गेहूँ का आधार एवं प्रमाणित बीजोत्पादन

गेहूँ की खेती
गेहूँ की खेती

आधार बीज तैयार करने के लिये प्रजनक बीज किसी प्रमाणीकरण संस्था के मान्य स्रोत से प्राप्त किया जा सकता है। बोने से पहले थैलों पर लगे लेबल से बीज के किस्म की शुद्धता की जाँच कर लेनी चाहिए और लेबल को सम्भालकर रखना चाहिए।

निबन्धन


जिस खेत में बीजोत्पादन करना हो उसका निबन्धन राज्य बीज प्रमाणीकरण संस्था द्वारा करवाना चाहिए। गेहूँ स्वंय- परागित फसल है, अतः प्रमाणित बीज उत्पादन के लिये प्रमाणीकरण शुल्क मात्र 175 रुपया प्रति हेक्टेयर एवं निबन्धन शुल्क 25 रुपया प्रति हेक्टेयर है।

खेत का चयन


गेहूँ के बीज उत्पादन के लिये ऐसे खेत का चुनाव करना चाहिए, जिसमें पिछले मौसम में गेहूँ न बोया गया हो। अगर विवशतावश वही खेत चुनाव करना पड़े तो उसी प्रभेद को उस खेत में लगाना चाहिए जो कि पिछले मौसम में बोया गया था और बीज की आनुवंशिक शुद्धता प्रमाणीकरण मानकों के अनुरूप थी। खेत की मृदा उर्वक, दोमट हो एवं जल निकास की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए।

उन्नत प्रभेद


उत्पादन तकनीकी का सबसे अहम पहलू उपयुक्त किस्म का चुनाव होता है। झारखण्ड राज्य के लिये अनुशंसित किस्में सिंचित समय पर बुआई के लिये एच.यू.डब्ल्यू. 468, के 9107 एवं बिरसा गेहूँ 3 हैं। इन किस्मों की उपज क्षमता 40-45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। सिंचित विलम्ब से बुआई के लिये एच.यू.डब्ल्यू. 234, एच.डी. 2643 (गंगा) एवं बिरसा गेहूँ 3 है। इनकी उपज क्षमता 35-40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।

पृथक्करण


गेहूँ एक स्वंय- परागित फसल हैं अतः बीजोत्पादन के लिये गेहूँ के एक खेत से दूसरे प्रभेद के खेतों से दूरी कम-से-कम 3 मीटर होनी चाहिए। लेकिन अनावृत्त कण्ड (लूज स्मट) से सक्रंमित गेहूँ रोग से बचाव के लिये न्यून्तम पृथक्करण दूरी 150 मीटर रखना चाहिए, अन्यथा आपके खेत भी संक्रमित हो सकते हैं।

बीज दर एवं बीजोपचार


बीजोत्पादन के लिये बीज कम मात्रा में प्रयोग किया जाता है। इसके लिये 90-100 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर उपयुक्त है। सीड ड्रील से गेहूँ की बुआई करनी चाहिए, इससे समय के साथ-साथ पैसे की भी बचत होती है। बीज हमेशा विश्वसनीय संस्थानों से ही खरीदना चाहिए। बुआई के पहले बीज को फफूंदी नाशक दवा विटावेक्स या रैक्सिल 2.5 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करना चाहिए।

बुआई का समय


सिंचित अवस्था में समय से बुआई के लिये उपयुक्त समय 1 नवम्बर से 15 नवम्बर एवं सिंचित विलम्ब से बुआई के लिये उपयुक्त समय 1 दिसम्बर से 25 दिसम्बर तक।

रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग


अच्छी उपज हेतु उन्नत प्रभेदों के लिये 220 किलो ग्राम यूरिया, 312 किलोग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट एवं 42 किलोग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश प्रति हेक्टर की दर से व्यवहार करें। यूरिया की आधी मात्रा तथा सिंगल सुपर फॉस्फेट एवं म्यूरेट ऑफ पोटाश की पूरी मात्रा बुआई के समय दें। यूरिया की शेष आधी मात्रा बुआई के 20-25 दिनों (पहली सिंचाई) के बाद उपरिवेशन के द्वारा डालें। मिट्टी के जाँच के आधार पर ये मात्राएँ कम की जा सकती हैं। दाना बनते समय यूरिया के 2.5 प्रतिशत घोल का छिड़काव करने से दाने का विकास अच्छा होता है।

सिंचाई


बीज उत्पादन के लिये कम-से-कम छः सिंचाई की आवश्यकता होती है। प्रथम सिंचाई मुख्य जड़ बनना शुरू होने पर (बुआई से 20-25 दिन बाद), दूसरी सिंचाई कल्ले फूटने के समय (बुआई से 40-45 दिन बाद), तीसरी गाँठ बनने की अन्तिम अवस्था (बुआई से 60-65 दिन बाद), दिन बाद, चौथी फूल आने के समय (बुआई से 80-85 दिन बाद), पाँचवीं सिंचाई दूध भरते समय (बुआई से 100- 105 दिन बाद) और छठवीं सिंचाई (बुआई से 110-115 दिन बाद) दाने सख्त होने पर करनी चाहिए। अगर वर्षा हो जाये तो उस सिंचाई को नहीं भी कर सकते हैं। सिंचाई की संख्या भूमि की किस्म पर भी निर्भर करता है, अगर भूमि बलुई हो तो सिंचाई अधिक करनी पड़ती है।

खरपतवार नियंत्रण


उच्च गुणवता वाले बीजोत्पादन के लिये खरपतवार नियंत्रण प्रभावी तरीके से किया जाना आवश्यक है। खरपतवार बीजों की उपज तथा गुणवत्ता को काफी हद तक प्रभावित करते हैं तथा फसलों के बीज को दुषित करते हैं। चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों को नष्ट करने के लिये 2,4 डी. 0.5 किलोग्राम 750 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर बुआई के 25-30 दिन बाद छिड़काव करें। फेलरिस माइनर घास गेहूँ के साथ अंकूरित होता है और बाली आने से पहले पहचानना कठिन होता है, अतः इसकी रोकथाम के लिये गेहूँ की बुआई के 30 दिन बाद आइसोप्रोट्यूरॉन (75 डब्ल्यू.पी.) एक किलोग्राम सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर 700-800 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़कना चाहिए।

रोग नियंत्रण


काला किट्ट (हरदा)


इस रोग के मुख्य लक्षण तनों, पत्तियों एवं पर्णच्छदों पर लम्बे, लाल-भूरे से काले रंग के धब्बे दिखाई पड़ते हैं जो जल्द फट जाते हैं और भूरा चूर्ण निकलता है। इसके नियंत्रण के लिये जिनेब या इण्डोफिल एम 45 का 0.2 प्रतिशत घोल बनाकर 15 दिनों के अन्तराल पर छिड़काव करें।

अनावृत कण्ड (लूज स्मट)


इस रोग से ग्रस्त पौधों की सभी बलियाँ काले चूर्ण का रूप ले लेती हैं, और उनमें दाने नहीं बनते हैं। इस रोग से बचाव के लिये बीजों का बीजोपचार कवकनाशी दवा से करें।

हेलमेन्थोस्पोरियम


इस रोग से ग्रस्त पौधों के पत्तियों पर पीली धारियाँ हो जाती हैं एवं बाद में धारियों का रंग भूरा हो जाता है। बीज का बीजोपचार बैविस्टीन या थीरम 2 ग्राम प्रति किलो बीज के दर से करना चाहिए।

कीट नियंत्रण


कीड़ों से बचाव के लिये 1-1.25 लीटर थायोडॉन या 750 मि.ली. इकालक्स (25 प्रतिशत ई. सी.) का छिड़काव करें। दीमक से बचाव के लिये क्लोरपाइरीफॉस 20 ई.सी. से बीजोपचार करें। एक किलो गेहूँ के बीज के लिये 5 मि. ली. क्लोरपाइरीफॉस दवा की आवश्यकता होती है। खेत की अन्तिम तैयारी के समय लिन्डेन 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर का व्यवहार करें। खड़ी फसल में दीमक का आक्रमण होने पर क्लोरपाइरीफॉस 20 ई.सी. दवा की मात्रा 2.5 लि. 800-1000 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़कना चाहिए।

अवांछनीय पौधों को निकालना


एक ही प्रभेद में अलग तरह के दिखने वाले पौधों को जड़ से उखाड़कर खेत से हटा देना चाहिए। यह बीजोत्पादन के लिये बहुत ही महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया है। भिन्न से दिखने वाले पौधे किसी दूसरी किस्म के हो सकते हैं, इसलिये इन्हें समय-समय पर हटाते रहना चाहिए। पौधों की ऐसी असमानता पौधे की ऊँचाई, पत्तियों की बनावट, फूल खिलने तथा फसल पकने की अवधि आदि में दिखाई देता है। गेहूँ के कंडुवाग्रस्त पौधों को उनमें बालों के समय पहचानकर निकाला जाता है। कंडुवाग्रस्त पौधों की बालियों को पहले लिफाफे के निचले हिस्से को मुट्ठी से बन्द करने के बाद उखाड़ना चाहिए, जिससे उखाड़ते समय बीजाणु खेत में नहीं गिरेंगे। बाद में उन्हें जला या गड्ढों में दबा देना चाहिए।

बीज फसल का निरीक्षण


बीज फसल के खेतों के पौधों तथा आपत्तिजनक खरपतवारों की उपस्थिति, पृथक्करण दूरी तथा रोग के आँकड़े एकत्र कर यह देखा जाता है कि वह निर्धारित मानकों के अनुरूप है या नहीं। प्रायः निरीक्षण का कार्य बुआई के समय, पुष्पन पूर्व, पुष्पन अवस्था पर, फसल पकते समय एवं कटाई के समय किये जाते हैं। बीज निरीक्षण द्वारा सभी पहलूओं के सही होने पर तथा बीजों की स्वस्थता एवं शुद्धता पर ही बीज प्रमाणीकरण एजेंसी द्वारा आधार बीज के लिये सफेद टैग एवं प्रमाणित बीज के लिये नीला टैग निर्गत किया जाता है।

फसल की कटाई


बीज फसल की कटाई करते समय बीज में नमी की मात्रा 15 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए। फसलों की कटाई तथा दौनी के समय बहुत ही सावधानी बरतने की आवश्यकता है, क्योंकि बीजों में खरपतवार के बीज मिल सकते हैं। खलिहान साफ-सुथरा होने चाहिए, अगर खलिहान पक्का हो तो और भी अच्छा है जिससे अक्रिय पदार्थों की मात्रा कम हो जाएगी। ऐसा नहीं होने से बीज दूषित हो जाते हैं तथा उनकी गुणवत्ता का स्तर गिर जाता है।

दौनी


बीज फसल की विभिन्न किस्मों की दौनी अलग खलिहान में करनी चाहिए जिससे अपमिश्रण नहीं होने पाये। दौनी का कार्य तब शुरू करें जब बीज में नमी की मात्रा 14 प्रतिशत से कम हो जाये। दौनी से पूर्व दौनी यंत्र को अच्छी तरह साफ कर लेना चाहिए, जिससे उसमें पहले दौनी की गई किस्म के दाने न रह गए हों। पुनः ग्रेडर के द्वारा शुद्ध एवं स्वस्थ बीजों को अलग कर लेना चाहिए तथा खखरी, धूल, भूसा खराब एवं हल्के दाने, कंकड़, पत्थर इत्यादि को हटा देना चाहिए। पुनः बीजों को अच्छी तरह सूखा लें एवं नमी की मात्रा 10-12 प्रतिशत से ज्यादा नहीं रहने दें। इसके बाद बीजोपचार के लिये वीटावेक्स 75 डब्लू.पी. की 2.5 ग्राम प्रति किलो बीज या रैक्सिल 2 डी.एस. को 1.5 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से प्रयोग करें। अब बीजों को साफ-सुथरे बोरों में पैक करें तथा प्रत्येक बोरों में 40 किलोग्राम बीज रखें।

बोराबन्दी तथा लेबलिंग


बीजोपचार के बाद बीजों कोे उचित आकार के बोरों में भरा जाता है। इन बोरों पर निम्नलिखित जानकारियाँ होती हैं जैसे प्रभेद का नाम, बीज का प्रकार आनुवांशिक शुद्धता, अंकुरण प्रतिशत अंकुरण क्षमता के परीक्षण की तिथि, अक्रिय पदार्थों का प्रतिशत, बीज भरने की तिथि।

भण्डारण


बीज भण्डारण के लिये गोदाम ऊँचे स्थान पर होना चाहिए, फर्श कंक्रीट का बना हो, दीवारों में दरार न हों, सुरक्षित एवं स्वच्छ होना चाहिए। बोरे दीवारों से सटे नहीं होने चाहिए। पन्द्रह से बीस दिन के अन्तराल पर गोदाम निरीक्षण करते रहना चाहिए।


TAGS

Where wheat grown in India?, How the wheat is grown?, When wheat is harvested in India?, What is the seed of wheat?, Where is durum wheat grown in India?, Which state is the leading producer of maize?, What climate is needed to grow wheat?, Where do they grow wheat?, Which crops are grown in Rabi season?, Which are Rabi crops?, How many seeds are in a stalk of wheat?, Where can you find wheat seeds?, Is durum wheat semolina Maida?, Which is the largest wheat producing country?, How do they grow wheat?, How do you harvest wheat?, Where is wheat produced in the world?, Where is wheat native to?, What climate is needed to grow wheat?, How long does it take for a wheat seed to germinate?, How do you harvest wheat by hand?, How do you thresh wheat by hand?, Which country is the largest producer of wheat?, Which country has the most fruit?, Where was wheat domesticated?, How wheat is used?, Which type of soil is best for growing wheat?, Which type of soil is suitable for rice?, wheat irrigation methods in india, irrigation of wheat crop in hindi, method of irrigation used for wheat in hindi, type of irrigation for wheat in hindi, wheat cultivation process in hindi, wheat cultivation pdf in hindi, wheat cultivation practices in hindi, cultivation of wheat in hindi, methods of wheat cultivation in india, wheat irrigation methods in india, wheat farming in India, Irrigation and scheduling in wheat, irrigation scheduling in wheat in india, wheat irrigation requirement in hindi, wheat irrigation methods in hindi, type of irrigation for wheat in hindi, method of irrigation used for wheat in hindi, wheat water consumption in hindi, irrigation of wheat crop in hindi, Irrigation in wheat crop, wheat cultivation in india wikipedia in hindi, wheat cultivation process in hindi, wheat cultivation pdf in hindi, history of wheat in india, wheat cultivation practices in hindi, wheat cultivation in punjab, cultivation of wheat in hindi, wheat production in india state wise in hindi, wheat farming process in hindi, wheat cultivation practices in hindi, wheat cultivation pdf in hindi, information on wheat crop in hindi, history of wheat in india, wheat cultivation in punjab, wheat cultivation practices pdf in hindi, wheat information in hindi.


 

पठारी कृषि (बिरसा कृषि विश्वविद्यालय की त्रैमासिक पत्रिका) जनवरी-दिसम्बर, 2009


(इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिये कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें।)

1

उर्वरकों का दीर्घकालीन प्रभाव एवं वैज्ञानिक अनुशंसाएँ (Long-term effects of fertilizers and scientific recommendations)

2

उर्वरकों की क्षमता बढ़ाने के उपाय (Measures to increase the efficiency of fertilizers)

3

झारखण्ड राज्य में मृदा स्वास्थ्य की स्थिति समस्या एवं निदान (Problems and Diagnosis of Soil Health in Jharkhand)

4

फसल उत्पादन के लिये पोटाश का महत्त्व (Importance of potash for crop production)

5

खूँटी (रैटुन) ईख की वैज्ञानिक खेती (sugarcane farming)

6

सीमित जल का वैज्ञानिक उपयोग

7

गेहूँ का आधार एवं प्रमाणित बीजोत्पादन

8

बाग में ग्लैडिओलस

9

आम की उन्नत बागवानी कैसे करें

10

फलों की तुड़ाई की कसौटियाँ

11

जैविक रोग नियंत्रक द्वारा पौधा रोग निदान-एक उभरता समाधान

12

स्ट्राबेरी की उन्नत खेती

13

लाख की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में भागीदारी

14

वनों के उत्थान के लिये वन प्रबन्धन की उपयोगिता

15

फार्मर्स फील्ड - एक परिचय

16

सूचना क्रांति का एक सशक्त माध्यम-सामुदायिक रेडियो स्टेशन

17

किसानों की सेवा में किसान कॉल केन्द्र

18

कृषि में महिलाओं की भूमिका, समस्या एवं निदान

19

दुधारू पशुओं की प्रमुख नस्लें एवं दूध व्यवसाय हेतु उनका चयन

20

घृतकुमारी की लाभदायक खेती

21

केचुआ खाद-टिकाऊ खेती एवं आमदनी का अच्छा स्रोत

 

Path Alias

/articles/gaehauun-kaa-adhaara-evan-paramaanaita-baijaotapaadana

×