गंगा का बजट मंथन

गंगा की अविरलता और निर्मलता की ये कोई नई शुरुआत नहीं है। चूंकि गंगा सफाई का मुद्दा बड़ी परियोजना और पूंजीगत निवेश का है। इसीलिए उस पर खूब योजना बनेगी। परिवहन के लिए गंगा जी को खूब खोदा जाना भी एक अच्छा व्यवसाय है। फिर हर सौ किलोमीटर पर बैराज बनना, उठने गिरने वाले पुलों का बनना ताकि मालवाही जहाज आ-जा सके। यह सब एक नए व्यवसाय की शुरुआत है जिसे नितिन गडकरी ने स्पष्ट तरीके से कहा है और उमा जी ने बहुत उत्साह के साथ इस विकास को आंदोलन बनाए जाना स्वीकार किया है।

उमा जी ने बहुत आस्था और भावना के साथ राष्ट्रीय गंगा मंथन का आयोजन किया और उनका कहना था मोदी जी का नारा है हम विकास को आंदोलन बनाएंगे। किंतु नितिन गडकरी (केंद्रीय परिवहन मंत्री) ने जो पूरे समय गंगा मंथन में उमा जी के साथ थे उन्होंने बार-बार कहा कि गंगा पर हर सौ किलोमीटर पर बैराज होंगे।

परिवहन के लिए नदी-रास्ता सस्ता है वे गंगा के पानी की सफाई और उसे वापस नदी में ना डालने पर जोर देते रहे। उनका बार-बार जोर था कि वे नीदरलैंड, हॉलैंड, रूस के विशेषज्ञों को बुला रहे हैं। गंगा की खुदाई होगी। सफाई का काम तेजी से शुरू होगा। उनकी कही बात सरकारी बजट में भी परिलक्षित हुई है।

मोदी सरकार ने आते ही गंगा पर नया मंत्रालय और बड़ा सम्मेलन और बजट में गंगा सफाई के लिए पैसे का आबंटन किया। यह सब जिस तेजी से हुआ है उसने गंगा को पुनः राष्ट्रीय एजेंडे पर ला दिया है बरसों से स्व. राजीव गांधी का चलने वाला गंगा एक्शन प्लान और यूपीए सरकार का गंगा प्राधिकरण भूली-सी बात लगने लगा।

किंतु उमा जी जो गंगा समग्र के साथ भाजपा में पुनः दाखिल हुई जिन्होंने गंगा के किनारे-किनारे पूरी यात्रा तक की। वे सभी इस पूरे गंगा मंथन में गंगा के स्रोत को लगभग भूल ही गईं। पूछने पर भी गंगा पर बन रहे बांधों के विषय में बात टाल गए।

एक पत्रकार को उन्होंने एक भोला सा जवाब दिया कि अब नई तकनीक सहारे गंगा पर बन रहे बांधों के साथ भी गंगा अविरल रह सकती है। उनकी समझ में यह क्यों नहीं आता कि गंगा पर बांध का प्रश्न मात्र थोड़े से गंगा जल को किसी पाइप लाइन के सहारे बहाना नहीं है। वरन गंगा घाटी की पूरी जैव विविधता, पर्यावास, पारिस्थितिकी, गंगा का जल संग्रहण क्षेत्र का रख रखाव, बांध से उजड़े लोगों का पुनर्वास, गंगा घाटी का भू-विज्ञान सब कुछ गंगा की अविरलता से जुड़ा है।

आप इसको एक भावनात्मक मुद्दा बनाकर साधू संतों और तमाम तरह के हजारों लोगों को एक ही दिन में एक साथ बिठाकर समझ नहीं सकते और देखा जाए तो वे गंगा से जुड़े विषयों को भली भांति जानती है। उसके लिए सिर्फ सच्ची राजनैतिक इच्छा शक्ति की जरुरत है। गंगा अविरलता शब्द की सरकारी नई परिभाषा समझ से परे है।

गंगा की अविरलता और निर्मलता की ये कोई नई शुरुआत नहीं है। चूंकि गंगा सफाई का मुद्दा बड़ी परियोजना और पूंजीगत निवेश का है। इसीलिए उस पर खूब योजना बनेगी। परिवहन के लिए गंगा जी को खूब खोदा जाना भी एक अच्छा व्यवसाय है। फिर हर सौ किलोमीटर पर बैराज बनना, उठने गिरने वाले पुलों का बनना ताकि मालवाही जहाज आ-जा सके। यह सब एक नए व्यवसाय की शुरुआत है जिसे नितिन गडकरी ने स्पष्ट तरीके से कहा है और उमा जी ने बहुत उत्साह के साथ इस विकास को आंदोलन बनाए जाना स्वीकार किया है।

इससे जाहिर है कि वे गंगा की आस्था को लेकर या तो स्वयं भ्रम में हैं या जनता को भ्रम में डाला जा रहा है। गंगा को बार-बार साबरमती नदी जैसा साफ करने का जो सपना दिखाया जा रहा है उसकी सच्चाई बहुत अलग है। साबरमती अहमदाबाद शहर की शुरुआत से अंत तक साढ़े दस किलोमीटर नर्मदा में बन रहे सरदार सरोवर बांध में लाखों को उजाड़कर बन रहे सरदार सरोवर से जो पानी कच्छ सौराष्ट्र जाना था वो पानी मात्र अहमदाबाद के किनारे साबरमती में बहाया जा रहा है।

शहर के बाद साबरमती वैसी ही है जैसी हमारी दिल्ली में बहती यमुना। जुलाई के पहले हफ्ते में जाहिर, तीन बरसों के अध्ययन के बाद केंद्रीय जल आयोग की रिर्पोट भी यह बताती है कि साबरमती सहित गुजरात की 16 नदियों में खतरनाक जहरीले तत्व बह रहे हैं।

नई सरकार के बजट में पर्यटन के नाम पर केदारनाथ का जिक्र है यह सरकारी अदूरदर्शिता को बताता है कि उत्तराखंड में आपदा अब 2014 में फिर आई है जब वहां तीर्थ यात्रियों की संख्या नगण्य है। गंगा घाटी से सदियों से रहते आए पुत्र पुत्रियों की आर्थिक स्थिति शोचनीय हो रही है जिसका जिक्र अब कहीं नहीं है। गंगा घाटी के विकास की कोई योजना नही। मैदान के लोगों को इसकी कोई चिंता भी नही। किंतु हमारी अपेक्षा तो है।

बजट में एक नए हिमालय संस्थान की बात भी की गई है। किंतु जो आजतक विभिन्न संस्थानों पर्यावरणविदों ने हिमालय रक्षण की बातें कहीं हैं उनका अनुपालन ही हो जाए तो भी हिमालय काफी बच जाएगा। गंगा पर नए कानून की बात सरकार ने कही है। क्या पुराने पर्यावरणीय कानूनों पर कोई इच्छाशक्ति व्यक्त की गई? इसी संदर्भ में नए पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने मंत्री बनते ही जो पहला काम किया उसमें परियोजनाओं को ऑनलाइन स्वीकृति देना शामिल है। किंतु क्या पर्यावरण का घोर उलंघन करते हुए स्थानीय जनता को पुलिस का भय दिखाकर बांध बनाने वाली कंपनियों की जांच के लिए एक भी शब्द कहा क्या?

बांधों के विषय पर सरकार बोलने से इतना डरती क्यों है? जैसे नए बैराज बनाने के लिए राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के साथ बैठने का आयोजन अलग से करने की प्रतिबद्धता और क्रियान्वयन हो रहा है वैसा गंगा पर बांधों के संदर्भ में क्यों नहीं?

गंगा को अविरल और निर्मल रखने की घोषणा कोई भी करता है तो उसे सबसे पहले गंगा के मायके के पुत्र पुत्रियों की समस्या का निदान करना होगा बिना गंगा के स्रोत को संभालने और गंगा को प्राकृतिक रूप में छोड़े अविरलता निर्मलता थोथी साबित होंगी।

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