गोकक कर्नाटक स्थिति बेलगांव से 70 किलोमीटर दूरी पर स्थित एक छोटा औद्योगिक नगर है, जहां के लोगों ने अपनी पानी की समस्या का खुद समाधान खोजा। फिर क्या था इस शहर में फिर से पानी आ गया और हरियाली भी लौट आई। पिछले एक दशक में 340 हेक्टेयर बंजर भूमि को वृक्षारोपण के दायरे में लाया गया, जिसमें 8.5 लाख पौधे उगे। इस काम में स्थानीय लोगों के लिए रोजगार उत्पन्न हुए। एपी गोयनका मेमोरियल एवार्ड ने सन् 1988 में पर्यावरण के लिए इन उपलब्धियों को मान्यता दी।
इस राज्य में गोकक विशाल झरने और सबसे बेहतरीन पेपर का उत्पादन करने के लिए विख्यात है। इस क्षेत्र में 50 सेंटीमीटर की वर्षा होती है और इसका पानी इस क्षेत्र से बाहर बह जाता था, जैसा कि यह पूरा क्षेत्र बंजर था। बैफ इंस्टीट्यूट फॉर रूरल डेवलपमेंट के अध्यक्ष एन जी हेगड़े ने बताया कि “सन् 1983 में जब हमने काम करना शुरू किया था, उस समय यह पूरा क्षेत्र बंजर था। ऐसी स्थिति में हमारी सबसे बड़ी चुनौती कंकड़ पत्थर को उपयोग में लाने की थी, जिससे यहां पेड़-पौधे उगाए जा सकें।
कंकड़ पत्थर के एकत्रण से काम की शुरुआत हुई, क्योंकि इससे पानी के रिसाव और घास के उगने में बाधा उत्पन्न हो रही थी। यहां बंजर जमीन के कुल स्थल थे, जहां प्राकृतिक रूप से वनस्पति का पुनर्जन होना संभव नहीं था, क्योंकि यहां नमी नहीं थी। फिर कंटूर बंध के निर्माण के लिए इन पत्थरों का उपयोग करने का निर्णय लिया गया। इस बंजर भूमि विकास के लिए अपनाई गई तकनीकी देशी और काफी सरल भी है। चारा ईंधन और लकड़ी की पर्याप्त उपलब्धता के लिए कंटूर बंध के किनारे-किनारे सुबाबूल पौधों का रोपण किया गया, जो कि सूखे में भी काफी तेजी से बड़े हो जाते हैं। बाद में बा¡स, नीम, शीशम और आंवला के वृक्षों का भी रोपण किया गया। इन प्रयासों से अनेक किस्मों की घास उग आईं और नीम जैसे पेड़ों के बेहतर ढंग से बढ़ने में मदद मिली। ये पेड़ काफी तेजी से बड़े हुए और चार साल के भीतर ही फल देने लगे। कुछेक स्थानों में, जहां की मिट्टी उपजाऊ थी, वहां आम, सेब, काजू, कटहल, इमली और इंडियन गोसबेरी के पेड़ों का भी पूरी सफलता से रोपण किया गया। कई लोगों ने अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए दुधारू पशु खरीदे। यह पेपर मिल लकड़ी की बिक्री से भी अपनी आमदनी बढ़ा रहा है।
लोगों को इससे शीतल वातावरण प्राप्त हुआ और आज वे बिना पेड़ को नुकसान पहुंचाए घास छीलने के फायदे जान गए हैं।
अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें :
बैफ इंस्टीट्यूट फॉर रूरल डेवलपमेंट तिप्तुर हसन रोड, शाराडंगारा- 572202
फोन : 08134- 51337, 50659
इस राज्य में गोकक विशाल झरने और सबसे बेहतरीन पेपर का उत्पादन करने के लिए विख्यात है। इस क्षेत्र में 50 सेंटीमीटर की वर्षा होती है और इसका पानी इस क्षेत्र से बाहर बह जाता था, जैसा कि यह पूरा क्षेत्र बंजर था। बैफ इंस्टीट्यूट फॉर रूरल डेवलपमेंट के अध्यक्ष एन जी हेगड़े ने बताया कि “सन् 1983 में जब हमने काम करना शुरू किया था, उस समय यह पूरा क्षेत्र बंजर था। ऐसी स्थिति में हमारी सबसे बड़ी चुनौती कंकड़ पत्थर को उपयोग में लाने की थी, जिससे यहां पेड़-पौधे उगाए जा सकें।
कंकड़ पत्थर के एकत्रण से काम की शुरुआत हुई, क्योंकि इससे पानी के रिसाव और घास के उगने में बाधा उत्पन्न हो रही थी। यहां बंजर जमीन के कुल स्थल थे, जहां प्राकृतिक रूप से वनस्पति का पुनर्जन होना संभव नहीं था, क्योंकि यहां नमी नहीं थी। फिर कंटूर बंध के निर्माण के लिए इन पत्थरों का उपयोग करने का निर्णय लिया गया। इस बंजर भूमि विकास के लिए अपनाई गई तकनीकी देशी और काफी सरल भी है। चारा ईंधन और लकड़ी की पर्याप्त उपलब्धता के लिए कंटूर बंध के किनारे-किनारे सुबाबूल पौधों का रोपण किया गया, जो कि सूखे में भी काफी तेजी से बड़े हो जाते हैं। बाद में बा¡स, नीम, शीशम और आंवला के वृक्षों का भी रोपण किया गया। इन प्रयासों से अनेक किस्मों की घास उग आईं और नीम जैसे पेड़ों के बेहतर ढंग से बढ़ने में मदद मिली। ये पेड़ काफी तेजी से बड़े हुए और चार साल के भीतर ही फल देने लगे। कुछेक स्थानों में, जहां की मिट्टी उपजाऊ थी, वहां आम, सेब, काजू, कटहल, इमली और इंडियन गोसबेरी के पेड़ों का भी पूरी सफलता से रोपण किया गया। कई लोगों ने अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए दुधारू पशु खरीदे। यह पेपर मिल लकड़ी की बिक्री से भी अपनी आमदनी बढ़ा रहा है।
लोगों को इससे शीतल वातावरण प्राप्त हुआ और आज वे बिना पेड़ को नुकसान पहुंचाए घास छीलने के फायदे जान गए हैं।
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