जिस तट मुकुलित हुई मनुजता
चलता है जिससे जीवन
विकसित हुई सभ्यता जिससे
आलोकित होता जन-मन
निर्मल शीतल धवल चाँदनी
में कल-कल लहराती है
स्वप्न सजाती है नयनों में
पल-पल जागी बहती रहती है
आँसू बहते रहते माँ के
सागर खारा हो जाता है
तट तट मेले-उत्सव सजते
तन मैला क्यों रह जाता है
सदियों से निर्मलता देता
मुक्त किया संताप से
गदला आज हुआ गंगा जल
मनुज जाति के पाप से !!
चलता है जिससे जीवन
विकसित हुई सभ्यता जिससे
आलोकित होता जन-मन
निर्मल शीतल धवल चाँदनी
में कल-कल लहराती है
स्वप्न सजाती है नयनों में
पल-पल जागी बहती रहती है
आँसू बहते रहते माँ के
सागर खारा हो जाता है
तट तट मेले-उत्सव सजते
तन मैला क्यों रह जाता है
सदियों से निर्मलता देता
मुक्त किया संताप से
गदला आज हुआ गंगा जल
मनुज जाति के पाप से !!
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Post By: RuralWater