एसडीजी की प्रतिबद्धता

भारत में किसानों की स्थिति
भारत में किसानों की स्थिति

नीति आयोग ने घोषणा की थी कि वह आगामी जून, 2018 को भारत की सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) का सूचकांक जारी करेगा। एक वैश्विक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में यदि वर्तमान गति से विकास कार्यक्रम चलते हैं तो वह किसी भी एसडीजी के लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर पाएगा।

यह रिपोर्ट पहली बार 2016 में और दूसरी बार 2017 में फिर से प्रकाशित हुई। रिपोर्ट बताती है कि एसडीजी के 17 लक्ष्यों में भारत का प्रदर्शन लगातार गिरा है। इनमें शहरी इलाकों में पीएम 2.5, तपेदिक की घटनाएँ, स्कूली शिक्षा के लिये बिताये गये वर्ष और महिला मजदूरों की भागीदारी शामिल है। इस मामले में भारत की स्थिति संयुक्त राष्ट्र के 157 देशों में 116वें स्थान पर है। वह अपने पड़ोसी मुल्क श्रीलंका (81), भूटान (83) और नेपाल (115) से भी पीछे है।

हाल ही में नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत ने कहा कि वास्तव में एसडीजी के लक्ष्यों को प्राप्त करने में अति पिछड़े राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान सबसे बड़ा रोड़ा बने हुए हैं। ये राज्य सामाजिक और आर्थिक क्षेत्र में राष्ट्रीय औसत के मुकाबले बहुत पिछड़े हुए हैं। भारत में दुनिया कि कुल आबादी में 17 प्रतिशत हिस्सा है और इन पाँच राज्यों में देश की कुल आबादी का 42 फीसदी हिस्सा निवास करता है। इन राज्यों में निवास करने वाला हर चौथा व्यक्ति गरीब है।

भारत का प्रदर्शन गरीबी खत्म करने, लैंगिक समानता, उद्योग, जानकारी एवं मूलभूत ढाँचा, वायु प्रदूषण कम करने और साफ पानी उपलब्ध कराने में काफी खराब रहा है। वास्तव में एसडीजी राज्य सरकारों को सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय मानकों पर उनके प्रदर्शन का मूल्यांकन करने में मदद कर सकता है। भारत ने जुलाई 2017 में सतत रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र में प्रस्तुत की थी। रिपोर्ट में उन कार्यक्रमों और उपायों का जिक्र किया गया जो पूरे भारत में लागू किये जा रहे हैं ताकि लक्ष्यों को हासिल किया जा सके।

विषमता की खाई

भारत में खनिज और जंगलों जैसे प्राकृतिक संसाधनों से सम्पन्न क्षेत्रों में सबसे गरीब आबादी बसती है।

भारत स्वास्थ्य व विकास के सूचकांक पर कैसा प्रदर्शन करता है, यह काफी हद तक राज्यों के प्रदर्शन पर निर्भर है। हाल ही में नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत अपने बयान से उस वक्त सुर्खियों में आ गए जब उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश, बिहार और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों के सामाजिक संकेतकों में पिछड़ने के कारण भारत अल्पविकसित है। भले ही उन्हें अपने बयान के कारण आलोचनाओं का सामना करना पड़ा हो लेकिन उनकी बात पूरी तरह गलत भी नहीं है।

यदि आप भारत का मानचित्र गौर से देखेंगे तो पता चलेगा कि खनिज और जंगलों जैसे प्राकृतिक संसाधनों से सम्पन्न क्षेत्रों में सबसे गरीब आबादी बसती है। मध्य प्रदेश व ओडिशा में देश की गरीब आबादी का बड़ा हिस्सा बसता है। यहाँ बच्चों में कुपोषण, मातृ व शिशु मृत्युदर ऊँची है। डाउन टू अर्थ की रिपोर्ट में बताया जा चुका है कि जंगलों के इर्द-गिर्द रहने वाले आदिवासी समुदाय पोषक भोजन के नजदीक रहने के बावजूद सर्वाधिक कुपोषित हैं।

भारत के राज्यों में आर्थिक विषमता दुनिया में सबसे अधिक है। 1960 में पश्चिम बंगाल में एक व्यक्ति औसतन 390 रुपए प्रतिवर्ष अर्जित कर रहा था जबकि तमिलनाडु में यह राशि 330 रुपए थी। लेकिन 2014 में एक बंगाली सालाना औसतन 80 हजार रुपए अर्जित कर रहा था जबकि तमिलनाडु में रहने वाले व्यक्ति ने साल में 1 लाख 36 हजार रुपए अर्जित किये। 1960 में तमिलनाडु चौथा सबसे गरीब राज्य था लेकिन 2014 में यह दूसरा सबसे धनी राज्य बन गया। दक्षिण भारतीय राज्य तेजी से ऊपर उठे हैं जबकि पश्चिम बंगाल और राजस्थान पिछड़ते गए हैं। 1960 में चोटी के तीन राज्य के मुकाबले निचले पायदान के तीन राज्य 1.7 गुणा अधिक सम्पन्न थे।

2014 में यह अन्तर लगभग दोगुना हो गया। अब चोटी के तीन राज्य निचले पायदान पर स्थित तीन राज्यों से 3 गुणा अधिक सम्पन्न हैं। 1960 में महाराष्ट्र उस वक्त सबसे निचले पायदान पर स्थित बिहार से दोगुना सम्पन्न था। 2014 में केरल, बिहार से 4 गुणा अधिक सम्पन्न था। आर्थिक सिद्धान्त सुझाव देते हैं कि गरीब क्षेत्रों का तेजी से विकास करना चाहिए ताकि वे अमीर राज्यों के समकक्ष आ सकें लेकिन भारत में इस विषमता के बढ़ने का ही चलन है।

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