क्या गोमती का उद्गम गोमद ताल नहीं! वर्ष 1970 के सेटेलाइट चित्र से इस बात का पता चला है कि गोमती गोमद ताल से नहीं बल्कि 60 किलोमीटर ऊपर हिमालय की तलहटी से निकली है। गोमती हिमालय से निकली पेलियो चैनल (वह रास्ता जिससे होकर पानी नदी तक पहुंचता है) से रिचार्ज होती थी। हालांकि उपेक्षा के चलते यह चैनल बंद हो चुका है।
जरूरत है कि इस चैनल को पुनर्जीवित किया जाए, जिससे गोमती फिर लबालब हो सके। यह सच सामने आया है स्पेस एप्लीकेशन सेंटर व बाबा भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय के पर्यावरण विभाग के संयुक्त शोध के बाद। शोध से जुड़े डॉ. वेंकटेश दत्ता बताते हैं कि वर्ष 1970 की सेटेलाइट तस्वीर में इस पेलियो चैनल को साफ देखा जा सकता है। आज स्थिति यह है कि नदी का प्राकृतिक जल प्रवाह घटकर 35 फीसदी रह गया है।
उद्गम स्थल से ही 50 किलोमीटर तक नदी के निशान नहीं मिलते। वहीं दूसरी ओर गोमती फिर से लबालब हो सके और इस चैनल को पुनर्जीवित करने के लिए सिंचाई विभाग का एक्शन प्लान तैयार है। महज इंतजार इसे शासन को सौंपने और उसकी मंजूरी का है। लोक भारती संस्था की पहल पर समाज सेवियों, पर्यावरणविदों और वैज्ञानिकों ने गोमती यात्रा के जरिए खत्म होती नदी का सच सामने रखा तो सरकार को इसे बचाने की याद आई।
सिंचाई विभाग एक वृहद कार्ययोजना तैयार कर रहा है। कोशिश यह है कि मिट्टी से भर चुके इस पेलियो चैनल को साफ कर पुनर्जीवित किया जाए। प्रमुख अभियंता सिंचाई देवेंद्र मोहन बताते हैं कि गोमती का भूगर्भ जल से गहरा रिश्ता था। धीरे-धीरे यह रिश्ता खत्म हो गया। नतीजा यह कि 30 वर्षों में नदी जल में पांच गुना की कमी दर्ज की गई है। हालांकि वह आश्वस्त हैं कि गोमती फिर पानी से लबालब होगी। इसके लिए प्रथम चरण में गोमती को शारदा से पानी लेकर सराबोर करने की जुगत की जा रही है। इसके अलावा अतिक्रमण का शिकार गोमती नदी की जमीन को खाली करवा कर सिंचाई विभाग को दिए जाने का भी प्रस्ताव है।
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