गन्ने की यंत्रीकृत खेती हेतु उप-सतही ड्रिप फर्टिगेशन प्रणाली

उप-सतही ड्रिप फर्टिगेशन प्रणाली Pc-कृषि जागरण
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सफलता की गाथा

तमिलनाडु में गन्ना सबसे महत्त्वपूर्ण व्यावसायिक फसलों में से एक है जिसकी 85 टन/ हेक्टेयर की औसत उत्पादकता के साथ लगभग 3.0 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में खेती की जाती है। वर्तमान जल संकट की स्थिति को देखते हुए गन्ना की उत्पादकता प्रति इकाई सिंचाई जल प्रयोग को बढ़ाने हेतु सिंचाई के पानी का दक्ष उपयोग करना एक महत्वपूर्ण उपाय बन जाता है। गन्ना उत्पादक किसानों द्वारा व्यापक रूप से सिंचाई की बाद पद्धति का बहुतायत में उपयोग किया जाता है जिससे वाष्पीकरण और वितरण में होने वाले भारी नुकसान के कारण पानी का अपर्याप्त उपयोग हो पाता है। इसके अलावा, गन्ना किसानों को आजकल गन्ने की फसल के लिए विशेष रूप से गन्ने की फसल की खेती हेतु श्रमिकों की अनुपलब्धता के कारण नई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। अकेले ही कटाई की लागत में कुल प्राप्त आय का 30 प्रतिशत भाग खर्च हो जाता है और इसके कारण किसानों को कम श्रम वाली फसलों की गहन खेती करने के लिए मजबूर होना पड़ता है।
पिछले 4 वर्षों के अनुसंधान परिणामों ने स्पष्ट रूप से संकेत दिया कि पारंपरिक तरीके के तहत गन्ना रोपण विधि से प्राप्त उपज 85 टन/ हेक्टेयर की तुलना में गन्ने की यंत्रीकृत खेती से 25-30% तक की पानी की बचत के साथ गन्ने की उपज में दोगुनी यानी 170 टन/ हेक्टेयर तक अधिक वृद्धि हो सकती है।

तमिलनाडु राज्य के शिवगंगई जिले के धमाराकी गाँव में श्री थिरु के माधिवन्नन प्रगतिशील किसानों में से एक है जो पिछले दस वर्षों से गन्ने की खेती कर रहे हैं। उनके पास कुल 5.25 हेक्टेयर कृषि भूमि है और उनका परिवार पूरी तरह से कृषि पर निर्भर है। उन्होंने गन्ने की खेती के लिए मेड़ एवं कुंड सिंचाई प्रणाली को अपनाया जिससे सिंचाई के पानी और प्रयोग किये गए पोषक तत्वों की बहुत बर्बादी होती है। कुओं से सीमित जल की उपलब्धता के कारण वे अपनी भूमि के दो हेक्टेयर क्षेत्र में खेती करते थे और बाकी की भूमि को परती छोड़ देते थे। जल प्रबंधन पर अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना का मदुरै केंद्र समय समय पर विभिन्न जिलों में किसानों और विस्तार अधिकारियों के लिए विभिन्न जल बचत तकनीकों पर प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करता आ रहा है। श्री के माथिवन्त्रन ने तमिलनाडु के शिवगंगई जिले में आयोजित प्रशिक्षण कार्यक्रमों में से एक में भाग लिया और गन्ने की खेती की उप सतह ड्रिप सिंचाई विधि के महत्वपूर्ण पहलुओं को सीखा।  

उन्होंने अनुसंधान फार्म का दौरा किया और अधिक रस वाले लंबे गन्ने के तनों की संख्या को देखकर बहुत खुश हुए जिनसे अंततः गन्ना की अधिक उपज प्राप्त होती है। इस तकनीक से पूरी तरह आश्वस्त होने के बाद उन्होंने वर्ष 2008 के दौरान अपने 3 हेक्टेयर के खेत में इसको अपनाया और बाद में वर्ष 2009 में एक-एक रेटून फसल की भी खेती की। उन्होंने जल प्रबंधन पर अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना के मदुरै केंद्र के वैज्ञानिकों द्वारा दी गई तकनीकी सलाह का भी पालन किया। गन्ने की खेती की उप सतही विधि पर इस उन्नत तकनीक ने लेआउट से लेकर फसल कटाई तक सभी मशीनीकरण की प्रक्रिया में सुविधा प्रदान की और जिसके कारण गन्ने की खेती के सभी ऑपरेशन समय पर पूरे किए जा सके।

श्री माथिवन्नन कहते हैं, "चूंकि पानी और पोषक तत्व फसल वृद्धि की आवश्यकता के अनुसार प्रयोग किए जाते हैं, इसलिये, हमारी उत्पादकता लगभग 100 प्रतिशत से काफी अधिक बढ़ चुकी है। आगे वे बताते हैं कि इस तकनीक को अपनाने से मुझे पारंपरिक विधि की तुलना में 112 प्रतिशत से अधिक गन्ने की उपज और 30% तक पानी की बचत प्राप्त हुई (तालिका 11)। अब मुझे विश्वास है कि में पानी की बचत के कारण उसी सिंचाई के पानी के साथ गन्ने की खेती में अतिरिक्त क्षेत्र को उगा सकता हूँ। गन्ने में आगे उपसतह तकनीक अधिक रेटून क्षमता और वृद्धिशील आय के लिए गुंजाइश प्रदान करती है और इसलिए, यह तकनीक निश्चित रूप से हमारे गन्ने की खेती को टिकाऊ बनाए रखेगी।

तालिका 11. गन्ने की फसल में उप सतही यंत्रीकृत तकनीक को अपनाने से पहले और बाद में उत्पादकता एवं आय की तुलना  श्री माधियन्त्रन पड़ोस के गाँवों और जिलों में इस तकनीक के प्रसार हेतु अन्य किसानों के लिए मॉडल के रूप में सेवारत हैं। यह तकनीक
तालिका 11. गन्ने की फसल में उप सतही यंत्रीकृत तकनीक को अपनाने से पहले और बाद में उत्पादकता एवं आय की तुलना श्री माधियन्त्रन पड़ोस के गाँवों और जिलों में इस तकनीक के प्रसार हेतु अन्य किसानों के लिए मॉडल के रूप में सेवारत हैं। यह तकनीक

श्री माधियन्त्रन पड़ोस के गाँवों और जिलों में इस तकनीक के प्रसार हेतु अन्य किसानों के लिए मॉडल के रूप में सेवारत हैं। यह तकनीक कृषक समुदाय के बीच बहुत ही लोकप्रिय हो रही है और बहुत से किसान इस तकनीक को अपनाने के लिए आगे आ रहे हैं। एक वर्ष के भीतर 5000 एकड़ से भी अधिक क्षेत्रफल को इस प्रणाली के तहत कवर किया गया है।

 

 

 

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