गोमती के पुनर्जन्म का अभिनव प्रयास

ज्यादातर विचारकों के मत नदियों के ‘रिवर फ्रंट डेवलपमेंट’ के खिलाफ ही है। हजारों-हजार करोड़ रुपए खर्च कर महानगरों में नदियों का फ्रंट बनाने की कोशिश हो रही है। गोमती के किनारे ‘गोमती रिवर फ्रंट’ में लगभग 3000 करोड़ रुपए खर्च होंगे। प्रस्तुत आलेख ;गोमती रिवर फ्रंट’ के समर्थन में है। तमाम असहमतियों के बावजूद यह लेख दिया जा रहा है ताकि इस मुद्दे पर स्वस्थ बहस हो सके।

.अपने उद्धार की राह देख रही गोमती नदी के दिन फिरने वाले हैं। प्रदूषण, जल स्तर की कमी सहित अनेक समस्याओं से जूझ रही इस नदी का अस्तित्व ही संकट में आ गया था, जिसे दूर करने के लिए लम्बे समय से अनेक संगठनों सहित पर्यावरण विज्ञानी लगातार मुहिम चला रहे थे। ऐसे में बीते मंगलवार को सूबे के मुखिया अखिलेश यादव द्वारा शिलान्यास किए गए गोमती रिवरफ्रँट डेवलपमेण्ट परियोजना की पहल गोमती के पुनर्जन्म के रूप में देखी जा सकती है। 665 करोड़ बजट वाली इस परियोजना के अन्तर्गत गोमती के दोनों तटों पर डायफ्रॉम वाल बनाकर सौन्दर्यीकरण सहित साइकिल-तांगा ट्रैक, वाटर स्पोर्ट्स और क्रीड़ास्थल के विकास की योजना प्रशंसनीय है।

इसके पूर्व फरवरी में यूपी सरकार ने इस दिशा में कार्य करना शुरू कर दिया था, जिसके अन्तर्गत गोमती नदी की सफाई के लिए लखनऊ में कुड़िया घाट पर 120 मीटर लम्बा और 22 मीटर चौड़ा अस्थायी बैराज बनाकर पानी रोका गया था। देश में ऐसा पहली बार हुआ, जब नदी की धारा को रोककर उसकी सफाई का काम किया गया। इससे गोमती की सफाई के साथ, उसमें पानी की कमी का भी संकट दूर हो जाने की सम्भावना है। इसके लिए गोमती से शारदा व घाघरा नदी को जोड़े जाने की योजना है, जिससे उसमें हर समय पर्याप्त पानी बना रहे। इस परियोजना के शुरू हो जाने से गोमती, घाघरा, शारदा एवं गंगा नदी को लिंक किया जाएगा, जिससे गोमती नदी में पर्याप्त जल स्तर बना रहे। इसके साथ ही पर्याप्त जल स्तर बनाए रखने के लिए शारदा नहर प्रणाली के दो स्केपों के माध्यम से भी पानी लाने का कार्य किया जाना है।

पीलीभीत के गोमद ताल (फुलहर झील) से निकलकर गाजीपुर के समीप कैथी में गंगा से मिलने तक गोमती करीब नौ सौ किलोमीटर का सफर तय करती है। यह अकेली ऐसी नदी है, जिसका उद्गम और संगम उत्तर प्रदेश में ही होता है। इस दौरान गोमती शाहजहाँपुर, लखीमपुर खीरी, सीतापुर, हरदोई, बाराबंकी, सुल्तानपुर, जौनपुर समेत एक दर्जन जिलों से होकर गुजरती है। बहुत कम लोगों को पता होगा कि उत्तर प्रदेश का राज्यचिह्न मछली इसी गोमती से निकले एक मछली के प्रकरण से जुड़ा है। इसके बाद भी इस नदी की खूब उपेक्षा हुई।

प्रदेश की सत्ताधारी समाजवादी पार्टी के आधार विचार पुरुष डॉ. लोहिया नदियों के संरक्षण के बड़े हिमायती थे। वह स्वयं गोमती नदी सहित अन्य नदियों की साफ-सफाई के लिए बेहद फिक्रमन्द रहे। लोहिया ने करीब 50 वर्ष पहले ही नदियों की सफाई की माँग रखी थी। उनका कथन था कि यदि मैं राजनीति न करता और स्कूल में अध्यापक होता तो नदियों के इतिहास को समझने का प्रयास करता। राम की अयोध्या सरयू के किनारे व कुरु, पांचाल, मौर्य और गुप्त गंगा के किनारे, मुगल व शौरसेनी नगर और राजधानियाँ यमुना के किनारे रही हैं। उन्होंने कहा था कि सभी सहायक नदियों को साफ करने के बाद ही गंगा की सफाई हो सकती है। तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू को सम्बोधित करते हुए उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार गोमती नदी की सफाई करा दे तो गंगा नदी भी साफ हो जाएगी।

विचार पुरुष डॉ. लोहिया नदियों के संरक्षण के बड़े हिमायती थे। वह स्वयं गोमती नदी सहित अन्य नदियों की साफ-सफाई के लिए बेहद फिक्रमन्द रहे। लोहिया ने करीब 50 वर्ष पहले ही नदियों की सफाई की माँग रखी थी। उनका कथन था कि यदि मैं राजनीति न करता और स्कूल में अध्यापक होता तो नदियों के इतिहास को समझने का प्रयास करता।नदियों से जुड़ी समस्या के निदान के लिए उन्होंने कहा था, क्या हिन्दुस्तान की नदियों को साफ रखने और करने का आन्दोलन उठाया जाए। अगर यह काम किया जाए तो दौलत के मामले में भी फायदा पहुँचाया जा सकता है। मैं चाहता हूँ कि इस काम में न केवल सोशलिस्ट पार्टी के, बल्कि और लोग भी आएँ, सभाएँ करें, जुलूस निकालें, सम्मेलन करें और सरकार से कहें कि नदियों के पानी को भ्रष्ट करना बन्द करो।

नदियाँ पुरातन काल से ही मानव जीवन के सभी पहलुओं के साथ गहरे तक अन्तर्सम्बन्धित हैं। तकनीकी विकास के पहले और बाद में भी विश्व के अधिकांश भागों में रहने वाले लोगों के जीवन में नदियों के महत्त्व को आसानी से समझा जा सकता है। हाल ही में गहराए कृषि संकट से निपटने में नदियों और उनसे जुड़ी सहायक नदियों का महत्त्व किसानों की दृष्टि से बेहद अहम् हो जाता है। राहत की बात है कि वर्तमान अखिलेश सरकार ने सिंचाई और जल संसाधनों का किसानों के लिए प्रयोग की दिशा में आसान राह बनाने में मदद की। सरयू नहर परियोजना का बेहतर विकास करके छह हजार हेक्टेयर सिंचन क्षमता में वृद्धि, बाण सागर परियोजना का सुधार कर पूर्व से पचास हजार हेक्टेयर सिंचन क्षमता वृद्धि, गण्डक नदी के इतिहास में पहली बार सम्पूर्ण नहर प्रणाली की सफाई कर चार हजार क्यूसेक अतिरिक्त पानी की व्यवस्था सहित आजमगढ़ में 961 कि.मी. लम्बाई की नहरों का पुनरूद्धार जैसी पहल गाँव-किसान से लेकर आमजन के जीवन को प्रभावित करने वाली है।

यूपी की राजधानी की बीस लाख आबादी अपने पेयजल के लिए गोमती के पानी पर ही निर्भर है। इसी वजह से गर्मियों में इसके जल स्तर में कमी से लखनऊ में पीने के पानी का संकट गहरा जाता है। इस गम्भीरता को दृष्टिगत रखते हुए युवा मुख्यमन्त्री द्वारा गोमती की समस्या को समग्रता में समझते हुए उसके निदान के लिए किया जाने वाला यह प्रयास गम्भीर और बेहद जरूरी भी है। साथ ही इसके माध्यम से राष्ट्रीय नदी गंगा को लेकर चल रहे सफाई अभियान को भी बड़ी मदद मिलने के रूप में देखा जा सकता है।

पानी के सर्वव्यापी संकट और उसके बाजारीकरण के दौर में जल के प्राकृतिक संसाधनों का समुचित देखभाल करना सरकारों का नैतिक कर्तव्य है। साथ ही अनुच्छेद-21 के तहत जीवन के अधिकार में स्वच्छ जल और नदी के महत्त्व को देखते हुए उच्च न्यायालय ने कई फैसलों में नदी विषयक समस्याओं के निदान में सरकारों को त्वरित और ठोस कार्य करने के लिए आदेशित-निर्देशित किया है। देश के नागरिकों को भी संविधान के भाग-4 में मूल कर्तव्य के अन्तर्गत नदी, झील सहित प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और संवर्धन की बात कही गई है। इसका पालन करने से ही जल संकट से जुड़े मसलों का समय रहते समाधान निकाला जा सकता है, जिसमें सरकारें सहयोगी भूमिका निभाते हुए नदियों को लेकर कारगर नीतियाँ बनाकर सकारात्मक असर पैदा कर सकती हैं।

ई-मेल : mishra.marinder@gmail.com

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