पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय गंगा के किनारे बसे सभी गाँवों को खुले में शौच से मुक्त कराने के लिये युवा मामले एवं खेल मंत्रालय, जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा पुनर्जीवन मंत्रालय के साथ मिलकर उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड तथा पश्चिम बंगाल के लिये सहायता बढ़ा रहा है। गंगा नदी के किनारे 5,169 गाँव हैं, जो 5 राज्यों, 52 जिलों, 1,651 ग्राम पंचायतों के अन्तर्गत आते हैं। स्वच्छ भारत अभियान, स्थानीय युवा नेताओं तथा नमामि गंगे परियोजना का सामूहिक प्रयास होने के कारण इस अभियान को ‘स्वच्छ युग’ कहा जा रहा है।
भारत स्काउट एवं गाइड, नेहरू युवा केन्द्र एवं राष्ट्रीय सेवा योजना जैसी युवा एजेंसियों का सहयोग लिया जा रहा है ताकि युवा मामलों के मंत्रालय तथा नेहरू युवा केन्द्र संगठन के संयोजन में स्वच्छ भारत अभियान के अन्तर्गत 52 जिलों में व्यवहार परिवर्तन के अभियान में बड़ी संख्या में स्थानीय युवा कार्यकर्ताओं की सहायता ली जा सके।
प्रत्येक जिले के लिये एक नोडल अधिकारी चुना गया है, जो अपने जिले को खुले में शौच से मुक्त कराने के काम पर मिशन की भावना से काम करेगा और ठोस एवं तरल कचरे का समुचित प्रबंधन कर तथा सामान्य स्वच्छता बरतकर गाँवों में स्वच्छता पर जोर देगा। इसके लिये गंगा के रास्ते में आने वाले 5 राज्यों में आभासी कक्षाओं के नेटवर्क के जरिये स्थानीय प्रशिक्षणों को अंतरवैयक्तिक व्यवहार परिवर्तन संचार का गहन प्रशिक्षण प्रदान किया जाएगा। पहली आभासी कक्षा 7 जून 2016 को आरम्भ की गई और बिहार के 12 जिलों में प्रत्येक स्थान पर 50-50 युवा स्वयंसेवकों ने प्रशिक्षक से आभासी सम्पर्क के जरिये 5 दिन का प्रशिक्षण प्राप्त किया।
अफगान-भारत मैत्री बाँध परियोजना पूरी
अफगान-भारत मैत्री बाँध (सलमा बाँध) का उद्घाटन पश्चिमी अफगानिस्तान के हेरात प्रांत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अफगानिस्तान के राष्ट्रपति डॉ. अशरफ गनी के साथ मिलकर 4 जून, 2016 को किया। अफगान-भारत मैत्री बाँध बहु-उद्देशीय परियोजना है, जो 42 मेगावाट बिजली बनाने, 75,000 हेक्टेयर भूमि की सिंचाई करने, जल आपूर्ति करने तथा अफगानिस्तान की जनता को अन्य लाभ पहुँचाने के लिये तैयार की गई है। सलमा बाँध अफगानिस्तान के हेरात प्रांत में चिश्त-ए-शरीफ नदी पर भारत सरकार द्वारा तैयार की गई ऐतिहासिक बुनियादी ढाँचा परियोजना है। परियोजना को वैपकॉस लिमिटेड ने तैयार किया है, जो जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा पुनर्जीवन मंत्रालय के अन्तर्गत भारत सरकार का उपक्रम है।
परियोजना हेरात शहर से 165 किलोमीटर पूर्व में स्थित है और सड़क मार्ग से जुड़ा है। इस परियोजना से जुड़े भारतीय इंजीनियर एवं तकनीकी अधिकारी सुरक्षा कारणों से इस स्थान पर महीने में एक ही बार पहुँच रहे हैं। सभी उपकरणों एवं सामग्री को भारत से समुद्र के रास्ते ईरान के बंदर-ए-अब्बास बंदरगाह पर लाया गया और वहाँ से सड़क के रास्ते लगभग 1,200 किलोमीटर दूर ईरान-अफगानिस्तान सीमा पर इस्लाम किला बंदर चौकी पर ले जाया गया। उस चौकी से सड़क के रास्ते उसे 300 किलोमीटर दूर परियोजना स्थल पर पहुँचाया गया। सीमेंट, स्टील की सामग्री, विस्फोटकों आदि को पड़ोसी देशों से अफगानिस्तान में आयात किया गया। बाँध की कुल क्षमता 63.3 करोड़ घन मीटर है। इसकी ऊँचाई 104.3 मीटर, लम्बाई 540 मीटर और तल पर चौड़ाई 450 मीटर है।
यमुना कार्य योजना
पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अधीन राष्ट्रीय नदी संरक्षण निदेशालय देश में नदियों, झीलों तथा जलमय भूमि के संरक्षण के लिये केन्द्र द्वारा प्रायोजित योजनाओं राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना एवं राष्ट्रीय जलीय पारितंत्र संरक्षण योजना (एनपीसीए) का क्रियान्वयन कर रहा है। नदी कार्य योजनाओं का उद्देश्य नदियों में चिन्हित प्रदूषित हिस्सों में प्रदूषण कम करने की योजनाएं क्रियान्वित कर नदियों के पानी की गुणवत्ता सुधारना है। एनपीसीए का उद्देश्य सतत संरक्षण योजनाओं का क्रियान्वयन कर जलीय पारितंत्रों (झील एवं जलीय भूमि) का संरक्षण करना है और वह एकसमान नीतियों तथा दिशानिर्देशों से चलता है।
केन्द्र प्रायोजित राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना का क्रियान्वयन राज्य सरकार के साथ लागत की साझेदारी के आधार पर केन्द्र सरकार द्वारा किया जा रहा है।
यमुना कार्य योजना भारत की नदियों का जल साफ करने का महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम है, जिसे केन्द्र सरकार की 85 प्रतिशत और राज्य सरकारों की 15 प्रतिशत लागत हिस्सेदारी की सहायता से क्रियान्वित किया जा रहा है। उत्तर प्रदेश, दिल्ली एवं हरियाणा के 21 शहरों में अप्रैल, 1993 में आरम्भ किया गया यमुना कार्य योजना का पहला चरण फरवरी, 2003 में समाप्त हो गया। इसमें 703.10 करोड़ रुपये खर्च हुए और 75.325 करोड़ लीटर प्रतिदिन (जिसमें से 40.125 करोड़ लीटर उत्तर प्रदेश में, 32.2 करोड़ लीटर हरियाणा में और 3 करोड़ लीटर दिल्ली में) गंदे जल की शोधन क्षमता वाले 38 शोधन संयंत्र लगाए गए। जापान के ही सहयोग से यमुना कार्य योजना का दूसरा चरण 2003 में आरम्भ हुआ। इस चरण में दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में 18.9 करोड़ लीटर प्रतिदिन क्षमता (दिल्ली में 13.5 करोड़ लीटर और उत्तर प्रदेश में 5.4 करोड़ लीटर) वाले नए जल शोधन संयंत्र लगाए गए तथा दिल्ली में 32.8 करोड़ लीटर प्रतिदिन क्षमता वाले शोधन संयंत्रों को फिर चालू किया गया।
केन्द्र सरकार ने जापानी एजेंसी से मिले ऋण की सहायता से दिल्ली के लिये कुल 1,656 करोड़ रुपये की लागत से यमुना कार्य योजना के तीसरे चरण को मंजूरी दे दी है। परियोजना की लागत में 85 प्रतिशत हिस्सा केन्द्र सरकार वहन करेगी और शेष 15 प्रतिशत हिस्सा दिल्ली सरकार देगी। परियोजना में भारत सरकार का कुल योगदान 1,407.60 करोड़ रुपये होगा और दिल्ली सरकार 248.40 करोड़ रुपये देगी। जापान इंटरनेशनल कोऑपरेशन एजेंसी के साथ ऋण के समझौते पर पहले ही हस्ताक्षर हो चुके हैं। परियोजना, दिसम्बर, 2018 में पूरी होनी है।
परियोजना के अन्तर्गत निम्न कार्य प्रस्तावित हैंः
अ) दिल्ली में ओखला, कोंडली और रिठाला में कुल 81.4 करोड़ लीटर प्रतिदिन गंदे जल का शोधन करने की क्षमता वाले संयंत्रों का पुनरुद्धार अथवा आधुनिकीकरण।
आ) गंदे जल शोधन करने वाले इन संयंत्रों में तीन गुना शोधन सुविधाएं लगाना।
इ) ओखला में 13.6 करोड़ लीटर प्रतिदिन क्षमता वाले गंदा जल शोधन संयंत्र के स्थान पर नया सर्वसुविधासम्पन्न नए संयंत्र का निर्माण।
ई) कोंडली और रिठाला के दो जलीय क्षेत्रों में सीवर लाइन का पुनरुद्धार करना।
उ) जनता से सम्पर्क की गतिविधियाँ।
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