गन्ने की फसल बनी वरदान

बालमुकुंद के खेत में हैरतअंगेज गन्ने की इतनी बंपर पैदावार कैसे हुई? यह जानने के लिए आजकल दूर-दूर से बहुत से किसान,सरकारी महकमों के अफसर, कृषि विश्वविद्यालयों के छात्र, पत्रकार और कृषि वैज्ञानिक आदि बड़ी संख्या में उनके पास आ रहे हैं। बालमुकुंद के खेत में खड़े भरपूर लंबे, मोटे व झूमते हुए गन्नों की बेमिसाल फसल देखकर सब अपनी जिज्ञासा शांत करने के लिए उनसे तरह-तरह के सवाल करते हैं। कुदरती मिठास की खेती में मिली उनकी इस नायाब कामयाबी का राज पूछते हैं। सीधे-सादे किंतु शिक्षित किसान बालमुकुंद अपनी हर कामयाबी को नई तकनीक व गन्ने की फसल से जोड़ते हैं।उत्तर प्रदेश में मेरठ जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ रहे पक्के मकान, तरक्की के द्वार खोलती पक्की सड़कें व खेत-खलिहानों में घूमते ट्रैक्टर गन्ने की खेती से हो रहे ग्रामीण विकास के साक्षी हैं। किसानों का जीवन-स्तर तेजी से सुधर रहा है। गांवों की कायापलट हो रही है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरठ, बागपत व बुलंदशहर आदि जिलों के ग्रामीण इलाकों में फैली खुशहाली साफ दिखाई देती है। हरिद्वार रोड पर एक कस्बा पड़ता है दौराला। वहां से मवाना जाने वाली सड़क पर एक गांव है लावड़। वहां के परिश्रमी, लगन के पक्के व अत्यंत प्रगतिशील किसान बालमुकुंद की सफलता आजकल दूसरों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन रही है क्योंकि उन्होंने सामान्य के मुकाबले गन्ने की तीन गुना पैदावार लेने में सफलता प्राप्त की है। आमतौर पर गन्ने की लंबाई 5-6 फीट होती है लेकिन बालमुकुंद के पूरे खेत में इस साल 18 फीट ऊंचे गन्ने खड़े हैं। वे खुद अपने खेत में खड़े हो तो ऊंचे-ऊंचे गन्नों के सामने काफी बौने नजर आते हैं।

बालमुकुंद के खेत में हैरतअंगेज गन्ने की इतनी बंपर पैदावार कैसे हुई ? सीधे-सादे किंतु शिक्षित किसान बालमुकुंद अपनी हर कामयाबी को नई तकनीक व गन्ने की फसल से जोड़ते हैं। उन्होंने अपनी सफलता की कहानी लेखक को सुनाई। यहां पेश है उनकी सफलता की कहानी उन्हीं की जुबानी।

.गन्ने की खेती तो हमारे खानदान में पुरखों के जमाने से चली आ रही है। मेरे पिताजी श्री दीनदयाल भी गन्ने की खेती करते थे और मैं भी गन्ने की खेती करता हूं, लेकिन मैने खेती के वैज्ञानिकों की सलाह पर बुवाई से कटाई तक के सभी तरीकों में थोड़ा सुधार जरूर किया है और उसी का नतीजा है कि मेरी फसल की पैदावार और आमदनी में बढ़ोतरी हुई है। हमारे मेरठ जिले में बड़ी-बड़ी पांच चीनी मिलें हैं। अतः गन्ना बेचने में कोई दिक्कत नहीं आती। ऊपर से सोने में सुहागा यह है कि हम किसानों ने आपस में मिलकर सहकारी गन्ना विकास समिति बना रखी है। पिछले 75 सालों से उसके माध्यम से दौराला चीनी मिल को हमारा गन्ना सप्लाई होता है।

गन्ने की पूरी कीमत एनईएफटी या आरटीजीएस से झट हमारे बैंक खाते में आ जाती है, लेकिन इसके बावजूद भी अब नई उम्र की नई फसल का मन गांव, खेत-खलिहानों से हट रहा है। दूसरी ओर हर घर में बंटवारे की वजह से भी खेती का रकबा तेजी से घट रहा है। अतः नए-नए तरीकों, तरकीब व तकनीक से खेती की लागत कम होना व खेती से हो रही आमदनी को बढ़ाना जरूरी है। कुल जमीन 5 हेक्टेयर के बड़े हिस्से पर आलू के बाद 0238 प्रजाति का गन्ना बोया था।

खेत में गन्ने की लंबाई इतनी ज्यादा बढ़ी कि उसे खड़ा रखने के लिए 5 जगहों से बांधना पड़ा। इस सफलता में सबसे अहम व उल्लेखनीय बात यह है कि हर कदम पर गन्ना विकास विभाग के कर्मचरियों व अधिकारियों का पूरा सहयोग मिला। मैं मेरठ मंडल के क्षेत्रीय उ.प. गन्ना आयुक्त डॉ.वी.बी.सिंह का बहुत आभारी हूं जिन्होंने दौराला मिल में हुई किसान गोष्ठी में बहुत विस्तार से यह बताया था कि गन्ने की खेती में ज्यादा फायदा कैसे लिया जा सकता है? उनके कहने के मुताबिक ही बुवाई करने से पूर्व मैंने खेत की बढ़िया तैयारी की। इसके लिए 3 हैरो व 2 टीलर से जुताई की गई थी। पूरी तरह कीट-रोगरहित स्वस्थ खेत से अपरिपक्व गन्ने के ऊपरी एक तिहाई हिस्से से बीज का चुनाव किया गया। तीन आंख के टुकड़ों को बावस्टीन से उपचारित करने के बाद बोया गया था। अतः फसल को ग्रासी शूट जैसे रोगों का खतरा नहीं रहा।

खेत की मिट्टी की जांच कराने के उपरांत फसल में 5 कि.ग्रा. सल्फर आदि आवश्यक सूक्ष्म पोषक तत्व डाले गए। अविवेकपूर्ण तरीके से खाद प्रयोग करने के स्थान पर केवल संतुलित मात्रा में व उचित ढंग से ही उर्वरक प्रयोग किए गए। बुवाई के 32 दिनों बाद पहले पानी के साथ कोराजन का स्प्रे व 55 दिन बाद यूरिया की टाप ड्रेसिंग की गई। सिंचाई करते वक्त जल प्रबंधन में इस बात का खास ध्यान रखा गया कि पानी बहुत अनमोल है। अतः यथासंभव उसे बचाया जाए तथा उसका अपव्यय कतई न हो। इसके लिए आवश्यकतानुसार सिर्फ 15 बार हल्की सिंचाई की गईं। बाकी काम बारिश से चल गया। मेड़बंदी करके बारिश का पानी खेत में प्रयोग किया गया।

.22 जुलाई, 2 अगस्त,17 अगस्त,7 सिंतबर व 3 अक्टूबर को पांच बार गन्ने की सूखी हुई पत्तियों से फसल की बंधाई की गई। गन्ना फसल को कीड़ों की मार से बचाने के लिए जून-जुलाई के महीने में सुरक्षित विधि से क्लोरोपायरीफास व साईफरमैथीन दवाओं का छिड़काव किया गया। अगस्त के महीने में 20 कि.ग्रा. पीएसबी.कल्चर खेत में मिलाया गया। मेरठ जिले में गन्ने की औसत पैदावार सामान्यतः 6-700 कुं. है, लेकिन इन सब नियोजित प्रयासों का परिणाम यह हुआ कि उपज 3 गुना हुई। मेरे गन्नों को मंडल स्तर पर प्रदर्शित किया गया, सर्वत्र प्रशंसा हुई तथा लाभकारी गन्ना मूल्य मिला। सबसे बड़ा फायदा तो यह हुआ कि सफलता की यह कहानी दूसरों के लिए अनुकरणीय बन रही है। निश्चित रूप से यह सुधारात्मक बदलाव की दिशा में एक उपयुक्त एवं स्वागत योग्य कदम है।

(लेखक कार्यालय उ.प. गन्ना आयुक्त,पांडवनगर, मेरठ में क्षेत्रीय प्रचार अधिकारी हैं।) ई-मेल: vishnoi.hari@gmail.com

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Post By: vinitrana
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