एनजीटी के फैसलों से रुकेगा बेलगाम भूजल दोहन

बिल्डर, टैंकर माफिया, होटल और स्लाटर हाउस कर रहे जल की बर्बादी


भूजल दोहन का हालांकि कोई सटीक सरकारी लेखा-जोखा उपलब्ध नहीं है परन्तु मोटे अनुमान के अनुसार केवल लखनऊ में ही सबमर्सिबिल पम्पों के सहारे टैंकर माफिया रोजाना दो से तीन करोड़ लीटर पानी का दोहन कर लेते हैं। बड़े-बड़े होटल भी पीछे नहीं हैं। औसतन एक बड़ा होटल हर दिन करीब दो लाख लीटर पानी बोरवेल से निकालता है। बहुमंजिला आवासीय इमारत द्वारा औसतन तीन से चार लाख लीटर पानी जलापूर्ति के नाम पर बोरिंग से खींचा जा रहा है। भवन निर्माण में बिल्डर जो पानी खर्च कर रहे हैं उसका कोई ब्यौरा ही नहीं है।उत्तर प्रदेश में भूजल की चौतरफा लूट किसी से छिपी नहीं है। उद्योग, बिल्डर, टैंकर माफिया, होटल, स्लाटर हाउस, नर्सिंग होम सहित रेलवे व अन्य तमाम सरकारी व गैर सरकारी प्रतिष्ठान बीते कई वर्षों से बड़े पैमाने पर भूजल का दोहन कर रहे हैं, लेकिन भूजल के व्यवसाय को रोकने में सरकारें पूरी तरह से नाकाम रही हैं।

भूजल के अन्धाधुन्ध दोहन पर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के सख्त रवैए से कुछ उम्मीद जरूर बँधी है। माना जा रहा है कि दोहन पर एनजीटी द्वारा दिये गए सिलसिलेवार फैसलों और निर्देशों से शायद अब भूजल की इस लूट पर भविष्य में कुछ लगाम लग सके। हालांकि यह अदालती फैसले तभी सार्थक होंगे, जब जिम्मेदार आला अफसर एनजीटी के आदेशों की मंशा समझ कर ईमानदार पहल करें और पानी के धन्धे में इस्तेमाल किये जा रहे बोरवेल पर रोक लगाएँ।

केन्द्रीय भूजल प्राधिकरण द्वारा बोरवेल लगाने की अनुमति के नाम पर जिस तरह से एनओसी दी जा रही है, वह भी सवालों के घेरे में है। कारण यह है कि प्राधिकरण द्वारा एनओसी के लिये जारी गाइड लाइन बेहद लचर है। पूरे प्रदेश में मात्र गाजियाबाद के अलावा कोई अन्य क्षेत्र बीते 18 वर्ष में प्राधिकरण द्वारा अधिसुचित नहीं किया गया जबकि तमाम शहरी व ग्रामीण क्षेत्र भूजल के अतिदोहन से घिरे हैं।

 

 

खींचा जा रहा लाखों लीटर पानी


भूजल दोहन का हालांकि कोई सटीक सरकारी लेखा-जोखा उपलब्ध नहीं है परन्तु मोटे अनुमान के अनुसार केवल लखनऊ में ही सबमर्सिबिल पम्पों के सहारे टैंकर माफिया रोजाना दो से तीन करोड़ लीटर पानी का दोहन कर लेते हैं। बड़े-बड़े होटल भी पीछे नहीं हैं। औसतन एक बड़ा होटल हर दिन करीब दो लाख लीटर पानी बोरवेल से निकालता है। बहुमंजिला आवासीय इमारत द्वारा औसतन तीन से चार लाख लीटर पानी जलापूर्ति के नाम पर बोरिंग से खींचा जा रहा है। भवन निर्माण में बिल्डर जो पानी खर्च कर रहे हैं उसका कोई ब्यौरा ही नहीं है।

 

 

 

 

भारी पड़ रहा है ईजमेंट एक्ट


दरअसल, भूजल दोहन के नियंत्रण में ईजमेंट एक्ट, 1982 में व्यवस्था है कि जिसकी जमीन है, उसके नीचे के भूजल पर भी उसी का अधिकार है। यह वैधानिक व्यवस्था ‘वैज्ञानिक सिद्धान्तों’ का खुला उल्लंघन है, क्योंकि भूजल भण्डारों की कोई सीमा तय नहीं है। हर भूजल भण्डार का अपना प्राकृतिक क्षेत्र होता है, जिसका विस्तार किसी भी बिन्दु तक हो सकता है।

 

 

 

 

बोतलबन्द पानी में भी इस्तेमाल


बोतलबन्द पानी के धंधे में केवल लखनऊ में ही 70-80 इकाइयाँ लाखों लीटर पानी बोरवेल से निकाल कर बेच रही हैं। उद्योग भी अपनी सारी जरूरत बोरिंग से ही पूरी करते हैं। सड़क निर्माण तक के लिये बोरिंग का पानी इस्तेमाल होता है। लखनऊ में रेलवे के 60 से अधिक नलकूपों से हो रहे दोहन से सरकारी प्रतिष्ठानों में जल दोहन का अन्दाजा लग सकता है।

 

 

 

 

एनजीटी में मामले


1. स्लॉटर हाउस बेहिसाब भूजल दोहन करते हैं लेकिन कुल कितना, यह जानकारी किसी के पास नहीं है। एनजीटी ने केन्द्रीय भूजल बोर्ड को इस बाबत कड़ी फटकार लगाई है।

2. प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों को भी निर्देश दिये हैं कि बताएँ कि प्रदेश में कितने स्लॉटर हाउस हैं, कितना जल दोहन कर रहे हैं।

3. एक मामले में ट्रिब्यूनल ने रेलवे को नोटिस जारी कर पूछा है कि ट्रेन कोच, प्लेटफार्म व अन्य जरूरतों के लिये कितना भूजल निकाला जा रहा है।

4. नोएडा के बड़े बिल्डर्स पर भी भूजल दोहन पर रोक लगी है। नामचीन होटलों पर भी भूजल के बेलगाम दोहन का आरोप है।

 

 

 

 

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Post By: RuralWater
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