गंगा सफाई के छत्तीस साल

नेशनल ग्रीन ट्रीब्यूनल
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गंगा सफाई के नाम पर छत्तीस साल हो चुके हैं। गंगा के हालात जस की तस हैं। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल एनजीटी ने कहा है कि पिछले 36 वर्षों से निगरानी के बावजूद गंगा की सफाई की चुनौती बनी हुई है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने स्पष्ट किया है कि अब समय आ गया है, जब नदी की सफाई के लिए आवंटित फंड के समुचित व समयबद्ध जवाबदेही तय करने की जरूरत है। गंगा की सफाई को लेकर एनजीटी सख्ती के सुर में कहा कि ‘नाकामी के जिम्मेदार लोगों की पहचान हो।’

‘नेशलन मिशन फार क्लीन गंगा’ की स्थापना और गंगा प्रदूषित

 नेशनल ग्रीन ट्रीब्यूनल,फोटो:NGT 

एनजीटी चेयरमैन जस्टिस आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि यद्यपि गंगा एक्शन प्लान 1 और 2 के जरिए केंद्र सरकार के स्तर पर एक बड़ी पहल की गई थी। और इसके बाद ‘नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा’ (एनएमसीजी) की स्थापना हुई। इन सब के बावजूद भी गंगा का प्रदूषण और हालात में कोई परिवर्तन नहीं है। एनजीटी चेयरमैन जस्टिस आदर्श कुमार गोयल ने कहा कि इस जवाबदेही और प्रतिकूल परिणामों के बगैर ही समय सीमा का उल्लंघन किया जाता है।

एनजीटी की न्याय पीठ ने स्पष्ट किया कि निगरानी और जवाबदेही तय करने में विफलता से केवल सार्वजनिक धन की बर्बादी, निरंतर प्रदूषण और उसके परिमाणस्वरूप  मौतें और बीमारियां होती हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि संबंधित प्रशासन के शीर्ष स्तर को ‘राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन’ के कामकाज में संरचनात्मक परिवर्तनों पर विचार करने की आवश्यकता है। ताकि समय सीमा बनाए रखने के लिए जवाबदेही तय की जा सके और निकट भविष्य में लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए प्रबंधन रणनीति का पता लगाया जाए।

एनजीटी ने कहा कि प्रदर्शन मापदंडों और समय सीमा स्पष्ट रूप से परिभाषित करने और कार्य संपादन के ऑडिट की आवश्यकता है। पीठ ने कहा कि विफलता के कारण व जिम्मेदार व्यक्तियों की पहचान की जानी चाहिए, और उन्हें उचित रूप से जवाब देह बनाए जाने की जरूरत है। गंगा सफाई के प्रदर्शन में विफलता के लिए जिम्मेदार लोगों की पहचान करने के संबंध में तंत्र को निरंतर आधार पर संचालित करने की आवश्यकता है।

एजेंसियों को बदलना होगा

ट्रिब्यूनल ने कहा कि आंतरिक समीक्षा तंत्र को मजबूत बनाने की आवश्यकता है लेकिन मौजूदा समय में ऐसा नहीं लगता। यदि लगता है कि एनएमसीजी द्वारा नियोजित एजेंसियां ठीक तरह से प्रदर्शन नहीं कर पा रही हैं तो एक उपयुक्त एजेंसी सरकारी, निजी या हाइब्रिड को काम सौंपकर संरचनात्मक बदलावों पर विचार करना होगा। इन्हें शर्तों के मुताबिक प्रदर्शन और लक्ष्यों को प्राप्त करने के संबंध में जवाबदेह ठहराया जाए। 

अभी इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी एक मामले कहा कि 

इलाहाबाद हाईकोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मुनीश्वर नाथ भंडारी और न्यायमूर्ति अनिल कुमार ओझा की पीठ नहीं हाल ही में कहा कि गंगा को सफाई करने रखने के लिए लगातार कोशिशों के बावजूद भी गंगा प्रदूषित है। वे गंगा में अपशिष्ट की समस्या को उजागर करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई कर रहे थे। 

महंत मधु मंगल शरण दास शुक्ला द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि चूंकि राज्य सरकार ने सीवर लाइन की एक पाइप लाइन बिछाने की अनुमति दी है, सीवरेज या व्यापार अपशिष्ट नदी में जा रहा है। याचिका पर लंबी सुनवाई के बाद, मामले को एसटीपी या ईटीपी के माध्यम से सीवरेज और व्यापार अपशिष्ट के उपचार के मामलों का प्रबंधन करने वाले संबंधित विभाग / निकाय के सर्वोच्च अधिकारी को हलफनामा दाखिल करने के लिए कहा गया है। 

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