गाद से बना एक द्वीप, जहाँ आज एक दुनिया आबाद है

नयाचर द्वीप
नयाचर द्वीप


पश्चिम बंगाल में हल्दी और हुगली नदी के मुहाने पर एक बेहद छोटा-सा द्वीप है। यह द्वीप चारों तरफ से पानी से घिरा हुआ है।

दोनों नदियों द्वारा भारी मात्रा में गाद लाकर यहाँ जमा कर देने से यह द्वीप अस्तित्व में आया है।

द्वीप लम्बे समय तक बंजर और वीरान था। वहाँ न कोई पौधा था और न कोई पशु-पक्षी। लोग भी उसकी तरफ नहीं देखते थे।

वक्त गुजरता रहा और गाद जमने के कारण इसका क्षेत्रफल भी बढ़ता चला गया। फिर एक दिन वहाँ एक दुनिया आबाद हो गई। कीट-पतंगों, पक्षियों, तितलियों, चूहों और गिलहरियों की दुनिया।

इस द्वीप का नाम है ‘नयाचर’। ‘चर’ बांग्ला शब्द है जिसका मतलब होता है ‘पानी के बीच उभरी जमीन’। चूँकि लोगों ने देखा कि अचानक से नदी के बीच जमीन उभर आई है, तो इसका नाम रख दिया ‘नयाचर’।

नयाचर पश्चिम बंगाल के पूर्व मिदनापुर जिले में स्थित है। इसका क्षेत्रफल फिलहाल करीब 46 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है।

माना जाता है कि इस द्वीप का अस्तित्व 50 से 60 के दशक में आया होगा, लेकिन उस वक्त लोगों ने इसकी ओर ध्यान नहीं दिया। उस वक्त नयाचर का क्षेत्रफल करीब 18 वर्ग किलोमीटर था।

उल्लेखनीय है कि इसी द्वीप के किनारे पूर्ववर्ती वाममोर्चा सरकार ने केमिकल हब बनाने का फैसला लिया था, जिसे ममता बनर्जी की सरकार ने रद्द कर दिया।

फिलहाल यहाँ कुछ मछुआरे रहने भी लगे हैं। इनकी आबादी 2 हजार के आसपास होगी।

समुद्र में समा रहा है नयाचर द्वीपयह द्वीप पहले राज्य सरकार के भूमि व भूमि सुधार विभाग के अधीन था जिसे बाद में मत्स्यपालन विभाग के हवाले कर दिया गया। उस वक्त यहाँ मछली के कारोबार को बढ़ावा देने का निर्णय लिया गया था और इसका नाम मीनद्वीप भी रखा गया था, लेकिन मत्स्य कारोबार का विकास नहीं हो सका। इसके पीछे कई वजहें रहीं। अव्वल तो वहाँ बुनियादी ढाँचे का घोर अभाव है और दूसरा ये कि द्वीप तक पहुँचने के लिये नाव ही एकमात्र सहारा है और यहाँ समुद्री आवाजाही ज्वार-भाटा पर निर्भर है। यानी कि लोग जब चाहें तब इस द्वीप तक नहीं पहुँच सकते हैं।

एक बंजर और वीरान द्वीप पर एक जीती-जागती दुनिया का आबाद हो जाना वैज्ञानिकों के लिये बेहद असामान्य घटना है और यह कहीं-न-कहीं वैज्ञानिकों को यह समझने में भी मदद कर सकता है कि कैसे एक उजाड़ क्षेत्र आबाद हो जाता है और वहाँ हँसती-खेलती कायनात वजूद में आ जाती है।

वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि यह द्वीप यह भी पता लगाने में मददगार साबित होगा कि कौन-कौन सी भौगोलिक, पर्यावरणीय, बायोलॉजिकल स्थितियाँ जीवों को पनपने व उनके विस्तार में मदद करती हैं।

वैज्ञानिकों ने इस द्वीप को लेकर गहन शोध किया है। इसी शोध के आधार पर जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इण्डिया ने ‘स्टडीज ऑन द सक्सेशन एंड फॉनल डायवर्सिटी एंड इकोसिस्टम डायनेमिक्स इन नयाचर आइलैंड इण्डियन सुन्दरबन डेल्टा’ नाम से एक किताब भी प्रकाशित किया है।

यह किताब नयाचर द्वीप के अस्तित्व में आने व वहाँ जन्तु की प्रजातियों के निवास करने के रहस्य की गुत्थी सुलझाता है और यह समझ भी मजबूत करता है कि वे कौन से हालात थे, जिन्होंने कीट-पतंगों व पशु-पक्षियों के लिये संजीवनी का काम किया।

किताब में बताया गया है कि संप्रति उक्त द्वीप पर 151 जन्तुओं की प्रजातियाँ निवास कर रही हैं और उनका यहाँ आकर खुद को बचा लेना अचम्भित कर देने वाली घटना है। यह किसी भी बंजर भूखंड पर परिस्थितिकी के तैयार होने को लेकर भी कई नए आयाम जोड़ता है।

इसे संयोग ही कहा जा सकता है कि एक तरफ नया द्वीप उभरा है जहाँ एक दुनिया आबाद है, तो दूसरी तरफ नयाचर से ही करीब 30 किलोमीटर दूर स्थित एक आबाद द्वीप घोड़ामारा दिनोंदिन समुद्र की आगोश में समाता जा रहा है।

नयाचर द्वीप मानचित्रघोड़ामारा की आबादी कभी 40 हजार से कुछ ज्यादा ही थी। समय गुजरने के साथ ही यहाँ की आबादी घटती गई। एक शोध में बताया गया है कि वर्ष 2001 तक यहाँ मछुआरों की आबादी घटकर 5 हजार पर आ गई। फिलहाल यहाँ मछुआरों के महज 3 हजार परिवार रह रहे हैं। वे किसी तरह संघर्ष कर खुद को बचाए हुए हैं लेकिन कब तक रहेंगे, यह कहना मुश्किल है क्योंकि हर गुजरते दिन के साथ घोड़ामारा का क्षेत्रफल भी घटता ही जा रहा है।

शोध के अनुसार घोड़ामारा द्वीप फिलहाल महज 5 वर्ग किलोमीटर में सिमट कर रह गया है।

कहते हैं कि 70 के दशक में यह 10 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैला हुआ था। समुद्र दिनोंदिन इसे लील रहा है, जिस कारण यहाँ रहने वाले लोग धीरे-धीरे पलायन कर रहे हैं। जादवपुर विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ ओसिनोग्राफिक स्टडीज ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि वर्ष 1969 से लेकर अब तक घोड़ामारा द्वीप का 41 प्रतिशत हिस्सा समुद्र में डूब चुका है।

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि वर्ष 2020 तक इस द्वीप का अस्तित्व पूरी तरह खत्म हो जाएगा। यही नहीं, रिपोर्ट में वर्ष 2022 तक सुन्दरबन के एक दर्जन द्वीपों के अस्तित्व के खत्म हो जाने की आशंका व्यक्त की गई है।

यहाँ यह भी बता दें कि सुन्दरबन क्षेत्र (पश्चिम बंगाल के उत्तर व दक्षिण 24 परगना जिलों में) कुल 104 द्वीप हैं।

बहरहाल, बताया जाता है कि नयाचर द्वीप 90 के दशक तक पानी डूबता-उभरता रहा था, लेकिन इसके बाद यह द्वीप नहीं डूबा। उस वक्त वहाँ न तो कोई पेड़-पौधा था और न ही कोई जीव-जन्तु या पक्षी।

लेकिन, धीरे-धीरे यहाँ पारिस्थितिकी तंत्र तैयार होता गया और फिर जीव-जन्तु व पेड़-पौधे भी आबाद हो गए। अभी वहाँ तितलियाँ, मधुमक्खी, पंछी व जलीय जन्तुओं का डेरा है।

‘स्टडीज ऑन द सक्सेशन एंड फॉनल डायवर्सिटी एंड इकोसिस्टम डायनेमिक्स इन नयाचर आइलैंड इण्डियन सुन्दरबन डेल्टा’ किताब को एके हाजरा, जीपी मंडल, एमके डे, एके सान्याल और एके घोष ने मिलकर तैयार किया है।

इस द्वीप में मजेदार बात यह है कि अलग-अलग प्रजातिओं के जीव-जन्तु रह रहे हैं, जिसका मतलब है कि यहाँ की पारिस्थितिकी इनके जीवन के अनुकूल है।

मधुमक्खीइस द्वीप को लेकर 90 के दशक के उत्तरार्द्ध से ही शोध किया जा रहा था। विशेषज्ञों का कहना है कि यह शोध अपने आप में अद्वितीय है, क्योंकि इससे न केवल द्वीप की मिट्टी की प्रकृति को समझने में मदद मिली है बल्कि इससे जीव-जन्तुओं की प्रजातियों के बारे में काफी कुछ जानने को मिला है।

शोधकर्ताओं की मानें, तो सन 1989 में जब पहला सर्वेक्षण किया गया था, तो मिट्टी में केवल तीन प्रकार के ही अतिसूक्ष्म जीव थे। इनकी संख्या में धीरे-धीरे इजाफा होता गया और फिलहाल 151 प्रजातियाँ हैं।

उल्लेखनीय हो कि नयाचर में मैंग्रोव इकोसिस्टम है। किताब के अनुसार द्वीप में जीव-जन्तुओं की संख्या में तो इजाफा हुआ ही है, साथ ही इसके क्षेत्रफल में अच्छा खासा विस्तार हुआ है।

किताब में बताया गया है कि द्वीप में मछलियों की 27 प्रजातियाँ हैं। 1992 में यहाँ मछलियों की महज 12 प्रजातियाँ थीं। वहीं, पक्षियों की 37 प्रजातियाँ यहाँ निवास कर रही हैं। जिनमें पीले रंग की खूबसूरत चिड़िया भी शामिल हैं।

जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इण्डिया के विज्ञानी डॉ गुरुपद मंडल ने कहा कि नयाचर में प्रजातियों का वंश-क्रम भी अद्वितीय है। उन्होंने बताया, ‘यहाँ सूक्ष्म जन्तुओं की 20 प्रजातियाँ पाई गईं जिनमें से आठ प्रजातियाँ एकारिना और छह प्रजातियाँ कोलेम्बोला से जुड़ी हुई हैं।’

शोध से पता चला है कि नयाचर में मौजूद सभी प्रजातियों के जीवन के लिये अनुकूल परिस्थितियाँ उपलब्ध हैं। शोध पुस्तक में बताया गया है कि सभी प्रजातियों में समान रूप से बढ़ोत्तरी देखी गई है। मसलन 1992 में नयाचर में मछलियों की केवल 12 प्रजातियाँ थीं जो बढ़कर 27 हो गई है। इसी तरह सन 1992 में पक्षियों की महज चार प्रजातियाँ थीं, जो वर्ष 2004 में बढ़कर 27 हो गई हैं और अभी इस द्वीप में 37 प्रकार के पक्षी पाये जाते हैं।

पक्षी व मछलियों के अलावा इस द्वीप में गिलहरी, चूहे आदि भी रहते हैं। इनकी संख्या में भी पिछले डेढ़ दो दशकों में बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है। इसके अलावा यहाँ 33 प्रकार की तितलियाँ भी मौजूद हैं। बताया जाता है कि पहले यहाँ केवल सात तरह की तितलियाँ ही रहती थीं।

डॉ एके हाजरा कहते हैं, ‘ज्वार के वक्त यहाँ काफी मात्रा में मिट्टी आती है और साथ ही मछुआरों द्वारा दूसरी जगहों से भी मिट्टी लाई जाती है, जो यहाँ के जीव-जन्तुओं की प्रजातियों के पनपने में मददगार साबित होती हैं।’

तितलीशोधकर्ताओं का कहना है कि नयाचार की मिट्टी से सूक्ष्म जैविक तत्व निकलता है, जो ऊर्जा व कार्बन डाइऑक्साइड विसर्जित करता और इसी प्रक्रिया के तहत जीव-जन्तुओं को जीवन के लिये जरूरी आबोहवा मिलती है। यह पूरी प्रक्रिया मानी हुई है यानी इसी तरह की प्रक्रिया से आबोहवा व जीने के लिये जरूरी माहौल तैयार होता है।

बताया जाता है कि द्वीप व वहाँ की मिट्टी में अतिसूक्ष्म जीव पाये जाते हैं, जो मछलियों व कीट पतंगों के लिये भोजन के काम आते हैं। इससे मछलियों व कीट-पतंगों की संख्या में इजाफा होता जाता है।

विज्ञानियों का यह भी कहना है कि विभिन्न प्रजातियों के वंश-चक्र को समझने में नयाचर मील का पत्थर साबित हो सकता है क्योंकि यह द्वीप कभी वीरान था, मगर अभी वहाँ 150 जीव निवास कर रहे हैं और उनकी संख्या दिनोंदिन बढ़ती ही जा रही है।

विज्ञानियों ने बताया कि नयाचार द्वीप विज्ञान के क्षेत्र में कई नए रहस्यों से परदा हटा सकता है। वैसे अगर पूरे मामले को गहराई से देखा जाये, तो यह कुछ ऐसा ही है जैसे इस पृथ्वी का विकास। जिस तरह इस धरती पर जीवन का आरम्भ हुआ, उसी तरह नयाचर द्वीप पर भी जीवन की शुरुआत हुई। इससे पहले यह द्वीप बंजर था।

विज्ञानियों की राय है कि इस द्वीप को लेकर अभी और शोध करने की आवश्यकता है और साथ ही इस पर पैनी नजर रखी जानी चाहिए।

पीली चिड़िया

झिंगा

इनपुट साभार – द हिन्दू
 

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Post By: RuralWater
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