गाँवों में वर्षाजल संग्रहण

गावों में आमतौर पर शहरी आवासों के विपरीत छोटे घर होते हैं। यहां के घरों की छत अपेक्षाकृत छोटी होती है। यहां वर्षाजल संग्रहण के लिए शहरों से भिन्न तकनीकी का उपयोग किया जाता है। अत: गांवों में प्रत्येक घर की छत, आंगन एवं बाड़े में होने वाली बारिश के पानी का सोख्ता गड्ढा और टांका जैसे ढांचों में रोका जा सकता है।

भूजल में स्वच्छ पानी पहुंचे, यही सोख्ता गड्ढे बनाने का मूल उद्देश्य होता है, जबकि इसका दूसरा उद्देश्य यह भी है कि इससे घर में उपयोग के बाद निकला गंदा पानी इधर-उधर कीचड़ फैलाने की बजाय जमीन में सोख लिया जाए। अत: सोख्ता गड्ढे द्वारा भूजल में शुद्ध पानी पहुंचाना बेहद जरूरी है, नहीं तो भूजल के प्रदूषण से बीमारियों के फैलने का खतरा पैदा हो सकता है।

इसी प्रकार बरसाती पानी को रोकने के लिए टांका भी बनाया जा सकता है। इन दोनों ढांचों को निम्न तरीके से तैयार किया जा सकता है :

सोख्ता गड्ढा

इस संरचना को किसी भी जगह और कहीं भी बनाया जा सकता है। बरसाती पानी छत, आंगन और बाड़े से निकलकर बहता है। अत: बरसाती पानी बहकर निकलने वाले मार्ग पर ही सोख्ता गड्ढा बनाया जाता है। इस गड्ढे का आकार स्थानीय परिस्थिति के अनुरूप गोल, चौकोर या किसी भी आकार का हो सकता है। इस गड्ढे की लंबाई, चौड़ाई और गहराई वर्षाजल के वेग और उससे मिलने वाली संभावित मात्रा पर निर्भर करता है।

मोटे तौर पर एक घर के आसपास करीब चार सोख्ता गड्ढे बनाए जाने चाहिए। आमतौर पर इनकी लम्बाई, चौड़ाई और गहराई तीन-तीन फीट रखी जा सकती है। तीन मीटर गहरे सोख्ता गड्ढे में 1.5 मीटर मोटी बोल्डर की परत चढ़ाएं। इसके ऊपर बजरी और बजरी की परत के ऊपर मोटी रेल की लगभग 0.5 मीटर मोटी परत चढ़ाएं। इसके बाद इसे बारीक रेत से भरकर इस पर मिट्टी की पाल डाल दें। इस गड्ढे पर जाली अथवा खजूरी के पत्तों को चढ़ाएं, जिससे इसमें गाद या कचरा प्रवेश न कर सके। इसे हैंडपम्प के बहने वाले पानी के स्थान पर भी बनाया जा सकता है।

अगर सोख्ता गड्ढे को पेयजल स्रोत के निकट बनाया जाता है तो ऐसे में साफ-सफाई पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है, जिससे पुनर्भरण में प्रयुक्त होने वाला पानी प्रदूषित न होने पाए। इन सोख्ता गड्ढों की नियमित रूप से सफाई करनी चाहिए।

टांका

इस पारंपरिक जल संग्रहण व्यवस्था का आज भी उतना ही मोल है। इसका उद्देश्य बरसात के पानी को एक पक्के कुंड या हौज में एकत्रित करना होता है, जिसका जरूरत के मुताबिक उपयोग होता रहता है।

घरों की छतों पर बरसने वाले पानी को जमीन के नीचे बनाए गए टांकों में भरा जाता है और इसे अच्छी तरह ढककर रखा जाता है। इन्हें खुले मैदानों में भी बनाया जाता है। ऐसी संरचनाओं का राजस्थान और गुजरात के सौराष्ट्र तथा कच्छ जैसे सूखाग्रस्त क्षेत्रों में काफी चलन है, जहां बहुत कम बारिश होती है। इस पानी का पेयजल या निस्तार दोनों के लिए उपयोग किया जाता है।

इन टांकों का आकार जलग्रहण क्षेत्र अर्थात छतों में वर्षाजल एकत्रित करने की क्षमता पर निर्भर करता है। टांका सभी तरफ से पक्का बनाया जाता है ताकि पानी कहीं से भी रिसकर न बहें। आमतौर पर टांकों का इस्तेमाल आदमियों और पशुओं के नहाने के लिए किया जाता है और कहीं- कहीं खारे पानी के कारण इसका पीने में भी उपयोग होता है।

खुले क्षेत्रों में इसे ज्यादा गहराई पर बनाया जाता है, जिससे इसमें चारों तरफ का बहने वाला बरसाती पानी आकर जमा हो सके। साफ पानी प्राप्त करने के लिए इसमें पानी प्रवेश करने वाले रास्ते पर दो छोटे कुंड बनाए जाते हैं, जिससे इसके साथ बहकर आने वाली मिट्टी या गंदगी मुख्य टांके में आने से पहले ही रुक जाती है और इस प्रकार स्वच्छ पानी ही इसमें प्रवेश करता हैं

स्रोत : अज्ञात, खेत के चारों ओर नाली द्वारा भूजल संवर्धन और कुंआ रिचार्ज करने की विधि, जन अभिवान:सहभागिता से पानी का संरक्षण व संवर्धन, मध्य प्रदेश शासन, पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग, राजीव गांधी जल ग्रहण प्रबंधन मिशन-द्वित्तीय चरण, मध्य प्रदेश, भोपाल, पृष्ठ- 34-37, दिसम्बर 2001
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