गजेन्द्र की खुदकुशी की धमक

दिल्ली में आम आदमी पार्टी की किसान रैली में गजेन्द्र सिंह नामक किसान द्वारा खुदकुशी करना व्यवस्था के खिलाफ शहीद भगत सिंह के असेम्बली बम काण्ड से कम नहीं है। गजेन्द्र ने दिल्ली में खुदकुशी करते हुए सुसाइड नोट में कम शब्दों में अपनी जिस बेचारगी और लाचारी का जिक्र किया है, वह सिहरन पैदा करने वाला है। किसानों के नाम पर की जा रही राजनीति से हमारे राजनेताओं को कुछ तो शर्म आनी चाहिए। देखना यह होगा कि गजेन्द्र की खुदकुशी से अब भी केन्द्र और राज्य सरकारों की खुमारी टूटती है या नहीं या फिर गजेन्द्र की यह खुदकुशी किसान संघर्ष का मील का पत्थर साबित होगी?

गजेन्द्र के लिए किसी एक पार्टी या सरकार को सीधे तौर पर दोषी नहीं ठहराया जा सकता। इसके लिए देश की सम्पूर्ण राजनीतिक व्यवस्था का किसान विरोधी चरित्र जिम्मेदार है। आजादी के बाद से भारतीय राजनीति का चरित्र जनविरोधी चरित्र के रूप में अपना विस्तार करता रहा और उदारीकरण की नीतियों के विस्तार के साथ किसानों की आत्महत्या के रूप में पुष्ट होता गया। कभी व्यवस्था ने किसानों के मन की बात को सुनने और समझने की ईमानदार कोशिश ही नहीं की।

गजेन्द्र के इस कदम ने भगत सिंह की शहादत को ताजा कर दिया है। दोनों घटनाओं के मायने और मकसद में समानता इसलिए देखी जा रही है कि भगत सिंह को देश की आजादी चाहिए थी और गजेन्द्र सिंह को किसानों का हित।असेम्बली में भगत सिंह के बम फोड़ने का मुख्य मकसद अंग्रेजों का ध्यान आकर्षित करना था। वही काम गजेन्द्र ने अपनी जान देकर किया है। मौजूदा समय में बेमौसम बारिश के कारण देश भर के किसान लगातार खुदकुशी कर रहे हैं। पर सरकारें सिर्फ बयानबाजी ही कर रही है। गजेन्द्र ने केन्द्र सरकार व राज्य सरकारों का ध्यान किसानों की तरफ मोड़ने के लिए ही अपनी जान दे दी। गजेन्द्र ने अपनी आवाज हमेशा के लिए शान्त करके दूसरे लोगों की आवाज बुलन्द कर दी है। हमें उनकी इस शहादत को बेकार नहीं जाने देना चाहिए।

मुख्यमन्त्री अरविन्द केजरीवाल की किसान रैली के दौरान एक किसान द्वारा खुदकुशी किए जाने की घटना ने देश को स्तब्ध कर दिया है। इस किसान ने पेड़ से फांसी लगाकर अपनी जान देने की कोशिश की थी, जिसके बाद उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया था। अस्पताल में उसकी मौत हो गई। रैली के दौरान खुदकुशी की इस घटना ने नेता, पुलिस और मीडिया की संवेदनहीनता को भी उजागर किया है। देखा जाए तो गजेन्द्र की खुदकुशी ने देश की लोकतान्त्रिक सियासत को पूरी तरह बेनकाब कर दिया है। राजधानी में इस आत्महत्या ने राजनीतिक संवेदनहीनता और उसके घड़ियाली आँसुओं की पोल खोल दी है। गजेन्द्र की इस आत्महत्या को गूंगी-बहरी व्यवस्था के खिलाफ शहादत के रूप में देखना समझना होगा।

रैली स्थल पर पेड़ से लटककर गजेन्द्र अपने गमछे से आत्महत्या कर रहा था और आम आदमी पार्टी के नेता मंच से भाषण देने में मशगूल रहे। रैली में मौजूद लोगों के तमाम प्रयास भी गजेन्द्र को बचा न सके। गजेन्द्र दौसा जिले के नांगल झामरवाड़ा गाँव का रहने वाला था। गजेन्द्र के पास बरामद सुसाइड नोट में लिखा है कि राजस्थान का रहनेवाला एक किसान हूँ और मेरे तीन बच्चे हैं। बारिश से मेरी पूरी फसल बर्बाद हो गई है। मेरे पिता ने मुझे घर से बाहर निकाल दिया है। जय जवान, जय किसान।

गजेन्द्र की खुदकुशी को लेकर आरोप-प्रत्यारोप की सियासत शुरू हो चुकी है। केजरीवाल ने आरोप लगाया कि हमने किसान को फांसी लगाते हुए देख लिया था और दिल्ली पुलिस से उसे बचाने के लिए कहा, लेकिन पुलिस ने हमारी नहीं सुनी। वहीं कांग्रेस नेता सचिन पायलट ने कहा कि हम सबके लिए ये सदमे वाली खबर है। हम सबको आत्मचिन्तन करना चाहिए। वास्तविकता का सामना करना पड़ेगा। रैली चलती रही, किसी ने बचाने की कोशिश नहीं की। सवाल इस बात का है कि गजेन्द्र की खुदकुशी के बाद व्यवस्था के चरित्र में कोई बदलाव आएगा या वही ढाक के तीन पात वाली बात रहेगी।

गजेन्द्र के इस कदम ने भगत सिंह की शहादत को ताजा कर दिया है। दोनों घटनाओं के मायने और मकसद में समानता इसलिए देखी जा रही है कि भगत सिंह को देश की आजादी चाहिए थी और गजेन्द्र सिंह को किसानों का हित। गजेन्द्र की मौत ने केन्द्र सरकार को दोबारा से सोचने पर मजबूर कर दिया है। यही वजह है कि गजेन्द्र की मौत के बाद तुरन्त ही प्रधानमन्त्री ने अपने वरिष्ठ मन्त्रियों की बैठक कर किसानों के हालात जानने के लिए दोबारा सर्वे करने को कह दिया है। यह सब गजेन्द्र की मौत के बाद किया जा रहा है। गजेन्द्र की मौत से पूरे देश में आक्रोश है। उनकी मौत को लेकर संसद में जमकर हंगामा भी हुआ है।

लेखक का ई-मेल : ramesht2@gmail.com

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