नैनीताल के इतिहास में वर्ष 1880 को भुलाया नहीं जा सकेगा, क्योंकि इस वर्ष यहाँ भारी भू-स्खलन हुआ था, जिसमें कई लोगों की जान चली गई थी। इस वर्ष 14 सितम्बर से ही यहाँ भारी बारिश होने लगी थी, जो 19 सितम्बर, रविवार शाम तक अनवरत चलती रही। शुक्र और शनिवार शाम को 33 इंच बारिश हुई, जिसमें से 20 से 25 इंच बारिश शनिवार शाम के पहले के 40 घंटों के दौरान हुई। वर्षा के साथ पूरब से उग्र हवा के तेज झोंके भी आ रहे थे, सड़कें टूट-फूट गई थी। जल स्रोत अवरुद्ध हो गए थे और उत्तरी शृंखला में जहाँ सड़ी स्लेटी चट्टान वाली जमीन है, आस-पास की चट्टानों के ढीले-ढाले मलबे से अन्दर पानी समाना शुरू हो गया था। पिछले वर्षों में इस तरफ काफी पेड़ कटे थे और भवन-निर्माताओं ने प्राकृतिक-प्रवाह को निर्बाध रखने के लिए समुचित व्यवस्था नहीं की थी। कई स्थानों पर पानी दरारों में समा कर अपना नया रास्ता बना रहा था। ऐसा करते हुए पानी तोड़-फोड़ भी कर रहा था। वर्ष 1866 में एक भू-स्खलन वर्तमान स्खलन से पश्चिम में हुआ था, जिसने पुराने विक्टोरिया होटल को नष्ट कर दिया था।
वर्ष 1869 में यह स्खलन फैले कर आत्मा के नीचे तक पहुँच गया। जिस स्थान पर वर्ष 1880 का भू-स्खलन हुआ, उसमें विक्टोरिया होटल और उसके कार्यालय, इनके नीचे झील के किनारे स्थित एक मन्दिर, इसके समीप ही बेल की दुकान तथा आगे झीले के ही किनारे स्थित सभाकक्ष (असेम्बली रुम्स) शामिल थे। शनिवार को करीब 10 बजे सुबह विक्टोरिया होटल के एकदम पीछे पहाड़ी के एक हिस्से में पहला स्खलन हुआ, जो वाह्य कक्षों (आउट हाउस) के एक हिस्से और होटल के पश्चिमी छोर को अपने साथ लुढ़काता ले गया। इसमें एक अंग्रेज बालक और उसकी परिचारिका समेत कुछ स्थानीय नौकर मारे गए। तुरन्त बचाव कार्य के लिए कार्यदल बुलाए गए। मिस्टर लेनार्ड टेलर सी.एस., मिस्टर मौर्गन ओवरसियर तथा डिपो से सिपाही और अधिकारी बुलाए गए, ताकि दब गए लोगों को बाहर निकाला जा सके। इस बीच होटल में रहने वाले हर व्यक्ति को सुरक्षित स्थान पर पहुँचा दिया गया। केवल कर्नल टेलर, आई.ई., होटल के नीचे अलग से उस कमरे में थे, जो बिलियर्ड कक्ष के तौर पर इस्तेमाल होता था तथा मेजर और श्रीमती मौर्फी, श्रीमती टर्नबुल जो सहायता के लिए आई थीं, सभाकक्ष की तरफ बढ़ गए। चूँकि अब कुछ और नहीं किया जा सकता था, इसलिए सभी जाने को तैयार थे तथा मुझे होटल से बाजार गए केवल 20 मिनट ही हुए थे और मैं मिस्टर राइट के साथ पास से गुजर रहा था कि शोर सुनाई दिया, हमने देखा कि ऊपर चोटी से बड़े-बड़े पत्थर होटल की ओर लुढ़क रहे हैं। मैंने इसे गम्भीरता से नहीं लिया और आगे बढ़ गया। अगले दस मिनट में भू-स्खलन हुआ।
यह पूरा पहाड़ अर्ध-तरल स्थिति में था और इसे स्खलित करने के लिए हल्के झटके की जरूरत थी। इस पहाड़ को सूखे मौसम में सत्तू के ढेर की मानिंद बताया गया है, जो पानी मिलने पर रबड़ी बन गया। इसे हिलाने का काम किया भूकम्प के एक झटके ने जो इन पहाड़ों में प्रायः आते रहते हैं। उस दिन कुछ जानकार लोगों को ये झटके नैनीताल के नीचे भाबर में भी महसूस हुए थे। इन झटकों ने अर्ध-तरल ढेर को गतिमान बना दिया और परिणाम इस प्रकार रहा-‘जमीन के बड़े हिस्से के टूटने पर जैसी घड़घड़ाती आवाज यहाँ रहने वाले बहुत से लोगों ने सुनी और जो लोग टूट-फूट वाली तरफ देख सके उन्हें ऊपर वर्णित स्थान से केवल धूल का गुबार उठता दिखाई दिया। यह स्पष्ट था कि होटल के पीछे अपर माल से पहाड़ी का एक बड़ा हिस्सा टूट कर अथाह वेग से नीचे धमका और होटल को अपने साथ समेटता ले गया, जिसके अन्दर से अर्दली-कक्ष, दुकान और सभाकक्ष को ढूँढना असम्भव था। मिट्टी और पानी का एक रेला होटल के विस्तृत क्षेत्र को अपने साथ समेटते हुए साथ में लपेट असेम्बल रूम जैसे बड़े भवन को लुढ़का कर 50 मीटर आगे सार्वजनिक कक्षों तक के एक हिस्से को तो झील में गोता लगवा गया और बाकी को मलबे के ढेर के रूप में छोड़ गया। यह महाप्रलय कुछ सेकेंड़ों के अन्दर हुआ और स्खलन-मार्ग में जो की भी आया, उसका बचाव असम्भव था’।
एक अन्य विवरण के अनुसार
‘बारिश की बूँदों के साथ पेड़ों के टूटने की आवाजें आई। विक्टोरिया से करीब 400 फीट ऊपर बाँज के पेड़ नीचे को लुढ़कते हुए देखे गए। एक या दो बड़े पत्थर लुढ़के और होटल से भागो-भागो की आवाज सुनाई दी। इसके बाद गड़गड़ाने की आवाजें आई, जिसे निकटवर्ती लोगों ने बादल फटने की आवाज समझा और जो लोग नजदीक से देख रहे थे उन्हें लगा जैसे बचा लिए गए लोगों को ढांढस बधाने का शोर हो रहा है। ऊपर पहाड़ी धार के लोगों और झील के दक्षिण-पूर्व की आबादी को यह शोर बिल्कुल नहीं सुनाई पड़ा। लेकिन इतना तय था कि पहाड़ी का हिस्सा नीचे लुढ़क आया था। आधे मिनट के अन्दर आखिरी पत्थर भी झील में छपाक से कूद पड़ा था। झील की ऊपरी सतह पर ऊँची लहरें उठी, जबकि इसके उत्तर-पश्चिमी किनारे को हल्की भूरी धूल के कोहरे ने ढक लिया और विक्टोरिया होटल वाला स्थान भी दृष्टि से ओझल हो गया। इस बीच क्या हुआ, इसके बारे में कोई दो प्रत्यक्षदर्शी एक सी बात नहीं कहते, क्योंकि बड़ा पत्थर गिरने के बाद और भू-स्खलन के बीच में क्या हुआ था, इसके बारीक अध्ययन के लिए समय और मनःस्थिति दोनों की जरूरत थीं’।
फिरर भी कुछ चुनिंदा प्रत्यक्षदर्शियों के बयानों के उद्धरण यहाँ दिए जा रहे हैं, रेवरेंड डी.डब्ल्यू, थामस लिखकते हैं- एक ही भयावह झपटे में विक्टोरिया होटल, बेल की दुकान, असेम्बली कक्ष और कई सारे लोगों का जमघट, लगभग अचानक चट्टानों के तले और झील में पहुँच गया। होटल ढहने से पहले कम-से-कम एक सौ फीट दूर तक बुनियाद समेत आगे को खिसकता आया और इतनी ही दूर तक बेल की दुकान भी खिसकी, जिस समय भू-स्खलन शुरू हुआ, बहुत से स्थानीय और पाँच या छह अंग्रेज सिपाही नीचे माल से गुजर रहे थे, जिनमें से अधिकांश चट्टानों के मलबे के नीचे दब गे। मिस्टर थामस कहते हैं कि विक्टोरिया होटल और हिन्दू मन्दिर सीधे झील में गे। होटल के मुख्य भवन का एकमात्र जो निशान बचा, वह था स्तम्भ का एक टुकड़ा। लेकिन वह भी खेल के मैदान तक आ गया था और झील से कुछ दूर रह गया। मन्दिर के अवशेषों और उसमें रहने वालों को असेम्बली कक्ष के दक्षिणी छोर से खोदकर निकाला गया।
मिस्टर डब्ल्यू गिलबर्ट कहते हैं- ‘पीछे से धड़धड़ाने का शोर सुनते ही मैं चौक गया और पीछे मुड़ा तो देखा विक्टोरिया होटल गायब था। एक विशाल गहरे रंग की वस्तु उसके स्थान से नीचे आ रही थी, जो क्षणभर में झील में पहुँच गई। वह वस्तु अपने आगे आने वाली हर चीज को रौंदती हुई और उसके नीचे बड़े-बड़े पेड़ माचिस की तीली की तरह टूट रहे थे। एक क्षण में ही बेल की दुकान और असेम्बली कक्ष इसकी चपेट में आ गए, छपाक की एक आवाज हुई और झील का पानी ऊपर उछला। पहाड़ी का टूटा भाग इतनी तेजी से नीचे आया कि एक क्षण के लिए मैं समझा 30-40 फीट ऊपर का शिखर टूट कर झील में जा गिरा है, जो झील में छपाक की भयावह आवाज के साथ गिरने के बाद कुछ क्षण के लिए गायब हो गया। यह सब इतनी जल्दी हुआ कि अगर एक खुले मैदान में, मैं अपनी पूरी दक्षता के साथ दौड़ना शुरू करता तो इतनी अवधि में 20 कदम भी नहीं दौड़ पाया होता’।
रेवरेंड एन.चेनी ने, जो भू-स्खलन पथ से 20 गज की दूरी पर रहे होंगे, ऊपर की तरफ से शोर सुना, जो ‘दबे विस्फोट-स्वर और ऊँची मर्मान्तक चीख का मिला-जुला रूप था। पेड़ हिले और छट-पटाए, पहाड़ी फूट पड़ी और जमीन का पूरा हिस्सा सिर के बल नीचे विक्टोरिया होटल की तरफ लुढ़का। पहाड़ी जब फूटी तो उसका हिस्सा ऊपर की तरफ आगे को उछला जैसे अन्दर एकत्रित किसी शक्ति ने बाहर को जोर मारा हो, जिसे अब दबाए रखना सम्भव न हो। होटल ऊपर से नहीं टूटा बल्कि उसकी जड़ पर भू-खंड टकराया, होटल पीछे को झुका और तब तक एक भू-स्खलन का रेला उसे नीचे ले जा चुका था। उसकी छत उल्टी हो गई थी, क्योंकि उसकी कड़ियाँ ऊपर को खड़ी साफ दिखाई दे रही थी। धूल के कोहरे के कारण बेल की दुकान का ध्वस्त होना नहीं दिखाई दिया, फिर भी मैं यह समझ सकता हूँ कि मलबे के मध्य भाग में सबसे ज्यादा वेग था, जो माल पर उस स्थान पर पहुँचा, जहाँ पर होटल का द्वार था और यहाँ से सीधा झील में जा गिरा। मैं अपने अंदाजे से कह सकता हूँ कि पहाड़ी के फूटने से लेकर झील में समाने तक इस स्खलन ने आठ सेकेंड से ज्यादा समय नहीं लिया’।
मृतकों और लापता लोगों की संख्या 151 थी,, जिनमें से 43 लोग यूरोपीय और यूरेशियाई थे। इनमें कर्नल टेलर, मेजर मोर्फी, कैप्टन बल्डर्सन, गुडरिज और हेनिस, लेफ्टिनेंट हाकेट, सुल्लिवान, कार्मिशेल और रॉबिन्सन, एल.टेलर, सी.एस.रेवरेंड, ए.रॉबिन्सन, डॉक्टर हन्ना, मैसर्स नोअड, बेल, नाइट, मौस, टकर, मॉर्गन (दो), शेल्स (चार) ड्रयू, ग्रे., पाँच नॉन कमीशन्ड अधिकारी और नौ सिविलियन, श्रीमती मोर्फी, श्रीमती टर्नबुल और दो बच्चे तथा 108 स्थानीय लोग शामिल थे। जो बाल-बाल बचे उनकी संख्या भी बहुत थी। सर हैनरी रैमजे जब झील के पूर्वी छोर पर खड़े होकर बचाव व राहत कार्य के निर्देश दे रहे थे, ऊपर से कुछ और मलबा आया, जिसके झील में गिरते ही एक बड़ी लहर आई व रैमजे को झील में खींच ले गई और हालांकि एक समय वे कमर तक गहरे पानी में आ गए। किन्तु जल्दी ही सड़क के किनारे एक ऊँचे स्थान पर चढ़ने में सफल हो गए, लेकिन उनके अगल-बगल खड़े एक अंग्रेज सैनिक और कई स्थानीय लोग झील में डूब ही गए। एक व्यक्ति मिस्टर वाकर कंधे तक कीचड़नुमा मलबे में डूब गए, लेकिन बच गए।
एक सिपाही और एक स्थानीय किशोर भी झील की लहर के साथ झील में खिंच गए, लेकिन वे तैर कर किनारे पहुँच गए। श्रीमती नाइट और श्रीमती ग्रे उस भवन की ऊपरी मंजिल में थी, जिसे बेल की दुकान कहते हैं, मलबे के जोर से दुकान के साथ नीचे को आए और उन्होंने स्वयं को मकान की टिन की छत की शहतीरों के बीच मलबे के ढेर के ऊपर लगभग बिना चोट-चपेट के पाया। भू-स्खलन के तुरन्त बाद जमीन के अन्दर से पानी की तेज धार बाहर निश्चित दिशा को फूटी, जिसके वेग और पानी की मात्रा को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता था कि भू-स्खलन का क्या कारण था। मैं, शनिवार की रात यहीं गुजारुंगा, हालांकि कोई नहीं जानता कि अभी और भू-स्खलन भी हो सकता है। क्योंकि बारिश लगातार चल ही रही है और ऊपर पहाड़ी से पत्थरों का गिरना जारी है। बड़ी दरारें खुल गई हैं और उन्हें आसानी से देखा जा सकता है। एक दरार तो मेयो होटल से सेंट-लू कॉटेज तक दीवार में इतनी बड़ी चटक लिए थी कि उसमें से कोई व्यक्ति पार होकर गवर्नमेंट हाउस पहुंच जाए, जिसमें से एक अर्धगोलाकार दरार आगे पहाड़ी की उत्तरी ढलान तक चली गई थी। अन्य दरार ने फेयरलाइट के ऊपर छोटी धार के शिखर पर एक चट्टान को दो भागों में बांट दिया था। तथा तीसरी दरार क्लब से होकर फेयर लाइन के पश्चिम में सड़क से होते हुए चाइना धार के छोर तक चली गई थी। यह सब भूकम्प के कारण हुआ, जो आल्मा और चाइना की उत्तरी ढालों में भी उतना ही विनाशकारी था, जितना घाटी में। मिस्टर विल्लौक्स सी.ई.और मिस्टर लॉडर सी.ई.ने कुशलतापूर्वक सर हैनरी रैमजे की सहायता की और जल्दी ही सड़क व नालियों क पहले से भी बेहतर बना दिया। जिन लोगों की इस मलबे के नीचे दबकर मृत्यु हुई, उनके परिवारों को राहत कोष से 60 हजार रुपए वितरित किए गए। सर हैनरी रैमजे इस कोष के अध्यक्ष और मैं, सचिव था।
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