गंगा नदी पर बनते बांध और कल-कारखानों, घरों से लगातार निकलते कचरे की वजह से गंगा का अस्तित्व संकट में आ गया है। गंगा के पवित्रता पर छाए हुए संकट को देखकर पहली बार संसद इतनी चिंतित दिखी। लोकसभा में गंगा नदी पर हुई चर्चा के दौरान सदस्यों ने गंगा को अविरल और निर्मल बनाने के लिए प्रंधानमंत्री से मांग की गंगा तभी बचेगी, जब उसके ऊपर कोई बांध नहीं होगा। इसी छाए संकट को उजागर कर रहे हैं उमाकंत लखेड़ा।
हिमालय में गंगा और उसकी सहायक नदियों में निर्माणाधीन और प्रस्तावित पन विद्युत परियोजनाओं के विरोध में तो कई नामी स्वयं सेवी संगठन और साधु-संत मैदान में उतरे हुए हैं। हरिद्वार से पटना और कोलकाता तक गंगा के किनारे बसे शहरों से हर रोज हजारों टन मैला और कूड़ा-कचरा गंगा में बहाने से रोकने के लिए स्थानीय शहरी निकायों पर नकेल कसने में स्वयं सेवी संगठनों की सक्रियता नगण्य दिखाई देती है। लोकसभा में चर्चा के क्रम में सांसद इस बात से भी अपनी चिंता साझा कर रहे थे कि गंगा के अस्तित्व पर जो खतरा मंडरा रहा है, उससे गंगा क्षेत्र की समूची मानव सभ्यता और संस्कृति का लोप हो सकता है। प्रदूषित गंगा को बचाने की सरकार की अब तक की तमाम कोशिशों का जिक्र करना जरूरी है कि 1985 में गंगा को प्रदूषण से मुक्त करने की कार्ययोजना अपने मकसद को पूरा करने में पूरी तरह नाकाम साबित हुई है। ऋषिकेश और हरिद्वार से उतरते ही गंगा का पानी पीने योग्य नहीं रह पाता। कानपुर, वाराणसी और इलाहाबाद होते हुए गंगा जब पटना पहुंचती है तो वह इंसान के नहाने के काबिल भी नहीं रहती। छठ पूजा पर गंगा स्नान का खास महत्व है लेकिन लेबोरेटरी से आई रिपोर्टों में दी गई चेतावनी के बाद से पिछले कुछ वर्षों में छठ पर गंगा में डुबकी लगाने वालों की तादाद में काफी कमी देखी जा रही है।
गंगा नदी पर बन रहे बांध गंगा की पवित्रता को खत्म कर रहे हैंकेंद्र की यूपीए सरकार ने अपनी दूसरी पारी में गंगा को प्रदूषण से पूरी तरह मुक्त करने के लिए 15 हजार करोड़ की एक महत्वाकांक्षी योजना का ऐलान तो कर दिया लेकिन इसकी कैफियत सिर्फ कागजों पर दर्ज है। व्यावहारिक बात तो यह है कि गंगा को प्रदूषण मुक्त करने को लेकर केंद्र सरकार व गंगा के प्रवाह वाले प्रदेशों में कोई कारगर समन्वय कभी नहीं रहा है। गंगोत्री से बंगाल की खाड़ी तक गंगा की 2,510 किमी लंबी धारा बहती है। गंगा के किनारे लगातार औद्योगिकीकरण का अंधानुकरण गंगा के लिए सबसे बड़ा अभिशाप बनकर आया। आज भी शहरों का मल-मूत्र ज्यादातर जगहों में सीधे गंगा में बहा दिया जाता है। दावे चाहे जो हों, लेकिन सच्चाई यह है कि मैला शोधन व्यवस्था अब तक मात्र 20 प्रतिशत तक ही अस्तित्व में है। कानपुर, जो चमड़ा उद्योग का सबसे बड़ा शहर है, वहां की फैक्ट्रियों और औद्योगिक इकाइयों के मैले और कचरे के शोधन की हालत कितनी चौपट है, इसका खुलासा कई बार हो चुका है। विडंबना ही है कि गंगा के तटों की सीमा रेखा खींचने की आज तक आवश्यकता महसूस नहीं की गई। इससे हो यह रहा है कि गंगा से सटाकर आवासीय कालोनियां निर्मित की जा रही हैं।
आखिरकार केंद्र सरकार को यह हकीकत स्वीकार करने में 25 बरस लग गए कि 1 हजार करोड़ रुपए स्वाहा करने के बाद गंगा एक्शन प्लान फेल है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 2008 में गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित करने की बात कही। विभिन्न प्रदेशों में गंगा के शुद्धिकरण अभियान पर निगरानी रखने के लिए राष्ट्रीय गंगा नदी तट प्राधिकरण की स्थापना हुई। 2009 में यूपीए सरकार की ओर से ऐलान किया गया कि गंगा को पूरी तरह निर्मल धारा में बदलने के लिए एक नया प्रोजेक्ट 'स्वच्छ गंगा मिशन 2020' शुरू होगा। केंद्र सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट को वचन दिया गया कि वह नई कार्ययोजना पर कड़ाई से अमल करेगी। पिछले साल विश्व बैंक भी गंगा नदी बेसिन प्रोजेक्ट को 7000 करोड़ रुपए का कर्ज देने की हामी भर चुका है। लेकिन गंगा बेसिन अथॉरिटी के गठन के बाद प्रधानमंत्री की इसमें दिलचस्पी न दिखाने और 3 साल में कोई बैठक न करने पर गंगा बेसिन प्राधिकरण के तीन सदस्य मैगसेसे अवार्ड से सम्मानित राजेंद्र सिंह व दो अन्य रवि चोपड़ा व आरएस सिद्दीकी को त्यागपत्र देने की धमकी तक देनी पड़ी। गंगा बचाने के लिए ताजा मुहिम में जुटे प्रो जीडी अग्रवाल के लंबे अनशन पर जाने के बाद भी केंद्र सरकार के पास गंगा को स्वच्छ करने के लिए कोई कार्य योजना नहीं दिखती।
कानपुर के फैक्ट्रियों का सीवेज गंगा नदी में गिर रहा हैलेकिन यहां बड़ा सवाल यह भी है कि गंगा को प्रदूषण मुक्त करने या निर्मल धारा में बदलने के लिए गंगा के उद्गम स्थल गंगोत्री और उत्तराखंड में जल जमीन जंगल और वहां मानवीय अस्तित्व को बचाने के लिए बाकी देश और केंद्र सरकार का एजेंडा क्या है। हिमालयी क्षेत्रों में ग्लेशियर पिघल रहे हैं। वन और हरित क्षेत्रों का अस्तित्व मिट रहा है। पहाड़ों से मानवीय जीवन का पलायन हो रहा है। पर्वतीय क्षेत्रों में भूस्खलन और मिट्टी कटाव की प्रकिया तेज हो रही है और परंपरागत खेती लुप्त होने के कगार पर है। विशेषज्ञों की मानें तो हिमालयी क्षेत्र में पर्यावरण असंतुलन और ग्लोबल वार्मिंग के खतरे इसी गति से आगे बढ़ता रहा तो आने वाले चालीस-पचास वर्षों में गंगा का अस्तित्व मिटने की शुरुआत हो सकती है। जाहिर है कि गंगा तभी बचेगी, जब उसका उद्गम बचेगा वरना वक्त गंवाया तो फिर कोरी लकीर पीटने से क्या लाभ।
कई ऐसे नाले हैं जो गंगा को प्रदूषित कर रहे हैं
सरकार की 1985 में गंगा को प्रदूषण से मुक्त करने की कार्ययोजना अपने मकसद को पूरा करने में पूरी तरह नाकाम साबित हुई है। ऋषिकेश और हरिद्वार से उतरते ही गंगा का पानी पीने योग्य नहीं रह पाता। कानपुर, वाराणसी और इलाहाबाद होते हुए गंगा जब पटना पहुंचती है तो वह इंसान के नहाने के काबिल भी नहीं रहती। केंद्र की यूपीए सरकार ने अपनी दूसरी पारी में गंगा को प्रदूषण से पूरी तरह मुक्त करने के लिए 15 हजार करोड़ की एक महत्वाकांक्षी योजना का ऐलान तो कर दिया लेकिन इसकी कैफियत सिर्फ कागजों पर दर्ज है।
गंगा की पवित्रता पर छाए संकट और शहरी कचरे से लगातार मैली होती गंगा के अस्तित्व को पैदा चुनौती को लेकर पहली बार ससंद इतनी चिंतित दिखी होगी। हाल ही में लोकसभा में हुई विशेष चर्चा के दौरान सदस्यों ने गंगा को निर्मल और प्रदूषण मुक्त करने के लिए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से हस्तक्षेप की जोरदार मांग की। लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार ने नियम 193 के अधीन चल रही चर्चा में हस्तक्षेप करते हुए कहा कि गंगा को बचाने के लिए पूरा सदन एकजुट है। साथ ही उन्होंने सदन में मौजूद केंद्रीय पर्यावरण व वन मंत्री जयंती नटराजन को हिदायत दी कि वे गंगा को लेकर सदन की साझा चिंता का संज्ञान लें। एक सांसद ने तो गंगा के उद्गम उत्तराखंड से ही उसे प्रदूषित करने की इंसानी करतूतों और सरकार की उदासीनता को भ्रूण हत्या की संज्ञा दे डाली। दलीय राजनीति से ऊपर उठकर सबकी एक स्वर से मांग थी कि गंगोत्री से निकलकर सदियों से उत्तरप्रदेश व बिहार के लिए जीवन दायिनी बनी गंगा के अस्तित्व पर जो खतरा है, उसे लेकर छोटी-बड़ी पन विद्युत परियोजनाओं व बांधों का पुरजोर विरोध होना चाहिए।हिमालय में गंगा और उसकी सहायक नदियों में निर्माणाधीन और प्रस्तावित पन विद्युत परियोजनाओं के विरोध में तो कई नामी स्वयं सेवी संगठन और साधु-संत मैदान में उतरे हुए हैं। हरिद्वार से पटना और कोलकाता तक गंगा के किनारे बसे शहरों से हर रोज हजारों टन मैला और कूड़ा-कचरा गंगा में बहाने से रोकने के लिए स्थानीय शहरी निकायों पर नकेल कसने में स्वयं सेवी संगठनों की सक्रियता नगण्य दिखाई देती है। लोकसभा में चर्चा के क्रम में सांसद इस बात से भी अपनी चिंता साझा कर रहे थे कि गंगा के अस्तित्व पर जो खतरा मंडरा रहा है, उससे गंगा क्षेत्र की समूची मानव सभ्यता और संस्कृति का लोप हो सकता है। प्रदूषित गंगा को बचाने की सरकार की अब तक की तमाम कोशिशों का जिक्र करना जरूरी है कि 1985 में गंगा को प्रदूषण से मुक्त करने की कार्ययोजना अपने मकसद को पूरा करने में पूरी तरह नाकाम साबित हुई है। ऋषिकेश और हरिद्वार से उतरते ही गंगा का पानी पीने योग्य नहीं रह पाता। कानपुर, वाराणसी और इलाहाबाद होते हुए गंगा जब पटना पहुंचती है तो वह इंसान के नहाने के काबिल भी नहीं रहती। छठ पूजा पर गंगा स्नान का खास महत्व है लेकिन लेबोरेटरी से आई रिपोर्टों में दी गई चेतावनी के बाद से पिछले कुछ वर्षों में छठ पर गंगा में डुबकी लगाने वालों की तादाद में काफी कमी देखी जा रही है।
आखिरकार केंद्र सरकार को यह हकीकत स्वीकार करने में 25 बरस लग गए कि 1 हजार करोड़ रुपए स्वाहा करने के बाद गंगा एक्शन प्लान फेल है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 2008 में गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित करने की बात कही। विभिन्न प्रदेशों में गंगा के शुद्धिकरण अभियान पर निगरानी रखने के लिए राष्ट्रीय गंगा नदी तट प्राधिकरण की स्थापना हुई। 2009 में यूपीए सरकार की ओर से ऐलान किया गया कि गंगा को पूरी तरह निर्मल धारा में बदलने के लिए एक नया प्रोजेक्ट 'स्वच्छ गंगा मिशन 2020' शुरू होगा। केंद्र सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट को वचन दिया गया कि वह नई कार्ययोजना पर कड़ाई से अमल करेगी। पिछले साल विश्व बैंक भी गंगा नदी बेसिन प्रोजेक्ट को 7000 करोड़ रुपए का कर्ज देने की हामी भर चुका है। लेकिन गंगा बेसिन अथॉरिटी के गठन के बाद प्रधानमंत्री की इसमें दिलचस्पी न दिखाने और 3 साल में कोई बैठक न करने पर गंगा बेसिन प्राधिकरण के तीन सदस्य मैगसेसे अवार्ड से सम्मानित राजेंद्र सिंह व दो अन्य रवि चोपड़ा व आरएस सिद्दीकी को त्यागपत्र देने की धमकी तक देनी पड़ी। गंगा बचाने के लिए ताजा मुहिम में जुटे प्रो जीडी अग्रवाल के लंबे अनशन पर जाने के बाद भी केंद्र सरकार के पास गंगा को स्वच्छ करने के लिए कोई कार्य योजना नहीं दिखती।
![कानपुर के फैक्ट्रियों का सीवेज गंगा नदी में गिर रहा है कानपुर के फैक्ट्रियों का सीवेज गंगा नदी में गिर रहा है](/sites/default/files/hwp/import/images/polluted water in ganga kanpur1.jpg)
![कई ऐसे नाले हैं जो गंगा को प्रदूषित कर रहे हैं कई ऐसे नाले हैं जो गंगा को प्रदूषित कर रहे हैं](/sites/default/files/hwp/import/images/polluted water in ganga.jpg)
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