गंग धार

लांघ वन उपत्यका
त्रिलोक ताप हरण हेतु
हिमाद्रि तुंग कन्दरा
त्याग कर निकल चली
स्वमार्ग को प्रशस्त कर
अतुल उमंग से भरी
विरक्त भाव धार कर
प्रवेग से उमड़ चली

कभी सौम्य पुण्यदा
रौद्र रूप धारती कभी
ब्रह्म के विधान का
दिव्य लेख लिख रही
विवेकहीन मनुज को
प्रचंड प्रदाहिनी बनी
अदम्य शक्ति से भरी
दम्भ भंग कर रही

व्यथित के परित्राण हेतु
बह रही सुरसरि
प्रचंड नाद सुन अवाक्
सृष्टि देखने लगी
कामना परोपकार
सह अपूर्व त्याग धारे
जाह्नवी चली चली
अवनि हर्षने लगी

जगति के हितार्थ
ममत्व की छवि लिये
विवेक - धैर्य धारती
गॅंग धार बह रही
अकाल को विनाशती
हरीतिमा बिखेरती
सुकर्म करती तापसी
जलधि ओर बढ़ रही !

Path Alias

/articles/ganga-dhaara

Post By: RuralWater
×