गंगनाणी कुण्ड और उसका धार्मिक महत्त्व

गंगनाणी कुण्ड
गंगनाणी कुण्ड


निश्चित रूप से पानी के बिना प्राणी का महत्त्व है ही नहीं। विज्ञान के तमाम आविष्कार भी शायद पानी का उत्पादन नहीं कर पाएँगे, जैसा की अब तक देखा जा रहा है। पानी से जुड़ी कहानियाँ बयाँ कर रही है कि जल संरक्षण की बात इन कहानियों में ही कहीं छुपी है। अब देखो कि उत्तराखण्ड में जब भी कहीं पानी से जुड़ी कहानी बनती है तो उसके इर्द-गिर्द ‘गंगा’ से जुड़ी चर्चा होनी लाजमी है। इसीलिये तो गंगनाणी कुण्ड का मौजूदा समय में बड़ा ही धार्मिक महत्त्व है। जबकि गंगनाणी कुण्ड यमुना के किनारे राजतर नामक स्थान के पास है। परन्तु इस कुण्ड के पानी के आचमन करने पहुँचते श्रद्धालु ‘गंगाजल’ के रूप में इसे पवित्र मानते हैं।

उत्तरकाशी जनपद के बड़कोट से मात्र सात किमी के फासले पर स्थित गंगनाणी कुण्ड से जुड़ी कहानी धार्मिक व आध्यात्म से लबरेज है। यहाँ लोग जब दर्शन करने आते हैं तो घर से ही नंगे पाँव इस कुण्ड तक पहुँचते हैं। जबकि स्थानीय लोग प्रत्येक संक्रान्ती में यहाँ अनिवार्य रूप से नहाने आते हैं और कुण्ड के पानी आचमन से ही लोग अपने को पुण्य मानते है। कुण्ड का सम्बन्ध गंगाजल से है।

बताया जाता है कि प्राचीन समय में परशुराम के पिता जमदग्नि ऋषि ने इस स्थान पर घोर तपस्या की थी। हालांकि वे गंगाजल लेने उत्तरकाशी ही जाते थे, अपितु शिव उनकी तपस्या से अभिभूत हुए और सपने में आकर कहा कि गंगा की एक धारा तपस्या स्थल पर आएगी, परन्तु जमदग्नि ऋषि ने जब कमण्डल गंगा की ओर डुबोया तो आकाशवाणी हुई और कहा कि तुम तुरन्त वापस जाओ। ऋषि वापस आकर अपने तपस्थली पर बैठ गए। प्रातः काल भयंकर गरजना हुई। आसमान पर कोहरा छाने लगा। कुछ क्षणों में जमदग्नि ऋषि की तपस्थली पर एक जलधारा फूट पड़ी।

इस धारा के आगे एक गोलनुमा पत्थर बहते हुए आया। जो आज भी गंगनाणी नामक स्थान पर विद्यमान है। तत्काल यहाँ पर एक कुण्ड की स्थापना हुई। यह कुण्ड पत्थरों पर नक्कासी करके बनवाया गया। जिसका अब पुरातात्विक महत्त्व है। वर्तमान में इस कुण्ड के बाहर स्थानीय विकासीय योजनाओं के मार्फत सीमेंट लगा दिया गया है। परन्तु कुण्ड केे भीतर की आकृति व बनावट पुरातात्विक है। यहाँ पर जमदग्नि ऋषि का भी मन्दिर है। लोग उक्त स्थान पर मन्नत पुरी करने आते हैं और अब यह स्थान एक तीर्थ के रूप में माना जाता है।

गंगनाणी में जमदग्नि ऋषि के मन्दिर में एक साध्वी के रूप में रह रही जो अपना नाम त्रिवेणी पुरी बताती हैं। वह कहती हैं कि गंगनाणी का महत्त्व यह भी है कि यहाँ पर तीन धाराएँ संगम बनाती हैं। कहती हैं कि इलाहाबाद में तो दो ही जिन्दा नदियाँ संगम बनाती हैं तीसरी नदी मृत अथवा अदृश्य है यद्यपि गंगनाणी में एक धारा जो जमदग्नि ऋषि की तपस्या से गंगा के रूप में प्रकट हुई। सामने वाली धारा को सरगाड़ अथवा सरस्वती कहती हैं तथा बगल में यमुना बहती है। इन तीनों का संगम गंगनाणी में ही होता है। वे बड़े विश्वास के साथ कहती हैं कि यही है असली त्रिवेणी। ज्ञात हो कि गंगनाणी कुण्ड के बारे में ‘केदारखण्ड’ में भी लिखित वर्णन मिलता है। उक्त स्थान में वसन्त के आगमन पर एक भव्य मेले का आयोजन होता है। लोग उक्त दिन भी कुण्ड के पानी को बर्तन में भरकर घरों को ले जाते हैं। यह पानी वर्ष भर लोगों के घरों में पूजा के काम आता है। बताया जाता है कि इस दिन ही गंगा की एक जलधारा जमदग्नि ऋषि की तपस्या से यहाँ प्रकट हुई थी।
 

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