गंगा को साफ होने में अभी दो साल और लगेंगे

गंगा को निर्मल बनाने का लक्ष्य 2021 कर दिया गया है।
गंगा को निर्मल बनाने का लक्ष्य 2021 कर दिया गया है।

अब पतित पावन गंगा को स्वच्छ व निर्मल करने में दो साल और लगेंगे। दरअसल, अब 2021 में गंगा साफ करने का लक्ष्य केन्द्रीय जल शक्ति मंत्री गजेन्द्र शेखावत ने दो साल आगे बढ़ा दिया है। इस तरह सरकार ने तीसरी बार गंगा को निर्मल बनाने का लक्ष्य 2021 कर दिया गया है। बता दें कि जब 2014 के बजट भाषण में नरेन्द्र मोदी सरकार ने नमामि गंगे मिशन शुरू करने का ऐलान किया था तब निर्मल गंगा का लक्ष्य 2019 रखा गया था।

तब तत्कालीन जल संसाधन मंत्री उमा भारती ने तो यहां तक कहा था कि अगर गंगा स्वच्छ न हुई तो वह गंगा में समाधि ले लेंगी। बाद में जल संसाधन मंत्री बने नितिन गडकरी ने स्पष्ट किया कि 2019 तक गंगा को 80 फीसद स्वच्छ कर लिया जाएगा और 2020 तक गंगा को स्वच्छ करने की पूरी प्रक्रिया पूरी कर ली जाएगी। उत्तराखंड में इस नमामि गंगे के तहत उत्तराखंड के लिए अब तक 1134.24 करोड़ रुपये की धनराशि मंजूर की गई है। गंगा को सीवेज मुक्त करने के लिए 15 शहर और 132 गांव चयनित किए गए हैं। इन शहरों से निकलने वाले 135 नाले गंगा में गिरते हैं। नमामि गंगे की सीवेज प्रबंधन योजनाओं के तहत नगरों से निकलने वाले सीवेज को एसटीपी तक ले जाकर निस्तारण किया जाना है। पूर्व में 13 नगरीय सीवेज प्रबंधन परियोजनाएं पूरी कर ली गई है और 73 किमी. सीवर नेटवर्क बिछ चुका है। साथ ही 35 एमएलडी सीवेज ट्रीटमेंट क्षमता स्थापित की जा चुकी है। इन पर 139.35 करोड़ की राशि खर्च की गई है। नमामि गंगे में 885 करोड़ की लागत से 18 नई योजनाएं शुरू की गई हैं। इनके तहत 132 एमएलडी क्षमता के 31 नए एसटीपी लगाए हैं, जबकि डह एसटीपी पहले से मौजूद थे।

नाला टैपिंग के तहत 59 नाले टैप किए जा रहे हैं। वर्ष 2017 तक गंगा से लगे शहरों-गांवों से रोजाना 146 एमएलडी सीवेज निकलता था, जिसमें से 89 एमएलडी ही साफ हो पाता था। हरिद्वार में 82 एमएलडी क्षमता के दो एसटीपी स्थापित किए जा रहे हैं। इसमें एक पूरा हो चुका है, जबकि दूसरे का कार्य प्रगति पर है। गंगा किनारे 250 करोड़ की लागत से 70 ज्यादा स्नानघाट और श्मशान घाटों का निर्माण किया जा रहा है। चंडीघाट, रुद्रप्रयाग, कोटेश्वर, केदार व उमरकोट आदि में चेंजिंग रूम के साथ ही सीवेज उपचार व्यवस्था से युक्त शौचालयों का निर्माण भी कराया गया है। श्मशान घाटों में ऐसी व्यवस्था की गई है, जिसमें लकड़ी की दो से ढाई कुंतल के बीच खपत कम होती है। साथ ही वायु प्रदूषण न हो, इसका भी ध्यान रखा जा रहा है। हरिद्वार में गंगा की सतह की सफाई के लिए ट्रैश स्किमर बोट के संचालन को तीन साल के लिए 10 करोड़ की राशि मंजूर की गई है। दावा है कि यह बोट हर महीने लगभग सात टन क्यूबिक मीटर कचरा गंगा से बाहर निकाल रहा है।

पूरे रुपए खर्च नहीं हो पा रहे

देश के स्तर पर देखें तो अप्रैल 2019 तक नमामि गंगे के लिए 28451.29 करोड़ रुपए मंजूर किए जा चुके हैं। लेकिन इस धन का चौथाई लक्ष्य भी पूरा नहीं हुआ है और केवल 6838.67 करोड़ रुपये ही खर्च हुए हैं। परियोजनाओं की बात करें तो 30 अप्रैल तक 298 में से केवल 98 परियोजनाएं ही पूरी हो सकी है। जबसे ज्यादा पैसा सीवेज नेटवर्क में दिया गया लेकिन 23540.95 करोड़ में से केवल 4521 करोड़ के ही काम हो सके। आलम यह है कि हाल में आई केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट में कहा गया कि देश भर में केवल सात स्थान ही ऐसे हैं जहां पानी ट्रीटमेंट के बाद पीने लायक है। इनमें से पांच स्थान उत्तराखं डमें है।

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