गंगा के गाद-विमुक्तिकरण के उपाय सुझाने के लिये केन्द्र सरकार द्वारा गठित चितले समिति ने गाद का वार्षिक बजट बनाने समय कई सिफ़ारिशें की हैं और इस मामले को किसी तकनीकी संस्थान को सौंप देने का सुझाव दिया है जो मोरफोलॉजीकल (आकृति वैज्ञानिक) और बाढ़ की आवृत्ति का अध्ययन करके गाद की पहुँच क्षेत्र में उन स्थलों को चिन्हित करेगा जहाँ से गाद हटाई जा सकती है।
समिति का गठन जल संसाधन, नदी विकास और गंगा पुनरुद्धार मंत्रालय ने जुलाई 2016 में किया था और भीमगौड़ा (उत्तराखंड) से फरक्का तक गंगा के गाद विमुक्तिकरण के लिये दिशा निर्देश तैयार करने का जिम्मा सौंपा था। समिति ने गाद और बालू में अंतर स्पष्ट करते हुए नदी की पारिस्थितिकी और पर्यावरणीय प्रवाह के लिये गाद विमुक्तिकरण की भूमिका पर विचार किया है।
समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि कटाव, गाद संवहन और गाद जमाव बेहद जटिल परिघटना है। गाद प्रबंधन और नियंत्रण के लिये हर जगह एक ही उपाय नहीं किया जा सकता क्योंकि इसपर क्षेत्रीयता का प्रभाव बहुत अधिक होता है। स्थानीय कारण जैसे टोपोग्राफी, नदी नियंत्रण संरचनाएँ, मिट्टी व जल संरक्षण उपाय, वृक्षाच्छादन और तटीय क्षेत्र में भूमि के उपयोग के तौर तरीकों का नदी के गाद पर अत्यधिक प्रभाव होता है। नदी नियंत्रण संरचनाएँ (जैसे जलाशय आदि), भूमि संरक्षण उपायों और गाद नियंत्रण कार्यक्रमों से निम्न प्रवाह क्षेत्र में गाद का बहाव कम होता है, जबकि तटीय क्षेत्र में हरियाली का घटना, सघन कृषि कार्यों से गाद के बहाव में बढ़ोत्तरी होती है। इसीत रह अनियंत्रित ढंग से गाद निकालने से पारिस्थितिकी और पर्यावरणीय प्रवाह पर प्रतिकूल प्रभाव हो सकता है। इसलिये गाद विमुक्तिकरण कार्यों की योजना बनाने और निष्पादित करने में बेहतर सिद्धांतों और दिशा-निर्देशों का पालन करना आवश्यक है।
रिपोर्ट के अनुसार गंगा जैसी बड़ी नदी के कटाव, गाद संवहन और गाद जमाव के बेहद जटिल परिघटना होने से उनके बारे में आकलन करना जन्मजात सीमाओं और अनिश्चितताओं से ग्रस्त होगी। गंगा मुख्य नदी का गूगल अर्थ मानचित्र पर पैमाइश करने से पता चला कि नदी के विभिन्न पाट गतिशील संतुलन की स्थिति में हैं। गाद का जमाव मुख्य तौर पर भीमगौड़ा बराज के नीचे और गंगा से विभिन्न सहायक नदियों के मिलन स्थल के आस-पास है। निकासी मार्ग का संकरापन, बड़े पैमाने पर गाद का जमाव और इसके नकारात्मक प्रभाव मुख्य तौर पर घाघरा के संगम और उसके आगे के बहाव क्षेत्र में देखा गया। घाघरा के संगम के बाद नदी के बाढ़ क्षेत्र की चौड़ाई लगभग 12 से 15 किलोमीटर तक फैल जाती है।
नदी में गाद संवहन के महत्त्व को स्वीकार करते हुए समिति ने कहा है कि गाद विमुक्तिकरण के लिये निम्नलिखित का ध्यान रखना आवश्यक है:-
- जलग्रहण क्षेत्र का उपचार और जल छाजन विकास के साथ-साथ कृषि की बेहतर पद्धतियों को अपनाना और नदीतट संरक्षण, कटावरोधक कार्य इत्यादि नदी में गाद का प्रवाह कम करते हैं और इन्हें समेकित ढंग से कराया जाना चाहिए।
- कटाव, गाद का स्थानांतरण और गाद जमाव नदी की प्राकृतिक नियामक व्यवस्थाएँ हैं और नदी की गाद संतुलन की अवस्था को बनाए रखा जाना चाहिए।
- नदी की बाढ़ को फैलने के लिये पर्याप्त जगह मिलनी चाहिए, जिसमें वह बिना किसी अड़चन के प्रवाहित हो सके।
- गाद को दूर करने के बजाए गाद को बहने का रास्ता देना बेहतर उपाय है।
बालू खनन के मामले में पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के दिशा-निर्देशों का उल्लेख करते हुए समिति ने गंगा नदी के गाद विमुक्तिकरण के लिये निम्नलिखित दिशा-निर्देश प्रस्तावित किए हैं:-
1. गंगा नदी अपने जलविज्ञान, गाद, प्राकृतिक तल और तट के अनुरूप संतुलन हासिल करने का प्रयास करती है। बाढ़ को नियंत्रित करने के लिये पर्याप्त बाढ़ क्षेत्र और झीलें उपलब्ध होना आवश्यक है। बाढ़ क्षेत्र में किसी भी प्रकार का अतिक्रमण, झीलों के भरने या नदी से संपर्क टूटने से बचाना चाहिए बल्कि निकट की झीलों से गाद हटाकर उनकी भंडारण क्षमता बढ़ानी चाहिए। झीलों से गाद हटाने में भी यह ध्यान रखना चाहिए कि गाद प्रवाह की निरंतरता कायम रहे।
2. ऊपरी बहाव क्षेत्र में बराज, पुल जैसे निर्माण कार्यों के कारण गाद भरने से नदी रास्ता भटक जाती है। नदी प्रशिक्षण, कटऑफ विकास और निर्माण स्थल के पास अतिरिक्त बहाव मार्ग बनाने का कार्य इसतरह से कराया जा सकता है जिसका अन्यत्र नदी की आकारिकी पर प्रभाव नहीं पड़े। ऑक्सबो झीलों के रूप में खाली हुए इलाके को भरने के बजाए इसका इस्तेमाल बाढ़ नियंत्रण के लिये किया जा सकता है।
3. प्रवाह के संकुचन के कारण बड़ी मात्रा में गाद जमा हो रही हो तो चयनित धारा से गाद निकालकर उसे गहरा किया जा सकता है ताकि जल प्रवाह उससे होकर हो। निकाली गई गाद को ऐसे वैकल्पिक जगहों पर रखा जा सकता है जिससे तटों के कटाव रोकने में मदद मिलने वाली हो। ऐसे स्थिर प्रवाह के विकास पर ध्यान देना चाहिए जिससे ऊपरी प्रवाह या निम्न प्रवाह में प्रतिकूल प्रभाव नहीं हो। बराज और वीयर के पास गाद की निरंतरता बनाए रखने पर ध्यान देना चाहिए।
4. तटबंध, ठोकर और नदी प्रशिक्षण कार्यों को बाढ़ क्षेत्र में अतिक्रमण नहीं करना चाहिए या झीलों और दूसरे पर्यावरणीय क्षेत्र को नदी से अलग नहीं करना चाहिए।
5. किसी नदी से गाद हटाने की प्रक्रिया को जायज साबित करने के लिये गाद के कारण आई बाढ़ के बारे में स्पष्ट जानकारी के साथ-साथ बाढ नियंत्रण के वैकल्पिक उपायों से तुलना करनी चाहिए। गाद हटाने के साथ ही कुछ नहीं करने के विकल्प पर भी विचार करना चाहिए। इसके साथ नदी में गाद के प्रवाह और मोरफोलॉजीकल अध्ययन कराना चाहिए जिससे तय हो सके कि गाद निकालने का ऊपरी प्रवाह या निम्न प्रवाह में प्रतिकूल प्रभाव नहीं होगा।
6. सहायक नदियों के संगम के पास, खासकर अत्यधिक गाद लाने वाली नदियों के संगम क्षेत्र में गाद निकालना आवश्यक हो सकता है जिससे नदी की जलविज्ञानी कुशलता में बढ़ोत्तरी हो।
7. गंगा मुख्य नदी और उसकी सहायक नदियों में ऊपरी प्रवाह क्षेत्र में जलाशयों को इस तरह से संचालित करना चाहिए कि पहली बाढ़ जिसमें अत्यधिक गाद होती है को बेरोकटोक बह जाने देना चाहिए और केवल मानसून के आखिरी चरणों के पानी को गैर मानसूनी समय में उपयोग के लिये संचयित करना चाहिए। इसके लिये दीर्घमीयादी मौसम पूर्वानुमान और निर्णय सक्षमता की जरूरत होगी तभी जलाशय का पूरा उपयोग किया जा सकेगा।
8. नदी के बाढ़ क्षेत्र में कृषि की पद्धति ऐसी होनी चाहिए कि वह बाढ़ के प्रवाह में अवरोध उत्पन्न नहीं करे।
9. नदी की आकृति विज्ञानी (मोरफोलॉजिकल) अध्ययन करना चाहिए ताकि नदी की धारा को सुधारने का कार्य किया जा सके। इसके तहत यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ऊपरी प्रवाह में हेडकट इंडूस से समूचे प्रवाह की गाद स्वतः प्रवाहित हो जाए। हेडकट इंडूस को निम्न प्रवाह क्षेत्र से धीरे-धीरे ऊपर की ओर ले जाना चाहिए ताकि नदी में बहने वाले वनस्पति व जीव जंतु को तालमेल बिठाने के लिये पर्याप्त समय मिल सके।
10. प्रस्ताव में पर्यावरणीय दृष्टि से स्वीकार्य और व्यावहारिक दृष्टि से उचित गाद-निष्कासन योजना का समावेश होना चाहिए। नदी में मौजूद पत्थर, बजरी व बालू का निर्माण कार्यो जैसे - मकान, सड़क, तटबंध, और भूमि भराई इत्यादि में उपयोग हो सकता है। किसी भी हालत में निकाले गए गाद को नदी, तालाब आदि भरने, वनस्पतियों व जीव-जंतुओं के लिये हानिकर कार्यों में नहीं लगाना चाहिए। यह भी सुनिश्चित होना चाहिए कि हटाई गई गाद फिर नदी में वापस नहीं आ सके।
11. फरक्का बराज के सामने इकट्ठा गाद के बारे में उठे विशेष मुद्दों को ध्यान में रखते हुए समिति ने यह सुझाव दिया है कि वहाँ बनी उथली जगहों के आस-पास नदी प्रशिक्षण कार्य का ध्यान रखते हुए गाद हटाई जा सकती है। इस गाद से फरक्का फीडर नहर की फिर से ग्रेडिंग और बराज के जलाशय तटबंधों को मजबूत किया जा सकता है। आवश्यक अध्ययन के बाद सेडिमेंट स्लूइसिंग की पद्धति अपनाई जा सकती है ताकि ऊपरी प्रवाह और निम्न प्रवाह के बीच गाद के संवहन की निरंतरता बनी रहे और बरसात के समय गाद अपने आप बहकर निकल जाए। गाद निकालने की प्रक्रिया में इसका खासतौर पर ध्यान रखना होगा कि बराज की वर्तमान संरचना को कोई नुकसान न पहुँचे।
12. ऊपरी प्रवाह क्षेत्र से आने वाली गाद के सुरक्षित ढंग से निम्न प्रवाह क्षेत्र में चले जाने के लिये बराज में आवश्यक इंतजाम करने के लिये आवश्यक अध्ययन कराना चाहिए। यह भी ध्यान रखना होगा कि इसतरह बराज से आगे निकला गाद निम्न प्रवाह क्षेत्र में अत्यधिक कटाव या दूसरे आकारिक समस्या पैदा नहीं करे।
13. गंगा पर कोई भी पुल जिसमें बड़ा एफलक्स (सामान्य गहराई से 1 प्रतिशत से अधिक) हो, को इसतरह से सुधारना चाहिए कि एफलक्स कम हो ताकि प्रवाह में अवरोध घटे और गाद का जमाव कम हो।
14. गाद हटाने के लिये खनन गतिविधियों के कई प्रतिकूल प्रभाव हो सकते हैं जैसेकि नदी तल का नीचे जाना, तटों का कटाव, धारा का चौड़ा होना, नदी की धारा के जल के सतह की प्रवणता कम होना, नदी के आस-पास भूजल की प्रवणता का कम होना, पुलों, पाइपलाइनों, जेटी, बराज, वीयर, जैसे मानवनिर्मित संरचनाओं की नींव कमजोर होना और इन सबका पर्यावरणीय प्रभाव। गाद निकालने की कोई योजना बनाने या कार्य निष्पादन करने में एहतियात बरतने के लिये समिति ने खासतौर से हिदायत दी है और एहतियाती उपायों को सूचीबद्ध किया है।
15. गंगा के गाद प्रबंधन का अध्ययन करने का जिम्मा किसी एक संस्थान को दी जा सकती है जो गंगा के साथ ही उसकी सहायक नदियों के गाद प्रबंधन का अध्ययन करेगी। इस अध्ययन रिपोर्ट को गंगा से जुड़ी किसी परियोजना के पर्यावरणीय मंजूरी के समय आधार दस्तावेज के तौर पर उपयोग किया जाएगा।
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