गंगा चेतना अभियान की हुई शुरुआत

गंगा तपस्या सिद्धि हेतु संवाद
गंगा तपस्या सिद्धि हेतु संवाद

स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद जी की तपस्या के समर्थन में मातृ सदन, हरिद्वार में दो दिवसीय गंगा तपस्या सिद्धि हेतु संवाद के परिणाम स्वरूप यह निश्चित किया गया है कि गंगा चेतना हेतु भारत के राज और समाज को जागृत करने के लिये गंगा चेतना अभियान का शुभारम्भ किया जाये।

इस संवाद में देशभर कर्नाटक, राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, बिहार, पश्चिम बंगाल, झारखंड, दिल्ली, हरियाणा और पंजाब आदि से राष्ट्रीय स्तर पर कार्य करने वाले वैज्ञानिक/पर्यावरण विद्वानों/डॉक्टरों के दो दिन के चिन्तन में गंगाजल एवं मानवीय स्वास्थ्य सम्बन्धों पर गहन चिन्तन करके गंगाजल के विशिष्ट गुणों को देशभर की जनता को समझाने के लिये एक गंगा चेतना यात्रा का निर्णय लिया है तथा देशभर में गंगाजी के विशिष्ट जल गुणों का भारत के स्वभाव, पर्यावरणीय प्रवाह, सामाजिक एवं सांस्कृतिक सम्बन्धों पर क्या प्रभाव पड़ता है। इसे वैज्ञानिक और विशेषकर ऐसे वैज्ञानिक जिनके मन में गंगा के प्रति आस्था के साथ-साथ उसकी वैज्ञानिक तथ्यों की गहराई से समझने की चाह भी है वे ही इस चेतना के द्वारा जनमानस को गंगाजी के विशिष्ट गुणों को समझाकर प्रभावित करेंगे।

गंगाजी की अविरलता एवं निर्मलता को सुनिश्चित करने के लिये 6 कार्य समूहों का गठन किया गया है।

1. सामाजिक चेतना हेतु: इस समूह में सामाजिक कार्यकर्ता, पत्रकार, पर्यावरणविद, पर्यावरण शिक्षकों को गंगा चेतना समूह के नाम से कार्य करने हेतु गठन किया गया।

2. शिक्षण संस्थाओं को गंगाजल के विशिष्ट गुणों का ज्ञान देने हेतु पर्यावरणविद एवं पर्यावरण वैज्ञानिकों का समूह बनाकर इस काम को करने की जिम्मेदारी दी गई।

3. जनप्रतिधियों को गंगा के साथ जोड़ने हेतु जन चेतना समूह इसमें पर्यावरणविदों और जन प्रतिनिधियों को शामिल कर समूह बनाया गया।

4. गंगा निदान समूह: यह विशिष्ट समूह स्वामी सानंद एवं इंजीनियर परितोष त्यागी जी के नेतृत्व में सक्षम एवं गंगा प्रेमी वैज्ञानिकों को शामिल करके गंगा की बीमारी के निदान के काम में लगेगा जिसके अनुसार भारत सरकार को गंगा की चिकित्सा करनी होगी।

5. दो दिन के सम्मेलन में भारत भर से आये भक्तों, प्रेमियों, वैज्ञानिकों, गंगा को चाहने वाले राजनेताओं आदि ने गंगा के लिये देश भर में सत्याग्रह, धरना और अनशन करने का निर्णय लिया है। दिल्ली में राजघाट पर और गंगाजी की एक उद्गम धारा केदारनाथ और बद्रीनाथ कर्नाटक की राजधानी बंगलुरु, मध्य प्रेदश की राजधानी भोपाल, लखनऊ, राजस्थान के भीकमपुरा में संकल्प किया गया है। इससे देश भर में गंगा से जुड़ी चेतना को उभारने हेतु एक अभियान आरम्भ होगा।

6. इस सम्मेलन में पारित घोषणापत्र को प्रधानमंत्री तथा भारत सरकार के अन्य मंत्रियों को भेजा जाएगा। हरिद्वार घोषणा पत्र इस सम्मेलन की भारत की जनता को गंगा के गुणों को जानने के लिये की गई है। इसका सभी प्रकार से प्रचार प्रसार किया जायेगा।

सम्मेलन के अन्तिम दिन पारित किया गया हरिद्वार घोषणा पत्र एवं प्रधानमंत्री से साग्रह निवेदन निम्नवत हैः-

हरिद्वार घोषणा पत्र

जैसा कि गंगा मैया हर भारतीय की पहचान और श्रद्धा का केन्द्र हैं तथा भारत सरकार गंगा जी को अविरल और निर्मल बनाने के प्रयत्न में असफल रही है। गंगाजी की इस दुर्दशा से अनेक सन्त, समाज सेवक व प्रबुद्धजन क्षुब्ध हैं और इन सबकी भावनाओं को स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद (पूर्व प्रोफेसर जी.डी.अग्रवाल) ने 22 जून 2018 से हो रहे आमरण अनशन द्वारा मूर्तरूप दिया है। तदैव मातृ सदन, हरिद्वार में आयोजित यह तपस्या सिद्धि हेतु संवाद में भाग लेने वाले भारतीय नागरिक यह घोषणा करते हैं कि-

1. गंगाजी के लिये प्रस्तावित अधिनियम ड्राफ्ट 2012 पर तुरन्त संसद द्वारा चर्चा कराकर पास कराया जाना अति आवश्यक है, ऐसा न हो सकने पर उस ड्राफ्ट के अध्याय 1 (धारा 1 से धारा 9) को राष्ट्रपति अध्यादेश द्वारा तुरन्त लागू और प्रभावी कराया जाये।

2. अलकनन्दा, धौलीगंगा, नन्दाकिनी, पिंडर तथा मन्दाकिनी पर सभी निर्माणाधीन/प्रस्तावित जल विद्युत परियोजनाओं को पंचेश्वर सहित तुरन्त निरस्त कर दिया जाना चाहिये।

3. प्रस्तावित अधिनियम की धारा 4(डी) वन कटान तथा 4(एफ) व 4(जी) किसी भी प्रकार की गंगा में खदान पर पूर्ण रोक तुरन्त लागू कर दी जाये, विषेशतया हरिद्वार कुम्भ क्षेत्र में।

4. गंगा-भक्त परिषद का प्रोविजनल गठन अविलम्ब किया जाना आवश्यक है, जो गंगाजी और केवल गंगाजी के हित में काम करने के लिये कृत संकल्प हो और उसमें प्रमुखता से गंगा भक्तों व वैज्ञानिकों को सम्मिलित होना चाहिए। इस परिषद के अधिकार क्षेत्र में यह होना चाहिये कि वह सुनिश्चित करे कि किन क्रिया कलापों पर प्रतिबन्ध हो, किन पर नियंत्रण हो और किन को प्रोत्साहित किया जाये।

5. स्वामी सानंद से प्रेरणा लेकर हर संस्था और व्यक्ति यथासम्भव प्रयत्न करेगा कि समाज गंगाजी के प्रति अपनी श्रद्धा को व्यवहार से प्रकट करेगा और शासन को अपना उत्तरदायित्व पूरा करने के लिये दवाब डालेगा।

6. गंगाजी के जल-ग्रहण क्षेत्र में सतत समावेशी विकास की नीति बनाई जाय।

7. जलग्रहण क्षेत्र के निवासियों के पूर्व की भाँति वनों पर हक-हकूक बहाल किये जायें।

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