पिछले साल की तरह ही इस बार भी दिल्ली गैस चैम्बर में तब्दील हुई। फर्क यह रहा कि पिछले साल ज्यादा दिनों तक हवा की गुणवत्ता ‘बदतर’ रही थी, इस बार 8 दिनों तक वह स्थिति बनी। वहीं, सरकारी स्तर पर प्रदूषण से निपटने के उपाय की जगह आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला बना रहा…
राजधानी दिल्ली इस साल भी गैस चैम्बर में तब्दील हुई। हालाँकि, पिछले साल के मुकाबले हालात थोड़े बेहतर रहे। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आँकड़े बताते हैं कि 2016 में 26 दिनों तक, जबकि इस साल 8 दिनों तक प्रदूषण का स्तर बदतर बना रहा। वहीं 2016 में 97 दिनों तक और इस साल 76 दिनों तक बहुत खराब स्थिति रही। जबकि 2016 में 122 दिनों तक और इस साल 114 दिनों तक हवा की गुणवत्ता खराब रही। इस साल अक्टूबर में दीपावली के आस-पास राजधानी गैस चैम्बर बनी। हालात बद से बदतर हो गए, जिसके कारण दिल्ली सरकार को सभी सरकारी और निजी स्कूलों को बन्द रखने का फरमान जारी करना पड़ा। वायु प्रदूषण पर लगाम कसने के लिये न तो पिछले साल के हालात से कुछ सीखा गया और न ही इस साल कोई ठोस कदम उठाया गया, ताकि प्रदूषण भले ही खत्म न हों लेकिन कम जरूर हो जाएँ। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) और दिल्ली हाईकोर्ट की कई बार फटकार लगाए जाने के बाद भी न तो केन्द्र सरकार और न ही राज्य सरकार कोई प्रभावी एक्शन प्लान पेश कर सकी। वहीं, फसल में आग लगाने से उठने वाले धुआँ को लेकर राज्य सरकारों के बीच एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप जड़ने का सिलसिला बना रहा।
अक्टूबर में वायु प्रदूषण यानी एयर क्वालिटी इंडेक्स 450 तक जा पहुँचा था, जिससे दिल्ली की फिजा इस हद तक जहरीली हो गई कि डॉक्टरों ने लोगों को घरों से बाहर निकलने से भी मना कर दिया। अक्टूबर में कई इलाकों में पीएम 2.5 और पीएम 10 का स्तर आठ से 10 गुना से भी ज्यादा दर्ज किया गया। वायु प्रदूषण को लेकर जो स्थिति बनी थी, उस समय एनजीटी, हाईकोर्ट और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने खुद दिल्ली को गैस चैम्बर घोषित कर दिया था। हालाँकि, प्रदूषण पर लगाम लगाने के लिये सरकार महज खानापूर्ति करती रही। रेस्त्रां, होटल, ढाबों में लकड़ी के कोयले के इस्तेमाल पर बैन लगा दिया गया।
बावजूद इसके प्रदूषण के स्तर पर कोई खास फर्क नहीं पड़ा। यहाँ तक की निर्माण कार्यों को भी कुछ दिनों के लिये रोक दिया गया पर राजधानी में आबोहवा बेहद जहरीली बनी रही। दिसम्बर में भी हालात बद से बदतर बने हुये हैं। पीएम 2.5 और पीएम 10 का निर्धारित स्तर तीन-चार गुना से ज्यादा बना हुआ है। राजधानी में कई जगहों पर एंटी स्मॉग गन का ट्रायल भी किया गया लेकिन यह भी कारगर साबित नहीं हुआ। लोग दमघोंटू हवा में साँस लेते रहे और अस्पतालों के चक्कर लगाते रहे।
सेहत पर भारी प्रदूषण
लोग प्रदूषण के खौफ में जीने को मजबूर हैं, क्योंकि सेहत पर प्रदूषण की मार भारी पड़ सकती है। वायु प्रदूषण से फेफड़े, हृदय की बीमारियों के अलावा लकवा व कैंसर जैसी घातक बीमारियाँ हो सकती हैं। अस्पतालों में 35-40 फीसदी साँस के मरीज बढ़ गए। इसके अलावा गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल असर पड़ा है। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. के.के. अग्रवाल ने कहा कि प्रदूषण के कारण वातावरण में पीएम (पार्टिकुलेट मैटर) 10, पीएम 2.5 का स्तर बढ़ जाता है। पीएम 10 साँस के जरिये फेफड़े में प्रवेश कर जाता है। इससे अस्थमा व साँस की बीमारियाँ होती हैं। इसके अलावा पीएम 2.5 का कण इतना सूक्ष्म होता है कि वह साँस के जरिये शरीर में प्रवेश करने के बाद नसों में पहुँच जाता है। इससे हृदय की धमनियों में ब्लॉकेज होने लगता है। इस वजह से हार्ट अटैक होने का खतरा रहता है।
ईपीसीए ने कहा, सख्त कदम की दरकार
एनवायरनमेंटल पॉल्यूशन (प्रीवेंशन एंड कंट्रोल) अथॉरिटी (ईपीसीए) ने सरकार से कहा है कि वह जानलेवा स्तर तक पहुँच चुके प्रदूषण से निपटने के लिये जल्द से जल्द सख्त कदम उठाए, ताकि प्रदूषण से होने वाले हानिकारक असर से लोगों को बचाया जा सके।
ईपीसीए के चेयरपर्सन भूरे लाल ने सरकार से कहा है कि वह ग्रेडेड रिसपॉन्स एक्शन प्लान (जीआरएपी) के तहत प्रदूषण से निपटने के लिये सभी जरूरी कदम उठाए। इस प्लान के अन्तर्गत टास्क फोर्स जो सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड ने बनाई है, वह दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण पर अपनी पैनी नजर बनाए हुए हैं। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) ने भी सरकार से सख्त कदम उठाने की अपील की थी। सीएसई की महानिदेशक सुनीता नारायण ने कहा था कि जब तक सरकार ईपीसीए का एजेंडा लागू नहीं करेगी तब तक दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण को कम करना नामुमकिन है।
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