ग्लोबल वार्मिंग - मानव और वन्य जीवों में बढ़ता संघर्ष

global warming
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बताया जा रहा है कि अधिकांश जंगली जानवर पानी की तलाश में बसासत की ओर रुख कर रहे हैं। पेयजल आपूर्ति ना होने पर वे आक्रामक हो रहे हैं। जिस कारण वन्य जीव व मानव में संघर्ष बढ़ रहा है।

जंगल कम हो रहे हैं तो जंगलों में वन्य जीवों की बहुप्रजातियाँ भी नष्ट हो रही हैं। वे सरकारी आँकड़ों को सिर्फ कागजी घोषणा करार देते हैं। कहते हैं कि पहाड़ में हो रहा विकास भी इसका कारण माना जाना चाहिए। विकास के नाम पर पहाड़ में हो रहे बड़े निर्माण क्या वन्य जीवों के रहन-सहन पर प्रभाव नहीं डाल रहे? इस निर्माण के उपयोग में हो रहे रासायनिक पदार्थों और अन्य मशीनी उपकरणों के कारण वन्य जीवों पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है।जैवविविधता नष्ट हो रही है। प्राकृतिक जलस्रोत सूखने की कगार पर पहुँच चुके हैं। अधिकांश स्रोत तो सिर्फ मौसमी ही रह गए हैं। फलस्वरूप इसके जंगली जानवरों की फूड चेन, पानी की आपूर्ति सहित गड़बड़ा गई है। वे अब अपने वासस्थलों को छोड़कर आबादी की ओर रुख कर रहे हैं। हालात यूँ बन आई कि कार्बेट नेशनल पार्क में बाघ ने एक हाथीनी को मार डाला।

इसी पार्क में हाल ही में बाघ ने चार महिलाओं को भी अपना निवाला बनाया। उत्तरकाशी के दूरस्थ गाँव गैर में बाघ ने एक आठ वर्षीय बालक को घर से उठाकर ले गया। पौड़ी में कई स्थानों पर बाघ का इतना आतंक है कि लोग झुण्ड बनाकर साथ रहना भी खतरे से खाली नहीं मानते हैं। इस तरह की घटनाएँ उत्तराखण्ड में आये दिन अखबारों की सुर्खियाँ बनती जा रही हैं।

उल्लेखनीय हो कि जलवायु परिवर्तन का असर उत्तराखण्ड हिमालय में प्राकृतिक आपदा के रूप मे ही नहीं दिखाई दे रहा है बल्कि वन्य जीव और मानव के बीच बढ़ रहे संघर्ष भी इसी का ही असर बताया जा रहा है। जंगली जानवरों को समय पर पानी की आपूर्ति नहीं हो पा रही है।

और-तो-और जंगलों में प्राकृतिक जलस्रोत बड़ी तेजी से सूख रहे हैं, तो उनके मुताबिक के जंगल भी नष्ट हो चुके हैं। इन जीव-जन्तुओं के वासस्थल भी जैवविविधता के दोहन के कारण अपर्याप्त हो चुके हैं। यही वजह है कि राज्य में दिनों-दिन मानव-वन्य जीव में आपसी संघर्ष जानलेवा होता जा रहा है। इसके अलावा तापमान में उतार-चढ़ाव, बर्फबारी और अचानक बारिश जैसे मौसमी बदलावों की वजह से वन्यजीवों की दिनचर्या और प्रजननकाल में अन्तर आ रहा है।

कई परिन्दो ने अपनी दिनचर्या बदल दी है। इस बदलाव के चलते एक हजार छोटे जीव-जन्तुओं का जीवन खतरे में पड़ गया है। वर्ष 2014 में भारतीय वन्य जीव संस्थान के विज्ञानियों ने एक सर्वेक्षण के दौरान यह आशंका व्यक्त की थी आने वाले समय में हाथी-बाघ, बाघ-मानव के संघर्ष तेजी से उभरेंगे। सर्वेक्षण की रिपोर्ट में यह बताया गया था कि वन्य जीवों की आबादी बढ़ने से उनके वासस्थल छोटे पड़ रहे हैं, जिस कारण सीमा व अन्य प्राकृतिक समस्याओं से हाथी-बाघ-मानव-वन्य जीव संघर्ष बढ़ सकते हैं।

इधर इसके चलते केन्द्रीय वन, पर्यावरण मंत्रालय ने तीसरे ‘वाइल्ड लाइफ एक्शन प्लान’ की तैयारी आरम्भ कर दी है। जिसे वर्ष 2017 से लेकर वर्ष 2031 तक क्रियान्वित किया जाएगा। इस प्लान में भी सबसे महत्त्वपूर्ण बिन्दु मानव-वन्य जीव संघर्ष को मानते हुए कई प्रावधान किये गए हैं। इसके लिये नए सिरे से वन्य जीवों की नई फूड चेन को विकसित किया जाएगा। वासस्थलों को क्षति पहुँचने व फूड चेन टूटने से वन्य जीव प्रभावित हो रहा है। इस तरह प्लान में मौसम परिवर्तन को तवज्जो दी जा रही है।

इस हेतु केन्द्रीय वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय वन्य जीव विशेषज्ञों से मशवरा ले रहा है। ज्ञात हो कि केन्द्रीय वन, पर्यावरण मंत्रालय प्रत्येक 15 वर्ष के लिये ‘वाइल्ड लाइफ एक्शन प्लान’ तैयार करता है। जो वन और जन की सुरक्षा में मुफिद हो सके।

पर्यावरण के जानकार इसके उलट बता रहे हैं कि जब से जंगल की सुरक्षा सरकार ने वन विभाग को दी है तब से लोग वन संरक्षण में अपने को दूर समझने लग गए हैं। यही वजह है कि मौजूदा समय में वन माफिया अब वन्य जीव माफिया भी हो चला है। जंगल कम हो रहे हैं तो जंगलों में वन्य जीवों की बहुप्रजातियाँ भी नष्ट हो रही हैं। वे सरकारी आँकड़ों को सिर्फ कागजी घोषणा करार देते हैं। कहते हैं कि पहाड़ में हो रहा विकास भी इसका कारण माना जाना चाहिए।

विकास के नाम पर पहाड़ में हो रहे बड़े निर्माण क्या वन्य जीवों के रहन-सहन पर प्रभाव नहीं डाल रहे? इस निर्माण के उपयोग में हो रहे रासायनिक पदार्थों और अन्य मशीनी उपकरणों के कारण वन्य जीवों पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है। जहाँ उनके वास स्थल नष्ट हो रहे हैं वहीं उनके दोहन में इजाफा हुआ है। ऐसे कई कारण है जिन्हें इस विकासीय योजनाओं में देखा ही नहीं जाता है।

रक्षासूत्र के आन्दोलन के प्रणेता सुरेश भाई कहते हैं कि जिस जंगल व पहाड़ी के नीचे से जलविद्युत परियोजनाओं की सुरंग जाएगी उस सुरंग के ऊपरी जंगल में रह रहे जंगली जानवर सुरक्षित हैं? ऐसी विशालकाय योजनाओं के निर्माण के दौरान उपयोग में लाये जा रहे मशीनी उपकरण व अन्य रासायनिक सामग्रियों से जो जंगली जानवर मारे जाते हैं उनके आँकड़े भी छुपाये जाते हैं।

इधर वन विभाग झूठे आँकड़े प्रस्तुत करके बताता है कि वन्य जीवों की संख्या बढ़ रही है। पर्यारणविद व पद्मश्री अनिल प्रकाश जोशी कहते हैं कि पर्यावरण सन्तुलन का सामान्य विज्ञान है। बड़े जानवर छोटे जानवरों का शिकार करता है। अब छोटे जानवर बहुत कम हो गए, जंगल भी कम हो गए, ऐसे में वन्य जीवों और मानव में संघर्ष की घटनाएँ नहीं बढ़ेंगी तो और क्या। इसलिये योजनाओं के निर्माण से पहले सोचा जाना चाहिए कि इससे जैवविधिता नष्ट तो नहीं हो रही है? यदि हो रही है तो उसके संरक्षण के उपाय कर देना चाहिए। मगर ऐसा अब तक नहीं हो पाया है। इसलिये पहाड़ में प्राकृतिक आपदाएँ सिर्फ बाढ़-भूस्खलन ही नहीं बल्कि मानव-वन्य जीव संघर्ष भी किसी आपदा से कम नहीं है।

भरतीय वन्य जीव संस्थान के वरिष्ठ विज्ञानी डॉ. जीएस रावत का कहना है कि वन्य जीव प्रबन्धन की नीति अपनाई जानी चाहिए। साथ ही प्राकृतिक वासस्थलों में सुधार किया जाना चाहिए। संस्थान के वरिष्ठ विज्ञानी डॉ. सत्य कुमार कहते हैं कि भागीरथी बेसिन के वन्य जीवों के रहन-सहन से सम्बन्धित तापमान, आर्द्रता, वन्य जीवों की संख्या, वन्य जीवों का बर्ताव आदि का बारीकी से अध्ययन किया जा रहा है। इस अध्ययन में सभी छोटे-बड़ जीवों को सम्मलित किया जा रहा है। प्रमुख वन संरक्षक दिग्विजय सिंह खाती कहते हैं कि जलवायु परिवर्तन से वन्य जीवों की जिन्दगी पर गहरा प्रभाव पड़ा है, भालू की नींद खराब हो रही है, स्नो लेपर्ड समेत अन्य जीवों का मिजाज भी बदलते हुए देखा जा रहा है।

सरकारी आँकड़ो पर गौर करें तो प्रदेश में 340 बाघ है और 160 और समाहित हो सकते हैं। इसी तरह अन्य छोटे-बड़े 4880 प्रजाति के जीव-जन्तुओं का वासस्थल भी उत्तराखण्ड हिमालय है। स्टेटस ऑफ टाइगर एंड कॉरिडोर इन वेस्टर्न सर्किल की एक अध्ययन रिपोर्ट बता रही है कि अकेले कार्बेट पार्क में 225 बाघ हैं जबकि 130 बाघ इसके बाहर होने की प्रबल सम्भावना है।

वन्य जीव पीड़ितों को अब दोगुना मुआवजा


बाघ, गुलदार, भालू आदि के हमले से घायल पीड़ितों को अब दोगुना मुआवजा मिलेगा। इसके अलावा सर्पदंश से पीड़ित को भी मुआवजा के दायरे में लाया गया है। यह निर्णय हाल ही में राज्य सरकार ने वन्य जीव बोर्ड की बैठक में ली है। मुख्यमंत्री हरीश रावत ने बताया कि मानव-वन्य जीव संघर्ष की बढ़ती घटनाओं के मद्देनजर राज्य सरकार यह राशि दोगुनी की दी है और साँप के काटने पर दी जाने वाली मुआवजा राशि जल्द ही तय कर दी जाएगी।

मुख्यमंत्री ने वन्य जीव बोर्ड को निर्देश दिये कि वे राष्ट्रीय पार्कों व अन्य वन क्षेत्रों से होने वाली आय से जंगल से जुड़े गाँवों में विकास के कार्य क्रियान्वित करवाया जाये। इसके साथ-साथ इन गाँवों का सामूहिक बीमा भी करवाया जाये। इस दौरान उन्होंने वन्य जीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो के गठन पर सहमती दी है।

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Post By: RuralWater
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