ग्रामीण भारत को जोड़ता डिजिटल इण्डिया

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ग्रामीण भारत के विकास हेतु विभिन्न योजनाओं के माध्यम से समुचित प्रयास किये जा रहे हैं और उनके सकारात्मक परिणाम भी सामने आ रहे हैं किन्तु सभी योजनाओं की सार्थकता उनके सफल क्रियान्वयन में निहित हैं और इसके लिये डिजिटल इण्डिया को ग्रामीण भारत तक पहुँचाना न केवल आवश्यक अपितु अपरिहार्य है। वर्ष 2018-19 में भारत सरकार द्वारा डिजिटल इण्डिया कार्यक्रम को 3073 करोड़ रुपए का आवंटन किया गया है जो कि गत वर्ष की तुलना में दोगुना है और यह सरकार की इस योजना के प्रति प्रतिबद्धता का परिचायक है। प्रस्तुत लेख का उद्देश्य उन तथ्यपरक बिंदुओं पर विचार करना है जो डिजिटल इण्डिया से डिजिटल गाँव की यात्रा में अवरोधक बने हुये हैं ताकि सरकार द्वारा इस दिशा में सुधारात्मक उपाय किये जा सकें और भारत डिजिटल रूप से सशक्त समाज के रूप में स्वयं को स्थापित करने के अपने उद्देश्यों को सही मायनों में प्राप्त कर सके और ग्रामीण विकास की समस्त योजनाओं को प्रभावशाली ढंग से लागू किया जा सके।

गाँव बढ़ेगा, देश बढ़ेगा, जैसे नारे के साथ सुखी एवं समृद्ध गाँव को राष्ट्र के विकास के एक घटक के रूप में माना जाना एक स्वप्न ही था जिसे वर्तमान सरकार विभिन्न पुरानी योजनाओं के परिमार्जन एवं नवीन योजनाओं को आरम्भ करके सिद्ध करने का प्रयास कर रही है। ये योजनाएँ समयबद्ध तरीके से ग्रामीण आधारभूत संरचना में बदलाव लाने पर केन्द्रित हैं और सभी को आवास प्रदान करने, देश के समस्त गाँवों को सम्पर्क मार्ग से जोड़ने तथा ग्रामीण जनता की आय को वर्ष 2022 तक दोगुना करने जैसे महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य को पूरा करने हेतु संकल्पित हैं। यद्यपि ग्रामीण भारत के विकास हेतु विभिन्न योजनाओं के माध्यम से समुचित प्रयास किये जा रहे हैं और उनके सकारात्मक परिणाम भी सामने आ रहे हैं किन्तु सभी योजनाओं की सार्थकता उनके सफल क्रियान्वयन में निहित हैं और इसके लिये डिजिटल इण्डिया को ग्रामीण भारत तक पहुँचाना न केवल आवश्यक अपितु अपरिहार्य है।

महात्मा गाँधी ने कहा था कि ‘भारत की आत्मा गाँवों में बसती है।’ इस कथन के आलोक में यह जानना जरूरी हो जाता है कि क्या डिजिटल इण्डिया जैसी महत्त्वांकाक्षी एवं जन-सुविधा केन्द्रित योजना का लाभ भारत की आत्मा तक पहुँच पाया है?

भारत मूलतः एक ग्राम प्रधान अर्थव्यवस्था वाला देश है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की कुल जनसंख्या का 68.8 प्रतिशत गाँवों में निवास करता है और देश की कुल कार्यशील जनसंख्या का 72.4 प्रतिशत भी ग्रामीण क्षेत्रों से ही आता है। यद्यपि बढ़ते हुए शहरीकरण के कारण कुल जनसंख्या, कार्यशील जनसंख्या एवं देश की जीडीपी में ग्रामीण क्षेत्र की भागीदारी वर्ष-दर-वर्ष कम हुई है (सारणी-1) किन्तु फिर भी समग्र रूप से ग्रामीण क्षेत्र का योगदान भारत को आज भी ग्राम प्रधान देश बनाता है।

सारणी-1 ग्रामीण भारत का शुद्ध घरेलू उत्पाद (NDP) एवं कार्यशील जनसंख्या में योगदान

वर्ष

आय में हिस्सा

कार्यशील जनसंख्या (प्रतिशत में)

1970-71

62.4%

84.1%

1980-81

58.9%

80.8%

1993-94

54.3%

77.8%

1999-2000

48.1%

76.1%

2004-2005

48.1%

74.6%

2011-2012

46.9%

70.9%

स्रोतःभारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था का बदलता ढाँचा, रोजगार और वृद्धि पर प्रभाव पर परिचर्चा-पत्र, पेज-3, 2017 रमेशचन्द्र,नीति आयोग


जनसंख्या के अनुमान यह बताते हैं कि वर्ष 2050 तक भारत अधिकाधिक रूप से ग्रामीण देश की श्रेणी में ही चलता रहेगा क्योंकि वर्ष 2050 के बाद शहरी जनसंख्या ग्रामीण से ज्यादा हो जाएगी (यूनाइटेड नेशन्स, 2012)

भारतीय अर्थव्यवस्था में ग्रामीण क्षेत्र के योगदान के आंकड़े इस बात को सिद्ध करते हैं कि ग्रामीण भारत का विकास एवं अभिवृद्धि देश के समग्र एवं समावेशी विकास के लिये अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।

शहरी इण्डिया बनाम ग्रामीण भारतःगौरवशाली सफलता के बीच अभाव एवं निराशा
जनवरी 2018 के अन्तरराष्ट्रीय मुद्राकोष के विकास दर अनुमानों के अनुसार भारत अगले दो वर्षों तक विश्व की सबसे तेज विकास दर वाली अर्थव्यवस्था के रूप में उभरकर सामने आया है। आईएमएफ की रिपोर्ट के मुताबिक भारत की विकास दर वर्ष 2018 में 7.4 प्रतिशत तथा 2019 में 7.8 प्रतिशत रहने की सम्भावना है, जोकि वैश्विक विकास दर 3.9 प्रतिशत से लगभग दोगुनी है।

प्रतिभा प्रतिस्पर्धात्मकता के वैश्विक इंडेक्स 2018 में भारत ने इस वर्ष सुधार के साथ विश्व में 81वाँ स्थान हासिल किया है जोकि वर्ष 2017 में 92वें स्थान पर था। यद्यपि इस अनुसूची में इस वर्ष भी उच्च आय वाले देशों का दबदबा बरकरार रखते हुये स्विट्जरलैंड प्रथम स्थान पर रहा, किन्तु भारत की यह 11 अंकों की छलांग सम्पूर्ण भारत वर्ष के लिये गौरव का विषय है।

सरकारी कामकाज में यदि विश्वास की बात की जाए तो भारत की गणना विश्व के शीर्ष तीन देशों में की जाने लगी है (ग्लोबल ट्रस्ट इंडेक्स 2018), और चीन तथा इंडोनेशिया के बाद 68 अंकों के साथ भारत ने स्वयं को वैश्विक-स्तर पर सम्मानजनक रूप में स्थापित किया है। यह रैकिंग इस बात को सिद्ध करती है कि वर्तमान सरकार के डीमोनेटाइजेशन और जीएसटी जैसे कड़े सुधारात्मक उपायों को वैश्विक-स्तर पर कुछेक अवरोधों के साथ समर्थन भी प्राप्त हुआ है।

इन सभी सकारात्मक संकेतों से मध्य भारत तो आगे बढ़ रहा है और बढ़ता रहा है लेकिन यहाँ यह जानना अत्यावश्यक है कि देश का वह हिस्सा जिसे हम वास्तविक भारत (ग्रामीण) कहते हैं, उसकी प्रगति किस स्तर तक पहुँची है।

क्रेडिट सुईस ग्लोबल वेल्थ डाटा 2017 के अनुसार भारत के अत्यधिक धनी एक प्रतिशत लोग यहाँ की कुल सृजित सम्पदा के 73 प्रतिशत भाग पर कब्जा बनाए हुए हैं, जोकि इस बात को प्रमाणित करता है कि हमारा विकास समावेशी नहीं है। यह स्थिति और चिन्ताजनक इसलिये हो जाती है क्योंकि गत वर्ष के सर्वेक्षण में सिर्फ एक प्रतिशत लोगों के पास 58 प्रतिशत सम्पदा थी। यानी गरीब और अत्यधिक धनी के बीच की खाई और बढ़ी है।

अॉक्सफेम इण्डिया के सर्वेक्षण 2017 के अनुसार भारत की 67 करोड़ जनता जो कुल जनसंख्या के 50 प्रतिशत अति-निर्धन वर्ग का प्रतिनिधित्व करती है, उनकी कुल सम्पत्ति में एक वर्ष में सिर्फ एक प्रतिशत की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई। यदि ग्रामीण मजदूर की न्यूनतम मजदूरी की तुलना भारत के किसी शीर्षस्थ गारमेंट फर्म के उच्चस्थ एग्जीक्यूटिव की वार्षिक आय से की जाए तो यह पता चलता है कि ग्रामीण मजदूर को उस आय तक पहुँचने में 941 वर्ष लगेंगे। इस समस्या का सिर्फ एक ही समाधान है और वह है समावेशी विकास की नीति अर्थात निम्न आय वर्ग के लोगों के आय को बढ़ाने हेतु प्रयास किया जाना चाहिए। अब वो चाहे श्रम-साधन उद्योगों को बढावा देकर किया जाए ताकि रोजगार का सृजन हो सके या फिर कृषि में सरकारी निवेश के साथ सामाजिक सुरक्षा योजनाओं को प्रभावशाली ढंग से लागू करके।

चुनौतियों के मध्य समावेशी विकास के अवसर

इन चुनौतियों का अर्थ कदापि यह नहीं है कि ग्रामीण भारत कभी शहरी भारत की तरह नहीं बन पाएगा। यदि आवश्यकता है तो वह समस्याओं की पहचान करने और उनके समुचित समाधान हेतु कदम उठाने की।

यदि हम स्वतंत्रता प्राप्ति के वर्ष से देखें तो ग्रामीण भारत का समुचित विकास न हो पाने के पीछे एक जो मुख्य कारण सामने आता है, वह ग्रामीण परिवेश में आधारभूत संरचना का अभाव रहा है। वर्तमान सरकार के ग्रामीण विकास हेतु किये गए प्रयासों, योजनाओं एवं उनके परिणामों की तरफ देखें तो एक उत्साहवर्धक चित्र सामने आता है जो इस बात को सिद्ध करता है कि यदि संकल्प है तो सिद्धि अवश्य मिलेगी। योजनाएँ तो पहले भी बहुत बनायी गई किन्तु उनके प्रभावी क्रियान्वयन हेतु सूचना प्रौद्योगिकी एवं अंतरिक्ष विज्ञान का प्रयोग शायद पहली बार किया गया है और उसके परिणाम भी सकारात्मक आ रहे हैं।

‘गाँव बढ़ेगा, देश बढ़ेगा’ जैसे नारे के साथ सुखी एवं समृद्ध गाँव को राष्ट्र के विकास के एक घटक के रूप में माना जाना एक स्वप्न ही था जिसे वर्तमान सरकार विभिन्न पुरानी योजनाओं के परिमार्जन एवं नवीन योजनाओं को आरम्भ करके सिद्ध करने का प्रयास कर रही है। ये योजनाएँ या तो समयबद्ध तरीके से ग्रामीण आधारभूत संरचना में बदलाव लाने पर केन्द्रित हैं या फिर सभी को आवास प्रदान करने, देश के समस्त गाँवों को सम्पर्क मार्ग से जोड़ने तथा ग्रामीण जनता की आय को वर्ष 2022 तक दोगुना करने जैसे महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य को पूरा करने हेतु संकल्पित हैं।

यदि हम ग्रामीण भारत की आधारभूत संरचना में आए बदलावों की समीक्षा करें, तो आधिकारिक रूप से वर्ष 2014-2017 के जो आंकड़े उपलब्ध हैं उनसे ग्रामीण अधःसंरचना के विभिन्न आयामों से सम्बन्धित जो तथ्य सामने आए हैं उन्हें सारणी-2 में दर्शाया गया है। विश्लेषण हेतु कुछ योजनाएँ चुनी गई हैं।

सारणी-2 ग्रामीण आधारभूत संरचना के विकास पर केन्द्रित योजनाएँ एवं उनकी उपलब्धियाँः एक दृष्टि में

ग्रामीण आधारभूत संरचना के आयाम

योजना का नाम

उपलब्धि

सड़क

प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना

वर्ष 2011-14 के सड़क निर्माण के 730 किलोमीटर प्रतिदिन की गति की तुलना में वर्ष 2016-17 में 130 किलोमीटर प्रतिदिन की गति से सड़क निर्माण। इस योजना के अंतर्गत वर्ष 2014-18 मध्य 1,69,408 किलोमीटर सड़क का निर्माण कार्य सम्पन्न।

आवास

प्रधानमंत्री आवास योजना

वर्ष 2019 तक 1 करोड़ आवास निर्मित करने का लक्ष्य।

रोजगार

महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गांरटी अधिनियम

वर्ष 2016-17 में 57512 करोड़ का खर्च जोकि इस योजना के आरम्भ से लेकर अब तक की सर्वाधिक रकम है। लगभग 68 प्रतिशत राशि कृषि एवं सहायक क्रियाओं हेतु खर्च की गई है। वर्ष 2015-17 में लगभग 90लाख हेक्टेयर सिंचाई क्षमता का सृजन। वर्ष 2016-17 में योजना के अन्तर्गत सृजित 1.23 करोड़ सम्पत्तियों की जियो टैगिंग करके योजना की और पारदर्शितापूर्ण बनाया गया है।

कौशल विकास

दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना

वर्ष 2016-17 में 162586 प्रशिक्षुओं को प्रशिक्षण 654 प्रशिक्षण केन्द्र जो 329 प्रकार के जॉब हेतु प्रशिक्षित कर रहे हैं।

आदर्श गाँव की कल्पना को मूर्त रूप

सांसद आदर्श ग्राम योजना

23 मई तक प्रथम एवं द्वितीय चरण में सांसदों द्वारा क्रमशः 703 एवं 314 ग्राम पंचायतों को अपनाया गया। अपने आप में वर्ष 2014 में आरम्भ यह एक अनोखी योजना है जो सांसदों को ग्रामीण विकासोन्मुख बनाती है।

ग्रामीण क्लस्टर का निर्माण

श्यामा प्रसाद मुखर्जी रुर्बन मिशन (2016)

लक्ष्य 300 रुर्बन क्लस्टर्स का सृजन करना है ताकि इनमें आधारभूत , आर्थिक, सामाजिक एवं डिजिटल अंतरालों को समाप्त किया जा सके।

 

28 राज्यों द्वारा इस योजना को लागू कर लिया गया है और प्रथम चरण में 98 क्लस्टर्स हेतु कोष निर्गत किये जा चुके हैं।

 

इस योजना हेतु आवंटित 300 करोड़ राज्यों को निर्गत किये जा चुके हैं और इसमें 100 प्रतिशत की वृद्धि करके इसे 600 करोड़ रुपए कर दिया गया है।

स्रोतः ये आंकड़े ग्रामीण विकास मंत्रालय के ग्रामीण विकास विभाग द्वारा संकलित और प्रकाशितसतत ग्रामीण विकासःतीन वर्ष में की गई पहल और उपलब्धियाँ रिपोर्टमें से लिये गए हैं। इसका वेब पता है-http%//rural-nic-in/sites/default/files/English>>20 Book>>203>>20year>>20Achivement>>20opt.pdf


डिजिटल इण्डिया से डिजिटल भारत तक

भारत को डिजिटल रूप से सशक्त समाज और ज्ञान-केन्द्रित अर्थव्यवस्था के रूप में स्थापित करने के उद्देश्य से वर्तमान सरकार ने ‘डिजिटल इण्डिया’ जैसी महत्त्वाकांक्षी योजना को वर्ष 2015 में लागू किया।

यदि हम ई-गवर्नेंस प्रयासों की समीक्षा करें तो पता चलता है कि मध्य 90 के दशक में नागरिक सेवाओं को इसके दायरे में लाकर इसे और प्रभावी बनाने का प्रयास आरम्भ हुआ। तदंतर बहुत से राज्यों एवं केन्द्रशासित प्रदेशों ने भी अनेकानेक ई-गवर्नेंस योजनाएँ शुरू की और राष्ट्रीय-स्तर पर वर्ष 2006 में नेशनल ई-गवर्नेंस प्लान की घोषणा की गई। बावजूद इसके कि ये सब योजनाएँ नागरिक-अभिमुखी थी, फिर भी इनके वांछित प्रभाव नहीं मिल सके।

कालान्तर में ऐसा महसूस किया गया कि देश में समावेशी विकास को प्रोत्साहित करने हेतु ई-गवर्नेंस की प्रभावशाली उपस्थिति न सिर्फ आवश्यक अपितु अपरिहार्य है। सार्वजनिक सेवाओं की सम्पूर्ण संरचना को सूचना प्रौद्योगिकी के प्रयोग द्वारा परिमार्जित, संशोधित एवं नागरिक-अभिमुखी बनाने हेतु वर्तमान सरकार ने डिजिटल इण्डिया कार्यक्रम की शुरुआत वर्ष 2015 में की ताकि भारत को डिजिटल रूप से सशक्त समाज के रूप में स्थापित किया जा सके।

डिजिटल इण्डिया कार्यक्रम जोकि नौ महत्त्वपूर्ण स्तम्भों पर आधारित होकर कार्यशील है, उसकी सफलता के आंकड़े प्रति पल इस कार्यक्रम के मुख्य उद्देश्य को मूर्त रूप प्रदान कर रहे हैं। यदि हम 2015 से आरम्भ करें तो जिन प्रमुख दृष्टिमान लक्ष्यों के साथ इसे शुरू किया गया था, उसे सारणी-3 से समझा जा सकता है।

सारणी-3 डिजिटल इण्डिया कार्यक्रमः वर्ष 2015 में आम नागरिक की दृष्टि में

कुल निवेश का आकारः 4.5 लाख करोड़ (भारतीय कम्पनियों द्वारा) - वर्ष 2015 1,00,000 करोड़ रुपए की कार्यशील योजनाएँ 13,000 करोड़ रुपए की नवीन योजनाएँ एवं कार्य

1.

2.5 लाख गाँवों में ब्रॉडबैंड सुविधा

2.

4,00,000 सार्वजनिक इंटरनेट सुविधा पॉइंट

3.

सार्वभौमिक फोन कनेक्टिविटी

4.

2.5 लाख स्कूलों एं समस्त विश्वविद्यालयों में वाई-फाई की सुविधा

5.

नागरिकों के लिये सार्वजनिक हॉट-स्पॉट्स

6.

 वर्ष 2020 तक नेट जीरो आयात

7.

रोजगार सृजनःप्रत्यक्षः1.7 करोड़ अप्रत्यक्षः 8.5 करोड़

8.

 डिजिटल समावेश (इन्क्लूजन) 1.7 करोड़ लोगों को सूचना प्रौद्योगिकी, टेलिकॉम एवं इलेक्ट्रॉनिक नौकरियों हेतु प्रशिक्षित करना।

9.

डिजिटली सशक्त नागरिक

10.

-गवर्नमेंट एवं -सेवाएँ

## उपरोक्त आँकड़े वर्ष 2015 में डिजिटल इण्डिया कार्यक्रम की शुरुआत के समय विभिन्न समाचार-पत्रों एवं सोशल मीडिया में प्रकाशित विज्ञापनों से संकलित किये गए हैं और आम जनमानस को इससे होने वाले लाभों की व्याख्या करते हैं।


समावेशी विकास एवं डिजिटल इण्डिया
भारत का समावेशी विकास तभी हो सकेगा। जब समस्त सुविधाएँ सीमांत व्यक्ति/ नागरिक तक पहुँचेंगी और इन्हें पहुँचाने के लिये न सिर्फ सरकारी तंत्र एवं व्यवस्था में बदलाव की आवश्यकता है अपितु नागरिकों को इसकी सूचना और इन सुविधाओं तक पहुँचने हेतु आवश्यक कौशल प्रदान करने की भी आवश्यकता है। डिजिटल इण्डिया निश्चित रूप से सरकारी सुविधाओं/सेवाओं को उसके असली हकदार तक पहुँचाने के एकमात्र माध्यम के रूप में सामने आया है। ऐसे में इस कार्यक्रम को भारत के गाँवों तक पहुँचाना न सिर्फ आवश्यक बल्कि अपरिहार्य है। यद्यपि डिजिटल इण्डिया के तीनों ही आधारभूत स्तम्भों को प्रभावी रूप से ग्रामीण भारत में लागू करने की जरूरत है किन्तु मोबाइल और बिजली की सुविधा यदि भारत के हर गाँव तक पहुँचा दी जाए तो शायद समस्या का समाधान काफी हद तक हो जाएगा। डिजिटल इण्डिया को डिजिटल भारत तक पहुँचाना क्यों आवश्यक है, इसके लिये निम्न तथ्य विचारणीय हैं।

यदि हम इंटरनेट पेनेट्रेशन की बात करें तो आंकड़े बताते हैं कि दिसम्बर 2017 में शहरी भारत में इंटरनेट पेनेट्रेशन 59 प्रतिशत रहा है और ग्रामीण भारत में यह प्रतिशत मात्र 18 प्रतिशत है।

आइएएमएआई की भारत में इंटरनेट 2017 की रिपोर्ट के मुताबिक ग्रामीण एवं शहरी भारत में इंटरनेट यूजेज में काफी बड़ा अन्तराल पाया गया है जोकि ग्रामीण भारत के तकनीकी पिछड़ेपन का प्रमाण है। रिपोर्ट इस बात का भी सुझाव देती है कि भविष्य में जो भी नीतियाँ बनाई जाएँ उनमें इस डिजिटल अन्तराल को दूर करने हेतु समुचित प्रयास किये जाने चाहिए।

2011 की जनगणना के अनुसार ग्रामीण भारत जिसकी जनसंख्या 91.8 करोड़ अनुमानित की गई थी, इसमें से सिर्फ 18.6 करोड़ लोग ही इंटरनेट का प्रयोग करते हैं अर्थात 73.2 करोड़ ग्रामीण लोग आज भी इंटरनेट सेवा से दूर हैं जोकि चिन्ता का विषय है।

दिसम्बर 2017 में भारत में कुल इंटरनेट प्रयोग करने वालों की संख्या 48.1 करोड़ अनुमानित थी जोकि 2016 की संख्या से 11.34 प्रतिशत ज्यादा है, और ऐसा अनुमानित है कि जून 2018 तक यह संख्या 50 करोड़ हो जाएगी। यदि सम्पूर्ण भारत की बात करें तो कुल जनसंख्या के 35 प्रतिशत लोग ही इंटरनेट का प्रयोग करते हैं और इनमें भी कुल संख्या का 60 प्रतिशत भाग युवा वर्ग के हिस्से में है। यहाँ प्रयास यह होना चाहिए कि प्रत्येक आयु वर्ग तक डिजिटल सुविधाओं की पहुँच हो।

दूसरी प्रमुख समस्या ग्रामीण विद्युतीकरण की रही है, जिस पर वर्तमान सरकार ने काफी हद तक सफलता प्राप्त कर ली है। यदि आँकड़ों की बात करें तो अन्तरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के अनुसार भारत ने वर्ष 2000 से विद्युतीकरण में काफी प्रगति की है और वर्ष 2016 में कुल जनसंख्या के 82 प्रतिशत लोगों तक बिजली पहुँचा दी गई है। हमारा व्यक्तिगत विचार यह है कि आँकड़ों पर संदेह करने और विद्युतीकरण की परिभाषा पर प्रश्न उठाने की बजाय हमें इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि सरकार लगातार इस दिशा में प्रयासरत रहे और यदि प्रयास है तो सफलता अवश्य मिलेगी।

डिजिटल इंडियाडिजिटल इंडिया चुनौतीयाँ एवं सुझाव

डिजिटल इण्डिया से डिजिटल गाँव तक की यात्रा में कुछ महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ हैं जिनकी चर्चा यहाँ की गई है ताकि उन चुनौतियों पर विजय प्राप्त करके इस महत्त्वाकांक्षी योजना को मूर्त रुप दिया जा सके।

सरकारी ‘प्रस्ताव हेतु अनुरोध’ में निजी क्षेत्र की रूचि न होना

डिजिटल इण्डिया कार्यक्रम की धीमी रफ्तार का एक प्रमुख कारण अधःसंरचना का विलम्बित विकास है। निजी क्षेत्र अपनी रुचि इसलिए नहीं दिखा रहे क्योंकि ये प्रस्ताव वाणिज्यिक प्रतिफल प्रदान करने में समर्थ नहीं हैं। इसके लिये यह आवश्यक है कि विकास के पीपीपी मॉडल को बढ़ावा दिया जाए और स्टार्टअप को ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल इण्डिया के अन्तर्गत डिजिटल साक्षरता और आधार संरचना हेतु विशेष प्रोत्साहन दिया जाए। यदि निजी क्षेत्र भी अपनी भागीदारी दे, न्यूनतम समय में इस कार्यक्रम के वंचित परिणाम प्राप्त हो सकते हैं। निजी क्षेत्र की भागीदारी को हाल ही में आईसीआईसीआई बैंक की टीम द्वारा नवम्बर 2016 में लिये गए एक संकल्प के अन्तर्गत 100 दिनों में देश के 17 राज्यों के 100 गाँवों को पूर्णतः डिजिटल बनाया गया।

दूसरा प्रमुख अवरोध मेट्रो शहरों, महानगरों, नगरों एवं ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल अन्तराल का है। आज भी भारत में लगभग 55,000 ऐसे गाँव हैं जहाँ मोबाइल की सुविधा उपलब्ध नहीं है (ऐसोचैम डेलोयटे रिपोर्ट, जनवरी 2017) और इसका एकमात्र कारण यह है कि मोबाइल सेवा प्रदाता को इन क्षेत्रों में सेवा देने की लागत उसकी आय से काफी ज्यादा होगी।

इस रिपोर्ट की मानें तो अन्तरराष्ट्रीय मानक जो यह कहता है कि प्रति 150 लोगों पर एक वाई-फाई हॉटस्पॉट होना चाहिए और तदनुरूप भारत में 80 लाख वाई-फाई हॉटस्पॉट की आवश्यकता है जबकि अभी हमारे पास सिर्फ 31,000 हॉटस्पॉट उपलब्ध हैं। ये आंकड़े यह बताते हैं कि आधारभूत संरचना को और मजबूत किया जाना चाहिए।

निष्कर्ष रूप में हम यह कह सकते हैं कि डिजिटल इण्डिया वास्तव में समय की माँग थी जिसको सरकार ने समझा और इसे मूर्त रूप देने के लिये एक संगठित प्रयास किया ताकि भारत को एक ज्ञान अभिमुखी अर्थव्यवस्था जो डिजिटल रूप से भी सशक्त हो, के रूप में स्थापित किया जा सके। इस योजना से जन सेवाओं में एक दृष्टिगत क्रान्ति आई है और वैश्विक-स्तर पर सरकारी काम-काज में लोगों के विश्वास मे आशातीत वृद्धि हुई है। आवश्यकता इस बात की है कि इस क्रान्ति को भारत के दूरदराज के गाँवों तक शीघ्रता से पहुँचाया जाए जिससे समग्र एवं समावेशी विकास के उद्देश्य को पूरा किया जा सके। ग्रामीण विद्युतीकरण में सरकार की सफलता इस बात को सिद्ध करती है कि यदि संकल्प दृढ़ हो तो सिद्धि अवश्य मिलेगी।

सन्दर्भ

1. एडेलमैन ट्रस्ट बेरोमीटर ग्लोबल रिपोर्ट 2018, एडेलमैन द्वारा प्रकाशित http://cms.edelman.com/sites/default/files/201802/2018-Edelman-Trust-Barometer-Global-Report-FEB.pdf
2.अॉक्सफैम इण्डिया सर्वे 2017 के अंश, इण्डियन एक्सप्रेस, 23 जनवरी, 2018 नई दिल्ली संस्करण, पेज नं. 19 पर प्रकाशित 3.ग्लोबल वेल्थ रिपोर्ट 2017 (आठवाँ संस्करण) (क्रेडिट सयूजे) अॉनलाइन 20 अप्रैल, 2018 को इस वेब पते पर http://publications.credit-suisse.com/index.cfm/publikationen-shop/research-institute-global-wealth-report-2017-en/access किया।
4. इंटरनेट इन इण्डिया 2017 रिपोर्ट; इंटरनेट और मोबाइल एसोसिएशन अॉफ इण्डिया (IAMAI) और KANTAR-IMRB. 5.समावेशी ग्रामीण विकास (3 वर्षों की पहल और उपलब्धियों) पर भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रायल के ग्रामीण विकास विभाग द्वारा प्रकाशित 10 जून, 2018 को वेब पते http://rural.nic.in/sites/default/files/English%20Book%203%20year%20Achivment%20opt-pdf पर access किया।
6. द ग्लोबल टेलेंट कंपीटिटिवनैस इंडेवस, INSEAD(2018),द्वारा 2018 में प्रकाशित, द एडेको ग्रुप एवं टाटा कम्युनिकेशन, फॉनटेनब्लू, फ्रांस। वेब पता http://gtcistudy.com/wp-content/uploads/2018/GTCI-2018-web.r1-1.pdf 7. यूनाइटेड नेशंस (2012) ‘वर्ल्ड अर्बनाइजेशन प्रोसपेक्ट्स, द 2011 रिवीजन’ST/ESA/SER.A/322, आर्थिक और सामाजिक मामलों का विभाग, पोपुलेशन डिवीजन, न्यूयॉर्क।

ई-मेलः roliraghuvanshi@gmail.com, lkaditya1982@gmail.com

(लेखक द्वय दिल्ली विश्वविद्यालय के श्यामलाल कॉलेज (साध्य), के वाणिज्य विभाग में सहायक प्रोफेसर हैं।)

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