“मुख्यमन्त्री जल बचाव अभियान योजना” को जिला प्रशासन का ठेंगा
देश ही नहीं विश्व के जाने-माने विद्वानों का मत है कि तीसरा विश्व युद्ध का कारण जल संकट होगा। यही वजह है कि विश्व ने जल संकट से अपने को बचाने के प्रयास तेज कर दिये हैं। देश की सर्वोच्च न्यायालय ने भी केन्द्र तथा राज्य सरकारों को निर्देश दिये हैं कि गाँवों के तालाबों को हरसम्भव सहेजा जाये और जो भी इन्हें क्षति पहुँचाने की कोशिश करे उनके ख़िलाफ़ सख्त कार्यवाही करे। लेकिन शासन-प्रशासन की अनदेखी के चलते गाँव के जीवनदायिनी तालाबों को क्षतिग्रस्त किया जा रहा है।
कानपुर देहात के मैथा ब्लॉक के गाँव औनहा में सीलिंग के दौरान राजा रघुनाथ सिंह ने अपना पुश्तैनी हेरिटेज तालाब शासन को दे दिया था। जिस समय यह तालाब शासन को सौंपा गया था उस समय तालाब का क्षेत्रफल 72 बीघा था। तालाब में कई रंग के कमल के फूल कतारों में लगाए गए थे जो तालाब की सुन्दरता को बढ़ाने का काम करते थे।
तालाब के केन्द्र में एक टापू बनवाया गया था जहाँ बैठकर सुख की अनुभूति ली जा सकती थी। यह तालाब जहाँ एक ओर गाँव की सुन्दरता का काम करता था वहीं उस गाँव ही नहीं आसपास के गाँवों को जलसंकट से उबरने का भी काम करता था।
अतिक्रमण के चलते अब यह तालाब केवल 42 बीघे का ही रह गया है। तालाब के सीलिंग में जाने के बाद राजा रघुनाथ सिंह को इस बात की चिन्ता हुई कि कभी तालाब सूखा तो इसके गम्भीर परिणाम होंगे उन्होंने श्रमदान से इसे कैनाल से जोड़ दिया था।
इस हेरिटेज तालाब को जिला प्रशासन ने 5 वर्ष पूर्व मछली ठेकेदार गुलरेज को कौड़ियों के दाम दे दिया। तालाब बहुत बड़ा था। तालाब से मछलियाँ पकड़ना मुश्किल हो रहा था। मछलियाँ आसानी से पकड़ी जा सके उसने तालाब की गहराई को कम करने का प्रयास शुरू कर दिया। तालाब की गहराई कम करने के साथ ही उसने तालाब को कई भागों में बाँट दिया। जेसीबी का प्रयोग कर तालाब के अन्दर खेतों की तरह मेंड़ें बनानी शुरू कर दी। तालाब के किनारे खेत हो गए जिनको उसने किराए पर देना शुरू कर दिया। इसकी शिकायत “सबल अन्नदाता” संयोजक प्रोफ़ेसर एसपी सिंह ने कानपुर देहात के जिलाधिकारी, मुख्य विकास अधिकारी, उपजिलाधिकारी रसूलाबाद तथा मंडलायुक्त से की जिसकी प्रतिलिपि मुख्यमन्त्री उ.प्र., मुख्य सचिव उ.प्र. को भी भेजी लेकिन नतीजा सिफ़र रहा।
मालूम हो कि भूगर्भ जल की उपलब्धता में कमी आने के साथ ही भूजलस्तर में तेजी से गिरावट आने के मद्देनज़र प्रदेश सरकार ने 18 फरवरी 2013 को भूजल प्रबन्धन, वर्षा जल संचयन एवं भूजल रिचार्ज को समग्र नीति लागू की थी इस समग्र नीति के क्रियान्वयन को सिंचाई/सिंचाई यांत्रिकी विभाग, कृषि विभाग, पेयजल एवं स्वच्छता मिशन, लघु सिंचाई, उ.प्र. जल निगम तथा भूगर्भ जल विभाग को एक ज़िम्मेदारी सौंपी थी। लेकिन स्थितियाँ और बिगड़ती गईं। मुख्य सचिव उ.प्र. आलोक रंजन ने 1 अप्रैल 2015 के पत्र में माना की जिस गति से प्रदेश में भूजल की समस्या बढ़ रही है चिन्ता का विषय है सरकार के अथक प्रयासों के बावजूद भूजल संकट में अपेक्षित सुधार नहीं हो पा रहा है।
प्रदेश में वर्ष 2000 में जहाँ 22 विकासखण्ड क्रिटिकल श्रेणी में रखे गए थे उनकी संख्या बढ़कर 179 पहुँच चुकी है। जो एक गम्भीर स्थिति है। यह स्थिति प्राकृतिक जलस्रोतों तालाबों, पोखरों, तथा कुओं के जीर्णोंद्धार, उचित रखरखाव एवं सौन्दर्यीकरण के साथ ही वर्षाजल संचयन को ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्र में विस्तृत कार्य योजना बनाकर सुनियोजित रूप से कार्य किये जाने से यह समस्या का समाधान हो सकता है।
इसी नीति को दृष्टिगत रख प्रदेश सरकार ने “मुख्यमन्त्री जल बचाव अभियान योजना” का आरम्भ किया। जिसके तहत भूगर्भ जल के स्तर में संवर्धन को चेकडैमों का निर्माण, तालाब पोखरों का गहरीकरण, खेतों की मेंड़बन्दी की कार्य योजना को मूर्त रूप देना है। साथ ही तालाबों एवं पोखरों का चिन्हीकरण कर प्रत्येक कोने पर लाल खम्भे लगाए जाना है जिससे अतिक्रमण न किया जा सके। इनके किनारों पर वृक्षारोपण भी होना है।
देखा जा रहा है कि प्रदेश सरकार वो भी मुख्यमन्त्री के नाम से चालू की गई योजना के क्रियान्वयन में पूरी तरह से लापरवाही की जा रही है। जहाँ “मुख्यमन्त्री जल बचाव अभियान योजना” के तहत तालाबों का गहरीकरण किया जाना है वहीं औनहा गाँव के इस हेरिटेज तालाब को स्वार्थों के चलते उथला किया जा रहा है। ठेकेदार के इस गैरक़ानूनी कृत्य को न रोका गया तो जल संकट तो बढ़ेगा ही साथ ही तालाब में आने वाले पानी का भी बिखराव होगा जो गाँव में संकट पैदा करेगा।
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