ग्रामीण बुनियादी ढाँचे का विकास

सेनिटेशन
सेनिटेशन

बुनियादी ढाँचे के विकास से आवास, सम्पर्क, विद्युतीकरण के साथ-साथ सड़क, संचार और बैंकिंग जैसी आर्थिक अवसंरचना की आधुनिक सुविधाएँ भी मिल रही हैं जिनसे देश आज अभिजात्य और विकसित राष्ट्र बनने की दहलीज पर खड़ा है। कृषि के लिये सिंचाई के बुनियादी ढाँचे का विकास को प्राथमिकता देना, न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा और फसल बीमा की सुविधा और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थानों की स्थापना के साथ ही स्वास्थ्य बीमा, स्टैंडअप और स्टार्टअप जैसी पहल, नकदी रहित लेन-देन, प्रत्यक्ष लाभ अंतरण, ई-गवर्नेस तथा इसी तरह की तमाम पहल, सामाजिक-आर्थिक विकास की दिशा में केन्द्र सरकार के सुसंगत, दूरदर्शितापूर्ण, प्रगतिशील और भविष्य को ध्यान में रखकर उठाए गए चिरस्थायी कदम हैं।

बुनियादी ढाँचा किसी देश की प्रगति और आर्थिक प्रगति के लिये अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है और किसी राष्ट्र की प्रगति की परख उसके बुनियादी ढाँचे की गुणवत्ता से होती है। बुनियादी ढाँचा निजी और सार्वजनिक, भौतिक और सेवाओं सम्बन्धी और सामाजिक व आर्थिक किसी भी तरह का हो सकता है।

आर्थिक बुनियादी ढाँचे के अन्तर्गत परिवहन, संचार, बिजली सिंचाई और इसी तरह की सुविधाएँ शामिल हैं जबकि सामाजिक अवसंरचना के अन्तर्गत शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल, स्वच्छता, आवास आदि आते हैं। इन क्षेत्रों के विकास के साथ-साथ बुनियादी ढाँचे के विकास से निवेश दक्षता में वृद्धि होती है, विनिर्माण में प्रतिस्पर्धात्मकता आती है और निर्यात, रोजगार, शहरी व ग्रामीण विकास को बढ़ावा मिलता है तथा ग्रामीण विकास व जीवन की गुणवत्ता में सुधार के साथ-साथ देश को अनेक फायदे मिलते हैं।

रंगराजन आयोग (2001) ने बुनियादी ढाँचे की परिभाषा किसी स्थान विशेष में स्थापित एक ऐसी व्यवस्था के रूप में की है जो स्वाभाविक एकाधिकार वाली, उच्च निवेश से निर्मित, बेची न जाने योग्य, प्रतिद्वन्द्विता से मुक्त और मूल्य विशिष्टता वाली हो। राकेश मोहन कमेटी रिपोर्ट (1996) और केन्द्रीय सांख्यिकीय संगठन (सीएसओ) ने बुनियादी ढाँचे के अन्तर्गत बिजली, गैस, जल-आपूर्ति, दूरसंचार, सड़क, औद्योगिक पार्क, रेलवे, बन्दरगाह, हवाई अड्डे, शहरी अवसंरचना तथा कोल्ड स्टोरेज के ढाँचे को शामिल किया है।

भारतीय रिजर्व बैंक (2007) बुनियादी ढाँचे के तहत बिजली, दूरसंचार, रेलवे, सड़क और पुलों, बन्दरगाहों व हवाई अड्डों औद्योगिक पार्कों तथा शहरी अवसंरचना (जल आपूर्ति स्वच्छता और जल-मल प्रणाली) को शामिल मानता है। बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (आईआरडीए) (2008) ने बुनियादी ढाँचे में सड़कों (जिनमें टोल वाली सड़कें भी शामिल हैं), पुलों, रेलवे प्रणाली, बन्दरगाहों, अन्तर्देशीय जलमार्गों व अन्तर्देशीय बन्दरगाहों, जलापूर्ति परियोजनाओं, सिंचाई परियोजनाओं, पानी साफ करने की प्रणालियों, स्वच्छता और जल-मल निस्तारण प्रणाली या ठोस अपशिष्ट प्रबन्धन प्रणाली, दूरसंचार सेवाओं (जिसमें मूल दूरसंचार सेवाएँ और सेल्यूलर फोन सेवा शामिल हैं), घरेलू उपग्रह सेवाओं, ट्रैकिंग नेटवर्क, ब्रॉडबैंड नेटवर्क तथा इंटरनेट सेवाओं, औद्योगिक पार्क या विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र, विद्युत ट्रांसमिशन और वितरण, संरक्षण की दृष्टि से निर्माण, प्रसंस्कृत कृषि उत्पादों, फल-सब्जी और फूलों जैसे जल्द खराब होने वाली चीजों के भण्डारण, गुणवत्ता परीक्षण सुविधाओं, शिक्षा संस्थाओं, अस्पतालों तथा प्राधिकरण द्वारा सरकारी गजट में अधिसूचित इसी तरह की कोई अन्य सार्वजनिक सुविधा को शामिल किया है।

आयकर विभाग बिजली, जलापूर्ति, जल-मल निस्तारण, दूरसंचार, सड़क और पुलों, बन्दरगाहों, हवाई-अड्डों, रेलवे, सिंचाई, बन्दरगाहों में कोल्ड स्टोरेज सुविधा और औद्योगिक पार्कों/विशेष आर्थिक क्षेत्र को बुनियादी ढाँचा मानता है जबकि विश्व बैंक के अनुसार बिजली, जलापूर्ति, जल-मल निस्तारण, संचार, सड़क और पुल, बन्दरगाह, हवाई अड्डे, रेलवे, आवास शहरी सेवाएँ, तेल/गैस उत्पादन और खनन क्षेत्र बुनियादी ढाँचे के अन्तर्गत आते हैं।

भारत सरकार ने बुनियादी ढाँचा क्षेत्र यानी राजमार्गों, नवीकरणीय ऊर्जा, आवास, डिजिटल अवसंरचना और शहरी परिवहन को प्राथमिकता क्षेत्र करार दिया है जिसके लिये 2018-19 के केन्द्रीय बजट में 5.97 लाख करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है।

सड़कों का बुनियादी ढाँचा

सड़क प्रणाली देश की अर्थव्यवस्था की धुरी है और विकास के केन्द्र के रूप में कार्य करती है। इसके जरिए माल और कृषि पदार्थों का ढुलान, पर्यटन और सम्पर्क जैसे कई महत्त्वपूर्ण कार्य सम्पन्न होते हैं।

देश में सभी मौसमों में चालू रहने वाली बेहतरीन किस्म के मजबूत सड़क नेटवर्क को बढ़ावा देने से तीव्र सामाजिक-आर्थिक विकास के साथ-साथ, व्यापार के सुचारू रूप से संचालन तथा देश भर के बाजारों के समन्वयन में मदद मिलती है।

प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना) का मूल उद्देश्य देश के ऐसे गाँवों को सड़क सम्पर्क से जोड़ना है जो अब तक अलग-थलग पड़े हुए थे। दिसम्बर 2017 तक ऐसे करीब 82 प्रतिशत गाँवों को सड़क सम्पर्क से जोड़ा जा चुका था। बाकी 47 हजार गाँवों को मार्च 2019 तक जोड़ने का लक्ष्य रखा गया है।

सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय का 2017-18 का कुल खर्च करीब 64,900 करोड़ रुपए था जोकि 2016-17 के संशोधित अनुमान से 24 प्रतिशत ज्यादा है। वर्ष 2017-18 में कुल खर्च में से सबसे अधिक आवंटन सड़कों और पुलों के निर्माण के लिये रखा गया, इसके बाद भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के लिये 37 प्रतिशत का आवंटन किया गया जिसमें राजस्व खर्च 10,723 करोड़ रुपए और पूँजी खर्च 54,177 करोड़ रुपए है।

भारत दुनिया के सबसे विस्तृत सड़क नेटवर्क वाले देशोें में से एक है। यहाँ कुल 47 लाख किलोमीटर लम्बी सड़कें हैं जिनमें नेशनल हाइवे यानी राष्ट्रीय राजमार्ग, एक्सप्रेस हाइवे, प्रान्तीय राजमार्ग, जिला सड़कें, लोक निर्माण विभाग की सड़कें, ग्रामीण सड़कें आदि शामिल हैं। सड़कों का बुनियादी ढाँचा देश में कुल सामान के 60 प्रतिशत की ढुलाई और कुल यात्री यातायात के 85 प्रतिशत की आवश्यकताओं की पूर्ति करता है।

भारतमाला परियोजना के अन्तर्गत सड़कों और राजमार्गों के विकास की एक महत्त्वाकांक्षी योजना बनाई गई है जिसका उद्देश्य कई अन्य कार्यक्रमों, योजनाओं और परियोजनाओं को समन्वित करना है। इसके तहत कुल 25,000 किलोमीटर लम्बी सड़कों और पुलों के निर्माण का लक्ष्य रखा गया है जिनमें से 7,000 किलोमीटर सड़कें समुद्र तटवर्ती इलाकों और सीमावर्ती क्षेत्र में हैं।

संचार अवसंरचना

ई-गवर्नेस, बैंकों, वित्तीय सेवाओं, व्यापार, शिक्षा स्वास्थ्य, कृषि, पर्यटन, लॉजिस्टिक्स, परिवहन और नागरिक सेवाओं के क्षेत्र में नकदी विहीन लेन-देन में विकास से दूरसंचार क्षेत्र में जबरदस्त तेजी आई है। दूरसंचार क्षेत्र में प्रगति से स्टार्टअप इण्डिया, स्टैण्डअप इण्डिया जैसी पहल के जरिए नवसृजन और उद्यमिता को बढ़ावा मिला है।

आज देश के 80 करोड़ से अधिक लोगों के बीच मोबाइल फोन के जरिए सम्पर्क सम्भव है। दूरसंचार क्षेत्र आज देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में महत्त्वपूर्ण योगदान कर रहा है। ब्रॉडबैंड फोरम अॉफ इण्डिया (बीआईएफ) के अनुसार 2015 में भारत के जीडीपी में इस क्षेत्र का योगदान 1.75 प्रतिशत के स्तर पर पहुँच गया था।

आज करीब 1.5 लाख ग्राम पंचायतें इंटरनेट और वाई-फाई हॉटस्पॉट तथा कम लागत पर डिजिटल सेवाओं तक पहुँच बनाने के लिये डिजिटल इण्डिया और भारत नेट परियोजनाओं के तहत अॉप्टिकल फाइबर से जोड़ी जा रही हैं। इसके अलावा वित्तीय सेवाओं, टेली-मेडिसिन, शिक्षा, ई-गवर्नेंस, ई-मार्केटिंग और कौशल विकास को मंच प्रदान करने के लिये डिजी-गाँव की योजना बनाई गई है।

भारत सरकार ने डिजिटल इण्डिया कार्यक्रम की शुरुआत जुलाई 2015 में 1,13,000 करोड़ रुपए की लागत से की थी। इसमें भारत को डिजिटल तरीके से सशक्त समाज और ज्ञान पर आधारित अर्थव्यवस्था बनाने की परिकल्पना की गई थी। इसके तीन प्रमुख क्षेत्र हैं जिनमें डिजिटल अवसंरचना का निर्माण, सेवाओं को इलेक्ट्रॉनिक तरीके से प्रदान करने की व्यवस्था, डिजिटल साक्षरता और शासन में जनता को ई-भागीदारी के जरिए सहभागी बनाकर नागरिकों का सशक्तीकरण करने की परिकल्पना की गई है।

नवीकरणीय ऊर्जा अवसंरचना

भारत नवीकरणीय स्रोतों से ऊर्जा उत्पन्न करने वाले प्रमुख देशों में से एक के रूप में उभरकर सामने आ रहा है। 31 मार्च, 2018 तक देश की कुल संस्थापित क्षमता का 20 प्रतिशत (69.2 गीगावॉट) इस तरह के स्रोतों से प्राप्त हो रहा था जिसमें 33 प्रतिशत योगदान जलविद्युत का था।

देश की पवन ऊर्जा क्षमता 31 मार्च 2018 को 34,046 मेगावाट थी और वह पवन ऊर्जा से बिजली पैदा करने वाला दुनिया का चौथा प्रमुख देश बन चुका था। इसी तरह 2022 तक भारत ने 100 गीगावाट सौर ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य रखा है।

बायोमास को जलाकर बिजली उत्पन्न करने बायोमास से गैस उत्पन्न कर बिजली बनाने और गन्ने की खोई से बिजली उत्पादन 31 मार्च, 2018 को 8.3 गीगावाट पहुँच चुका था। जबकि घरेलू बायोगैस संयंत्रों सेे 39.8 लाख यूनिट बिजली उत्पन्न करने की संस्थापित क्षमता प्राप्त की जा चुकी थी। अन्तरराष्ट्रीय सौर अलायंस परियोजना से दुनिया भर में 120 देशों में सौर ऊर्जा के उत्पादन में बढ़ोत्तरी हो रही है और भारत ने 2030 तक अपने कुल विद्युत उत्पादन का 40 प्रतिशत गैर-जीवाश्म ईंधन वाले स्रोतों से प्राप्त करने का लक्ष्य रखा है।

आवास अवसंरचना

ग्रामीण और शहरी दोनों तरह के इलाकों में बुनियादी आवश्यकता और अधिकार के रूप में आवास की परिकल्पना प्रधानमंत्री आवास योजना- सबके लिये आवास कार्यक्रम में स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होती है। प्रधानमंत्री आवास योजना ग्रामीण में मार्च 2019 तक करीब एक करोड़ मकान बनाने का लक्ष्य रखा गया है। इनकी प्रति यूनिट लागत 1.5 लाख रुपए से 1.6 लाख रुपए के बीच होगी और इसमें 70,000 रुपए बैंक ऋण के रूप में देने का प्रावधान किया गया है।

इस योजना के तहत 2019 तक 5 लाख ग्रामीणों को राजमिस्री का प्रशिक्षण देने का भी लक्ष्य रखा गया है। इसी सिलसिले में देश के विभिन्न इलाकों की स्थानीय स्थितियों के अनुसार मकानों के अलग-अलग तरह के 200 डिजाइन भी स्वीकृत किये गए हैं। ग्रामीण आवास का खर्च 819.7 अरब रुपए आँका गया है और इसके तहत पहाड़ी इलाकों और वामपंथी अतिवाद से ग्रस्त क्षेत्रों में मकान बनाने पर विशेष जोर दिया जा रहा है। पहले चरण में 16.5 लाख मकान बनाए जा चुके थे और 34.6 लाख अन्य मकानों के निर्माण का काम चल रहा है।

राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम

राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम के अन्तर्गत ग्रामीण भारत में प्रत्येक व्यक्ति की पर्याप्त स्वच्छ पेयजल और भोजन सम्बन्धी अन्य आवश्यक बुनियादी जरूरतों को पूरा करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। ये सभी चीजें चिरस्थायी आधार पर मिलती रहें, इसके लिये भी बुनियादी ढाँचे और क्षमता का सृजन करने और ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल आपूर्ति प्रणाली के कुशलतापूर्वक संचालन की क्षमता सृजित करने का भी लक्ष्य रखा गया है।

राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम के तहत 15 मार्च, 2017 तक 13 लाख (77 प्रतिशत) बसावटों को इस कार्यक्रम के दिशा-निर्देशों के तहत प्रति व्यक्ति रोजाना 40 लीटर पानी उपलब्ध कराया जाने लगा था जबकि 33,086 परिवार आंशिक रूप से स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने के कार्यक्रम के दायरे में लाये गए थे और इनमें स्वच्छ पेयजल की उपलब्धता 40 लीटर से कम थी। इसके अलावा 64,094 (3.73 प्रतिशत) गाँव ऐसे थे जिनमें पानी की गुणवत्ता सम्बन्धी समस्या का समाधान होना बाकी था।

स्वच्छ भारत अभियान

ईज्जत घरईज्जत घर (फोटो साभार - डाउन टू अर्थ)2014 में प्रारम्भ किया गया स्वच्छ भारत अभियान लोगों में स्वच्छता, आरोग्य और स्वास्थ्य के बारे में जागरुकता पैदा करने के लिये एक क्रान्तिकारी पहल है। इसमें शानदार प्रगति हुई है। वर्ष 2018-19 तक देश भर के 85 प्रतिशत इलाके को इसके दायरे में लिया जा चुका था और 391 जिलों के 3.8 लाख गाँवों को खुले में शौच की बुराई से छुटकारा दिलाया जा चुका था।

स्वच्छ भारत ग्रामीण अभियान के तहत मई 2018 तक 7.4 करोड़ अधिक निजी घरेलू शौचालय बनाए जा चुके थे। इसके अन्तर्गत दिसम्बर 2018 तक शौचालयों के निर्माण का शत-प्रतिशत लक्ष्य हासिल करने का लक्ष्य रखा गया है। लोग इस कार्यक्रम में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं और अपने घर में निजी शौचालयों का निर्माण कर रहे हैं। लोगों को मानसिकता में बदलाव आने और शौचालयों की सामाजिक स्वीकार्यता बढ़ने से लोग कूड़े-कचरे के निपटान के कार्यक्रमों में भी हिस्सा लेने लगे हैं।

प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (पीएमकेेएसवाई)

प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना उत्पादन की दृष्टि से लाभप्रद खेती को बढ़ावा देने के लिये भारत सरकार की बेहद अभिनव योजना है। इसके अन्तर्गत खेती का रकबा बढ़ाने के लिये निवेशों को समेकित किया गया है और पानी के उपयोग में दक्षता लाने के प्रयास किये गए हैं। जलाशयों को फिर से लबालब करने, गन्दे पानी को साफ कर सिंचाई में उपयोग में लाने की भी व्यवस्था की गई है। इसके अन्तर्गत जल संरक्षण, खेती के लिये सिंचाई तालाबों के निर्माण, वर्षाजल संचय ढाँचों के निर्माण, छोटे चेकडैमों और कंटूर बाँधों के निर्माण, डाइवर्जन चैनलों और खेतों में छोटी नहरें बनाने, पानी के डाइवर्जन और लिफ्ट सिंचाई के साथ-साथ जल वितरण प्रणालियों के विकास, ड्रिप सिंचाई, स्प्रिंकलर्स से सिंचाई, पिवोट और रेनगन से सिंचाई के लिये ढाँचों के निर्माण के जरिए किसानों को डायवर्जन सिंचाई पक्का साधन मुहैया कराने का प्रयास किया गया है। इसके लिये 2015-16 के बजट में 5,300 करोड़ रुपए का बजट खर्च रखा गया था।

महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा)

महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के अन्तर्गत किये गए कार्य बुनियादी तौर पर ग्रामीण बुनियादी ढाँचे के विकास के कार्य हैं। इनमें कंटूर खाइयाँ और कंटूर बाँधोें के निर्माण, खेतों के मेड़ लगाने, गैबिन स्ट्रक्चर, मिट्टी के बाँधों, खोदकर बनाए गए खेती के तालाबों, खाद और कम्पोस्ट अवसंरचना जैसे कृषि विकास कार्यों, मुर्गीपालन और बकरी पालन जैसे पशुधन विकास कार्यक्रमों, मत्स्य पालन योजनाओं, बरसाती पानी की निकासी के लिये नालों के निर्माण, पेयजल और स्वच्छता कार्यक्रमों जैसे सोखता गड्ढा, रिचार्ज पिट, व्यक्तिगत शौचालयों के निर्माण, स्कूलों व आँगनवाड़ियों में शौचालयों के इन्तजाम, बाढ़ के पानी की निकासी के लिये नहरों की मरम्मत और उन्हें करने और लघु, अति लघु तथा खेतों की नहरों के विकास जैसे सिंचाई ढाँचे के विकास की व्यवस्था की गई है।

महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के अन्तर्गत 2017-18 में 48,000 करोड़ रुपए का बजट आवंटन किया गया और वित्त वर्ष 2018-19 में 55,000 करोड़ रुपए आवंटित किये गए हैं। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर पैदा हुए हैं और गाँवों के लोगों को आजीविका में मदद मिली है।

निष्कर्ष

बुनियादी ढाँचे को प्राथमिकता देना एक प्रगतिशील कदम है, जिसे ऐसी सामाजिक सम्पत्ति के निर्माण की गतिविधि माना जा सकता है और इसके माध्यम से उत्पादक गतिविधियों, आजीविका और जीवन गुणवत्ता के स्तर में सुधार के प्रयासों को तेज किया जा सकता है। आवास, सम्पर्क, विद्युतीकरण के साथ-साथ बैंकिंग, संचार, सड़क और आवास जैसी आर्थिक अवसंरचना से जुड़ी मूलभूत बुनियादी सेवाओं के उपलब्ध हो जाने से आज देश सम्भ्रांत और विकसित राष्ट्र बनने की दहलीज पर खड़ा है।

सरकार सिंचाई के बुनियादी ढाँचे के विकास को प्राथमिकता दे रही है। फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाने और फसल बीमा जैसे कार्यक्रमों की व्यवस्था की गई है, अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान और स्वास्थ्य बीमा के जरिए स्वास्थ्य के बुनियादी ढाँचे को सुदृढ़ किया गया है।

स्टैंडअप और स्टार्टअप, नकदी रहित लेनदेन, प्रत्यक्ष लाभ अन्तरण, ई-गवर्नेंस तथा एम-गवर्नेंस जैसी कई योजनाएँ प्रारम्भ हो गई हैं। ये सब प्रयास राष्ट्र को चिरस्थायी सामाजिक-आर्थिक विकास के मार्ग पर अग्रसर करने की दिशा में आगे ले जाने के लिये प्रगतिशील और सुसंगत कोशिश हैं। इनसे देश के ग्रामीण इलाकों में सामाजिक और आर्थिक अवसंरचना का टिकाऊ तरीके से विकास होगा जिससे ग्रामीण लोगों की आजीविका में बढ़ोत्तरी होगी, उन्हें स्वास्थ्य व शिक्षा की बेहतर सुविधाएँ मिलेंगी और चिरस्थायी आजीविका प्रदान करने वाली प्रणाली कायम होने से जीवन की गुणवत्ता में भी सुधार आने की सम्भावना है।

सन्दर्भ

1. बाहरवीं पंचवर्षीय योजना, नीति आयोग, भारत सरकार।

2. ग्रामीण विकास मंत्रालय की वेबसाइट।

3. केन्द्रीय बजट 2018।

4. डेवेलपमेंट अॉफ इंफ्रास्ट्रक्चर इन इण्डिया-द व्हीकल फॉर डेवेलपिंग इण्डियन इकोनॉमी, विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन, नई दिल्ली।

5. https://data.gov.inवेबसाइट

(डॉ. पी. केसव राव राष्ट्रीय ग्रामीण विकास और पंचायती राज संस्थान, राजेन्द्र नगर, हैदराबाद के सेंटर फार जियो इंफॉर्मेटिक्स एप्लिकेशन इन रूरल डेवलपमेंट के प्रमुख हैं। डॉ. वी. माधव राव इसी संगठन के सेवानिवृत्त प्रोफेसर और प्रमुख हैं।)

ई-मेल-kesava.nird@gov.in


TAGS

basic infrastructure development, roads, telecommunication, road transport, electrification, minimum support price, crop insurance, health insurance, all india institute of medical sciences, education, drinking water facilities, employment, establishment of cold storage, rural infrastructure development in india pdf, types of rural infrastructure, role of infrastructure in rural development pdf, rural infrastructure wikipedia, what is rural infrastructure, importance of infrastructure in rural development, rural infrastructure ppt, what is rural infrastructure pdf, what is infrastructure development, types of infrastructure, importance of infrastructure development, infrastructure construction, types of infrastructure projects, social infrastructure, infrastructure development in india, business infrastructure, crop insurance karnataka, karnataka crop insurance status, crop insurance online, ap crop insurance status, crop insurance app, crop insurance maharashtra, crop insurance benefits, crop insurance portal, all india institute of medical sciences, new delhi new delhi, delhi, aiims delhi recruitment, aiims delhi appointment number, aiims hospital delhi, aiims hospital in india, aiims delhi address, aiims admit card, aiims application form 2018, drinking water facilities in schools, discuss the old and new drinking water facilities in the school, safe drinking water in schools, importance of drinking water in schools, arrangement of safe drinking water and sanitation in the institution, importance of water in school, water supply in schools, water facilities definition, cold storage project report 2017, cold storage project report pdf, cold storage project report for 500 mt, cold storage profit margin, cost of 100 mt cold storage, minimum area required for cold storage, cold storage business plan pdf, potato cold storage project cost.


Path Alias

/articles/garaamaina-baunaiyaadai-dhaancae-kaa-vaikaasa

Post By: editorial
×