हैं:
1. सरकार से नागरिक, व्यापार से उपभोक्ता (बी-2-सी), संस्थागत सेवाएँ आदि के लिये सेवा वितरण केन्द्रों के रूप में काम करना।
2. आधार और आधार प्रिंटिंग केन्द्रों के लिये स्थायी पंजीकरण केन्द्रों के रूप में काम करना।
3. वित्तीय समावेशन के अन्तर्गत बैंकिंग सेवाओं और प्रधानमंत्री जनधन योजना के अन्तर्गत बैंकिंग सेवाओं के लिये बिजनेस कोरेस्पोंडेंट एजेंटों के रूप में काम करना।
4. बीमा सेवा केन्द्र
5. शैक्षिक और कौशल विकास केन्द्र
6. मतदाता पंजीकरण केन्द्र
7. नागरिकों में डिजिटल सशक्तीकरण के प्रति जागरुकता पैदा करने के लिये सरकार के विभिन्न कार्यक्रमों हेतु सूचना केन्द्र
8. वाई-फाई वितरण केन्द्र (वाई-फाई ई-चौपाल) आदि।
सीएससी के परिणाम एवं लाभ
1. सरकारी एवं अन्य ई-सेवाओं की किफायती दर पर पारदर्शी तथा समयबद्ध आपूर्ति और नागरिकों को बेहतर अनुभव।
2. अपने ही क्षेत्र में सेवाएँ प्राप्त करने के लिये सरकारी दफ्तरों तक जाने की लोगों की जरूरत समाप्त कर उनके प्रयास और संसाधन बचाना ताकि व्यवस्था में आम आदमी का भरोसा बढ़े।
3. विभिन्न सरकारी प्रयासों एवं लाभों की आपूर्ति एवं प्रसार के लिये आईसीटी पर आधारित एकीकृत व्यवस्था।
4. कौशल विकास, शिक्षा एवं प्रशिक्षण, वित्तीय समावेशन और परोक्ष रोजगार सृजन के लिये परिवर्तन एजेंट देना।
5. सरकार के विभिन्न प्रकार के प्रत्यक्ष लाभ वंचित/पिछड़े तबकों तक पहुँचाने के लिये अन्तिम वितरण इकाई के रूप में कार्य करना।
6. अधिक से अधिक महिलाओं को वीएलई (विलेज लेवल एंटरप्रेनर) बनने के लिये प्रोत्साहित करना तथा सामाजिक एवं आर्थिक विकास में उनका योगदान बढ़ाना।
7. सीएससी ग्रामीण नागरिकों को डिजिटल रूप से सशक्त बनाने तथा सरकार एवं उसकी योजनाओं से परिचित होने के माध्यम के रूप में कार्य कर रहे हैं।
सीएससी नेटवर्क के जरिए प्रमुख सेवाएँ
1. जी2सी सेवाएँ
2. केन्द्र सरकार की सेवाएँ (पासपोर्ट, पैन कार्ड, पीएमएवाई, फसल बीमा, डिजिटल वित्तीय लेनदेन)
3. ई-जनपद/एसएसडीजी सेवाएँ (भूमि रिकॉर्ड, प्रमाणपत्र)
4. आधार सेवाएँ (पंजीकरण, अपडेशन)
5. चुनाव आयोग की सेवाएँ
6. बी2सी सेवाएँ- ई-रिचार्ज, बिल संग्रह, ई-कॉमर्स
7. वित्तीय सेवाएँ
8. बैंकिंग सेवा (जमा, निकासी, धन भेजना)
9. बीमा सेवा (प्रीमियम संग्रह, पॉलिसी)
10. एईपीएस (आधार भुगतान)
11. शैक्षिक सेवाएँ
राष्ट्रीय डिजिटल साक्षरता मिशन (एनडीएलएम) - डिजिटल साक्षरता अभियान (दिशा)/प्रधानमंत्री ग्रामीण (पीएमजी) दिशा, साइबर ग्राम परियोजना, राष्ट्रीय मुक्त शिक्षा संस्थान (एनआईओएस), राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान (एनईआईलिट) के पाठ्यक्रम, एनिमेशन पाठ्यक्रम, लेखा
कौशल विकास- डेटा इंट्री ऑपरेटर, इलेक्ट्रिक, ऑटो
यूटिलिटी सेवाएँ- बिजली, पानी के बिल
स्वास्थ्य सेवाएँ- टेली परामर्श, जन औषधि
अन्य- टेली कानून, वित्तीय साक्षरता, निवेशक जागरुकता पिछले कुछ वर्षो में सीएससी की वृद्धि एवं उपलब्धियाँ
2016-17 में पूरे देश में 90 हजार सीएससी ने कामकाज आरम्भ किया और कुल कामकाजी सीएससी की संख्या मार्च, 2016 के 1.6 लाख सीएससी से बढ़कर मार्च, 2017 में 2.50 लाख सीएससी तक पहुँच गई। 31 मार्च, 2017 को उनमें से लगभग 1.60 लाख सीएससी ग्राम पंचायत-स्तर पर कार्य कर रहे हैं, जो 2016-17 में ग्राम पंचायत-स्तर पर काम कर रहे सीएससी की तुलना में 62 हजार अधिक हैं।
कामकाजी सीएससी के विशाल नेटवर्क हेतु अधिक मजबूत एवं विस्तार योग्य तकनीकी प्लेटफॉर्म चाहिए, जिसमें सेवाओं की निर्बाध इलेक्ट्रॉनिक आपूर्ति के लिये डिजिटल बी2बी वॉलेट की जरूरत है। सीएससी के इस विशाल नेटवर्क की जरूरत पूरी करने के लिये और सीएससी 2.0 में की गई परिकल्पना के अनुसार सीएससी-एसपीवी ने 2016-17 में एक मजबूत तथा विस्तार योग्य एसीएसी राष्ट्रीय पोर्टल ‘डिजिटल सेवा पोर्टल’ को डिजाइन, विकसित और आरम्भ कर दिया है। इससे देश भर में सभी सीएससी एक समान तकनीकी प्लेटफॉर्म के जरिए सेवाओं का प्रसार कर सकते हैं, जिससे देश में किसी भी स्थान पर ई-सेवाएँ विशेषकर जी2सी सेवाएँ इस्तेमाल की जा सकेंगी।
2016-17 के उत्तरार्द्ध में भारत सरकार ने डिजिटल इंडिया कार्यक्रम के अन्तर्गत डिजिटल वित्तीय समावेशन, जागरुकता एवं उपब्धता (डीएफआईएए) कार्यक्रम आरम्भ किया है। एक करोड़ नाागरिकों को इसके दायरे में लाने तथा 25 लाख व्यापारियों को इसके उपयोग हेतु तैयार करने का जिम्मा सीएससी-एसपीवी को ही दिया गया। सीएससी-एसपीवी ने नवम्बर, 2016 से मार्च, 2017 की छोटी-सी अवधि के बीच ही 2.04 करोड़ नागरिकों को पंजीकृत किया तथा 26 लाख व्यापारियों को इसके उपयोग में सक्षम बनाया।
2016-17 के दौरान सीएससी नेटवर्क में पहले से मौजूद सेवाओं के साथ ही प्रधानमंत्री आवास योजना (पीएमएवाई), भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई), मृदा स्वास्थ्य कार्ड, ई-जनपद सेवाएँ तथा पीएमजी दिशा जैसी कई महत्त्वपूर्ण सरकारी सेवाएँ भी जोड़ी गई हैं। सीएससी ने दिव्यांगों के लिये कौशल विकास कार्यक्रम भी आरम्भ किया है। सीएससी के जरिए ग्रामीण भारत के उत्पादों का प्रदर्शन करने हेतु ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म ‘वीएलईबाजार’ आरम्भ किया गया है।
सीएससी-एसपीवी ने भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम से हाथ मिलाया और आधार पर आधारित भुगतान प्रणाली (एईपीएस) के प्लेटफॉर्म पर सीएससी नेटवर्क के लिये दिसम्बर, 2016 में ‘डिजिपे’ आरम्भ किया ताकि देशभर में ऑनलाइन बैंकिंग सेवाएँ प्रदान की जा सके। इसका उद्देश्य सभी बैंकों के बीच आधार पर आधारित भुगतान का लेनदेन आरम्भ करना है। डिजिपे एप्लिकेशन सीएससी को देश के सुदूर और बैंकिंग सेवा से वंचित क्षेत्रों में भी वित्तीय सेवा की आवश्यकता पूरी करने में सक्षम बनाती है।
सीएससी ई-गर्वनेंस सर्विसेज इंडिया लिमिटेड (सीएससी-एसपीवी) को भारतीय रिजर्व बैंक ने भारत बिल पेमेंट सर्विसेज (बीबीपीएस) के अन्तर्गत भारत बिल पेमेंट ऑपरेटिंग यूनिट (बीबीपीओयू) के रूप में काम करने का लाइसेंस दिया है। भारतीय रिजर्व बैंक ने भारत में एकीकृत बिल भुगतान प्रणाली बीबीपीएस आरम्भ की है। बीबीपीएस का उद्देश्य ग्राहकों को सीएससी के विशाल नेटवर्क के जरिए विभिन्न बैंकों के बीच होने वाली तथा सुगम बिल भुगतान सेवाएँ मुहैया कराना, भुगतान के विभिन्न तरीके मुहैया कराना तथा भुगतान की तुरन्त पुष्टि करना है। इससे नकद के बजाय इलेक्ट्रॉनिक तरीके से ऑनलाइन भुगतान का चलन बढ़ेगा और नकदरहित समाज बनाने में सुविधा होगी।
जीएसटी सुविधा प्रदाता
सीएससी-एसपीवी ने 2016-17 में मील का एक और पत्थर लांघ लिया, जब जीएसटी परिषद ने सीएससी-एसपीवी को जीएसटी सुविधा प्रदाता (जीएसपी) के रूप में जोड़ लिया। जीएसपी के रूप में सीएससी-एसपीवी को विभिन्न पक्षों मुख्यतया व्यापारियों, प्रतिष्ठानों एवं उन लोगों की मदद के लिये कई कार्य करने होते हैं, जिन लोगों को जीएसटी प्रणाली के अन्तर्गत अनुपालन करना होता है।
वाई-फाई चौपाल
2016-17 में सीएससी-एसपीवी ने ग्रामीण वाई-फाई सुविधा वाई-फाई चौपाल आरम्भ की, जिसके साथ ही गाँवों में केनेक्टिविटी प्रदान करने के मामले में नया युग आ गया। वाई-फाई चौपाल परियोजना सीएससी के जरिए ग्रामीण भारत में वाई-फाई इंटरनेट सुविधा प्रदान करने के लिये आरम्भ की गई है। पहली वाई-फाई चौपाल 7 अप्रैल, 2016 को फरीदाबाद में घरौड़ा गाँव में आरम्भ की गई। आज 9 राज्यों और 2 केन्द्रशासित प्रदेशों की 819 ग्राम पंचायतों में वाई-फाई ढाँचा स्थापित कर दिया गया है। 483 स्थानों पर इंटरनेट सेवा आरम्भ हो चुकी है।
वर्ष 2016-17 में 28 हजार स्थायी पंजीकरण केन्द्रों- पीईसी (सीएससी) पर 596 लाख से अधिक आधार क्रमांक बनाए गए और सीएससी देश में सबसे बड़ा यूआईडी पंजीयक बन गया। इस वर्ष सीएससी पोर्टल पर सबसे अधिक काम आधार कार्ड छपाई सेवा (45.59 लाख प्रिंट) के जरिए ही हुआ। आधार के लिये 0 से 5 वर्ष तक आयु वर्ग के बच्चों के नामांकन में सीएससी का बहुत बड़ा योगदान रहा है। वर्ष 2016-17 में सीएससी द्वारा लगभग 47.48 लाख बच्चों का पंजीकरण किया गया, जिससे 31 मार्च, 2017 तक कुल 80 लाख बच्चों का पंजीकरण हो चुका था।
सीएससी-वीएलई और साझेदारों ने राष्ट्रीय डिजिटल साक्षरता मिशन/डिजिटल साक्षरता अभियान (एनडीएलएम/दिशा) के जरिए प्रत्येक परिवार के कम-से-कम एक व्यक्ति को डिजिटल साक्षर बनाने के लक्ष्य की दिशा में बहुत उत्साह से काम किया। वर्ष 2016-17 में लगभग 35.44 लाख लोगों को इस कार्यक्रम के तहत प्रमाणपत्र दिए गए, जिससे मार्च, 2017 तक प्रमाणपत्र हासिल करने वाले व्यक्तियों की कुल संख्या 55.46 लाख (55.27 लाख का लक्ष्य था) तक पहुँच गई, जो मार्च, 2016 में 18.01 लाख ही थी।
एनडीएलएम-दिशा कार्यक्रमों के क्रियान्वयन में सफलता के कारण सीएससी-एसपीवी को डिजिटल साक्षरता के लिये भारत सरकार द्वारा फरवरी, 2017 में आरम्भ किए गए नए महत्त्वाकांक्षी कार्यक्रम प्रधानमंत्री ग्रामीण डिजिटल साक्षरता अभियान (पीएमजीदिशा) के क्रियान्वयन का जिम्मा दे दिया गया है। योजना में राज्यों/केन्द्रशासित प्रदेशों में ग्रामीण क्षेत्रों के 6 करोड़ लोगों को डिजिटल साक्षर बनाने की परिकल्पना की गई है ताकि डिजिटल रूप से पूरी तरह निरक्षर प्रत्येक परिवार के एक सदस्य को सिखाकर 40 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों तक पहुँचा जा सके। योजना दो वर्ष में पूरी की जानी है और हमें उम्मीद है कि निश्चित समयावधि में इसे पूरा किया जा सकेगा।
एनडीएलएम के अलावा साइबर ग्राम योजना के अन्तर्गत चार राज्यों में अल्पसंख्यक समुदायों के मदरसा छात्रों के लिये बुनियादी कम्प्यूटर प्रशिक्षण भी चलाया जा रहा है। वर्ष 2016-17 में 1.56 लाख मदरसा छात्रों को कम्प्यूटर प्रशिक्षण दिया गया, जिनमें से 1.44 लाख को प्रमाणपत्र भी मिला। इस तरह मार्च, 2016 की तुलना में प्रमाणपत्र वाले छात्रों की संख्या 1.15 लाख बढ़ गई।
भारत सरकार की सेवाओं को देशभर में लोकप्रिय बनाने की दिशा में भी सीएससी के प्रयास सराहनीय हैं। नवम्बर, 2016 में सीएससी के जरिये पीएमएवाई आरम्भ किया गया और तब से मार्च, 2017 तक सीएससी के माध्यम से 29 लाख से अधिक आवेदन जमा किए जा चुके हैं। जुलाई, 2016 में सीएससी के माध्यम से एफएसएसएआई के अन्तर्गत सेवा उपलब्ध कराई गई; उसके बाद से मार्च, 2017 तक सीएससी के जरिए लगभग 1.19 लाख पंजीकरण कराए गए हैं। मृदा स्वास्थ्य कार्ड के अन्तर्गत सेवा भी दिसम्बर, 2016 में सीएससी के अन्तर्गत ही आरम्भ की गई थी और अगले तीन महीने के भीतर ही इस सेवा के लिये 1.24 लाख पंजीकरण कर लिये गये हैं।
सीएससी ने बिजनेस कोरेस्पोंडेंट एजेंटों (बीसीए) के रूप में बैंकिंग सेवाओं को बढ़ावा देने में अहम भूमिका निभाई है। 2016-17 में औसतन 11,200 बीसीए ने देशभर में बैंकिंग सेवाएँ उपलब्ध कराई और नागरिकों को 320.99 लाख बैंकिंग लेनदेन करने में मदद की, जिसमें कुल 570163.61 लाख रुपये का लेनदेन हुआ था। इस वर्ष इन बीसीए ने 7079.59 लाख रुपये का कमीशन हासिल किया, जो 2015-16 की तुलना में 2971 लाख रुपये अधिक रहा। इसी प्रकार सीएससी ने एईपीएस सेवाएँ उपलब्ध कराने में भी सराहनीय उत्साह दिखाया है। वर्ष 2016-17 में लगभग 1.22 सीएससी ने एईपीएस के अन्तर्गत बैंकिंग सेवाएँ उपलब्ध कराने हेतु पंजीकरण कराया है और 17901.90 लाख रुपये मूल्य के 28.35 लाख लेनदेन किए।
वर्ष 2016-17 में लगभग 40 हजार सीएससी ने बीमा सेवाएँ मुहैया कराईं, जिनमें पॉलिसी की बिक्री और उनका नवीकरण दोनों शामिल थे। इसी वर्ष इन सीएससी ने 10,47,387 ग्राहकों से 33,415.93 लाख रुपये का प्रीमियम इकट्ठा किया, जिस पर उन्हें लगभग 199 लाख रुपये का कमीशन मिला है, जो 2015-16 की तुलना में लगभग 134 लाख रुपये अधिक था।
वर्तमान सीएससी 2.0 में जैसी परिकल्पना की गई थी, उसी के अनुसार जिला-स्तर के प्रशिक्षण द्वारा वीएलई की उद्यमशीलता विकसित करने को प्राथमिकता दी जा रही है। इसके तहत सीएससी के जरिए उपलब्ध विभिन्न प्रकार की सेवाओं का लाभ प्रदान करने के लिये 3 दिन का प्रशिक्षण होता है। वर्ष 2016-17 में 19 राज्यों के 206 जिलों में जिला-स्तरीय क्षमता निर्माण एवं उद्यमशीलता विकास कार्यक्रम आयोजित किए गए और 33 हजार से अधिक वीएलई की उद्यमशीलता सम्बन्धी क्षमताएँ विकसित करने के लिये विभिन्न सेवाओं में प्रशिक्षण दिया गया।
सीएससी-एसपीवी ग्रामीण समुदायों के लिये डिजिटल साक्षरता, वित्तीय साक्षरता तथा कानूनी साक्षरता को बढ़ावा देते आए हैं, जिससे उन्हें राष्ट्र निर्माण में सक्रिय सहभागिता की ताकत मिलती है। सीएससी के जरिए सुदूर चिकित्सा (टेली-मेडिसिन) को बढ़ावा देने के प्रयासों को स्वीकार्यता मिलती दिखती है। सीएससी के जरिए अब लोगों को एलोपैथी, होमियोपैथी तथा आर्युवेदिक चिकित्सा सम्बन्धी टेली-परामर्श उपलब्ध है। सीएससी-एसपीवी एफएमसीजी कम्पनियों के साथ भी काम कर रहे हैं ताकि उन्हें ग्रामीण भारत में अपने उत्पाद/सेवाएँ बेचने के लिये सीएससी नेटवर्क के इस्तेमाल की सुविधा मिल सके।
विवरण | उपलब्धि (ग्राम पंचायत स्तर समेत पूरे भारत में) | उपलब्धि (ग्राम पंचायत स्तर) |
मई, 2014 तक पंजीकृत कुल सीएससी | 1,34,956 | 83,903 |
मई, 2014 तक काम कर रहे कुल सीएससी | 83,950 | 64,259 |
नवम्बर, 2015 (सीएससी 2.0 का क्रियान्वयन आरम्भ होने से पहले) तक पंजीकृत कुल सीएससी | 1,44,875 | 92,106 |
नवम्बर, 2015 (सीएससी का क्रियान्वयन आरम्भ होने से पहले) तक काम कर रहे कुल सीएससी | 1,19,779 | 85,952 |
मार्च, 2016 तक पंजीकृत कुल सीएससी | 1,99,325 | 1,22,621 |
मार्च, 2016 तक काम कर रहे कुल सीएससी | 1,66,671 | 97,243 |
मार्च, 2017 तक पंजीकृत कुल सीएससी | 2,91,366 | 1,81,173 |
मार्च, 2017 तक काम कर रहे कुल सीएससी | 2,50,345 | 1,59,633 |
जून, 2017 तक पंजीकृत कुल सीएससी | 3,00,774 | 1,96,922 |
जून, 2017 तक काम कर रहे कुल सीएससी | 2,61,071 | 163,226 |
मई, 2014 के बाद से पंजीकृत सीएससी की संख्या में वृद्धि | 1,65,818 | 1,13,019 |
मई, 2014 के बाद से कामकाजी सीएससी की संख्या में वृद्धि | 1,77,121 | 98,967 |
सीएससी 2.0 का क्रियान्वयन आरम्भ होने (दिसम्बर, 2015) के बाद से पंजीकृत सीएससी की संख्या में वृद्धि | 1,55,899 | 1,04,816 |
सीएससी 2.0 का क्रियान्वयन आरम्भ होने (दिसम्बर, 2015) के बाद से कामकाजी सीएससी की संख्या में वृद्धि | 1,41,292 | 77,274 |
वर्ष 2016-17 में वीएलई ने सीएससी कामकाज से कुल 58,578.29 लाख रुपये का कमीशन प्राप्त किया, जो 2015-16 की तुलना में लगभग 11,405 लाख रुपये अधिक है। सीएससी को टिकाऊ बनाने की दिशा में यह अहम कदम है।
सीएससी के जरिए परोक्ष रोजगार सृजन
सीएससी का वर्तमान प्रारूप पूरी तरह लेनदेन पर केन्द्रित और स्वावलम्बी प्रकृति का है। सीएससी के प्रत्येक किऑस्क पर औसतन 3-4 लोग काम करते रहते हैं। इसीलिये अनुमान है कि सीएससी की प्रणाली में लगभग 9.18 लाख लोगों को परोक्ष रोजगार मिलता है।
विवरण | मई, 2014 तक | मार्च, 2015 तक | मार्च, 2017 तक | मार्च 14 से 17 तक वृद्धि |
स्थायी पंजीकरण केन्द्रों की संख्या | 5097 | 15,244 | 27681 | 22,584 |
बनाए गए आधार की संख्या (लाख में) | 114.71 | 977.63 | 1573.60 | 1458.89 |
आधार में अपडेट (लाख में) | - | 105.51 | 335.21 | 335.21 |
छपे आधार (लाख) | - | 29.34 | 74.93 | 74.93 |
सीएससी के क्रियान्वयन में चुनौतियाँ
- कनेक्टिविटी
- राज्यों/केन्द्रशासित प्रदेशों से सहयोग
कनेक्टिविटी (सम्पर्क) : यह सोचा गया कि भारतनेट/एनओएफएन के रूप में तैयार किये गये बुनियादी ढाँचे तथा राज्यों/केन्द्रशासित प्रदेशों में उपलब्ध संचार के अन्य ढाँचों के समुचित उपयोग से सीएससी की प्रणाली अच्छी तरह काम करेगी। अभी सीएससी सुविधा के अनुसार कनेक्टिविटी के उपलब्ध तरीकों जैसे डाटा कार्ड, वाई-फाई और ब्रॉडबैंड नेटवर्क पर काम कर रहे हैं। किन्तु सुगमता नहीं होने के कारण दूर-दराज के इलाकों में इंटरनेट की बैंडविड्थ पर्याप्त एवं स्थिर नहीं है। सरकार के वायदे को देखते हुए सीएससी परियोजना को अगस्त, 2015 में मंजूरी मिलने के चार वर्ष के भीतर की निर्धारित अवधि में पूरा करने के लिये सभी जरूरी कदम एवं प्रयास किये जा रहे हैं। इसके लिये वाई-फाई ई-चौपाल के जरिये कनेक्टिविटी बढ़ाने के प्रयास किये जा रहे हैं।
भारतनेट : संचार मंत्रालय के अधीन दूरसंचार विभाग देश में सभी ग्राम पंचायतों (लगभग 2.5 लाख) को ऑप्टिकल फाइबर के जरिये जोड़कर और भूमिगत केबल, बिजली की लाइनों पर फाइबर, रेडियो तथा उपग्रह मीडिया का समुचित प्रयोग कर नेटवर्क का बुनियादी ढाँचा तैयार करने के लिये भारतनेट परियोजना क्रियान्वित करने का प्रयास भी कर रहा है ताकि सभी प्रकार के सेवा प्रदाताओं द्वारा भेदभाव के बगैर ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी उपलब्ध कराई जा सके। परियोजना तीन चरणों में क्रियान्वित की जाएगी। परियोजना के पहले चरण में नवम्बर 2017 तक भूमिगत ऑप्टिकल फाइबर केबल बिछाकर एक लाख ग्राम पंचायतों को जोड़ा जाना है। दूसरे चरण में भूमिगत केबल, बिजली की लाइनों पर फाइबर, रेडियो तथा उपग्रह मीडिया का समुचित प्रयोगकर मार्च, 2019 तक शेष 1.5 लाख ग्राम पंचायतों को भी कनेक्टिविटी प्रदान कर दी जाएगी। तीसरे चरण में छल्ले जैसे ढाँचे वाले अत्याधुनिक नेटवर्क की योजना है, जिसे 2023 तक पूरा कर लिया जाएगा।
इस योजना (प्रथम चरण) के अन्तर्गत 09 जुलाई, 2017 तक 1,06,276 ग्राम पंचायतों में 2,38,489 किलोमीटर पाइपलाइन बिछाई जा चुकी है, 1,00,152 ग्राम पंचायतों के लिये 2.20 लाख किमी ऑप्टिकल फाइबर लगाया जा चुका है और 23,147 ग्राम पंचायतों को जोड़ा जा चुका है। सीएससी को भारतनेट टर्मिनलों से जोड़ा जा रहा है ताकि ई-प्रशासन सेवाओं के लिये बैंडविड्थ का प्रयोग किया जा सके।
एनडीएलएम-दिशा (दिसम्बर, 2014 में आरम्भ हुआ) | लक्ष्य | मई, 2014 तक | मार्च, 2016 तक | मार्च, 2017 तक |
पंजीकृत व्यक्तियों की संख्या (लाख) | 55.27 | 0 | 10.73 | 102.85 |
प्रशिक्षित व्यक्तियों की संख्या (लाख) | 55.27 | 0 | 10.27 | 89.68 |
प्रमाणपत्र प्राप्त करने वाले व्यक्तियों की संख्या (लाख) | 55.27 | 0 | 9.74 | 55.46 |
पीएमजी-दिशा (दिसम्बर, 2014 में आरम्भ हुआ) | लक्ष्य | मई, 2014 तक | मार्च, 2016 तक | मार्च, 2017 तक |
पंजीकृत व्यक्तियों की संख्या (लाख) | 600 | 0 | 0 | 6.33 |
प्रशिक्षित व्यक्तियों की संख्या (लाख) | 600 | 0 | 0 | 4.54 |
प्रमाणपत्र प्राप्त करने वाले व्यक्तियों की संख्या (लाख) | 600 | 0 | 0 | 0.78 |
वाई-फाई हॉटस्पॉट के लिये सीएससी का उपयोग
सीएससी-एसपीवी वाई-फाई चौपाल कार्यक्रम के जरिए भारतनेट की बेंडविड्थ और भी बढ़ाने के लिये सीएससी के उपयोग का प्रयास कर रही है ताकि पूरी ग्राम पंचायत में टिकाऊ और तेज रफ्तार इंटरनेट की सुविधा मिल सके। आज तक 9 राज्यों (उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, हरियाणा, झारखंड, बिहार, महाराष्ट्र और कर्नाटक) तथा 2 केन्द्रशासित प्रदेशों (चंडीगढ़ और पुदुच्चेरी) की 2500 ग्राम पंचायतों में वाई-फाई का ढाँचा स्थापित हो चुका है 650 ग्राम पंचायतों में इंटरनेट सेवाएँ आरम्भ की जा चुकी हैं।
राज्यों/केन्द्रशासित प्रदेशों से सहयोग
सीएससी की वर्तमान पहल का एक प्रमुख उद्देश्य राज्यों/केन्द्रशासित प्रदेशों में मौजूद सभी सेवा पोर्टलों को राष्ट्रीय-स्तर के सार्वभौमिक एवं एकीकृत डिजिटल सेवा (सीएससी) प्लेटफॉर्म से जोड़कर ई-सरकारी सेवाओं की आपूर्ति मजबूत करना है। इसके लिये सम्बन्धित राज्यों/केन्द्रशासित प्रदेशों का लगातार सहयोग आवश्यक है। नागरिकों के लिये देश में किसी भी स्थान से ई-सेवाओं का प्रयोग आसान करने के उद्देश्य से राज्य/केन्द्रशासित प्रदेशों के पोर्टलों को एक साथ करने में आ रही समस्याएँ सुलझाने के लिये यह मंत्रालय लगातार प्रयास कर रहा है। इन प्रयासों का ही नतीजा है कि कुछ राज्य सरकारें राज्य पोर्टल को डिजिटल सेवा पोर्टल से जोड़ने पर सहमत हो गई हैं। इससे सीएससी अधिक टिकाऊ बनेंगे। झारखंड, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, तमिलनाडु और छत्तीसगढ़ जैसे अधिकतर राज्यों में राज्य सेवा पोर्टल पहले ही जोड़ दिए गए हैं। राजस्थान, पंजाब जैसे कुछ राज्यों में राज्य सेवा पोर्टलों को जोड़ा जा रहा है।
सीएससी के जरिए आरम्भ हो चुकी/आरम्भ की जा रही नई सेवाएँ
1. जीएसटी सेवा प्रदान करने के लिये सीएससी
2. तकनीकी प्लेटफॉर्म हो रहे तैयार
3. प्रशिक्षण सामग्री का डिजाइन एवं विकास जारी
4. मई-जून, 2017 में वीएलई के लिये जिला/ब्लॉक में कार्यशालाओं का आयोजन
5. प्रणाली स्वीकार कर चुके व्यापारियों के लिये समुचित प्रोत्साहन ढाँचे का विकास।
टेली कानून : कानूनी जानकारी एवं सलाह देने के लिये संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल। वकील और लोगों के बीच यह ई-संवाद सीएससी में मौजूद वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग सुविधा के द्वारा होगा। 1800 ग्राम पंचायतों में वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग/चैट/टेलीफोन के जरिए सीएससी में टेली-कानून सेवाएँ आरम्भ की जानी हैं। बिहार में 500, उत्तर प्रदेश में 500, पूर्वोत्तर और जम्मू-कश्मीर में 800 पंचायतों में ये सेवाएँ दी जाएँगी।
- सीएससी को विभिन्न बैंकों की सेवाओं के लिये व्हाइट लेबल बिजनेस कोरेस्पोंडेंट के रूप में भी तैयार किया जा रहा है।
निष्कर्ष
इलेक्ट्रॉनिक एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय सीएससी सेवाओं तथा सुलभता में सुधार करने के प्रयास करता आ रहा है ताकि डिजिटल एवं सामाजिक रूप से समावेशी समाज का सरकार का आदेश पूरा किया जा सके। सरकार आईसीटी के जरिए ग्रामीण उद्यमशीलता को बढ़ावा देने और नागरिकों को लाभकारी रोजगार मुहैया कराने का टिकाऊ मॉडल तैयार करने के लिये प्रतिबद्ध है। सरकार डिजिटल प्रौद्योगिकी एवं प्रारूप के जरिए सेवा की आपूर्ति को पुनर्परिभाषित करने के लिये प्रयासरत है। जब राज्य/केन्द्रशासित प्रदेश-स्तर के सेवा पोर्टल डिजिटल सेवा पोर्टल के साथ जोड़ दिये जाएँगे तब राष्ट्रीय-स्तर के एकीकृत प्लेटफॉर्म सीएससी-डिजिटल सेवा से विभिन्न प्रकार की नागरिक केन्द्रित ई-सेवाएँ प्रदान की जा सकेंगी। राष्ट्रीय सीएससी पोर्टल (डिजिटल सेवा) में सेवाओं की संख्या पिछले 3 वर्ष में 32 से बढ़ाकर 170 कर दी गई है। नागरिक केन्द्रित ई-सेवाएँ प्रदान करने के लिये जारी सीएससी 2.0 परियोजना के दायरे में 4 वर्ष के भीतर (अगस्त, 2019 तक) 2.5 लाख ग्राम पंचायतों को लाने का लक्ष्य है, जिनमें से 1.66 लाख से अधिक (66 प्रतिशत से अधिक) ग्राम पंचायतें इसके अन्तर्गत आ चुकी हैं और नागरिकों को ई-सेवाएँ प्रदान करने के लिये जून, 2017 तक 1.97 लाख सीएससी खोले जा चुके हैं।
(लेखक भारत सरकार के इलेक्ट्रॉनिक एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय में संयुक्त सचिव हैं।)
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