जलवायु परिवर्तन पर निगाह रखने वाले संयुक्त राष्ट्र के आधिकारिक पैनल आईपीसीसी (इंटर गवरमेंटल पेनल ऑन क्लाइमेट चेंज) की रिपोर्ट के अनुसार धरती का तापमान को नियन्त्रित नहीं किया गया तो 21वीं सदी का अंत तक समुद्र का जल स्तर 88 से.मी.क्यू. से 1 मीटर तक बढ़ जाएगा। द्वीपों तथा तटों से लगे शहरों के डूबने का खतरा है।
मनुष्य द्वारा अपने जीवन को और अधिक से अधिक आरामदेय बनाने के लिए प्रकृति की निरन्तर अवहेलना पर गाँधी जी ने कहा था कि “धरती सभी मनुष्यों और प्राणियों की आवश्यकताओं की पूर्ति करने में सक्षम है परन्तु किसी एक की भी लालसा को शान्त नहीं कर सकती है।” ग्लोबल वार्मिग के संदर्भ में गाँधी जी की उक्त टिप्पणी आज अक्षरश: सत्य प्रतीत होती है। आज मनुष्य ने विकास की अंधी दौड़ में जीवन को और अधिक सुखमय बनाने के लिए प्रकृति के सन्तुलन को पूरी तरह बिगाड़ दिया है, वायुमंडल को पूरी तरह प्रदूषित कर दिया है जिसके कारण आज निरन्तर धरती की गर्माहट बढ़ रही है और धरती के अस्तित्व पर ही खतरा उत्पन्न हो गया है।ग्लोबल वार्मिंग का सीधा सा अर्थ है धरती की गर्माहट को बढ़ाना अर्थात पृथ्वी के वायुमंडल के औसत तापमान में वृद्धि होना। ग्लोबल वार्मिंग के लिए ग्रीन हाउस गैसों जैसे कार्बन डाई-आक्साइड, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड का उत्सर्जन प्रमुख रूप से उत्तरदायी है। इनमें भी मुख्य रूप से कार्बन डाईऑक्साइड गैस का उत्सर्जन सबसे अधिक होता है। ग्रीन हाउस गैसों की अधिकता पृथ्वी के वायुमंडल के चारों ओर एक छतरीनुमा आवरण बना देती हैं जिसके कारण धरती की ऊष्मा परावर्तित होकर इस वायुमंडल के बाहर नहीं जा पाती है और धरती की गर्माहट बढ़ जाती है।
अंधाधुंध वृक्षों की कटाई, कोयला आधारित विद्युत संयंत्र, कारखाने, मोटर-गाड़ियाँ, भट्टियाँ, घरेलू चूल्हे आदि प्रमुख रूप से इन ग्रीन हाउस गैसों में वृद्धि के लिए जिम्मेदार तो हैं ही साथ ही रेफ्रिजरेटर, एअर कंडीशनर, ओवन आदि इलेक्ट्रोनिक उपकरण भी ग्लोबल वार्मिंग के लिए उत्तरदायी हैं। ग्लोबल वार्मिंग आज सम्पूर्ण विश्व के लिए एक गम्भीर समस्या बन चुकी है। आज इसके प्रभाव को साफ-साफ देखा भी जा सकता है। जलवायु परिवर्तन, वनस्पतियों एवं जन्तुओं की विलुप्त होती प्रजातियाँ, विभिन्न प्रकार की बीमारियों का बढ़ाना आदि सभी ग्लोबल वार्मिंग के ही दुष्प्रभाव हैं। यूरोप के वे देश जो गर्म जलवायु से अनभिज्ञ थे वहाँ आज गर्म जलवायु मौत का कारण बन रही है। वर्ष 2003 में यूरोप में गर्मी तथा लू के कारण 35000 लोगों की जान चली गई थी।
ग्लोबल वार्मिग के कारण ध्रुवों की बर्फ पिघल रही है, दुनिया के ग्लेशियर तेजी से सिकुड़ते जा रहे हैं एक अनुमान के अनुसार दुनिया के ग्लेशियर 30 मीटर प्रति वर्ष के हिसाब से सिकुड़ रहे हैं जिसके कारण समुद्रों का जलस्तर तथा अम्लीकरण लगातार बढ़ रहा है। समुद्रों का जल स्तर बढ़ने से वाष्पीकरण की प्रक्रिया भी तेज हो जाएगी जिससे वायुमंडल में नमी की मात्रा बढ़ेगी तथा भयंकर चक्रवातों और तूफानों की घटनाएँ भी बढ़ जाएगी।
जलवायु परिवर्तन पर निगाह रखने वाले संयुक्त राष्ट्र के आधिकारिक पैनल आईपीसीसी (इंटर गवरमेंटल पेनल ऑन क्लाइमेट चेंज) की रिपोर्ट के अनुसार धरती का तापमान को नियन्त्रित नहीं किया गया तो 21वीं सदी का अंत तक समुद्र का जल स्तर 88 से.मी.क्यू. से 1 मीटर तक बढ़ जाएगा। द्वीपों तथा तटों से लगे शहरों के डूबने का खतरा है। इंडोनेशिया, मौरिशस, फिजी, श्रीलंका बांग्लादेश आदि देशों के जलमग्न होने का खतरा है। भारत के अंडमान-निकोबार, लक्ष्यद्वीप, कोलकाता, मुंबई, चेन्नई जैसे तटीय शहरों तथा 54 द्वीपों वाला सुंदरवन के निचले द्वीपों के डूबने का खतरा है।
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