गंगा रक्षा को मुद्दा बनाती उमा


गंगा रक्षा को मुद्दा बनाती उमाबात 18 जून की है। इस दिन भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष साध्वी उमा भारती दिल्ली में थीं, जिनको अलसुबह ही किसी अनहोनी की आशंका हुई। उनके चेहरे पर व्याप्त तनाव शाम ढलते-ढलते भयावह सच में तब्दील हो चुका था। भयानक प्राकृतिक आपदा से घिरा उत्तराखण्ड का केदारनाथ धाम जल प्रलय में तब्दील हो चुका था। उमा भारती को इस देवभूमि से विशेष धार्मिक-आध्यात्मिक लगाव रहा है। शायद, इसलिये घटना से पहले ही उमा को पूर्वाभास हुआ। शाम को वह नई दिल्ली स्थित कुछेक मन्दिरों में गर्इं। साथ ही केदारनाथ धाम के तीर्थ पुरोहित दिनेश बगवाड़ी से पल-पल की जानकारी भी ले रही थीं, जिनके सामने धाम में ही उनके परिवार के कुछ सदस्य काल के गाल में समा चुके थे। उनकी आपबीती सुनकर उमा किसी से ज्यादा कुछ कहने-सुनने की स्थिति में नहीं थीं।

यह विचित्र योग है कि इस त्रासदी के अगले दिन यानी 19 जून को गंगा शिखर सम्मेलन था। इसकी सूत्रधार उमा भारती ही थीं। सिरीफोर्ट में होने वाले इस सम्मेलन को उत्तराखण्ड की आपदा ने सामयिक बना दिया था। इसमें उठने वाले मुद्दों को लेकर उमा पिछले कुछ सालों से काफी मुखर रही हैं। भाजपा में वापसी से पहले उन्होंने हरिद्वार को गंगा से जुड़ी गतिविधियों का केन्द्र बनाया था। इस राज्य की रक्षक धारी देवी को लेकर वह अनशन कर चुकी थीं। दूसरा विचित्र संयोग यह है कि श्रीनगर स्थित जलविद्युत परियोजना पूरी करने के निमित्त 16 जून को धारी देवी को विस्थापित किया गया था, उसके कुछ समय बाद ही यह राज्य भीषण प्राकृतिक आपदा में फँस गया। इस देवी का अपना ऐतिहासिक व पौराणिक महत्त्व रहा है। यह मन्दिर विस्थापित न हो इसके लिये उमा भारती पिछले कुछ सालों से व्यापक अभियान चला रही थीं। इसके लिये उन्होंने राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्य के मुख्यमंत्री और केन्द्रीय पर्यावरण मंत्री समेत सभी दलों के वरिष्ठ नेताओं को दर्जनों पत्र लिखे थे। लेकिन उनकी कोशिश रंग नहीं लाई।

उमा ने गंगा कार्य को अपने जीवन का लक्ष्य मान लिया है। राजनीति के साथ-साथ गंगा उनका अभीष्ट है। भाजपा के कई नेताओं को लगता था कि वापसी के बाद उमा का गंगा अध्याय पूरा हो गया है। पार्टी के नेता व कार्यकर्ता की सलाह होती थी कि गंगा मुद्दे को मझधार में छोड़कर उमा को रायसीना की पहाड़ियों की विशुद्ध राजनीति करनी चाहिए। लेकिन उमा ने अपना गंगा धर्म नहीं छोड़ा। कहा जा सकता है कि एक तरह से उन्होंने आजादी की लड़ाई की जमात में शामिल कुछेक वैसे नेताओं की याद दिला दी है जो राजनीति के साथ-साथ किसी-न-किसी सामाजिक कर्म को अपना धर्म समझते थे। किसी का मिशन खादी था तो कोई किसानों से जुड़े मुद्दों को उठाता था। वे नेतागण दोनों कार्यों को एक साथ साधते थे, जिससे उनका आत्मबल बढ़ता था। लोगों का उन पर भरोसा था। अपने नए रूप में उमा ने पहले गंगोत्री से गंगा सागर तक की यात्रा की। उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव के बाद ‘गंगा समग्र अभियान’ के तहत पहले चरण में उन्होंने 2012 के सावन महीने में देश के सभी ज्योतिर्लिंगों का गंगोत्री के जल से जलाभिषेक किया। तब राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी, प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह, लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार, भाजपा के वरिष्ठ नेताओं में लालकृष्ण आडवाणी और नितिन गडकरी, सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव समेत करीब सवा सात सौ सांसदों को गंगाजली भेंट की गई ताकि सबका ध्यान खींचा जा सके। उन्हें एकजुट किया जा सके।


राजनीति के गलियारों में अक्सर चर्चा चलती है कि गंगा ने उमा भारती को ‘फायर ब्रांड’ से ‘वाटर ब्रांड’ बना दिया है। उनके बदले हुए स्वभाव पर तमाम राजनैतिक पंडित हतप्रभ हैं। लेकिन इन तुकबन्दियों का उमा की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ रहा है। उनके तेवर में कोई फर्क नहीं है। धारा बदली जरूर है, लेकिन गति वही है।

इसके बाद उमा भारती ने 21 सितम्बर से 29 अक्टूबर, 2012 तक गंगासागर से लेकर गंगोत्री तक गंगा यात्री पूरी की। यात्रा के बाद 21 नवम्बर को शिखर सम्मेलन होना था। लेकिन इसकी तारीख 19 जून, 2013 रखी गई। उत्तराखण्ड हादसे की खबरों के बीच ही यह सम्मेलन हुआ।

गंगा की लम्बाई करीब 2525 किलोमीटर है, लेकिन इससे सटे क्षेत्रों में जाने के कारण यह यात्रा करीब 3,200 किलोमीटर की हो गई। यात्रा में पहले से बनी रूपरेखा का पूरा पालन हुआ। रोजना सुबह गंगा पूजन, दिन में स्वागत सभाओं के साथ जनसभाएँ और शाम को आरती। कई स्थानों पर गंगा तट पर रहने वाले लोगों ने पहली बार आरती के उस आनन्द का अनुभव किया था, जिसको उन्होंने फिल्मों में बनारस और हरिद्वार के घाटों पर देखा था। इस यात्रा से उमा ने गंगा की पहचान एक नए रूप में कराई। तटों पर रहने वालों से उनकी समस्याओं को साझा किया। फिर दिल्ली में गंगा शिखर सम्मेलन के दौरान उन सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश हुई, जो अनुत्तरित रह गए थे। विभिन्न धर्मों के सन्त, वैज्ञानिकों, सामाजिक और राजनीतिक चिन्तकों ने सम्मेलन में शिरकत कर उन बिन्दुओं की चर्चा की जिस रास्ते बढ़कर समस्याओं का समाधान निकाला जा सकता है। इस कार्यक्रम के संयोजक उत्तर प्रदेश उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश गिरधर मालवीय थे, जिनके जीवन का मकसद ही गंगा और उसकी पवित्रता है। वक्ताओं ने आपदा पर चिन्ता जताते हुए गंगा नदी पर समग्रता से विचार करने की बात कही। साथ ही इस बात पर जोर दिया गया कि उत्तराखण्ड के विकास का ऐसा ढाँचा बनाया जाये जो प्रकृति से मेल खाता हो।

गंगा घोषणा पत्र के जरिए अपील की गई कि यह गंगा बेसिन प्राधिकरण में पूर्णकालिक सर्वाधिकार व्यक्ति को नियुक्त करें। साथ ही इसमें आस्थावान व्यक्तियों को शामिल कया जाये। उत्तराखण्ड की वर्तमान प्राकृतिक आपदाओं को देखते हुए गंगा और उसकी सहयोगी नदियों पर निर्माणाधीन अथवा प्रस्तावित परियोजनाओं की समीक्षा हो। तब तक उनका काम स्थगित करने पर विचार किया जाये। सीवरेज का दूषित जल नदियों में न छोड़ा जाये। इस सम्बन्ध में बने कानून का सख्ती से पालन हो। गंगा से लेकर गंगा सागर तक गंगा चौकियाँ स्थापित की जाएँगी जो गंगा और अन्य नदियों के लिये संकल्पित होकर कार्य करेंगी। जैविक खेती को प्रोत्साहित करने के साथ गंगा तटों पर वृक्षारोपण किया जाये। माना जाता है कि करीब चालीस करोड़ लोग गंगा पर आश्रित हैं। इसलिये सरकार पर दबाव के साथ ही गंगा पर निर्भर लोगों के बीच जनजागरण की आवश्यकता है। हाल में सर्वोच्च न्यायालय ने एक फैसले में उत्तराखण्ड त्रासदी पर चिन्ता जताते हुए राज्य में नई पनबिजली परियोजना शुरू करने पर रोक लगा दी है। ऐसी परियोजनाओं से पर्यावरण पर पड़ने वाले असर का अध्ययन करने के लिये विशेषज्ञों की एक समिति गठित करने का निर्देश दिया है।

आम लोगों के जन-जागरण के साथ-साथ उमा भारती को मलाल इस बात का है कि संसद के सभी सदस्य गंगा को लेकर चिन्तित हैं, इसके बावजूद कोई रास्ता नहीं निकल पा रहा है। उनकी पहल पर भाजपा ने इसे अपना मुद्दा बनाया है। गंगा यात्रा के बाद भाजपा के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी ने ऐलान किया था कि आगामी लोकसभा चुनाव के लिये भाजपा अपने घोषणा पत्र में नदियों के लिये अलग मंत्रालय के साथ गंगा के लिये 10 हजार करोड़ रुपए के बजट का ऐलान करेगी। गंगा अभियान ने उन कार्यकर्ताओं का हौसला बढ़ाया जो चाहते हैं कि पार्टी कोई जमीनी मुद्दा पकड़े। गंगा का पौराणिक स्वरूप वापस लौटे गंगा समग्र से इस अभियान को गति मिल रही है। उत्तराखण्ड में प्राकृतिक आपदा को लेकर भाजपा ने उमा भारती के नेतृत्व में तीन सदस्यीय उत्तराखण्ड राहत एवं पुनर्वास सुझाव संकलन का गठन किया है। बाकी सदस्य उत्तराखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री व सांसद भगत सिंह कोश्यारी व पार्टी प्रवक्ता और सांसद सैयद शाहनवाज हुसैन हैं। यह टीम हाल में राज्य का सघन दौरा करने के साथ-साथ केदारनाथ धाम भी गई थी। टीम ने अपनी रिपोर्ट पार्टी आलाकमान को सौंप दी है जो मानती है कि उत्तराखण्ड की प्राकृतिक आपदा में जनहानि को रोका जा सकता था, जिसके लिये राज्य सरकार आपराधिक लापरवाही की दोषी है। उसे बर्खास्त कर केन्द्र सरकार को यह राज्य अपने अधीन लेना चाहिए। इस राज्य के समग्र विकास के लिये विशेषज्ञों की एक टीम बने और मन्दिर का निर्माण व मरम्मत कार्य शास्त्र सम्मत हो।

इन अभियानों को चलाते हुए उमा भारती देश की राजनीति और बाकी मुद्दों को लेकर बेखबर नहीं हैं। राजनीति के गलियारों में अक्सर चर्चा चलती है कि गंगा ने उमा भारती को ‘फायर ब्रांड’ से ‘वाटर ब्रांड बना’ दिया है। उनके बदले हुए स्वभाव पर तमाम राजनैतिक पंडित हतप्रभ हैं। लेकिन इन तुकबन्दियों का उमा की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ रहा है। उनके तेवर में कोई फर्क नहीं है। धारा बदली जरूर है, लेकिन गति वही है। नई दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी की हुई राष्ट्रीय परिषद की बैठक में उमा भारती ने कहा था कि यह सही है कि गंगा ने उनको फायर ब्रांड से वाटर ब्रांड बना दिया है, लेकिन राजनाथ जी और आडवाणी जी कहें तो मैं आज भी पानी में आग लगा सकती हूँ। उनके कहे पर देर तक तालियों की गड़गड़ाहट गूँजती रही। कार्यकर्ताओं को उनका यह तेवर ज्यादा भाता है। लेकिन राजनीति के साथ-साथ गंगा का दामन थामने के बाद उमा भारती के लिये गंगा नदी ही केन्द्रीय मुद्दा बन चुकी है। हालांकि रास्ता कठिन है। इसका जिक्र उनकी गंगोत्री से गंगासागर यात्रा के दौरान बनारस के कार्यक्रम में भाजपा के वरिष्ठ नेता व सांसद डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने किया था। तब डॉ. जोशी ने कहा था, ‘‘उमा, आपकी गंगा यात्रा में कई तरह के रोड़े-पत्थर आएँगे, लेकिन उनकी आपको चिन्ता नहीं करनी है। वे सब तेज बहाव में बह जाएँगे।’’ संकेत गम्भीर थे। उमा भारती को गंगा के साथ चलते हुए ठीक इस नदी की तरह अपना रास्ता तमाम बाधाओं को पार करते हुए बनाना है।

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