गोमती की जुबानी...

मै कक्षप वाहिनी हूं। अतः कक्षप गति से अपने उद्गम स्थल गोमत ताल से पावन गंगा मिलन तक 960 कि.मी. की यात्रा में 22735 वर्ग कि.मी. जलग्रहण क्षेत्र का वर्षा जल संजोकर, भूगर्भ जल के साथ वाराणसी-गाजीपुर के मध्य मार्कण्डेश्वर महादेव के पास कैथी घाट पर गंगा मैया की गोद में समा जाती हूं। मेरा प्रवाह जिन बारह जिलों में है, उनके नाम तथा उनमें मेरे तट पर स्थित प्रमुख घाट, तीर्थ एवं मेलों की जानकारी देना भी आवश्यक है, क्योंकि उन सभी स्थानों पर अमावस्या, पूर्णिमा व विशेष पर्वों पर मेरे हजारों मेरे पुत्र कुछ कामना लेकर अब भी मुझमें स्नान करने आते हैं। मैं हिमालय या पर्वत श्रृंखलाओं से नहीं निकली हूं, मेरा जन्म पृथ्वी से हुआ है और नाम ‘गोमती’ है, जिसे तुलसीदास जी ने रामचरित मानस में ‘धेनुमती’ भी कहा है। धेनु का अर्थ गाय है और पृथ्वी भी। क्योंकि पृथ्वी जब पाप के बोझ से थक गई तो उसने पाप से मुक्ति हेतु गाय का ही रूप धारण (गो तनु धारी’) कर भगवान विष्णु से प्रार्थना की थी। मेरा जन्म नागाधिराज हिमालय की तलहटी में पीलीभीत से 30 कि.मी. पूर्व तथा पूरनपुर (पुराणपुर) से 12 कि.मी. उत्तर माधौटांडा के निकट फुलहर झील (गोमत ताल) में ‘पृथ्वी रूपी’ गाय से हुआ है, इसलिए मेरा जीवन सदैव भूगर्भ जल-स्रोतों पर ही निर्भर रहता है। मेरा उद्गम स्थल, जिसका वर्तमान स्वरूप नीचे दिए गए इस चित्र से आप समझ सकते हैं।

उदगम स्थल, गोमत ताल


मै कक्षप वाहिनी हूं। अतः कक्षप गति से अपने उद्गम स्थल गोमत ताल से पावन गंगा मिलन तक 960 कि.मी. की यात्रा में 22735 वर्ग कि.मी. जलग्रहण क्षेत्र का वर्षा जल संजोकर, भूगर्भ जल के साथ वाराणसी-गाजीपुर के मध्य मार्कण्डेश्वर महादेव के पास कैथी घाट पर गंगा मैया की गोद में समा जाती हूं। मेरा प्रवाह जिन बारह जिलों में है, उनके नाम तथा उनमें मेरे तट पर स्थित प्रमुख घाट, तीर्थ एवं मेलों की जानकारी देना भी आवश्यक है, क्योंकि उन सभी स्थानों पर अमावस्या, पूर्णिमा व विशेष पर्वों पर मेरे हजारों मेरे पुत्र कुछ कामना लेकर अब भी मुझमें स्नान करने आते हैं।

वे जिले व स्थान इस प्रकार हैं-


1. पीलीभीत - अपने उद्गम स्थल के विषय में मैंने पहले ही बताया है कि, जहाँ पर माधौटाण्डा में मेरे ‘गोमतताल’ पर अनेक परिवार अपने बच्चों के मुंडन आदि संस्कार कराने आते हैं तथा विभिन्न पर्वों पर मेला लगता है। परन्तु यहां से आगे धरती के ऊपर बहने के लिए वर्षा काल के बाद अब मुझ में ताकत कम ही बची है, क्योंकि यहाँ अब धान व गन्ने की अधिक पानी वाली विधि से खेती होने से भूगर्भ जल स्तर इतना कम हो गया है कि, अब हमारे इस जिले के प्रवाह क्षेत्र में जीवनदायी भूगर्भ जल-स्रोतों का बहना बंद हो गया है। अतः वर्षा काल के बाद मुझमें पानी न होने पर स्थानीय किसान अधिकाधिक उपज के लालच में हमारे प्रवाह क्षेत्र में भी खेती प्रारम्भ कर देते हैं।

परन्तु, इसके बाद भी मैं जमीन के नीचे धीरे-धीरे बहती हुई आगे बढ़ती हूँ। कुछ दूर चलने पर मुझ में कुछ ताकत आती है और मैं धान व गन्ने के खेतों में से अपने लिए उस दलदली भूमि में पतली धारा के रूप में मार्ग बनाती हुई आगे बढ़ती हूँ तो त्रिवेणी बाबा आश्रम के पास मुझमें दो अन्य छोटी जल धाराएं मिलकर त्रिवेणी बनाती हैं। इसके बाद मैं इस 47 कि.मी. दुर्गम क्षेत्र को पार कर थोड़े जल के साथ मैदानी क्षेत्र से आगे जंगल में प्रवेश कर ‘‘एकोत्तर नाथ आश्रम’’ पहुँचती हूँ जहाँ पर मेरा रूप अविरल प्रवाहमान एक झील में बदल जाता है। यहीं पर मेरे तट पर इन्द्र ने अहिल्या के श्राप से मुक्ति हेतु 11000 हजार शिवलिंगों का निर्माण कराया था और फिर हमारे तट पर जगह-जगह उन्हें स्थापित किया था, जिसके कारण इस स्थान का नाम ‘एकोत्तर नाथ’ प्रचलित हुआ।

2. शाहजहाँपुर- एकोत्तर नाथ से आगे बढ़ने पर फिर खेतों से होती हुई शाहजहाँपुर जिले में बंडा के निकट इन्द्र द्वारा स्थापित सुनासीरनाथ घाट पहुँचती हूँ, जहाँ पर मेरे जल कुण्ड के जल में सुनासीरनाथ शिव जी का पुरातन व ऐतिहासिक शिवलिंग स्थापित है, जिसके क्षेत्र में अत्यधिक लोक मान्यता है। इस जिले के 16 कि.मी. प्रवाह में झुकना, भैंसी और तरेउना नदियाँ आकर मेरे जल में वृद्धि करती हैं। इसी क्षेत्र में मेरे तटों पर सामाजिक समरसता का प्रतीक मन्दिर-मस्जिद-गुरूद्वारा घाट भी है।

3. लखीमपुर- शाहजहाँपुर जिले के पुवायां तहसील से आगे बढ़ने पर लखीमपुर जिले की मोहम्मदी तहसील में मेरे तट पर बंगाली कालोनी के निकट विवेकानन्द घाट के बाद सिरसाघाट, टेड़ेनाथ घाट तथा मैगलगंज के निकट मढ़िया नाथ घाट पड़ते हैं, जहाँ कार्तिक पूर्णिमा व विभिन्न पर्वों पर बड़े-बड़े मेले लगते हैं। इस जिले में दो छोटी नदियां छोहा व अंधरा छोहा जो पहले पूरे वर्ष जल युक्त रहती थीं, मुझमें आकर मिलती हैं।

4. हरदोई- लखीमपुर जिले के बाद मेरे दक्षिण हरदोई और उत्तर की ओर सीतापुर जिला है। यहाँ पर हरदोई जिले में निरंतर बहने वाला प्राकृतिक जलस्रोत जहाँ पर मुझ में मिलता है वह स्थल धोबिया घाट के नाम से प्रसिद्ध है। इसके बाद हरदोई जिले में ही मेरे किनारे विष्णुवर्त नामक जलस्रोत सहित कई अन्य अविरल जल स्रोत मिल कर मेरे जल प्रवाह को बढ़ते हैं। यही पर हत्याहरण व नल-दमयन्ती स्थल हैं।

5. सीतापुर- इस जिले में ही सनातन तीर्थ नैमिषारण्य है, जहाँ पर मनु-सत्रूपा नें मेरे तट तपस्या तथा अट्ठासी हजार ऋषियों ने साधना की थी। यहीं मेरे तट पर स्वामी नारदानन्द जी का आश्रम, रूद्रावर्त, चक्रतीर्थ, ललितादेवी मन्दिर व महाभारत की रचना स्थली व्यास पीठ है। यहीं मेरे तट पर महर्षि दधीचि ने देवताओं की रक्षा व असुरों के संहार हेतु अस्थिदान किया था, जिसके कारण संपूर्ण भारत के तीर्थ यहाँ पर आए थे जो चौरासी कोसी परिक्रमा पथ पर अभी भी स्थापित हैं। उसकी स्मृति में परिक्रमा पथ होली के अवसर पर 15 दिन की परिक्रमा में आज भी देश भर के साधु-संत व लाखों लोग आते हैं। इस क्षेत्र की विशेषता है कि मेरे तट के निकट सबसे अधिक अविरल प्रवाहमान भूगर्भ-जल स्रोत हैं, जो आज भी मुझ में निरंतर शीतल व शुद्ध जल प्रवाहित करते रहते हैं तथा कठिना, सरायन व गोन नदियां मिलकर मुझे गति प्रदान करती है।

6. लखनऊ - सीतापुर जिले से आगे बढ़ते ही उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ जिले में मेरे तट पर लक्ष्मण जी के बेटे चन्द्रदेव की आराध्य चन्द्रिका देवी का प्रसिद्ध मन्दिर, कौडिन्य ऋषि के नाम से कुड़िया घाट, शिव आराधना स्थल मनकामेश्वर नाथ, सिद्ध संत ‘‘नीम करोरी बाबा’’ के आराध्य स्थली संकटमोचन मन्दिर तथा स्वतंत्रता संग्राम की याद कराती रेजीडेन्सी, शहीद स्मारक व कवि निराला स्थल है। इस जिले में मात्र एक अखण्डी नदी मुझ में अपने बचेखुचे रूप के साथ मिलती है, जबकि कभी कुकरैल नाम से विदित नदी अब केवल कुकरैल नाला मात्र बन कर रह गई है।

7. बाराबंकी- लखनऊ से आगे बाराबंकी जिले में मेरे तट पर हैदरगढ़ क्षेत्र में महादेवा घाट, टीकाराम बाबा घाट हैं। इस जिले में रेठ, कल्याणी, गण्डक, अकरद्दी, झिलंगी, लूनी आदि आधा दर्जन नदियां आकर मेरे जल प्रवाह को और बढ़ा देती हैं।

8. सुल्तानपुर- बाराबंकी से आगे बढ़ने पर मेरे दाहिनी ओर नव निर्मित अमेठी जिला तथा बाईं ओर थोड़ी दूरी तक फैजाबाद जिले को स्पर्श कर सुल्तानपुर में सीताकुण्ड घाट पर नगरवासियों से मिलती हुई मैं धोपाप घाट पहुँचती हूँ जहाँ भगवान राम ने लंका विजय के पश्चात् मेरे जल में स्नान कर ब्रह्म हत्या (रावण वध) का प्रायश्चित किया था। यहाँ पर अभी भी पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित केन्द्र है।

9. प्रतापगढ़- सुल्तानपुर के बाद प्रतापगढ़ के उत्तरी-पूर्वी किनारे पर केवल एक ढ़कवा घाट है, जिसके बाद मैं जौनपुर जिले में प्रवेश करती हूँ।

10. जौनपुर- इस जिले में प्रवेश करते ही पीली नदी मेरी स्वागत करती है, उसके बाद मैं जौनपुर नगर में ‘शाहीपुल’ जिसे अकबर ने बनवाया था के नीचे से निकल कर जमदग्नि आश्रम पहुँचती हूँ, जहाँ पर भगवान परशुराम ने अपने पिता की आज्ञा पालन कर अपनी माता का वध और फिर पिता के अर्शीवाद से पुनः उन्हें जीवित कर मातृभक्ति का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया था। उसके आगे बढ़ते ही त्रिमुहिनी के पास हरदोई जिले से चलकर उन्नाव, रायबरेली, प्रतापगढ़ होती हुई सई नदी आकर मुझ में मिल जाती है।

11. वाराणसी - जौनपुर जिले की लंबी यात्रा के बाद वाराणसी जिले में प्रवेश करते समय गाजीपुर जिले की दक्षिणी सीमा बनाते हुए मैं महर्षि मार्कण्डेश्वर नाथ आश्रम के पास कैथी घाट पर गंगा मैया के मात्र दशमांस जल के साथ अपने आप को गंगा मैया में विसर्जित कर निश्चिंत हो जाती हूँ।

मेरे (गोमती) किनारे स्थित नगर व प्रमुख गाँव


(1) पीलीभीत-माधौटांडा, पूरनपुर, घुंघचियाई, गुलड़िया। (2) शाहजहाँपुर- देवकली, बंडा, खुटहर, जेवां, पुवायां। (3) लखीमपुर- मोहम्मदी, बरबर, पसगवां, मकसूदपुर, जहानीखेड़ा, मैगलगंज। (4) सीतापुर- कुतुबनगर, नैमिष, मिश्रिख, सिधौली, अटरिया। (5) हरदोई- अतरौली। (6) लखनऊ- बख्शी का तालाब, (7) लखनऊ नगर। (8) बाराबंकी- गंगागंज, हैदरगढ़। (9) फैजाबाद- सुवेहा, रीड़घाट। (10) सुल्तानपुर- सुल्तानपुर, धोपाप। (11) 10.प्रतापगढ़- ढ़कवा, सिंगरामऊ। (12) 11.जौनपुर- जौनपुर, बदलापुर, सिंगरामऊ। (13) गाजीपुर- ओड़िहार, पटनागांव।

उत्तर प्रदेश में अपने उद्गम स्थल पीलीभीत जिले से गंगा संगम, केथी घाट वाराणसी तक 900 कि.मी. मेरा यात्रा क्षेत्र इस प्रकार है -
मैने इस नौ सौ कि.मी. की यात्रा में अपनी पूर्ण वत्सलता के साथ पुत्रों की प्यास बुझाई, खेतों को पानी दिया, धरती को हरियाली दी तथा मानवता की फुलवारी को भरपूर सींचा। लेकिन मेरे पुत्रों ने मुझे क्या दिया? कहते हुए भी लाज आती है। फिर भी मैं उनसे कहती हूँ - ‘‘अपनी भावी पीढ़ी का विचार कर मुझे फिर से पावन सलिला का रूप देने के लिए कृतसंकल्पित हो जाओ, अभी समय है। कहीं देर न हो जाए, इसलिए अपनी करतूत सुनो और उनके निवारण हेतु आगे बढ़ो, यही समय की पुकार है।

मेरे सपूतों! सुनो -


1. तुमने सीतापुर, सुल्तानपुर, बाराबंकी जौनपुर व रायबरेली आदि नगरों एवं राजधानी लखनऊ महानगर के अपने मल-मूत्र को आधुनिक तकनीक का प्रयोग कर सीवर के माध्यम से मेरे पवित्र जल में डालकर अपनी परम्पराओं की अवमानना की है और मुझे प्रदूषित कर अपने पैरों पर ही कुल्हाड़ी मारने का कार्य किया है, जबकि तकनीक का उपयोग अपने हित में करना तुम्हें सीखना चाहिए?

2. तुमने गन्ने की फैक्ट्रियाँ लखीमपुर के गोला व अजबापुर, सीतापुर के हरगाँव व रामगढ़, हरदोई के बालामऊ में तथा कुछ अन्य औद्योगिक इकाइयां रायबरेली, अमेठी आदि स्थानों पर अपने विकास के लिए लगाईं, परन्तु कार्य विकास विरोधी किया; जिसके कारण भूगर्भ जल स्तर घटा ही नहीं तो 100 फिट गहराई तक भू-गर्भ जल पीने योग्य नहीं रहा। तुम्हारे आत्मघाती कदमों ने मेरे व मेरी सहायक नदियों का जल इतना विषैला व प्रदूषित कर दिया है, कि जलीय जैवविविधता खतरे में है और हमारे वाहन ‘कक्षप’ का जीवन संकट में पड़ गया है।

3. अस्पतालों का कार्य जीवन रक्षा का है, पर तुमने उसमें उसके हानिकार अपशिष्ट को भी निसंकोच मुझ में जाने दिया।

4. हमारे जल में प्लास्टिक, पाॅलीथीन डालकर तुमने जल को स्वच्छ रखने वाले मेरे वाहन ‘‘कछुओं’’ को मरने के लिए विवश कर दिया है।

5. पवित्र पूजन सामग्री व उसके अवशेष कभी मेरे तेज-प्रवाह में विसर्जित करने की परंपरा थी, परन्तु आज के घटते मेरे जल में डाल कर, जल प्रदूषण के साथ हमारे जलीय जीवों के लिए भी संकट पैदा कर दिया है, जो तुम्हारे ही पोषक हैं।

6. मुझ में जल की कमी व उसमें प्रदूषण की स्थिति पैदा करने के बाद भी तुम्हारा मन नहीं भरा, तो लखनऊ में प्रदूषण नियंत्रण की समुचित व्यवस्था किए बिना मेरे ऊपर बैराज बनाकर मेरी स्थिति तालाब जैसी कर डाली, जिसके कारण तुम्हारे द्वारा बनाए पक्के घाट भी आज सूने पड़े हैं।

7. आज की स्थिति में भी लखनऊ से पश्चिमी जिलों के सभी घाटों पर अमावस्या, पूर्णिमा व प्रमुख पर्वों पर हजारों महिला-पुरूष आकर मुझ में स्नान कर पुण्य लाभ लेते हैं, जबकि लखनऊ व उसके आगे मेरे घाटों पर कर्मकाण्ड के लिए भी लोग आने से कतराने लगे हैं, ऐसा क्यों?

8. अतः सोचो! मेरे जल को अमृत मानकर सभी आचमन व स्नान कर पुण्य लाभ लेते थे, लेकिन मेरे जल में प्रदूषण ऐसे ही बढ़ता रहा, तो कौन आचमन करेगा, स्नान करेगा और अपनी प्यास बुझा पाएगा?

9. मैं पहाड़ों से नहीं, गोमतताल से निकली हूँ और भूजल स्रोतों से जल लेती हुई आगे बढ़ती हूँ, जो अत्यधिक जल दोहन तथा पुनर्भूजलभरण (रीचार्जिंग) न होने के कारण सूखते जा रहे हैं। इससे क्या मेरा अस्तित्व बचेगा? मैं सूख जाऊँगी? मुझे अपनी नहीं, तुम्हारी चिंता है।

10. सोचो! मेरे बिना क्या तुम्हारा जीवन सुरक्षित है? मैं जन कल्याणी हूँ मुझे गंदगी ढोने वाला नाला न बनाओ, अपने तथा अपनी भावी पीढ़ी की सुरक्षा के लिए मेरा अस्तित्व बचाएं, यह आज की आवश्यकता है।

मेरी सहायक नदियां, उनके उद्गम व संगम स्थल इस प्रकार हैं, यहां भी जागरण करना होगा-

जिला

नदियां

उद्गम

संगम स्थल

पीलीभीत

दो बरसाती धाराएं

पूरनपुर क्षेत्र

घुंघचियाई, त्रिवेणी घाट

शाहजहांपुर

झुकना

बंडा के पास

खुटहर के निकट

 

भैंसी

बंडा के पास

जेवां, पुवायां के पास

 

तरेउना

बंडा के पास

बंडा के पास वाया भैंसी

लखीमपुर

छोहा

मोहम्दी क्षेत्र

वाया सुखेता बरबर क्षेत्र

 

अंधरा छोहा

मोहम्दी क्षेत्र

वाया सुखेता बरबर क्षेत्र

 

कठिना

मैलानी जंगल

लोहार खेड़ा, सीतापुर

 

पिरई

लखीमपुर

सरायन में मिलती है।

सीतापुर

सरायन

लखीमपुर

कमलापुर, सीतापुर

 

गोन

खीरी, लखीमपुर

अटरिया, सीतापुर

 

गंडक

महमूदाबाद

अटरिया, सीतापुर

लखनऊ

कुकरैल, बेहटा

लखनऊ

लखनऊ

 

अकरद्दी

मलिहाबाद

मलिहाबाद

 

अखंडी

लखनऊ

मझोवा गांव, लखनऊ

 

झिलंगी नदी

 

गोपरामऊ, लखनऊ

 

बेतवा

 

ककड़ाबाद, लखनऊ

 

लूनी

 

पारा, लखनऊ

 

रेठ नदी

नील गांव, सीतापुर

पारा, लखुनऊ

बाराबंकी

कल्याणी

महमूदाबाद, सीतापुर

द्वारकापुर, बाराबंकी

 

कादूनाला

लखनऊ

चांदपुर, सुल्तानपुर

जौनपुर

पीली

 

जौनपुर

हरदोई

सई

हरदोई

त्रिमुहिनी, जौनपुर

गाजीपुर

नन्द नदी

 

वाराणसी जिले में बाएं

 



ग्रन्थों में मेरे संदर्भ कहा है कि -


ततो गोमती प्राप्त नित्य सिद्ध निषेविताम्, राजसूयं प्राप्नोति वायुलोकं च गच्छति।

तुलसी दास जी ने रामचरित मानस के बालकाण्ड में मेरे तट पर स्थित नैमिषारण्य में मनु-सत्रूपा की तपस्या के समय आने पर मेरी निर्मलता और उसके कारण प्रसन्नतापूर्ण स्नान का वर्णन इस प्रकार किया है-
‘‘पहुँचे आइ धेनुमति तीरा, हरषि नहाने निरमल नीरा।’’

भरत जी जब राम से वन में मिलने गए थे उस समय मेरे तट पर रुके थे-
‘‘तमसा प्रथम दिवस करि वासू, दूसर गोमति तीर निवासू।’’

अयोध्या काण्ड में ही वन से अयोध्या लौटते समय भरत जी मेरे जल में स्नान करन के बाद ही अयोध्या लौटै थे -
‘‘सई उतरि गोमती नहाए, चौथे दिवस अवधपुर आए।’’

वाल्मीकि रामायण के 49वें सर्ग के 11 व 12वें श्लोक में मेरे संबंध में इस प्रकार कहा है-
‘‘गत्वा तु शुचिरं कालं ततः शीत वहां नदीम्। गोमतीं गोयुतानुपातीत् सारंगमाम्।।
गोमतीं चाप्यति क्रम्य राघवा शीघ्र गैर्हायैः। मयूर हंसामिरूतां ततार श्यंदिकां नदीम्।।’’


मुझ से उत्तर प्रदेश का प्रतीक चिन्ह


अवध के नवाब एक बार हमारे जल में नौका-विहार कर रहे थे, तभी दो मछलियाँ उछलकर नवाब की गोद में जा गिरीं। इसे शुभ शगुन मानकर नवाब ने अवध का प्रतीक चिन्ह उन्हीं मछलियों के आधार पर ‘‘दो मछलियां’’ बना दिया, जिसे बाद में उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य चिन्ह घोषित कर हमारी स्मृति को सम्मान दिया। इतना ही नहीं, तो उत्तर प्रदेश के गाँवों में पुराने सभी घरों के दरवाजों पर शुभंकर के रूप में यही ‘‘दो मछलियां’’ बनाई जाती थीं।

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