नई दिल्ली: संयुक्त राष्ट्र के अन्तर सरकारी पैनल (आईपीसीसी) की जलवायु परिवर्तन पर सोमवार को जारी की गई नवीनतम रिपोर्ट ने चेतावनी दी है कि वैश्विक तापमान उम्मीद से अधिक तेज गति से बढ़ रहा है। कार्बन उत्सर्जन में समय रहते कटौती के लिये कदम नहीं उठाए जाते तो इसका विनाशकारी प्रभाव हो सकता है।
ग्लोबल वार्मिंग से बुरी तरह प्रभावित होने वाले देशों में भारत शामिल होगा, जहाँ बाढ़ तथा सूखे जैसी आपदाओं के साथ-साथ जीडीपी में गिरावट भी हो सकती है।
मानवीय गतिविधियों की वजह से वैश्विक तापमान (औद्योगिक क्रान्ति से पूर्व की तुलना में) पहले ही एक डिग्री सेंटीग्रेड बढ़ गया है। रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि इसी दर से धरती गरम होती रही तो वर्ष 2030 और 2052 के बीच ग्लोबल वार्मिंग का स्तर बढ़कर 1.5 डिग्री तक पहुँच सकता है।
पेरिस समझौते की समीक्षा के लिये इस वर्ष दिसम्बर में जब पोलैंड में दुनियाभर के नेता एकत्रित होंगे तो यह रिपोर्ट वैश्विक ताप के मामले पर उन्हें महत्त्वपूर्ण वैज्ञानिक इनपुट प्रदान करने में मददगार हो सकती है।
ग्लोबल वार्मिंग के प्रभावों के सन्दर्भ में, रिपोर्ट में कहा गया है कि वैश्विक तापमान में एक डिग्री बढ़ोत्तरी होने के परिणामस्वरूप दुनियाभर में पहले ही विनाशकारी मौसमी घटनाएँ बढ़ रही हैं, समुद्री जल-स्तर में वृद्धि हो रही है और आर्कटिक में बर्फ पिघल रही है। अगर तापमान इसी तरह बढ़ता रहा तो कई ऐसे पर्यावरणीय बदलाव देखने को मिल सकते हैं, जिनमें सुधार करना सम्भव नहीं होगा।
पुणे स्थित भारतीय उष्णदेशीय मौसम विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिक डॉ. रॉक्सी मैथ्यू कोल, जो इस विशेष रिपोर्ट के समीक्षकों में से एक थे, ने कहा, “दक्षिण एशिया, विशेष रूप से भारत, पाकिस्तान और चीन तेजी से बढ़ते वैश्विक ताप के प्रमुख केन्द्र हैं। सभी जलवायु अनुमान बताते हैं कि ग्लोबल वार्मिंग में 1.5 डिग्री वृद्धि होने पर इन क्षेत्रों को विभिन्न रूपों में विस्तृत रूप से खतरों का सामना करना पड़ सकता है। बढ़ती ग्लोबल वार्मिंग के प्रभावों में भयानक सूखा और पानी की कमी, ग्रीष्म लहर, पर्यावरणीय आवास का क्षरण और फसल पैदावार में गिरावट शामिल है।”
डॉ. कोल ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि “इस रिपोर्ट से पता चलता है कि यदि वैश्विक तापमान वृद्धि 1.5 डिग्री सेल्सियस के बजाय दो डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाता है, तो भारत जैसे देशों एवं दक्षिण-पूर्व एशिया और अफ्रीका के देशों के आर्थिक विकास (सकल घरेलू उत्पाद) पर बुरा असर पड़ सकता है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण ग्लेशियरों की बर्फ पिघलने से नदियों की बाढ़ और समुद्री जल-स्तर बढ़ने से तटीय क्षेत्रों के जलमग्न होने के मामले बढ़ रहे हैं और भविष्य में भी इन विभिन्न बाढ़ रूपों का प्रकोप बढ़ने का अनुमान है। अत्यधिक बारिश और बर्फ पिघलने के कारण बाढ़ से प्रभावित क्षेत्र और उसके प्रभाव का दायरा भी बढ़ रहा है। इससे भारत में पाँच करोड़ से अधिक लोग समुद्री जल-स्तर के बढ़ने से तटीय क्षेत्रों में बाढ़ से सीधे प्रभावित होंगे।”
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), गाँधीनगर के वैज्ञानिक डॉ. विमल मिश्रा, जिनके अध्ययन को इस रिपोर्ट में उद्धृत किया गया है, ने बताया, “भारत में तापमान से सम्बन्धित सबसे प्रभावी कारकों में ग्रीष्म लहरों का प्रकोप मुख्य रूप से शामिल है, जो आने वाले समय में आम हो सकता है। कुछ हद तक हम इसके गवाह भी बन रहे हैं।” डॉ. मिश्रा ने बताया, “ग्लोबल वार्मिंग के अन्य उल्लेखनीय प्रभावों में औसत और चरम तापमान में अनुमानित वृद्धि शामिल है, जिसके कारण कृषि, जल संसाधन, ऊर्जा और सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्रों का प्रभावित होना निश्चित है। यदि वैश्विक औसत तापमान सदी के अन्त तक 1.5 डिग्री से ऊपर या उससे अधिक होता है तो भारत में ग्रीष्म लहरों की आवृत्ति और उससे प्रभावित आबादी में कई गुना वृद्धि हो सकती है।”
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अनुवाद : उमाशंकर मिश्र
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