जनजातियां हमेशा से जंगलों में रहती हैं। वे लोग जंगलों की पूजा भी करते हैं। यह सच्चाई है कि वे जलावन के लिए कुछ लकड़ियां, कुछ इमारती लकड़ियां और अपने जानवरों के लिए चारे की व्यवस्था इन जंगलों से करते हैं, लेकिन वे जंगलों को कभी बरबाद नहीं करते। यह तो कुछ लकड़ी व्यापारियों की देन है कि वे अपनी जेब भरने के लिए वन विभाग के अधिकारियों की प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष मिलीभगत से इन्हें माध्यम बना कर लकड़ियां इकट्ठा करवाती हैं। और उनके बहकावे में आकर ये जनजाति अपने ही शरणस्थली और वन्य वातावरण को बरबाद कर रहे हैं। आज तक किसी ने जंगल के बरबाद होने के मूल कारण को नहीं छुआ है। भू-गर्भ जल का अत्यधिक दोहन किये जाने से जल स्तर दिनोंदिन नीचे जा रहा है, जो समय पर हुई पर्याप्त बारिश के बिना वापस अपने स्तर पर नहीं पहुंच पाता। इसका नतीजा यह होता है कि जंगल के पौधों की जड़ें उतना नीचे से पानी नहीं ले पाती। भारत के अधिकतर हिस्सों में बरसात का मौसम पांच महीनों से कम का होता है, बाकी के सात महीनों में नाममात्र की ही बारिश होती है। बड़े पेड़ जिनकी जड़ें गहरी होती हैं, वे तो इतने लंबे सूखे को जैसे-तैसे ङोल लेते हैं, लेकिन मिट्टी के ऊपरी सतह से पर्याप्त पानी नहीं मिल पाने के कारण छोटे पौधे सूख जाते हैं। कई संरक्षित जंगलों, तराई एवं द्वार क्षेत्रों में भी छोटे पौधों का विकास नहीं हो पा रहा है, जिससे इन जंगलों का सतह काफी हद तक वीरान हो गया है। पौधों के सघन विकास के बिना जंगल काफी खाली-खाली लगते हैं। जंगलों में बड़े वृक्ष किसी खास इलाके में ही हैं। छोटे पौधे को मध्यम आकार का और मध्यम आकार के वृक्ष को बड़ा होने के चक्र को बनाये रखना जरी है। एक के बाद एक सूखे के कारण जब जंगल बरबाद होने लगे, तो धूमधाम से मनाये गये सैंकड़ों वन महोत्सव भी उसे रोक नहीं पाये। सभी छोटे-छोटे पौधे भी मरने लगे। सबसे बड़ी बात कि सलाना मनाये जाने वाले इस फैशनेबल रिवाज से 25 प्रतिशत से अधिक पौधे नहीं लगाये जा सके। वास्तविकता यही है कि पौधों को लगाने के बाद इनकी उचित देख-भाल भी नहीं की गयी। वर्षापात में धीरे-धीरे हो रही कमी के विषय में यह कारण स्थापित किया गया कि, वनों या जंगलों का विस्तार कम हो रहा है, अत वर्षा कम हो रही है। अगर हम वन महोत्सव और सामाजिक वानिकी के जरिये सभी स्थानों पर पौध रोपण करें तो फिर से बारिश होने लगेगी। विकसित देशों में यह तथ्य स्थापित हो चुका है कि विशाल घने जंगल भी स्थानीय स्तर पर सिर्फ 5 प्रतिशत वर्षा की वृद्धि कर पाते हैं, वह भी स्थानीय शीतलन के कारण। हवा को शुद्ध करने में पेड़ों की भूमिका को सबों ने स्वीकारा है। पेड़ वास्तव में मनुष्य का सबसे अच्छा दोस्त है। लेकिन वर्षा कराने की इसकी क्षमता नाममात्र की है।जारी।।
(लेखक कलकत्ता विश्वविद्यालय के रिटायर्ड लेक्चरर और रॉयल जियोग्राफ़िकल सोसाइटी ऑफ़ लंदन के फ़ेलो हैं)
(लेखक कलकत्ता विश्वविद्यालय के रिटायर्ड लेक्चरर और रॉयल जियोग्राफ़िकल सोसाइटी ऑफ़ लंदन के फ़ेलो हैं)
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