गंगा-यमुना को इंसानी दर्जे का मामला पहुँचा सुप्रीम कोर्ट


एक तरफ तो मध्य प्रदेश की भाजपा शासित शिवराज सरकार नर्मदा नदी को जीवित व्यक्ति का दर्जा देने और नदी के कानूनी अधिकार के पक्ष में है तो दूसरी ओर उत्तराखंड की भाजपा सरकार गंगा-यमुना को जीवित व्यक्ति का दर्जा देने के खिलाफ है। उत्तराखंड सरकार ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर गंगा-यमुना को जीवित व्यक्ति का दर्जा और कानूनी हक देने के हाईकोर्ट के आदेश को रद्द करने की माँग की है। व्यावहारिक दिक्कतें गिनाते हुए उसने सुप्रीम कोर्ट से हाई कोर्ट के आदेश पर एकतरफा अंतरिम रोक की भी माँग की है।

उत्तराखंड हाई कोर्ट ने गत 20 मार्च को गंगा, यमुना और उसकी सहयोगी नदियों को संरक्षित करने के लिये जीवित व्यक्ति का दर्जा दिया था। इन नदियों को जीवित व्यक्ति के समान सभी कानूनी अधिकार दिये थे। हाई कोर्ट ने नमामि गंगे के निदेशक, उत्तराखंड के मुख्य सचिव और एडवोकेट जनरल को इन नदियों के संरक्षण की जिम्मेदारी डाली थी। उत्तराखंड सरकार ने वकील फारुख रशीद के जरिये विशेष अनुमति याचिका दाखिल कर हाई कोर्ट के इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। याचिका में कहा गया है कि हाई कोर्ट का आदेश कायम रहने लायक नहीं है। हाई कोर्ट ने क्षेत्राधिकार से बाहर जाकर यह आदेश पारित किया है। हाई कोर्ट में दाखिल याचिका में सिर्फ अवैध निर्माण हटवाने की माँग थी। राज्य सरकार ने कहा है कि इस बात में संदेह नहीं है कि भारत में गंगा, यमुना और सहयोगी नदियों का सामाजिक प्रभाव और महत्त्व है और ये लोगों और प्रकृति को जीवन और सेहत देती है लेकिन सिर्फ समाज के विश्वास और आस्था को बनाए रखने के लिये गंगा-यमुना को जीवित कानूनी व्यक्ति घोषित नहीं किया जा सकता।

हाई कोर्ट के आदेश के संभावित परिणामों और दिक्कतों का जिक्र करते हुए सरकार ने कहा है कि गंगा और यमुना अन्तरराज्यीय नदियाँ हैं। संविधान की सातवीं अनुसूची के आइटम 56 में अनुच्छेद 246 के मुताबिक अन्तरराज्यीय नदियों के प्रबंधन पर नियम बनाने का अधिकार सिर्फ केंद्र को है। ऐसे में उत्तराखंड राज्य गंगा-यमुना को जीवित व्यक्ति का दर्जा कैसे दे सकता है। किसी अन्य राज्य में इन नदियों के बारे में कोई कानूनी मुद्दा उठता है तो क्या उत्तराखंड का मुख्य सचिव किसी और राज्य या केंद्र को निर्देश जारी कर सकता है। नदियों को जीवित व्यक्ति का दर्जा देने से अगर उन नदियों से बाढ़ आदि आती है और नुकसान होता है तो वह व्यक्ति मुख्य सचिव के खिलाफ नुकसान की भरपाई का मुकदमा दाखिल कर सकता है। क्या राज्य सरकार को ऐसा बोझ वहन करना चाहिये।

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