गेहूँ (ट्रिटिकम एस्टविम एल.) की वृद्धि, बीज की गुणवत्ता और उत्पादकता पर नाईट्रोजन उर्वरक का प्रभाव (Performance of Nitrogen on growth seed quality and productivity of wheat (Triticum aestivum L.)


सारांश
प्रस्तुत क्षेत्र परीक्षण, रबी फसल चक्र वर्ष 2012-13 में, कृषि फार्म, बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय, झांसी (उ.प्र.) में आयोजित किया गया। प्रयोगात्मक गेहूँ की प्रजाति के रूप में ‘राज-3077’ को प्रयोग में लाया गया। और विभिन्न स्तरों 100, 120 और 140 किलोग्राम/हेक्टेयर नाइट्रोजन उर्वरक तथा 100, 125 और 150 किलोग्रमा / हेक्टेयर बीज दर का प्रयोग करते हुए जैविक उपज में, 100 किलोग्राम / हेक्टेयर नाइट्रोजन और 100 किलोग्राम बीज दर प्रयोग करने पर सर्वाधिक अनाज उपज प्राप्त हुई। कार्यातमक पत्तियों की संख्या, कील लंबाई (सेमी) कील कान प्रति पौधा, अंकुरण प्रतिशत और शुद्धता प्रतिशत में प्राप्त हुए। 140 किलो नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर और 150 किलो बीज दर / हेक्टेयर का प्रयोग करने पर बेहतर गुणवत्ता के साथ उच्च कोटि के अनाज की उपज प्राप्त करने के लिये सबसे उपयुक्त संयोजन प्राप्त हुआ।

Abstract
A field experiment was conducted during Rabi season of the year 2012-13, at Agricultural farm, Bundelkhand University, Jhansi (U.P.), to find out the effect of different levels of Nitrogen, and seed rate on seed yield and other characters on ‘Raj-3077’ variety of wheat (Triticum aestivum L.) at different levels 100, 120 and 140 Kg/ha Nitrogen and 100, 125 and 150 Kg/ha, seed rate significantly out yielded the 100 Kg/ha Nitorgen and seed rate in grain yield, biological yield. Almost similar results were obtained in case of plant height, number of functional leaves-1, spike length (cm), spike ear-1, germination % and purity %. The application of 140 kg N/ha and 150 kg seed rate/ha was the best combination for getting higher grain yield with its better quality.

प्रस्तावना
भारत में गेहूँ 2012-13 के दौरान 28.25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की उत्पादकता के साथ के दुनिया के खाद्यान्न के लिये 69.43 मिलियन का योगदान 26.63 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र को शामिल करते हुए चावल के बाद दूसरा सबसे महत्त्वपूर्ण अनाज फसल है। इसकी आम तौर पर मैदान पर खेती की जाती है औसत समुद्र तल से 3000 मीटर तक ऊँचाई पर पठार के साथ ही समुद्र स्तर से ऊपर लगभग फसल उत्पादन बढ़ाने के लिये जाना जाता है। विभिन्न कृषि कारकों नाइट्रोजन गेहूँ काइब एवं अन्य (2003) के अधिक अनाज की उपज में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका है। वर्तमान अध्ययन नाइट्रोजन और अनाज की उपज, जैविक उपज और पौधे की ऊँचाई, अंकुरण प्रतिशत और शुद्धता प्रतिशत सहित अन्य पात्रों पर बीज दर के आवेदन के प्रभाव पता लगाने के लिये किया गया। तथ्यों और इसकी गुणवत्ता को ध्यान में रखते हुए उत्तर प्रदेश के बुन्देलखण्ड क्षेत्र की कृषि जलवायु स्थिति में गेहूँ की राष्ट्रीय प्रजाति ‘राज-3077’ को परीक्षण हेतु आयोजित किया गया।

सामग्री एवं परीक्षण विधि


प्रस्तुत क्षेत्र परीक्षण 2012-13 के रबी (सर्दी) के मौसम के दौरान कृषि विज्ञान संस्थान, बुन्देलखण्ड विश्विविद्यालय, झांसी में कृषि अनुसंधान फार्म पर आयोजित किया गया। नाइट्रोजन उर्वरक के तीन स्तर हैं, 100, 120 और 140 किलोग्राम/हेक्टेयर और बीज दर अर्थात- 100, 125 और 150 किलोग्राम/हेक्टेयर की तीन वर्गीकृत स्तरों में रखी गई है। जिसमें उर्वरक स्तरों के 09 संयोजन उपचारों को यादृच्छिकीकृत भूखण्ड अभिकल्पना के अन्तर्गत तीन पुनरावृत्तियों के साथ लिया गया। शुद्ध भूखंड का आकार =7.2 वर्ग मीटर, पंक्ति रिक्त के लिये पंक्ति में 20 सेमी, 4 मीटर 1.80 था, जबकि प्रयोग में घास भूखंड का आकार, 5 मीटर X 3.6 मीटर = 18 वर्ग मीटर लिया गया, पौधे से पौधे की दूरी 5 सेमी, प्रत्येक प्लॉट में पंक्तियों की संख्या 08 तथा फसल कटाई पर चयनित पंक्तियों की संख्या 04 थी। यूरिया, नाइट्रोजन के स्रोत के रूप में प्रयोग किया। अवलोकन पौधों की ऊँचाई, कार्यातमक पत्तियों की संख्या, कील लंबाई (सेमी), स्पाइक/कान प्रति पौधा, अनाज की उपज, जैविक उपज, अंकुरण प्रतिशत और शुद्धता प्रतिशत की संख्या पर दर्ज किए गए डेटा, कोचरन और कॉक्स (1959) की प्रस्तावित प्रति पद्धति के रूप में सांख्यिकीय विश्लेषण के अधीन था।

परिणाम और विवेचना


नाइट्रोजन उर्वरक का गेहूँ की राष्ट्रीय प्रजाति ‘राज-3077’ पर उसकी भूमिका एवं उपयोगिता का उपज एवं अन्य लक्षणों पर वर्तमान अध्ययन के परिणामों के चरित्र के अनुसार प्रस्तुत कर रहे हैं।

पौधे की ऊँचाई


सभी तीन बीज दर गेहूँ अर्थात - (100, 125 और 150 किलोग्रामी/हेक्टेयर) तालिका-1 गेहूँ के सभी तीन बीज दर में वृद्धि के साथ अत्यधिक प्रभाव का पता चलता है। बुवाई के 90 दिन बाद पौधे की ऊँचाई 150 किलो बीज की दर/हेक्टेयर पर अधिकतम पौधे की ऊँचाई (94.2 सेमी.) को प्राप्त किया। कटाई के स्तर पर, अधिकतम पौधे की ऊँचाई इस प्रकार बढ़ती जा रही 150 किलो बीज की दर के प्रभाव का स्पष्ट दिखा, 150 किलो बीज की दर/हेक्टेयर और न्यूनतम 100 और 125 किलो ग्राम बीज की दर/हेक्टेयर के मामले में (93.0 सेमी) दर्ज की गई थी पौधों की वृद्धि, इन निष्कर्षों कुमार एवं अन्य (2000) और पांडे एवं अन्य (1999) की रिपोर्ट के साथ अनुरूपन है। जबकि नाइट्रोजन आवेदन, 100 और 120 किलोग्राम/हेक्टेयर (93.0 और 96.2 सेमी) में दर्ज पौधे की ऊँचाई से काफी भिन्न है, जो एन/हेक्टेयर 140 किलो के आवेदन (96.6 सेमी) के साथ दर्ज की, अधिकतम पौधे की ऊँचाई के मामले में क्रमश: उच्च प्राप्त हुई परिणामस्वरूप, निरीक्षण के दौरान नाइट्रोजन पौधे की ऊँचाई का मुख्य प्रभाव बुवाई के 90 दिन बाद दर्ज किया गया और फसल कटाई के चरण में महत्त्वपूर्ण पाया गया था बीज दर 150 किग्रा/हेक्टेयर और नाइट्रोजन का स्तर 140 किग्रा/हेक्टेयर का संयुक्त प्रभाव पौधों की ऊँचाई पर काफी स्पष्ट प्रभाव दिखाया है, बीज दर 150 किलोग्राम/हेक्टेयर, 140 किलो एन/हेक्टेयर में काफी अधिक पौधे की ऊँचाई को दिखाया है जबकि पौधे की ऊँचाई 100 और 125 किलो बीज की दर/हेक्टेयर, 120 किलो एन/हेक्टेयर से पौधे की निम्नतम वृद्धि अंकित की गई थी। इन निष्कर्षों को कार्यात्मक पत्तियों की संख्या, नाइट्रोजन उर्वरक के बढ़ते स्तर के साथ काफी वृद्धि हुई। पांडे एवं अन्य (1999) कि रिपोर्ट के साथ अनुरूपन कर रहे हैं।

कार्यात्मक पत्तियों की संख्या


बीज दर के तीन स्तर के अध्ययन के अन्तर्गत पौधे प्रति कार्यात्मक पत्तियों की संख्या के संबंध में 100, 125 और 150 किलोग्राम/हेक्टेयर और नाइट्रोजन उर्वरक के स्तर, अर्थात 100, 120 और 140 किलोग्रामी/हेक्टेयर, के डेटा (तालिका-1) यह कार्यात्मक पत्तियों की अधिकतम संख्या 100 किलो बीज की दर/हेक्टेयर में (28.4) दर्ज की गई थी। तालिका से स्पष्ट है 100 किलोग्राम बीज दर पर कार्यात्मक पत्तियों की संख्या 125 और 150 किलोग्राम बीज दर प्रति हेक्टेयर की अपेक्षा सर्वोच्च प्राप्त हुई है। 100 किलोग्राम बीज दर प्रति हेक्टेयर पर कार्यात्मक पत्तियों की संख्या 26.0 प्राप्त हुई जो 125 किलोग्राम बीज दर और 150 बीज दर के तुलना में बेहतर थी। 120 किलो एन/हेक्टेयर के आवेदन के साथ पौधे प्रति कार्यात्मक पत्तियों की संख्या के बराबर बना रहा, हालाँकि 140 किलो नाइट्रोजन के आवेदन के मामले में, 100 किलो एन/हेक्टेयर की तुलना में प्रति पौधे कार्यात्मक पत्तों की काफी अधिक संख्या अंकित की गई। 140 किलो एन/हे. के स्तर पर आवेदित पौधे में प्रति कार्यात्मक पत्तियों (28.4) की उच्च संख्या को अंकित किया गया है। नाइट्रोजन आवेदन की वजह से गेहूँ की वृद्धि और उपज विशेषताएं (ट्रिटिकम एस्टीवम एल) में सुधार तार्किक छोड़ दिया गया था। परिणाम भी नाइट्रोजन उर्वरक की वृद्धि के साथ पौधे प्रति कार्यात्मक पत्तियों की संख्या में वृद्धि की सूचना दी जो स्वार्स एवं अन्य (2000) के निष्कर्षों के अनुरूप हैं।

स्पाइक लम्बाई (मीटर)


यह बीज दर के विभिन्न स्तरों, कील की लंबाई पर काफी प्रभाव पड़ा है। तालिका-1 में दिए गए आंकड़ों से पता चला है स्पाइक (8.7 सेमी) की लंबाई 150 किलो बीज की दर/हेक्टेयर सहित बीज दर के दूसरे स्तर में कील की लंबाई की तुलना में काफी अधिक थी जो 100 किलो बीज की दर/हेक्टेयर में दर्ज की गई थी। इस बीज दर किग्रा/हेक्टेयर की अधिक मात्रा के तहत कील सहित पौधे के वनस्पति भागों के समुचित विकास के लिये और अधिक पौषक तत्वों की उपलब्धता के कारण से हो सकता है। इन परिणामों को कुमार एवं अन्य (2000) के द्वारा प्रयोगात्मक रूप से पूरी तरह सहमति प्राप्त है। हालाँकि, नाइट्रोजन की 140 किलो के स्तर, 8.1 सेमी के मामले में कील की लंबाई प्रति हेक्टेयर नाइट्रोजन की 100 और 120 किलो खुराक में कील लंबाई की तुलना में काफी अधिक थी जो दर्ज किया गया था। इन निष्कर्षों को नाइट्रोजन के बढ़ते स्तर केवल कील लंबाई नहीं बढ़ी साथ ही अधिक मात्रा में स्ट्रो इल्ड, अधिक कार्यात्मक पत्तियों की संख्या, उच्च विकास दर और उच्च निवल आत्मसात की अधिक उपज देने वाले स्वार्स एवं अन्य (2000), द्वारा रिपोर्ट फसलों के विकास के सभी चरणों में होने वाले विकास से पूरी तरह सहमत हैं।

स्पाइक/कान की संख्या


तालिक-1 में प्रस्तुत परिणम बीज दर किग्रा/हेक्टेयर यानी 100 और 125 किलोग्राम/हेक्टेयर में अधिक उच्च स्पाइक/कान की संख्या प्राप्त हुई अपेक्षाकृत 150 किलो बीज की दर/हेक्टेयर की तुलना में 100 और 125 किलोग्राम बीज दर/हेक्टेयर में कान की संख्या में अंतर भी महत्त्वपूर्ण थे। स्पाइक/कान की संख्या सबसे ज्यादा (19.0) किलो ग्राम बीज दर/हेक्टेयर 100 किलो एन/हेक्टेयर द्वारा दर्ज की गई थी। यह निष्कर्ष सिंह एवं अन्य (2003) और समीरा एवं अन्य (1993) द्वारा रिपोर्ट परिणाम के लिये अनुरूप हैं, और नाइट्रोजन आवेदन के मामले में, 140 किलो नाइट्रोजन/हेक्टेयर को देने पर सबसे ज्यादा उत्पादन प्राप्त हुआ। तुलनात्मक रूप से 120 किलो नाइट्रोजन/हेक्टेयर का प्रयोग करने पर अपेक्षाकृत कम उत्पादन प्राप्त हुआ। नाइट्रोजन की सभी खुराक में कील की संख्या/कान में मतभेद 100 किलो एन/हेक्टेयर महत्त्वपूर्ण थे। लगातार गेहूँ की फसल के विभिन्न चरणों में होने के कारण पौधे के समुचित विकास के लिये और अधिक पोषक तत्वों की उपलब्धता, नाइट्रोजन और बीज दर के विभिन्न खुराकों के साथ बढ़ सकती है। यह निष्कर्ष स्वार्स एवं अन्य (2000) और कुमार एवं अन्य (2000) से पहले बताये परिणामों से पूरी तरह सहमत है।

अनाज उपज (क्विंटल/हेक्टेयर)


तालिका 2 से यह निष्कर्ष प्राप्त हुआ कि अनाज उत्पादन में वृद्धि बढ़ते हुए बीज दर के साथ बढ़ती है। उच्चतम अनाज पैदावार (40.0 क्विंटल प्रति हेक्टेयर) 150 किलोग्राम बीज दर प्रति हेक्टेयर दर्ज की गई जो 125 किलोग्राम बीज दर प्रति हेक्टेयर (42.5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर) और सबसे कम अनाज पैदावार 100 किलोग्राम बीज दर प्रति हेक्टेयर (36.0 क्विंटल प्रति हेक्टेयर) दर्ज की गई। 125 और 150 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज दर में उत्पादन उच्च प्राप्त होता है। अपेक्षाकृत 100 किलोगाम बीज दर की अपेक्षा, यह निष्कर्ष पांडे एवं अन्य (1999) की रिपोर्ट के साथ अनुरूप हैं। नाइट्रोजन अधिकतम अनाज की उपज के मामले में 140 किलोग्रमा नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर पर अनाज उत्पादन 41.5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर प्राप्त हुआ जो अन्य दोनों प्रयोगात्मक उर्वरकों (100 और 120 किलोग्रमा/हेक्टेयर) तुलना में अधिक थी। नाइट्रोजन का स्तर परिणाम, सिंह एवं अन्य (2003) के निष्कर्षों के अनुरूप है, 140 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर का प्रयोग करने पर यह प्राप्त हुआ कि अन्य उपचारों की अपेक्षा अधिक नाइट्रोजन का प्रयोग करने पर गुणात्मक रूप से अधिक अनाज उपज प्राप्त हुई। जो सिंह एवं अन्य (2003) के निष्कर्षों के अनुरूप है।

जैविक उपज


टेबल-2 में प्रस्तुत परिणाम बीज दर 150 और 125 किलोग्राम/हेक्टेयर पर सार्थक परिणाम प्राप्त हुये जबकि 100 किलोग्राम बीज दर प्रति हेक्टेयर पर कम जैविक उपज प्राप्त हुई। इसी प्रकार तुलनात्मक रूप से 100 और 150 किलोग्राम बीज दर प्राप्त हुई 150 किलोग्राम बीज दर प्रति हेक्टेयर के साथ प्रयोगात्मक रूप से सर्वाधिक जैविक उपज (25.5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर) प्राप्त हुई जो अन्य दोनों बीज दरों 100 और 125 किलोग्राम प्रति हेकटेयर बीज दर की अपेक्षा उच्च थी। इसी प्रकार तुलनात्मक रूप से जहाँ 125 किलोग्राम बीज दर प्रति हेक्टेयर का प्रयोग करने पर जैविक उपज 118.2 क्विंटल प्रति हेक्टेयर प्राप्त हुई वहीं 100 किलोग्राम बीज दर प्रति हेकटेयर का प्रयोग करने पर 106.0 क्विंटल / हेकटेयर जैविक उपज प्राप्त हुई। स्पष्ट है कि बीज दर की मात्रा बढ़ने पर जैविक उपज भी बढ़ती है। इन परिणामों को समीरा एवं अन्य (1993) द्वारा प्राप्त निष्कर्षों के अनुरूप पाया गया। हलाँकि नाइट्रोजन आवेदन के मामले में जैविक उपज 140 किलो नाइट्रोजन की बढ़ती खुराक के साथ वृद्धि हुई थी, एन/हेक्टेयर (130.1 क्विंटल/हेक्टेयर) जो उत्पादन में बीज दर और नाइट्रोजन खुराक से प्रभावित थी। जबकि 120 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर का प्रयोग करने पर जैविक उपज 120.2 क्विंटल प्रति हेक्टेयर प्राप्त हुई और सबसे कम 100 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर का प्रयोग करने पर जैविक उपज 105.0 क्विंटल/हे. प्राप्त हुई जोकि निम्नतम थी। स्पष्ट है कि नाइट्रोजन के बढ़ते हुए क्रम में जैविक उपज में भी वृद्धि हुई। अर्थात बढ़ता हुआ नाइट्रोजन स्तर जैविक उपज को बढ़ाने में सार्थक सिद्ध हुआ। परिणाम सिंह एवं अन्य (2003) और पेल्फ्डे एवं अन्य (1999) के प्राप्त निष्कर्षों के अनुरूप ही प्राप्त हुये हैं।

अंकुरण प्रतिशत


बीज दर यानी 100, 125, 150 किलोग्राम/हेक्टेयर और के रूप में (तालिका 2) में दिखाया गया तीन अध्ययन नाइट्रोजन उर्वरक दरों के तीन स्तरों के तहत गेहूँ का बीज अंकुरण प्रतिशत 100, 125 और 150 का बीज दर में वृद्धि के साथ उल्लेखनीय वृद्धि में पता चला जहाँ उच्चतम अंकुरण प्रतिशत (94%) क्रमश: 150 किलो बीज की दर/हेक्टेयर के मामले में 92% प्राप्त हुआ जो 125 किलोग्राम बीज दर प्रति हेक्टेयर की अपेक्षा संतोषजनक था। 150 किलोग्राम बीज की दर/हेक्टेयर सबसे कम अंकुरण प्रतिशत दर्ज की गई थी। नाइट्रोजन उर्वरक 140 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर का प्रयोग करने पर सर्वाधिक सार्थक परिणाम अर्थात अंकुरण प्रतिशत (94%) प्राप्त हुआ। हालाँकि, 100 और 120 किलो एन/हेक्टेयर के आवेदन के साथ दर्ज अंकुरण प्रतिशत ज्ञात करने पर क्रमश: 92% एवं 93% प्राप्त हुआ। उच्चतम अंकुरण प्रतिशत उत्पादन के उच्चतम स्तर पर अर्थात नाइट्रोजन के उच्चतम स्तर पर प्राप्त हुआ। इन परिणाम, समीरा एवं अन्य (1993) के साथ संयुग्म होती है। नाइट्रोजन के बढ़ते स्तर के केवल अंकुरण प्रतिशत की वृद्धि हुई है, लेकिन यह भी पुआल की अधिक उपज, अधिक कार्यात्मक पत्ते, उच्च विकास दर और उच्च निवल आत्मसात विकास के सभी स्तर पर उन लोगों के साथ पूरी तरह सहमत हैं।

शुद्धता प्रतिशत


तालिका-2 में दिए गए विवरण से पता चलता है कि सभी तीन गेहूँ की बीज दर किलोग्राम/हेक्टेयर के प्राप्त निष्कर्षों से पता चलता है कि 100 किग्रा/हेक्टेयर बीज दर के रूप में महत्त्वपूर्ण उच्च शुद्धता प्रतिशत (96%) प्राप्त हुआ जोकि अधिकतम है। जबकि अन्य दोनों बीज दरों, क्रमश: 125 एवं 150 किलोग्राम पर 95% एवं 94% प्राप्त हुई अर्थात जब 125 किलोग्राम का प्रयोग किया गया तो शुद्धता प्रतिशत 95 प्रतिशत प्राप्त हुई जोकि 150 किलोग्राम/हेक्टेयर बीज दर प्रयोग करने पर शुद्धता प्रतिशत से अधिक थी। अर्थात बीज दर के बढ़ते हुए क्रम में शुद्धता प्रतिशत घटा है। अत: वैज्ञानिक बीज उत्पादन में बीज दर निर्धारित मानकों के अनुरूप ही प्रयोग होने चाहिये। नाइट्रोजन की 140 किलो के स्तर की तुलना में नाइट्रोजन के सभी तीन सतरों में काफी अधिक शुद्धता प्रतिशत पता चला 140 किलो का उपयोग एन/हेक्टेयर से अधिक महत्त्वपूर्ण उच्च शुद्धता प्रतिशत (96%) प्राप्त हुई जोकि अधिकतम एवं संतोषजनक थी। 120 किलो एन/हेक्टेयर के बीच फसल सूचकांक में अंतर गैर महत्त्वपूर्ण था। नाइट्रोजन की 140 किलो ग्राम/हेक्टेयर में शुद्धता प्रतिशत के मूल्य नाइट्रोजन इसी तरह के परिणाम के सभी अन्य दो स्तरों की शुद्धता प्रतिशत मूल्य के साथ प्रति पर रिपोर्ट में कहा जो स्वार्स एवं अन्य 2000, द्वारा सूचित किया गया शुद्धता प्रतिशत, अंकुरण प्रतिशत और काल लंबाई (सेमी), स्पाइक/कान की संख्या की अभिव्यक्ति के उच्चतम लक्षण को नाइट्रोजन के उच्चतम दर पर प्राप्त किया गया।

निष्कर्ष


प्रस्तुत अध्ययन से यह ज्ञात हुआ है कि गेहूँ की प्रजाति ‘राज-3077’ 140 किलोग्राम नाइट्रोजन के साथ 150 किलोग्राम बीज दर पर अधिक संतोषजनक परिणाम, पौधे की लंबाई, अनाज उपज एवं जैविक उपज में अन्य बीज दरों एवं नाइट्रोजन स्तर का प्रयोग करने पर अपेक्षाकृत अधिक प्राप्त हुई है। इसी प्रकार जब 140 किलोग्राम नाइट्रोजन के साथ 100 किलोग्राम बीज दर का प्रयोग किया गया तो अधिकतम कार्यातमक पत्तियों की संख्या, स्पाइक लंबाई सेमी, स्पाइक/कान की संख्या, अंकुरण प्रतिशत एवं शुद्धता प्रतिशत प्राप्त हुए, जोकि संतोषजनक है। इस प्रकार गेहूँ की ‘राज-3077’ प्रजाति को गेहूँ की उत्पादकता बढ़ाने के लिये उत्तर प्रदेश का बुन्देलखण्ड क्षेत्र कृषि परिस्थित में आदर्श है।

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Talika-1Talika-2

महीपत सिंह, बीज प्रौद्योगिकी विभाग, कृषि विज्ञान संस्थान बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय, झांसी (उ.प्र.)-284128, भारत Maahiseeds@gmil.com

Mahipat Singh, Department of Seed Technology, Institute of Agriculture Sciences, Bundelkhand University, Jhansi (U.P.)-284128, India, maahiseeds@gmail.com

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