शिव की जटाओं में इठलाती, किसी अल्लड़ नवयौवना की तरह बलखाती गंगा ने धरती पर कदम रखते वक्त यह कभी नहीं सोचा होगा कि मृत्यु लोक में उसका अपना जीवन ही संकट में पड़ जाएगा।
बहना है, तो सहना है। गंगा मइया युगों-युगों से बहती और सहती रही हैं। जिस हिसाब से आबादी बढ़ी उसी हिसाब से पाप बढ़े। दुनिया की इकलौती पाप परिशोधन परियोजना बनकर गंगा मइया हरिद्वार से हुगली तक के पापियों के पाप सदियों से धोती रही हैं। तरह-तरह के पापी, तरह के पाप। कुछ जगहों पर ये पाप फैक्टरी का जहरीला रसायन बनकर आता है तो कई जगहों पर ताजा कटे जानवरों की खाल की शक्ल में गंगा के पानी में उतराता है। मल-मूत्र, सूखे फूल, राख, अस्थि और अगरबत्ती, इसी तरह से होती है, गंगा मइया की भक्ति। दुनिया में बहुत कम ऐसी नदियाँ हैं, जिन पर मानवीय पापों का ऐसा बोझ है। हर भारतीय को पता है, उसे पाप करने की आजादी है, क्योंकि धोने के लिये गंगा मइया हैं। पापी पहले बहती गंगा में हाथ धोता है और फिर जब उसे लगता है कि हाथ धोते-धोते वो ज्यादा पाप कर बैठा है, तो अपने सारे पाप गंगा मइया में धो आता है। पापी धुलकर साफ होते जाते हैं और गंगा मैली होती रहती है। असंख्य कोटि पाप गंगा में बह गए। पाप की फाइलें भी बह गईं, लेकिन पापी नहीं बहे। पाप मुक्त पापी नए सिरे से गंगा मइया को अर्पित करने के लिये पाप बटोरने में जुट जाते हैं।शिव की जटाओं में इठलाती, किसी अल्लड़ नवयौवना की तरह बलखाती गंगा ने धरती पर कदम रखते वक्त क्या सोचा होगा? गंगा ने यही सोचा होगा कि धरती पर आना मेरे अच्छे कर्मों का पुरस्कार है। मैं स्निग्ध सलिला बनकर शुष्क धरा को सीचूँगी। हर प्राणी को जीवन दूँगी। गंगा को क्या पता था कि उसका अपना जीवन ही संकट में पड़ जाएगा। पाप का कीचड़ इस तरह बढ़ गया कि गंगा की धारा ही कई जगहों पर रुक गई। कहते हैं, नदी के पाँव कभी नहीं थमते। लेकिन कीचड़ भरी गंगा जगह-जगह थमने लगी। पापियों ने कुछ जगहों पर गंगा को इतना छिछला बना दिया कि पहचानना मुश्किल हो गया, ये गंगा मइया हैं, या फिर कोई नाला। कुछ जगहों पर गंगा एक बेहद पतली धारा बन गई है। लेकिन तब भी बहुत कम लोग इस बात को समझ पाये कि ये एक दम तोड़ती नदी की आँखों से छलकते आँसू हैं, एक ऐसी नदी जिसे पूरा देश अपनी माँ मानता है। गंगा सिकुड़ती रही और पाप धोने वाले बेखबर रहे।
गुम होती गंगा को लेकर बरसों से सोई सरकार तकरीबन आज से तीस बरस पहले जागी। कई एक्शन प्लान तैयार किया गया, ताकि गंगा में जमा कीचड़ को हटाया जा सके। गंगा को अविरल बनाया जा सके। गंगा मइया के नाम पर पैसा पानी की तरह बहना शुरू हुआ। पैसा बहता गया लेकिन गंगा की धारा रुकती गई। बीस साल में करीब हजार करोड़ रुपए बहाकर आखिरकार सरकार ने भी हाथ खड़े कर दिये- हम अपना पाप आप में धोते हैं, आपको साफ करने वाले हम कौन होते हैं? इसी तरह बहती और सहती रहो गंगा मइया, तुम्हें साफ करना हमारे बस का नहीं है।
अभिशप्त गंगा अपनी गति से बहती रही। शायद उसने ये मान लिया कि भले ही वो स्वर्ग से आई हों, महादेव की जटाओं ने उसके वेग को सम्हाला हो, लेकिन आखिर वो हैं तो मृत्युलोक में। उसे भी एक दिन मरना होगा और वो भी उस मानव जाति के हाथों जिसे वह जीवन देने के लिये आई थीं। गंगा की मृत्यु अवश्यम्भावी है, शायद इसलिये इंसानों ने ‘मन चंगा तो कठौती में गंगा’ मुहावरा पहले ही गढ़ लिया है। पाप धोना है, चाहे नदी में धोओ या कठौती में, क्या फर्क पड़ता है। कठौती का पानी नाले में जाएगा और नदियाँ और नालों में आजकल ज्यादा फर्क कहाँ रह गया है? पतित पावनी गंगा मानव जाति को अपनी तरह पावन नहीं कर पार्इं, लेकिन मानव जाति ने उसे अपने जैसा बना डाला। कहा जाता है कि कानपुर तक पहुँचने के बाद असली गंगा गुम हो जाती हैं। उससे आगे जिस मटमैली धारा को गंगा मानकर पूजा जाता है, वो असल में मानव उत्सर्जित कचरे से बना एक विशाल परनाला है, जो कई छोटी नदियों के पानी के मिलने से एक धारा का रूप ले लेता है।
मानो तो गंगा माँ, ना मानो तो बहता पानी। नरेंद्र मोदी ने बड़े भावुक अन्दाज में कहा, मुझे गंगा मां ने बुलाया है। गंगा पुत्र तो वाराणसी से होता हुआ दिल्ली आ गया, लेकिन गंगा का क्या हुआ? सुना है, मोदी जी के राज्यारोहण के बाद बनारस में घाटों की सफाई कुछ इस तरह चल रही है कि कीचड़ सनी सीढ़ियाँ अब दिखाई देने लगी हैं। सीढ़ियाँ साफ हो जाएँगी। सरकारी प्रयासों से कचरा भी साफ हो जाएगा, लेकिन असली गंगा क्या कानपुर से आगे बनारस और पटना तक पहुँच पाएगी? बर्फ से ढँके हिमालय में जहाँ माँ गंगा का उद्गम है, वहाँ तक व्यापारियों का अतिक्रमण है। तापमान बढ़ रहा है, ग्लेशियर पिघल रहे हैं। अपने उद्गम पर ही गंगा दम तोड़ रही है और अपने मानस पुत्र से कह रही है - संजीवनी नहीं दे सकते, तो मेरे मुँह में गंगाजल दे दो। लेकिन अपने जल से भी मुझे मुक्ति नहीं मिलेगी, क्योंकि गंगाजल अब अमृत से जहर बन चुका है।
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